टपक (बूंद-बूंद) नई एवं उन्नत सिंचाई की ऐसी विधि है जिसके प्रयोग से सिंचाई जल की पर्याप्त मात्रा में बचत की जा सकती हैं। ड्रिप तंत्र एक अधिक आवृत्ति वाला सिंचाई तंत्र है जिससे जल को पौधों के मूल क्षेत्र के आस-पास की आवश्यकतानुसार दिया जाता हैं। कम अंतराल पर सिंचाई करने से पौधों की जड़ों में जल तनाव नही रहता हैं एवं पौधों की वृद्धि भी अधिक होती हैं। इस प्रकार टपक सिंचाई द्वारा जल की विभिन्न प्रकार के पारम्परिक नुकसान जैसे की गहन रिसाव, अप्रवाह एवं वाष्पीकरण आदि से बचा जा सकता है। यह विधि मृदा के यह विधि मृदा के प्रकार, खेत के ढ़ाल, जल के स्त्रोत और किसान की योग्यता के अनुसार अधिकतर फसलों के लिए अपनाई जाती। फसलों की पैदावार बढ़ने के साथ-साथ इस विधि से उपज की उच्च गुणवत्ता, रसायन एवं उर्वरकों का दक्ष उपयोग, जल के विक्षालन एवं अप्रवाह में कमी, खरपतवारों में कमी और टपक विधि से 60-70 प्रतिशत तक जल की बचत की जा सकती है। जल तथा रसायनों की लगातार पर्याप्त मात्रा में बचत के साथ-साथ रसायनों के लगातार प्रयोग से होने वाले प्रदूषण से पर्यावरण की समस्या को कम करने के लिए टपक (बूंद-बूंद) सिंचाई तकनीक निःसंदेह बहुत कारगर सिद्ध होगी।

टपक सिंचाई के लाभः
  • टपक सिंचाई के अंतर्गत फल वाली फसलें जैसे बेर, शहतूत, अंगूर, आदि में उत्पादन अधिक होता हैं।
  • टपक सिंचाई में जल रिसाव व वाष्पन न होने के कारण अन्य पराम्परागत सिंचाई विधियों की तुलना में 70 प्रतिशत तक जल की बचत एवं 25-30 प्रतिशत तक पैदावार में वृद्धि की जा सकती हैं।
  • टपक सिंचाई में सिंचाइयों के बीच का अंतराल बहुत कम रखा जाता है जिससे पौधे संपूर्ण वृद्धि काल में जल तनाव में नही रहतें हैं।
  • जल प्रयोग पर उच्च स्तरीय नियंत्रण टपक सिंचाई के मुख्य लाभ में से एक हैं।
  • सीमान्त मृदाओं एवं उन भू-भागों को जो अन्य विधियों द्वारा सिंचित नही किए जा सकते, उनको टपक सिंचाई द्वारा सिंचित किया जा सकता हैं।
  • टपक सिंचाई विधि में जल पौधों के नीचे के क्षेत्रफल को ही नम करता है। अतः खरपतवार वृद्धि काफी सीमा तक नियंत्रित होती हैं। 
फर्टिगेशनः
फर्टिगेशन दो शब्दों फर्टिलाइजर अर्थात् उर्वरक और इरिगेशन अर्थात् सिंचाई से मिलकर बना हैं। ड्रिप सिंचाई में जल के साथ-साथ उर्वरकों को भी पौधों तक पहुँचाना फर्टिगेशन कहलाता हैं। टपक सिंचाई से जिस प्रकार ड्रिपर्स द्वारा बूंद-बूंद कर के जल दिया उसी प्रकार रासायनिक उर्वरकों को भी सिंचाई जल में मिश्रित करके उर्वरक अन्तः क्षेपक यंत्र की सहायता से ड्रिपर्स द्वारा सीधे पौधों तक पहँुचाया जा सकता हैं। फर्टिगेशन, उर्वरक देने की सर्वोतम तथा अत्याधुनिक विधि हैं। फर्टिगेशन, फसल एवं मृदा की आवश्यकताओं के अनुरूप उर्वरक व जल का समुचित स्तर बनाए रखने के अच्छी तकनीक के रूप में जाना जाता है। जल और शोषक तत्वों का सही समन्वय अधिक पैदावार और गुणवत्ता की कुंजी हैं। फर्टिगेशन द्वारा उर्वरको को मात्रा में बार-बार और कम समय अन्तराल पर पूर्व नियोजित सिंचाई के साथ दे सकते हैं। इससे पौधों को आवश्यकतानुसार पोषक तत्व मिल जाते है और मूल्यवान उर्वरको का निक्षालन द्वारा अपव्यय नही होता हैं।

