रूपेश कुमार नेताम एवं डॉ. एम.एन. नौगरैया, वानिकी विभाग, इं.गा.कृ.वि.वि. रायपुर

लाख एक प्रकार का प्राकृतिक राल है जो लाख कीट लेसीफेरा लेक्का के मादा कीट द्वारा स्त्राव के फलस्वरूप बनता हैं। पूरे विश्व में लाख कीट की नौ जातियाँ पायी जाती है परन्तु भारत देश में दो ही प्रजातियाँ है जिनका नाम लेसीफेरा एवं पैराटेकारडिना हैं। इनमें से लेसीफेरा की लेक्का उपजाति मुख्य रूप से पूरे देश में पायी जाती है जिसकी दो प्रजातियाँ कुसमी एवं रंगीनी होती हैं।

लाख कीट अपना जीवन शिशु कीट के रूप में शुरू करता हैं। यह शिशु कीट अपने मुखाग्र के द्वारा पेड़ों की टहनियों का रस चूसते हुए जीवन चक्र पूरा करता हैं। कुछ समय पश्चात शिशु टहनियों के एक स्थान में स्थायी रूप से बैठ कर रस चूसते हुए, लाख का स्त्राव करके अपने शरीर के ऊपर एक आवरण बनाता हैं। यह आवरण मुँह, मल द्वारा एवं दोनों श्वसन छिद्रों में नही बनता क्योंकि इन स्थानों पर मोम का जमाव होने से लाख का जमाव नही हो पाता हैं। लाख का नर वयस्क कीट, शंखी (प्यूपा) से निकलने के बाद मादा वयस्क कीटों से प्रजनन करने से तीन दिन बाद मर जाते हैं। प्रजनन के बाद मादा कीटों द्वारा प्रचुर मात्रा में लाख का स्त्राव होता हैं तथा इसके साथ ही साथ अंडो का विकास होता रहता हैं। एक मादा कीट पन्द्रह दिनों तक शिशु को जन्म देती है जिसकी संख्या 400 तक होती है। मादा कीट का जीवन चक्र पूरा होते-होते लाख का स्त्राव बंद हो जाता है और शिशु के बाहर आने के बाद मादा कीटों की मृत्यु हो जाती है। शिशु कीट जिस डंठल में रहते है, उस डंठल को बहीन लाख कहते है, जिसको लेकर अगली फसल की तैयारी जाती हैं।

लाख फसलः
भारत में कुसमी और रंगीनी दो प्रकार की फसल होती है। कुसमी लाख कुसुम के पौधों पर होती है जबकि रंगीनी लाख मुख्यतः पलाश, बेर के पौधों पर पाले जाते हैं। कुसुमी एवं रंगीनी दोनों से एक वर्ष में दो-दो फसल ली जाती हैं। कुसुमी लाख से ठण्ड और गर्मी के समय क्रमश: अगहनी और जेठवी फसल ली जाती हैं। अगहनी फसल के लिये शिशु कीट संचारण (इनाकुलेशन) जून-जुलाई और जेठवी फसल के लिये जनवरी-फरवरी माह में करते हैं। यही फसल क्रमश: जनवरी-फरवरी तथा जून-जुलाई में काटते हैं। रंगीनी लाख से वर्षा ऋतु की फसल कतकी तथा ग्रीष्म ऋतु की बैसाखी फसल ली जाती हैं जिसके लिए शिशु कीट संचारण (इनाकुलेशन) जून-जुलाई और अक्टूबर-नवम्बर में करते है जो क्रमश: अक्टूबर-नवम्बर तथा जून-जुलाई में परिपक्व हो जाती है। इन चारों फसलों के नाम उन हिन्दी महीने के नामानुसार रखे गये हैं जिनमें वे क्रमश: पकते हैं।

पोषक पौधेः
लाख के कई पोषक पौधे हैं, जिनमें लाख कीट पालन करके लाख की खेती की जाती है। सामान्यतः पोषक पौधों को तीन भागों में बाँटा जा सकता हैं। 
रंगीनी लाख की फसल हेतु पलाश (ब्यूटिया मोनोस्र्पा), बेर (जिजीफस माटीसियाना), गूलर (फाइकस रेसीमोसा), पीपल (फाइकस रेलिजियस) 
कुसुमी लाख की फसल के लिये मुख्य पोषक वृक्ष कुसुम (सलीचेरा ओलियोसा) है, और 
ऐसे पौधे जिन पर रंगीनी और कुसुमी दोनों प्रकार के लाख कीट पाले जाते है। इसके अन्तर्गत आकाशमनी, गलवग, भलिया एवं पुतरी आते हैं। 

लाख कीट पालन की अवस्थाएँः
आधुनिक विधि से लाख कीट पालन के लिए निम्नलिखित अवस्थाओं की आवश्यकता पड़ती हैं।

