डॉ. सरिता अग्रवाल, डॉ. एस. एल. सावरगावकर, श्रीमती रोशनी भगत एवं डॉ. योगेश कुमार कोसरिया
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, रायगढ़, छत्तीसगढ़

चिया, लैमिएसी कुल का एक पौधा है जिसका वानस्पतिक नाम साल्विया हिस्पेनिका है। इसे मुख्य रूप से इसके बीजो के लिए उगाया जाता है। मानव आहार मे इसके बीजो का उपयोग महत्वपूर्ण माना गया है। इनमें प्रोटीन, ऊष्मा, फाइबर, ओमेगा-3 वसा, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और विटामिन बी जैसे अन्य पोषक तत्व होते हैं। चिया बीज एक सुपरफूड के रूप में जाने जाते हैं क्योंकि इसमे विभिन्न प्रकार के औषधीय गुण पाएं जाते हैं और विभिन्न तरीकों से खाये जा सकते हैं। चिया के बीज को अन्य खाद्य पदार्थों में टॉपिंग के रूप में जोड़ा जा सकता है या स्मूदी, नाश्ते के अनाज, एनर्जी बार, ग्रेनोला बार, दही, टॉर्टिला और ब्रेड में डाला जा सकता है। चिया बीज स्वस्थ त्वचा के लिए, बढती उम्र के प्रभाव को कम करना, हृदय और पाचन तंत्र को बेहतर करना, मजबूत हड्डियों और मांसपेशियों का निर्माण करने में सहायक होते हैं। यह मधुमेह को कम करने के लिए भी सहायक माने जाते हैं। इसका सेवन शरीर व दिल को बीमारियों से लड़ने के लिए शक्ति प्रदान करता है। चिया की खेती ऑस्ट्रेलिया, बोलीविया, कोलंबिया, ग्वाटेमाला, मैक्सिको, पेरू और अर्जेंटीना में की जाती है। भारत में चिया की खेती मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में की जाती है।

चिया के औषधीय गुण
  • चिया के बीज में प्रोटीन, वसा, खनिज लवण और विटामिन्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। जिसके कारण इसके सेवन से मांसपेशियां, मस्तिष्क कोशिकाएं और तंत्रिका तंत्र मजबूत होता है।
  • चिया के बीजों में एंटी ऑक्सिडेंट्स पर्याप्त मात्रा में होते है, जो शरीर से फ्री रैडिकल्स को बाहर निकलने में मदद करता है, जिससे ह्रदय रोग और कैंसर रोग से बचा जा सकता है।
  • चिया के बीजों में ओमेगा- 3 और ओमेगा- 6 फैटी एसिड पाया जाता है, जो ह्रदय रोग और कोलेस्ट्रॉल की समस्याओं को दूर करने में मददगार साबित होता है।
  • चिया बीजों के नियमित सेवन करने से शरीर में सूजन की समस्या से निजात मिलती है।
  • चिया के बीज भूख शांत करने और बजन घटाने में कारगर साबित हो रहे है।
  • चिया के बीज का सेवन करने से शरीर में 18 प्रतिशत कैल्शियम की कमीं पूरी होती है, जो कि दांत और हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में मददगार होती है।
  • शरीर की त्वचा को कांतिमय बनाने के लिए इसका नियमित सेवन अत्यंत लाभकारी बताया जा रहा पाया गया है।
  • पाचन तंत्र को सुधारने और मधुमेह रोगियों के लिए भी उपयोगी खाद्य है।

चिया का वानस्पतिक विवरण
चिया एक वार्षिक शाकाहारी पौधा है जो लगभग 1 मीटर (3 फीट) की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। इसकी पीले-हरे रंग की पत्तियां विपरीत रूप से व्यवस्थित होती हैं और उनके किनारे दाँतेदार होते हैं। पौधे में छोटे नीले, बैंगनी या सफेद फूलों की स्पाइक्स होती हैं जिनमें स्व-परागण की उच्च दर होती है। बीज काले और सफेद धब्बों के साथ अंडाकार और भूरे रंग के होते है जो लगभग 1 मिमी (0.04 इंच) व्यास के होते हैं और एक चमकदार, धब्बेदार बीज कोट होता है पानी में भिगोने पर बीज एक चिपचिपा जेल बनाते हैं।

जलवायु
चिया को उष्णकटिबंधीय तटीय रेगिस्थान से लेकर उष्णकटिबंधीय वर्षा वनीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्रों में 800- 2,200 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जा सकता है। लेकिन ठंडी जलवायु वाले पहाड़ी क्षेत्रों में चिया की खेती नहीं की जा सकती है। चिया सर्दियों में फूलने-फलने वाला पौधा है जो ठंड के प्रति संवेदनशील है। इसलिये दिसंबर और जनवरी के दौरान ज्यादा ठंड का असर इस पर होता है, क्योंकि यह समय चिया में फूल आने और बालियों में दाना भरने का समय होता है। बीजों के अच्छा अंकुरण के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा होता है। इसकी खेती के लिए 11-45 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा पौधों के वृद्धि एवं विकास के लिए न्यूनतम तापमान 11डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 36 डिग्री सेल्सियस है। इसकी खेती के लिए 1200-2000 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त होता है। इसे 12-13 घंटे प्रकाश की सीमा वाला एक छोटा दिन का पौधा माना जाता है।

