आकांक्षा गुप्ता, अमन दुम्का, सुष्मिता रंजन, अनुसुईया पण्डा,
याशिका मंडेला, योगेश्वर सिंह, आर.के. सिंह और सुशील.के. सिंह
कृषि महाविद्यालय, रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय,
झाँसी, उत्तर प्रदेश-284003, भारत
परिचय
बुंदेलखंड क्षेत्र, मध्य भारत में स्थित , लगभग 23˚20‘ से 26˚20‘ उत्तर अक्षांश और 78˚20‘ से 81˚40‘ पूर्व देशांतर के बीच फैला हुआ है। यह एक अर्ध-शुष्क क्षेत्र है, जिसकी औसत ऊँचाई समुद्र तल से 250 से 300 मीटर तक है। यह उत्तर प्रदेश के सात जिलों . झांसी, जालौन, ललितपुर, महोबा, हमीरपुर, बांदा और चित्रकूट और मध्य प्रदेश के जिलों दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दमोह, निवारी और सागर में विस्तारित है। बुंदेलखंड क्षेत्र में वार्षिक औसत वर्षा 850 मी.मी होती है। यहां की मिट्टी विंध्यन चट्टानों से उत्पन्न होती है, जो दक्कन ट्रैप की ग्रेनाइट और शैल चट्टानों में पाई जाती है। इस मिट्टी को चार प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया गया हैः काबर , मार, परवा और राकर। इस क्षेत्र में कृषि मुख्य रूप से पारंपरिक तरीकों पर आधारित और आजीविका हेतु की जाती है।
भूवैज्ञानिक अध्ययन से पता चला है कि इस क्षेत्र में जमीन के नीचे एक कठोर चट्टानी परत है, जो पानी को अंदर जाने नहीं देती। इससे बाढ़ और सूखा दोनों की समस्या होती है। उबड़- खाबड़ जमीन की वजह से यहां के (50-70 प्रतिशत) ऊपरी और बीच के हिस्से खेती के लिए ठीक नहीं हैं। यह इलाका जलवायु परिवर्तन से बहुत प्रभावित होता है, जहां तेज गर्मी, अनियमित बारिश, लंबे सूखे और तेज हवाओं जैसी समस्याएं आम हैं। इन समस्याओं के समाधान हेतु पुनर्योजी कृषि (रिजेनेरेटिव एग्रीकल्चर) एक अच्छा समाधान हो सकता है, जिससे मिट्टी की सेहत सुधरती है, पानी संचित होता है और खेती ज्यादा स्थिर बनती है।
पुनर्योजी कृषि एक ऐसी खेती की विधि है जो मिट्टी के संरक्षण को प्राथमिकता देकर पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को सुधारने में मदद करती है। यह पर्यावरण के अनुकूल खेती प्रणाली है जो मिट्टी के स्वास्थ्य, जीव विविधता को बढ़ाने में मदद करती है। यह फसल चक्र, नाइट्रोजन स्थिरीकरण और कीट प्रबंधन जैसी तकनीकों का उपयोग करके पोषक तत्वों को सुधारती है। इसके मुख्य सिद्धांतों में मिट्टी को ढका रखना, कम से कम खुदाई करना, जड़ों को सुरक्षित रखना, फसलों की विविधता बढ़ाना और पशुओं को खेती से जोड़ना शामिल है। यह रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम कर कार्बन अनुबंधन को बढ़ावा देती है, जिससे खेती अधिक लाभदायक बनती है। यह तरीका मिट्टी को पुनर्जीवित करने, जलवायु परिवर्तन के समाधान में सहायक है।
मिट्टी की उपज के संरक्षण में पुनर्योजी कृषि की भूमिका
बुंदेलखंड क्षेत्र में मृदा क्षरण, जल संकट और जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर चुनौतियाँ हैं। सतत कृषि पद्धति के रूप में पुनर्योजी कृषि को अपनाया जा सकता है, क्योंकि यह मृदा के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों को पुनर्जीवित करके फसल उत्पादन और मृदा उत्पादकता को सीधे प्रभावित करती है।
मुख्य लाभ इस प्रकार हैंः
- मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि- पुनर्योजी कृषि मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ाती है, जिससे नमी का निर्माण होता है और मिट्टी की कठोरता कम होती है। इससे जड़ों का विस्तार बढ़ता है और मिट्टी की उत्पादकता में सुधार होता है।
- नमी संधारण में वृद्धि और वाष्पोत्सर्जन में कमी- पुनर्योजी कृषि के तहत जैविक मल्च और आवरण फसल मिट्टी में नमी संधारण को बढ़ाते हैं और विशेष रूप से अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वाष्पीकरण को कम करते हैं। इससे नमी और तापमान का संतुलन बना रहता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी की उत्पादकता में वृद्धि करता है।
- सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि- पुनर्योजी कृषि सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ाकर और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाकर मिट्टी को स्वाभाविक रूप से पुनर्जीवित करती है, जिससे मिट्टी की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
- मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार- अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पुनर्योजी कृषि अपरदन के खतरे को कम करती है तथा मिट्टी के कणों के समुच्चय और संरचना में सुधार करती है, जिससे जल निकास और मिट्टी में वायु संचार बेहतर होता है तथा फसल उत्पादन बढ़ता है।
पर्यावरण संरक्षण में पुनर्योजी कृषि की भूमिका
आज के समय में पर्यावरण संरक्षण बेहद जरूरी है, लेकिन बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए इसका महत्व और भी अधिक है क्योंकि यह अपनी कठोर जलवायु परिस्थितियों के कारण जलवायु परिवर्तन से ज्यादा प्रभावित होता है। पुनर्योजी कृषि कार्बन अवशोषण और प्रदूषण नियंत्रण के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण में मदद करती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किया जा सकता है और क्षेत्र का पारिस्थितिकी तंत्र अधिक संतुलित और स्थिर बनता है।
- पुनर्योजी कृषि और कार्बन अवशोषण- पुनर्योजी कृषि ऐसी खेती है जो मिट्टी में कार्बन को सुरक्षित रखने में मदद करती है, जिससे यह वायुमंडल में नहीं फैलता। इसमें आच्छादन फसल और फसल अवशेषों का सही उपयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी में कार्बन की मात्रा बढ़ती है। इसके अलावा, मिट्टी में सूक्ष्म जीव जैविक पदार्थों को विघटित करके कार्बन को सुरक्षित रखते हैं। क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड एक ग्रीन हाउस गैस है, जो जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनती है, इसलिए पुनर्योजी कृषि इसे कम करके पर्यावरण को सुरक्षित रखने में मदद करती है।
- पुनर्योजी कृषि के माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण- पुनर्योजी कृषि बाहरी संसाधनों पर निर्भरता कम करके रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को सीमित करती है, जिससे मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण को रोका जा सकता है। जैविक उर्वरकों और कवर क्रॉपिंग से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, जबकि प्राकृतिक पोषक तत्व चक्र जल प्रदूषण को कम करता है। रसायनों के कम उपयोग से वायु प्रदूषण और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन घटता है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव कम होते हैं।
निष्कर्ष
बुंदेलखंड की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि और पशुपालन पर निर्भर करती है, जो यहां के लोगों के लिए जीवनयापन का प्रमुख साधन है, लेकिन यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। इसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग पलायन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इस समस्या का समाधान जलवायु परिवर्तन को कम करना है जो पुनर्योजी कृषि के माध्यम से मिट्टी की उत्पादकता और पर्यावरण संरक्षण करके किया जा सकता है अतः, बुंदेलखंड क्षेत्र में कृषि को समृद्ध बनाने के लिए पुनर्योजी कृषि को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है।
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