पौध संरक्षण दवाओं में पौध रोग नियंत्रण के लिए फफूंदनाशक दवाओं का प्रयोग किया जाता है। इन दवाओं का उपयोग अत्यधिक सावधानियों के साथ किया जाना आवष्यक समझना चाहिए। ये दवाएँ पौधों को प्रभावित न करते हुए रोगजनक को निष्क्रिय कर सकती हैं।
रोगजनक भी पौध कुल के ही सदस्य होते है, यदि उपयोग में आवष्यक सावधानियाँ न बरती जाये तो दवा या रसायन का प्रभाव पौधों पर भी हो जाने की संभावना होती हैं। निम्नलिखित सावधानियाँ को दवाओं के उपयोग के दौरान ध्यान में रखना चाहिए जिससे इन महँगी दवाओं से अपेक्षित लाभ प्राप्त किया जा सके, साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर किसी भी तरह के दुष्प्रभाव से भी बचाव हो सके व पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होगा।
रोगजनक भी पौध कुल के ही सदस्य होते है, यदि उपयोग में आवष्यक सावधानियाँ न बरती जाये तो दवा या रसायन का प्रभाव पौधों पर भी हो जाने की संभावना होती हैं। निम्नलिखित सावधानियाँ को दवाओं के उपयोग के दौरान ध्यान में रखना चाहिए जिससे इन महँगी दवाओं से अपेक्षित लाभ प्राप्त किया जा सके, साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर किसी भी तरह के दुष्प्रभाव से भी बचाव हो सके व पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होगा।
1. उपयुक्त दवा ही उपयोग की जानी चाहिए क्योंकि कीट नियंत्रण व रोग नियंत्रण के लिए अलग-अलग दवाएँ होती है इसलिए किसान के हित में है कि वह कृषि या उद्यान विस्तार अधिकारी अथवा किसी प्रगतिशील किसान से सलाह अवश्य ही लेवें ।
2. दवा का उपयोग खेत में किया जाता है इसलिए वहाँ जाने से पूर्व दवा की मात्रा निश्चित अनुपात में पानी की मात्रा के अनुसार तौलकर पुड़िया बना लें और पानी नपना साथ रख ले। दवा से अपेक्षित प्रभाव निश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि दवा की मात्रा तौलकर और पानी नापकर लिया जाए, किसी भी स्थिति में अंदाजा विधि से दवा या पानी न लिया जाए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती हैं।
3. दवा सही मात्रा में ड़ालना जितना आवश्यक है उतना ही सही समय में ड़ालना भी आवश्यक हैं। पौध रोग सूक्ष्म जीवों से उत्पन्न होते हैं एवं इनमें प्रजनन क्षमता सर्वाधिक होता हैं। यदि विलम्ब से दवा को ड़ाला जायेगा तो जो रोगजन अपनी बढ़वार कर चुके होगें और तब उन्हें फसल को नुकसान पहुंचाने से रोकना कठिन होगा इसलिए रोग की आरंभिक अवस्था में ही दवा ड़ालनी चाहिए।
4. अधिकांश फफूंदनाशक दवाएँ घुलनशील नहीं होता हैं वे पानी में निलम्बन घोल बनाती हैं जिसका अर्थ होता हैं कि दवा के सभी कण पानी में बिखर जाते हैं अतः दवा के पानी में अच्छी तरह घुलने के पश्चात ही उसे उपयोग में लेना चाहिए। किसी भी स्थिति में घुलनशील अथवा अघुलनशील घोल का उपयोग नही करता चाहिए अन्यथा दवा का वितरण उचित नही होगा एवं स्प्रेयर यंत्र से छिड़काव करना कठिन हो जायेगा।
5. दवा का उपयोग करते समय नंगे हाथ से दवा को कभी नहीं छूना चाहिए दवा को कागज, चम्मच या किसी अन्य चीजों से ही उठाना चाहिए। घोल बनाते समय साफ-सुथरी लकड़ी की छड़ी का प्रयोग करना चाहिए।
6. दवा का छिड़काव करते समय हवा के प्रवाह का ध्यान रखना चाहिए, हवा की ओर मुँह करके कभी भी भुरकाव या छिड़काव नही करना चाहिए।
7. साधारणतःदवा का प्रयोग सुबह या षाम के समय करना चाहिए, क्योंकि दोपहर में धूप अधिक होती है, जिससे दवा छिड़कने के पश्चात पौधों द्वारा दवा को पर्याप्त मात्रा में शोषित करने से पूर्व ही दवा में उपस्थित नमी भाप बनकर उड़ जाती हैं और दवा के कुप्रभाव की संभावना रहती हैं।
8. खेत में दवा का एक समान छिड़काव करना चाहिए इसके लिए कतारों से दवा का छिड़काव करें, जिससे पौधों पर दवा की समान मात्रा गिरे, दवा की अत्यधिक मात्रा एक पौधे पर गिरने से पत्तियों पर दुष्प्रभाव हो सकता हैं।
9. फफूंदनाशक दवा का प्रयोग करते समय खाना, पीना एवं धुम्रपान सख्त मना हैं।
10. दवा का उपयोग करने के बाद हाथ अच्छी तरह साबुन से धोकर साफ कर लेना चाहिए।
11. जिस खेत पर दवा का प्रयोग किया गया हो वहाँ पर निशान लगा देना चाहिए, जिससे ध्यान रहे और गलती न हो और दवा का नाम, मात्रा आदि का रिकार्ड अपने पास नोट कर लेना चाहिए, जो आगामी वर्ष के लिए मार्ग प्रदर्शित करेगा।
12. दवा डालने के पश्चात् छिड़काव यंत्र को अच्छी तरह से धोकर रखना चाहिए अन्यथा रासायनिक क्रिया द्वारा यंत्रों के भाग खराब हो जाते हैं।
13. उपयोग के बाद बची हुई दवा को बंद हवा के डब्बे में लेबल लगाकर रखना बहुत आवश्यक हैं।
14. फफूंदनाशक दवाओं को बच्चोें की पहुँच से हमेशा दूर रखना चाहिए।