डाॅ. नूतन रामटेके, विषय वस्तु विशेषज्ञ, पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन
डाॅ. बी.एस. राजपूत, श्रीमती अंजली घृतलहरे, ई. अतुल डांगे,
डाॅ. मोहनिशा जंघेल, सुरभि जैन, आशीष गौरव शुक्ला
कृषि विज्ञान केन्द्र, राजनांदगांव (छ.ग.)

आजकल बत्तख पालन एक अच्छे व्यवसाय के रुप में उभर रहा है। पौष्टिक अंडा तथा मांस के स्त्रोत के रुप में बत्तख धीरे धीरे लोकप्रिय हो रहा है। देश के पुर्वी एवं दक्षिणी राज्यों मे बत्तख पालन अधिक प्रचलित है। भूमि तथा जलवायु के आधार पर छत्तीसगढ राज्य मे भी बत्तख पालन व्यवसाय की अपार संभावनाएं है। समन्वित बत्तख पालन जैसे- धान सह बत्तख पालन एवं मछली सह बत्तख पालन कर दोहरा लाभ कमाया जा सकता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण मछली सह बत्तख पालन है। वैज्ञानिको के अनुसार जहाॅ मछली के साथ बत्तख पालन किया गया, वहाॅ उत्पादन मे 1.0-1.5 क्विंटल का अंतर पाया गया है।

समन्वित बत्तख पालन के लाभ-
  • बत्तख को तैरने की आदत है उसे प्राकृतिक आवास मिल जाता है एवं तैरने से बत्तख के बढ़वार में वृद्वि होती है।
  • बत्तख अपना भोजन एवं पानी की पुर्ति तालाब से कर लेती है।
  • बत्तख अपना प्रजनन काल तालाब मे पूरा कर लेती है।
  • गर्मियों मे बत्तख तैर कर अपना तापक्रम बनाए रखती है।
  • बत्तख के तैरने से पानी मे हलचल होती है, जिससे तालाब मे ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे मछली के बढ़वार मे वृद्वि होती है।
  • बत्तख का बीट मछली का भोजन होता है, जिसे खाकर मछली कम समय में अच्छा वजन पा लेती है।

बत्तख की प्रमुख प्रजातियाॅ -

1. अंडे उत्पादन हेतु - खाकी केम्पबेल
  • रंग- खाकी
  • नर- 2.2 - 2.4 किलो ग्राम
  • मादा- 2.0- 2.2 किलो ग्राम
  • वार्षिक अंडा उत्पादन-250 से 300

2. मांस उत्पादन हेतु- सफेद पेकिन
  • वजन- 45 दिन में 2.5 -3.0 किलो ग्राम
  • नर- 4.0 - 5.5 किलो ग्राम
  • मादा- 2.5- 3.5 किलो ग्राम
  • वार्षिक अंडा उत्पादन-150 से 180

चुजे का रख रखाव
पैदा होने के एक माह तक विशेष ध्यान रखना पडता है। ध्यान देने योग्य बातें-
  • ठंड के मौसम में बचाव हेतु आवास मे धान की भुसी का उपयोग, 2.5-3.0 इंच एवं गर्मी के मौसम मे 1.5-2.0 बिछावन हेतु उपयोग करना चाहिए।
  • बत्तख आवास का तापक्रम 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा एवं कम नही होना चाहिए और अगर कम है तो हम उसका तापक्रम 35 डिग्री सेल्सियस ब्रुडर की आवश्यकता होती है यह एक कृत्रिम उपकरण है।
  • 10X10 फीट के कमरे हेतु 100 वाट के चार बल्ब की आवश्यकता होती हैं।
  • बाहरी हवा से बचाव हेतु बोरे, पन्नी की व्यवस्था करते है।
  • 1 से 1.5 माह में पंख निकलना प्रारंभ हो जाता है, तो बत्तख के बच्चे अपना तापक्रम बनाए रखने मे सक्षम हो जाते हैं।
  • बत्तख जब तक तीन माह का नही हो जाता किसी भी प्रकार के तालाब मे तैरने के लिए नही भेजना चाहिए।
  • तीन माह की उम्र हो जाने पर ही तालाब मे तैरने के लिए भेजना चाहिए।

