वर्मी कम्पोस्ट बनाने की तकनीकः
वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिये समतल एवं छायादार जगह का चयन करना चाहिए। इनकी लंबाई व चैड़ाई अपनी आवश्यकतानुसार छोटी या बड़ी हो सकती हैं। वैसे आदर्श आकार 12 फीट लंबाई, 5 फीट चैड़ाई, 3 फीट ऊँचाई होना चाहिए।
  • प्रत्येक क्यारी की निचली सतह पर 5 सेमी. मोटी बालू या रेतीली मिट्टी बिछायें।
  • उसके ऊपर 10 सेमी. गेहूँ या धान का भूसा बिछायें।
  • इसके ऊपर 30 सेमी. तक गोबर (10-15 दिन पुराना) फैला दें।
  • तत्पश्चात् 4.5 इंच तक जिस वस्तु विशेष (जैसे पादप व्यर्थ पदार्थ आदि) जिसे आप वर्मी कम्पोस्ट में परिवर्तित करना चाहते हैं, उसे छोटे-छोटे भागों में काट कर गोबर के ऊपर बराबर से बिछा दें।
  • क्यारी को एक वर्ग मीटर में 1000 केंचुए डालकर रद्दी के बोरे से ढ़क देना चाहिए।
  • वर्मी पीट में सूर्य की धूप से बचाने के लिए शेड लगायें ताकि सीधे सूर्य के प्रकाश के धु्रव पर न पड़े।
  • फिर क्यारी की बोरी या टाट के ऊपर फव्वारे से अच्छी तरह पानी दें। नमी लगभग 40-60 प्रतिशत होनी चाहिए। इसके लिए शीतकाल में दिन में एक बार, ग्रीष्म काल में दिन में 2-3 बार एवं वर्षा काल में 2-3 दिन में एक बार अवश्य पानी दें।
  • 2-3 माह बाद केंचुए की खाद तैयार हो जाती है और यह प्रयोग में लाई गयी चाय की पत्ती के रंग में बदल जाती हैं।
  • वर्मी कम्पोस्ट को इकट्ठा करने से 3-4 दिन पहले पानी का छिड़काव बंद कर दें और उसकी सतह को सूखने दें। सूखने के बाद उसे इकट्ठा कर छान (2.5 मि.मी. की जाली से) लें।
  • केचुओं को इकट्ठा करके वापस नई क्यारी में डाल दें।
  • कम्पोस्ट का संग्रह पाॅलीथिन या प्लास्टिक की बोरी में भरकर छाया वाले स्थान पर ही करें।

वर्मी कम्पोस्ट के लाभ एवं उपयोग

  • केंचुआ के पेट में जो जीवाणु होते हैं उसमें गोंदनुमा पदार्थ निकलता है कुछ धूल कणों को सख्त बनाता है यह धूल कण भारी जमीन को नरम बनाते हैं, जिससे भूमि हवादार और पानी के विस्तार के लिए उपयोगी बनती हैं।
  • अन्य रासायनिक व जैविक खादों की तुलना में वर्मी कम्पोस्ट अत्यंत सरल, कम समय में तैयार, पर्यावरण सुरक्षित, पेड़-पौधों को स्वस्थ रखने, पैदावार को बढ़ाने व भूमि को उपजाऊ बनाने में उपयोगी हैं।
  • इसमें विभिन्न प्रकार के जीवाणु, सूक्ष्म तत्व तथा बैक्टीरिया प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं जो पेड़-पौधों के लिए आवाश्यक हैं और पर्यावरण को भी संतुलित रखते हैं।
  • केंचुये के विकास में पेरोट्रयिक इल्ली होती हैं जो जमीन में धूल कणों से चिपक कर जमीन से वाष्पीकरण रोकती हैं।
  • मृदा, जल व सूक्ष्म जीवों को उचित वातावरण प्रदान करता हैं व संरक्षण देता हैं।
  • केंचुआ गंदगी फैलाने वाले हानिकारक जीवाणुओं को खा जाता हैं और उसे लाभदायक ह्नयूमस में बदल देता हैं।
  • इसके निरंतर प्रयोग से धीरे-धीरे रासायनिक खादों से छुटकारा मिल जाता हैं तथा भूमि की उर्वरा शक्ति फिर से लौट आती हैं।
  • इसके प्रयोग से पेड़-पौधे स्वस्थ रहते हैं व अधिक पैदावार देते हैं तथा उनमें कीट व रोग से लड़ने की प्रतिरोधक शक्ति धीरे-धीरे आने लगती हैं।
  • केंचुआ मुक्त जमीन में भूमि का क्षरण रोकता हैं।
  • अब वर्मी कम्पोस्ट एक प्रकार का सरल, सस्ता व लाभदायी व्यवसाय बनता जा रहा हैं जिससे हमारे गांव में नौजवानों को रोजगार का मौका मिलता हैं।
  • केंचुआ किसान का मित्र होता हैं।
  • केंचुआ के शरीर का 85 प्रतिशत भाग पानी का बना होता हैं इसलिए सूखे की स्थिति में अपने शरीर के पानी का ह्यस भी हो जाये तो केंचुआ जिन्दा रह सकता हैं। मरने के बाद भी उसके शरीर से जमीन को सीधे नाइट्रोजन मिलती हैं।