पेड़ो की कटाई-छँटाईः
पोषक पेड़ों में कोमल तथा रसदार टहनियाँ पाने के लिए पेडो़ं की हल्की कटाई-छँटाई एक निश्चित समय में आवश्यक है जिससे लाख कीट का पालन आसानी से किया जा सके। कुसुम वृक्ष के लिए कटाई-छँटाई जनवरी-फरवरी एवं जून-जुलाई में की जाती हैं। पलाश के वृक्ष की कटाई-छँटाई हमेशा पतझड़ के बाद नई कोपलें आने के पहले की जानी चाहिए। बेर फसल की कटाई-छँटाई मई महीने में करना चाहिए।

बीहन लाख से संचारण (इनाकुलेशन)
लाख कीट पोषक पौधों के डंठलों में रहते हैं, जिनसे शिशु कीट निकलते हैं। इन डंठलो को बीहन लाख (बीज लाख) कहते है। लाख कीट को पोषक पेड़ो पर संचारित करने के लिए बीहन लाख की 6 से 9 इंच लंबी, 3-4 डंठलों (मोटाई अँगूठे के बराबर) का बंडल बना लिया जाता हैं, जिसे लाख पोषक पेड़ों के कई स्थानों पर डालियों के समानान्तर ऊपर की ओर बाँध देते हैं। इन बीहन लाख से शिशु कीट बाहर आकर नई टहनियों पर रेंगने लगते है और बाद में कोमल एवं रासदार टहनियों पर हमेशा के लिए बैठ जाते हैं। यदि बीहन लाख में दुश्मन कीट हों तो इसे 60 मेश की नायलाॅन जाली के थैले में भरकर लगाने से सिर्फ लाख के कीट ही संचारित होते है जबकि शत्रु कीट इस थैली में फँस जाते हैं। यदि 60 मेश की नायलाॅन जाली के थैले उपलब्ध न हो तो बीहन लाख के बंडल बनाकर कीटनाशक थायोडान के 0.05 प्रतिशत अर्थात 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी के घोल में 8 से 10 मिनट तक डुबाकर रखने के बाद बीहन लाख को सुखा लें, फिर संचारण करें, जिसमें शत्रु को आसानी से नियंत्रण किया जा सकता हैं। पलाश, बेर, कुसुम और गलवान पर यह क्रिया काट-छाँट के करीब 6 माह बाद तथा कुसुम और आकाशमनी पर महीने बाद करते है।

फुन्की उतारनाः
बीहन लाख से शिशु कीट निकल जाने के बाद बँधी लाख डंठलों को “फुन्की” कहते हैं। शिशु कीट के बीहन लाख से निकल जाने के बाद डंठलों को पेड़ से हटा लेना चाहिए अन्यथा इनमें मौजूद शत्रु कीट बीहन लाख से जन्मे शिशुओं पर आक्रमण करना शुरू कर देते हैं।

लाख फसल कटाईः
रंगीनी लाख की ग्रीष्मकालीन (बैसाखी) और वर्षा कालीन (कतकी) फसल, संचारण के क्रमश: 8 एवं 4 महीने बाद परिपक्व हो जाती हैं। इसी प्रकार कुसमी की ग्रीष्मकालीन (जेठवी) और शीतकालीन (अगहनी) फसल क्रमश: जून-जुलाई और जनवरी-फरवरी में तैयार हो जाती हैं। परिपक्व फसल को फिर से बीहन लाख के लिए उपयोग करना हो तो पेड़ो पर सही समय पर अर्थात कीटों के निकलने के समय से काटते हैं, लेकिन यदि छिली लाख के रूप में उपयोग करना है तो समय से पहले भी काटा जा सकता हैं।

लाख छिलाई:
फसल परिपक्व होने के बाद लाख युक्त डंठों तथा फुन्की लाख डंठलों में से लाख को खुरचकर अलग किया जाता हैं। इस विधि को लाख छिलाई कहते हैं एवं खुरची लाख को छायादार स्थन में जमीन पर फैलाकर सुखाया जाता हैं तथा सुखाने के बीच-बीच में छिली लाख को लटना पड़ता हैं।

खण्ड प्रणाली से लाख की खेतीः 
पोषक वृक्षों को खण्डों में बराबर संख्या में बाँटकर लाख की खेती करने को खण्ड प्रणाली कहते हैं। इस प्रणाली से लाख की खेती करने से कई लाभ हैं। जैसे फसल लगातार मिलती रहती है, बीहन लाख की कमी नही होती, वृक्षों को विश्राम का पूरा समय मिलता हैं, शत्रु कीटों का प्रकोप कम होता है तथा लाख का उत्पादन अधिक होतो हैं।