बत्तखो की गृह व्यवस्था
बत्तखें तीन प्रकार से पाली जाती है-

1. सघन पद्धति

2. अर्ध सघन पद्धति

3. खुली पद्धति

सघन पद्धति मे 16 सप्ताह की आयु तक प्रति बत्तख 3 वर्ग फीट स्थान एवं इसके उपरांत प्रति वयस्क बत्तख 4-5 वर्ग फीट स्थान की आवश्यकता होती हैं। बत्तख गृह मे पानी का स्तर 5 से 6 इंच गहरा होना बढ़ रहे छोटे तथा वयस्क बत्तख अपना सिर पानी मे डुबा सके।

मछली सह बत्तख पालन मे आवास इस प्रकार बनाया जाता है कि आधा भाग तालाब की ओर हो। इसका लाभ ये होता है बत्तखो का मल मुत्र एवं बत्तखों द्वारा बचा आहार एवं गिराया हुआ आहार तालाब मे गिरता है जो कि मछलियों के भोजन होता है। मछली सह बत्तख पालन के अंतर्गत 1 हेक्टेयर तालाब मे 250 से 300 बत्तख के बच्चे एवं 8000 से 10000 अंगुलिकाओं का पालन कर वर्ष में अधिक लाभ ले सकते है।

आहार प्रबंधन
समन्वित बत्तख पालन मे बत्तख तालाब के अंदर या बाहर कीडे़ या घास खाकर पेट भरती है। अतः इस विधि से बत्तख पालन करने पर आहार मे खर्च कम होता है। बत्तखो को दिये जाने वाले आहार को गिला करके देना चाहिए। सुखे भोज्य पदार्थो को निगलने मे कठिनाई होती है। प्रायः बत्तखो को प्रतिदिन 80 से 350 ग्राम आहार की आवश्यकता होती हैं।

आहार में प्रयुक्त होने वाले अवयव एवं मात्रा कि.लो.
  • गेहुॅ -10 कि.लो.
  • चावल कनकी - 40 कि.लो.
  • भुसी - 10 कि.लो.
  • मछली का चुरा- 10 कि.लो.
  • सोयबीन की खली- 20 कि.लो.
  • खनिज मिश्रण- 05 कि.लो.
  • घोंघा चुर्ण- 05 कि.लो.

ब्राायलर बत्तखो के आहार मे प्रोटिन की मात्रा 24 से 25 प्रतिशत होनी चाहिए एवं लेयर बत्तखो के आहार मे प्रोटिन की मात्रा 16 से 17 प्रतिशत एवं 3800 कि.लो. कैलोरी/ कि.लो. आहार मे होना चाहिए। अंडे देने वाले बत्तखो के आहार मे कैल्शियम का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

स्वास्थय प्रबंधन
मुर्गियो को पुरे जीवन काल मे जहाॅ 10 से 15 टीके लगते है वही बत्तखो को टीकाकरण की आवश्यकता नही होती है। पुरे जीवन काल मे 2 से 3 टीके लगते है जिसमे बत्तख प्लेग बीमारी का टीकाकरण अवश्य लगवाना चाहिए।

मछली सह बत्तख पालन मे ध्यान देने योग्य बातेः-
मछली सह बत्तख पालन करने मे एसे तालाब का चयन करना चाहिए जहाॅ वर्ष भर पानी की व्यवस्था हो एवं पानी का स्तर 4 से 4.5 फीट होना चाहिए। मछली सह बत्तख पालन मे 1 हेक्टेयर तालाब में 8000 से 10000 अंगुलिका एवं 250 से 300 बत्तख पर्याप्त होती है। जब मछली का आकार 10 से. मी. या अंगुलि के आकार का हो जाए तो बत्तखो को तालाब मे छोड़ना चाहिए। मछली सह बत्तख पालन हेतु मछली की प्रजातियाॅ- कतला, रोहु, मृगल।