पाले से प्रभावित फसल में बीज पूरी तरह से भराव नहीं कर पाते है, जिससे उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः इस दौरान पाला पड़ने की संभावना से पूर्व हल्की सतही सिंचाई करके मिट्टी के तापमान को बनाये रखा जा सकता है, तथा फसल को ठंड के कारण होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।

मृदा
चिया की खेती किसी भी भूमि में की जा सकती है, लेकिन हल्की भुरभुरी और उचित जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी को इसके अधिक उत्पादन के लिए उपयुक्त माना जाता है। चिया की खेती के लिए 6-8 पी एच वाली मृदा उपयुक्त होता है। बीज बोने के बाद अंकुरण के लिए नमी की आवश्यकता होती है, परंतु परिपक्वता के दौरान गीली मिट्टी चिया के लिए उपयुक्त नहीं है।

खेत की तैयारी
चिया के बीजों के अधिक उत्पादन के लिए पोषक तत्वों के साथ खेत को ठीक तरह से तैयार करना उपयुक्त होता है। इसके लिए खेत की सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल या कल्टीवेटर की मदद से 2 से 3 बार गहरी जुताई करें, उसके बाद खेत में रोटोवेटर से 1 से 2 बार जुताई करके खेत की मिट्टी भुरभुरा कर देते है। इसके बाद खेत में पाटा लगाकर मिट्टी को समतल करना होता है। इसके बाद उपयुक्त विधि से बीज की बुवाई करते है।

बीज के प्रकार
चिया बीज दो प्रकार के होते हैं, एक बीज और दूसरा सफेद चिया बींज चिया के पौधे जिनमे बैंगनी फूल आते हैं, वे भूरे रंग के बीज देते हैं। इन भूरे रंग के बीजों को काला चिया कहा जाता है, हालांकि प्रत्येक बीज भूरे रंग के विभिन्न रंगों का होता है, जो एक अनोखे पैटर्न में एक साथ धब्बेदार होते हैं।

चिया के पौधे जिनमे सफेद फूल आते हैं, वे केवल सफेद बीज ही देते हैं। के बीज सफेद, भूरे और पीले रंग का एक संगमरमर जैसा मिश्रण होते हैं।

बीज की मात्रा, बुवाई का समय एवं बुवाई की विधि
चिया का प्रवर्धन बीज द्वारा किया जाता है। आमतौर पर एक एकड़ क्षेत्र में चिया की बुवाई के लिए 1 से 1.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। अक्टूबर और नवम्बर माह में इसकी बुवाई करना उचित माना जाता है। परंतु चिया की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय 5 से 15 अक्टूबर के मध्य का है। चिया बीज की बुवाई छिटकवाँ विधि से या लाइनों में की जाती है, परन्तु लाइनों में बुवाई करना अधिक उपयुक्त रहता है। इसके अलावा नर्सरी द्वारा मुख्य क्षेत्र में प्रत्यारोपण द्वारा फसल लगाई जाती है।

चिया के बीज आकर में छोटे होते है इसलिए क्यारी की मिट्टी भुरभरी और समतल कर लेना चाहिए। चिया के 100 ग्राम बीज को 1 किलो सुखी मिट्टी के साथ मिलाकर तैयार क्यारी में एकसार बोने के उपरांत बारीक़ वर्मी कम्पोस्ट या मिट्टी से ढक कर हल्की सिचाई करना चाहिए। क्यारी में नियमित रूप से हजारे की मदद से हल्की सिचाई करते रहन चाहिए जिससे क्यारी की मिट्टी नम बनी रहें। बीजों का अंकुरण बुवाई के 3-5 दिनों के भीतर हो जाता है।

पंक्ति विधि मे पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी व पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी प्रर्याप्त है। बीज 2-3 सेमी से गहरा नही बोना चाहिए। बुवाई के दो सप्ताह बाद विरलीकरण करके पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 सेमी कर दी जाती है।

नर्सरी द्वारा पौधे लगाने के लिए अच्छी प्रकार से तैयार खेत में वांक्षित आकार की उठी हुई क्यारी बना लें। पौध रोपण हेतु खेत की भली भांति साफ़ सफाई करने के पश्चात जुताई कर भुरभुरा और समतल कर लेना चाहिए। जब नर्सरी मे पौध 5-10 सेमी लंबे हो जाए तथा पहली पत्तिया आ जाए तब खेत में 30 सेमी की दूरी पर कतारें बनाकर पौध से पौध 10 सेमी का अंतराल रखते हुए पौधे रोपना चाहिए। चिया पौध रोपण के तुरंत बाद खेत में हल्की सिचाई करना अनिवार्य होती है ताकि पौधे सुगमता से स्थापित हो सकें।