बागवानी में फर्टिगेशन से उर्वरकों की बचत और पैदावार में वृद्धिः
सामान्यता फर्टिगेशन में तरल उर्वरकों का ही प्रयोग किया जाता हैं परन्तु दानेदार और शुष्क उर्वरकों को भी फर्टिगेशन के द्वारा दिया जाता हैं। फर्टिगेशन द्वारा शुष्क उर्वरकों को देने से पहले उनका जल में घोल बनाया जाता हैं। उर्वरकों के घोल को फर्टिगेशन से पहले छान लेना चाहिए।

फर्टिगेशन के लाभः
  • फर्टिगेशन जल एवं पोषक तत्वों के नियमित प्रवाह को सुनिष्चित करता है जिससे पौधों की वृद्धि दर तथा गुणवत्ता में वृद्धि होती हैं।
  • फर्टिगेशन द्वारा पोषक तत्वों को फसल की मांग के अनुसार उचित समय पर दे सकते हैं।
  • फर्टिगेशन पोषक तत्वों की उपलब्धता और उनका पौधों की जड़ों के द्वारा उपयोग बढ़ा देता हैं।
  • फर्टिगेशन से जल एवं उर्वरक पौधे के मध्य न पहँुचकर सीधे पौधे की जड़ों तक पहुँचते है इसलिए पौधों के मध्य खरपतवार कम संख्या में उगते हैं।
  • उर्वरक-उपयोग की दक्षता बढ़ती है और उर्वरक की कम मात्रा में आवश्यकता होती हैं।
फर्टिगेशन में प्रयोग होने वाले विभिन्न यंत्रः
फर्टिगेशन करने के लिए फर्टिगेशन तंत्र में मुख्यतः तीन अवयवों उर्वरक टंकी, उर्वरक घोलक एवं उर्वरक अन्तः क्षेपक यंत्र का होना आवश्यक हैं उर्वरक अन्तः क्षेपक का प्रयोग फर्टिगेशन तंत्र में उर्वरको के विलयन को ड्रिप तंत्र में अन्तः क्षेपित करने के लिए किया जाता हैं। इसमें मुख्यतः तीन अन्तः क्षेपण यंत्र (उर्वरक टंकी, वेन्चुरी तंत्र एवं उर्वरक अन्त क्षेपण पम्प) प्रयोग में लाए जाते हैं।

ड्रिप सिंचाई तंत्र की लागतः
ड्रिप सिंचाई तंत्र लगाने का खर्च मुख्यतः फसल के प्रकार, कतारों एवं पौधों के बीच की दुरी, दो सिंचाईयों का अंतराल, फसल की जलावश्यकता ड्रिपर का प्रकार एवं प्रसाव क्षमता और जल स्त्रोत की दूरी पर निर्भर करता हैं। ड्रिप तंत्र की प्रति इकाई कुल लागत का लगभग 50 प्रतिशत भाग केवल लैटरल पाइप्स पर खर्च हो जाता हैं। जैसे-जैसे ड्रिप सिंचित क्षेत्र में वृद्धि होती है उसकी तुलना में ड्रिप सिंचाई तंत्र की अनुपातिक लागत कम होती है क्योंकि सिंचाई तंत्र के कुछ अवयव वहीं रहते हैं।