जलजीव पालन के अंतर्गत मछली पालन तो किया ही जाता है परन्तु इसके अंतर्गत झींगा पालन से भी अधिक मात्रा में लाभ कमाया जा सकता हैं। झींगा हमारे देश के सागर, नदी संगम स्थल, कच्छ तथा पश्च जल (रूका हुआ पानी) वाले स्थानों में प्रचुरता से पाये जाते हैं। व्यावसायिक पालन प्रांरभ होने से पूर्व झींगा प्राकृतिक समुदिक क्षेत्रों तथा पश्च जल (रूका हुआ पानी) स्थलों, पोक्कली क्षेत्रों एवं मेरियो से पकड़े जाते थे। झीेंगा पालन का हमारे राज्य में भी प्रचुर संभावनाएँ है, प्रदेश में बहने वाली इंद्रावती, गोदावरी एवं सबरी नदी में मीठे जल में पाए जाने वाला झींगा पाया जाता हैं। जिसका सुव्यवस्थित तरीके से पालन करके भरपूर लाभ कमाया जा सकता हैं।
प्रजातिः मीठे जल में झींगा पालन के लिए मेक्रोब्रेक्यिम रोजनबगाई एवं मेक्रोब्रेकियम मेल्कम सोनाई प्रजाति का चयन किया जाता हैं। रोनबगाई की 7 सौ ग्राम तक वृद्धि हो सकती हैं। रोजनबगाई 4-6 माह में परिपक्व हो जाता हैं। मेक्लम सोनाई एक वर्ष में 100 से 200 ग्राम वनज का हो जाता है। झींगा पालन के लिए महत्वपूर्ण कारकः-
 कारक
 
  मान
तापमान 
25 से 30  डिग्री सेन्टीग्रेड
पी-एच-
7 से 8-5 तक
पारदर्शिता
40 सेंटीमीटर तक
क्षारीयता
50-100 पी-पी-एम
लवणीयता
50 पी-पी-एम
आक्सीजन
5-7 पी-पी-एम
हाइड्रोजन सल्फाइड
0 पी-पी-एम
लोहा
2 पी-पी-एम
नाइट्राइट
1 पी-पी-एम
नाइट्रेट
20 पी-पी-एम
मिट्टी
पानी रोकने की क्षयलायुक्त
जल की उपलब्धता
वर्ष भर


झींगा पालन वाले तलाबों की स्थिति ऐसी होनी कि इच्छानुसार सम्पूर्ण जल निकाल कर सुखाया तथा भरा जा सके। पुराने तालाबों का जल निकाल कर अच्छी प्रकार से सुखने के पश्चात मृदा खुदाई करके समतलीकरण करना चाहिए। 500 कि-ग्रा-/हेक्टेयर की दर से मदृआ खली का प्रयोग निम्रतय जल स्तर 10-15 से-मी- में करना उचित होता हैं। 375 कि-ग्रा- हेल्थस्टोन की प्रयोग करने से पी-एच- मान ठीक रहता हैं। जल स्तर बढ़ाकर 25 से-मी- करने के बाद सूखा गोबर सुपरफास्फेट व यूरिया प्रत्येक 10 कि-ग्रा- के मिश्रण का प्रयोग तथा तीन दिन के पश्चात चाय-बीज खली एवं चूना प्रत्येक 30 कि-ग्रा- का प्रयोग करना चाहिए। अगले दिन सूखा गोबर, सुपरफास्फेट व यूरिया प्रत्येक 5 कि-ग्रा- मिश्रण की अतिरिक्त मात्रा देनी चाहिए। हेल्थस्टोन 25 कि-ग्रा- एवं बी-एन- 10 कि.ग्रा. की अतिरिक्त मात्रा के प्रयोग से जीवाणुओं को नियंत्रित किया जा सकता हैं। जल स्तर को 100-125 से.मी. तक भरकर वायुसंपीडको का प्रयोग करना चाहिए जल में घुलनशील आक्सीजन की मात्रा 3-10 पी.पी.एम. रखना उचित होता हैं। 3 पी.पी.एम. से कम होने पर झींगा कम भोजन करते है, जिससे शारीरिक विकास कम होता हैं। झींगा बीज संचय करने से पहले तालाब में उपस्थित अवांछनीय जलीय खरपतवार तथा हानिकारक मछली का उन्मूलन करना चाहिए साथ ही साथ हानिकारक कीट का भी उन्मूलन करना चाहिए।

जीवन चक्रः- झींगा अपने जीवन काल में 5 अवस्थाओं से गुजरता हैं। अंडा, लार्वा, पोस्ट लार्वा, जुवेनाईता एवं वयस्क इनको प्रारंभिक अवस्थाओं को मीठे पानी की आवश्यकता हो होती हैं। झींगा के लिए शरणस्थली होनी आवश्यक हैं। क्योंकि यह अपनी त्वचा को छोड़ती है। शरण देने के लिए 2 से 4 इंच व्यास के पाईप के टुकड़े टायर पेड़ो की सूखी डालियाँ आदि डाली जाती हैं।

झींगा बीज संचयः- तालाब की पूर्ण तैयारी और शरणस्थल रखने के पश्चात पोस्ट लार्वा या जुवेनाइल संचय किये जाते है।

पूरक आहारः- झींगा उत्पादन बढ़ाने के लिए कोटा सरसो खल्ली, सोयाबीन का आटा, ताजी सूखी मछली एवं खनिज मिश्रण 40:40:15:4:0:7:3 अनुपात में मिलाकर 2-3 प्रतिशत संकचत बीज के वजन के मान से प्रतिदिन भोजन दिया जाता हैं। भोजन को प्रतिदिन शाम के समय चैड़े व कम गहरे बर्तन में रख कर तालाब के पिछले भागों में कई स्थानों में रख देना उचित रहता हैं। यह एक अनुमानित मात्रा है। वास्तविक मात्रा अनुभव तथा भोजन के बचने या समाप्त हो जाने के बाधार पर घटायी अथवा बढ़ायी जा सकती है। इसका ध्यान रहना चाहिए कि भोजन की कमी न होने पाये अन्यथा इनमें स्ववंश भोजी प्रवृति उत्पन्न हो जाने के कारण उत्पादन पर विपरित प्रभाव पड़ेगा।

उत्पादनः- झींगे की जीवतता 40-50 प्रतिशत होती हैं। 80-120 ग्राम वजन होने पर विक्रय प्रारंभ किया जा सकता हैं।

देखभालः-
  • ऐसी जगहों पर तालाब निमार्ण नहीं करना चाहिए जहां जल रिसाव शीघ्रता से होता हो और जहां तलहटी औसत न्यूनतम जल स्तर से नीचे हो।
  • जल में प्राकृतिक भोजन प्लवक की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए।
  • समय पर जलरिसाव जल-स्तर तथा अवांछित जंतुओं आदि का निरीक्षण करते रहना चाहिए।
  • तलहटी में प्रांगरिक पदार्थो के सड़न-गलन व रासायनिक प्रध्यासीकरण के फलस्वरूप हाइड्रोजन सल्फाईड गैस का निमार्ण तथा एकत्रीकरण होता है। इसके कारण मृदा काली हो जाती है तथा सड़े-अंडे के समान दुर्गन्ध आती है। बचाव हेतु समस्त जगह को बदलना चाहिए।
  • यदि कोई बीमारी दिखाई पड़े तो समीप के विशेषज्ञ को मिलकर सलाह लेना व तद्नुसार उपचार करना चाहिए।
  • चौकीदारी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे चोरी अथवा विष देने आदि की घटना न होने पायें।