बीज उपचार
बीजों को बुवाई से पहले केप्टान या थीरम फफूंदनाशक की 2.5 ग्राम की मात्रा से एक किलोग्राम बीज को उपचारित किया जाता है, ताकि बीजों को जड़ गलन जैसे रोगों से बचाया जा सकें।

खाद और उर्वरक
चिया सीड का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रति एकड़ के खेत में 5 टन सड़ी गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट खाद को खेत की जुताई करते समय डालें। इसके अलावा खेत में पौधों की आवश्यक वृद्धि के लिये 12 किलोग्राम नत्रजन 8 किलोग्राम फास्फोरस और 8 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से बुवाई के समय देना लाभदायक रहता है। इसके बाद बुवाई के 30-45 दिनों के भीतर 4 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति एकड़ की मात्रा का छिड़काव सिंचाई करने के बाद खड़ी फसल पर करना चाहिए। चिया की जैविक खेती के लिए नीम का तेल और नीम की खली की खाद सबसे उत्तम होती है।

सिंचाई
चिया बीज के अंकुर की स्थापना के लिए बुवाई के समय मृदा नमी की पर्याप्त मात्रा आवश्यक है। चिया में सिंचाईयो की संख्या मृदा के प्रकार और तापमान पर निर्भर करती है, आमतौर पर रेतीली 5-6 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। बुवाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर देनी चाहिये ताकि बीजों का अंकुरण शुरू हो जाय अन्यथा बीजों को चीटियां ले जा सकती है।

बुवाई के 7-8 दिन बाद एक हल्की सिंचाई देनी चाहिये ताकि बीजाकुंरण संपूर्ण हो जाय। तत्पश्चात 12-15 दिनों के अन्तराल से 4 सिंचाईयां देनी चाहिये। यह फसल परिपक्वता अवस्था के दौरान अत्यधिक नमी के प्रति अति संवेदनशील होती है, अतः फसल परिपक्वता के समय सूखा वातावरण लाभदायक रहता है।

खरपतवार नियंत्रण
चिया एक बहुशाखाओं वाली फसल है, इसलिए खरपतवारों से यह बहुत अधिक प्रभावित नहीं होती है, लेकिन इसके प्रारंभिक विकास अवस्था के दौरान खरपतवार प्रबंधन करना अति आवश्यक होता है, इसके लिये हाथो से खरपतवार नियंत्रण करना कारगर रहता है पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 25-30 दिनों बाद तथा दूसरी पहली के 30 दिन के अंतर में करना चाहिए।

पौध संरक्षण
चिया की फसल मे विशेष रूप से न तो कीटों से और न ही बीमारियों से कोई समस्या उत्पन्न होती है। चिया की फसल में कटवा इल्ली रोग अधिक देखने को मिल जाता है। यह रोग पौधों को मिट्टी की सतह के पास से काटकर हानि पहुंचाता है, तथा पत्तियों में खुजलीपन होने लगता है। इस रोग की रोकथाम करने के लिए प्रति लीटर पानी में क्लोरोपायरीफास 20 ई.सी दवा की 2.5 एमएल की मात्रा को मिलाकर उसका छिड़काव पौधों पर करें। इसके अलावा चिया का पौधा जड़ सड़न और तने सड़न से संक्रमित होता है लेकिन ककड़ी मोज़ेक वायरस पौधों मे आम वायरस है जो एफिड्स द्वारा फैलता है। चिया पौधों के लिए जैविक कीटनाशक नीम तेल का उपयोग कर बीमारियों और कीटो से बचाया जा सकता है।

फसल की कटाई
चिया की फसल बुवाई के 110-120 दिनों में कटाई के लिए परिपक्व हो जाती है। परिपक्व अवस्था में इसकी सारी पत्तियां झड़ जाती है तथा तने पर सिर्फ बालियाँ रह जाती है। चिया की पौधे से पूरे बालियों को हसिया से काट लें और उन्हें सुखा लें, सूखने के बाद बालियों को लकड़ी की डंडियों से पीटकर बीजों को अलग कर दिया जाता है तथा फटककर बीजों को बिलकुल साफ कर लिया जाता है। आजकल कटाई के लिए पूरा पौधों को उखाड़ लिया जाता है तथा 5 से 6 दिन तक पौधों को धूप में अच्छी तरह से सूखा लिया जाता है । इन सूखे हुए पौधों से थ्रेशर मशीन के द्वारा बीजों को निकाल कर अलग कर लिया जाता है।

उपज एवं लाभ
चिया की एक एकड़ खेत से लगभग 5 से 6 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है। चिया के बीजों की बाज़ार में कीमत लगभग 1 हज़ार रुपए प्रति किलो तक की होती है। इस प्रकार चिया की खेती से प्रति एकड़ 5-6 लाख तक का लाभ कमा सकते है।