श्रीकांत साहू, पीएचडी रिसर्च स्कॉलर, सब्जी विज्ञान विभाग, 
महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, पाटन, दुर्ग, छत्तीसगढ़
जतीन कुमार, प्रक्षेत्र सहायक, अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग, 
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़

दुनियाभर में पानी के बाद चाय सबसे अधिक पिया जाने वाला पेय है। भारत में सबसे पहले चाय की खेती असम में प्रारंभ किया गया। चाय उत्पादन में छत्तीसगढ़ को 17वें चाय उत्पादक राज्य का दर्जा दिया गया है। जशपुर में और सरगुजा जिले 2010 से शुरू हुआ। ब्रह्मनिष्ठालय सोगारा आश्रम के संस्थापक द्वारा सबसे पहले 2010 में बागानों में चाय की खेती की गई थी। वर्तमान में हरी पत्ती की कीमत 18 रुपये प्रति किलोग्राम है, प्रसंस्करण लागत 3,477.4/क्विंटल है। सारूडीह का चाय बागान पर्वत और जंगल से लगा हुआ है। अनुपयोगी जमीन में बागान बन जाने से आस-पास सिर्फ हरियाली है, पर्यटन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से भी सारूडीह और जशपुर की पहचान बढ़ रही है। चाय के बागान से पानी और मिट्टी का संरक्षण हुआ। बागान में चाय के पौधों को धूप से बचाने लगे गए शेड ट्री को समय-समय पर काटा जाता है, जिससे जलाऊ लकड़ी भी गांव वालों को आसानी से उपलब्ध हो जाती है। यहां बागान के पौधों के बीच में मसाले की खेती को भी आजमाया जा रहा है। सफलता मिली तो आने वाले दिनों में मसाला उत्पादन में भी जशपुर जिले का नाम होगा। चाय प्रसंस्करण यूनिट में चाय उत्पादन शुरू हो गया है। हालांकि अभी एक लिमिट में चाय पत्तियों का उत्पादन हो रहा है, पर आने वाले समय में यहां से उत्पादित चाय को पैकेट में भरने और उसके विपणन के लिए और लोगों को काम देना पड़ेगा। पर्वतीय प्रदेशों के शिमला, दार्जिलिंग, ऊंटी, असम, मेघालय सहित अन्य राज्यों की चाय बागानों की तरह जशपुर के सारूडीह का चाय बागान पर्वत और जंगल से लगा हुआ है। यह 20 एकड़ क्षेत्र में फैल हुआ है। चाय प्रसंस्करण केंद्र लगने से पहले यहां समूह की महिलाओं द्वारा गर्म भट्ठे के माध्यम से चाय तैयार किया जाता था।

प्रदेश की पहली चाय प्रसंस्करण इकाई जिससे उत्पादन किया जा रहा है
अपनी अनूठी आदिवासी संस्कृति, नैसर्गिक सौंदर्य और प्राकृतिक रूप से निर्मित स्थलों के लिए प्रसिद्ध जशपुर पिछले साढ़े तीन वर्षों से चाय की खेती में अपनी नई पहचान स्थापित कर रहा है। अभी तक भारत में चाय की खेती के लिए असम और दार्जिलिंग मशहूर थे, लेकिन अब जशपुर में भी चाय की खेती पर्यटकों का आकर्षण खींचने लगी है। छत्तीसगढ़ के उत्तरी-पूर्वी कोने में स्थित जशपुर जिले की जलवायु और भौगोलिक स्थिति चाय उत्पादन के लिए अनुकूल हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए चाय की खेती को बढ़ावा देने के लिए यहां चाय बागान की स्थापना की गई है। यहां की खासियत यह है कि देश के अन्य हिस्सों में चाय की खेती के लिए कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है, लेकिन गोधन न्याय योजना के कारण, जशपुर के चाय बागानों में वर्मी कंपोस्ट का उपयोग किया जाता है जो चाय के स्वाद को बढ़ाने के साथ-साथ कई स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करता है।

चाय प्रसंस्करण इकाई की स्थापना
छत्तीसगढ़ सरकार ने जशपुर जिले के बालाछापर में 45 लाख रुपये की लागत से चाय प्रसंस्करण इकाई स्थापित की है। चाय प्रसंस्करण यूनिट में मशीन संचालन के लिए दार्जिलिंग क्षेत्र के बीर बहादुर सुब्बा को जिम्मेदारी सौंपी गई है। सुब्बा 40 साल तक चाय उत्पादन के क्षेत्र में काम कर चुके हैं और कंपनी से रिटायर्ड हैं। अनुभवी होने से सुब्बा के सहयोग से यूनिट संचालन में आसानी हो रही है। वे युवाओं को मशीन संचालन का प्रशिक्षण दे रहे हैं। यहां काली और हरी चाय का उत्पादन शुरू हो गया है। यह इकाई बालाछापर स्थित वन विभाग के पर्यावरण वृक्षारोपण परिसर में स्थापित की गई है। इकाई की प्रति दिन 300 किलोग्राम हरी चाय की पत्तियों की प्रसंस्करण क्षमता है।

जशपुर चाय बागान आकर्षण और पर्यटन का केंद्र बना 
जशपुर में चाय का बागान, जिसे देखने के लिए लोग आमतौर पर असम या दार्जिलिंग जाते हैं। जशपुर जिले के सारूडीह के शांत क्षेत्र में स्थित, यह चाय बागान लगभग 18-20 एकड़ हरी-भरी भूमि में फैल है। सारूडीह टी-एस्टेट, जिसे जशपुर चाय बागान के नाम से भी जाना जाता है, प्रकृति में एक आनंददायक अनुभव प्रदान करता है, जहां ताजी चाय की पत्तियों की खुशबू हवा में भर जाती है। छत्तीसगढ़ का यह अनूठा गंतव्य राज्य की विविध कृषि क्षमताओं और छिपी पर्यटन क्षमताओं का प्रमाण है। केवल 10 रुपये के मामूली शुल्क पर सारूडीह चाय बागान का भ्रमण एक अनुभव है।

चाय के शौकीनों के लिए एक अतिरिक्त खुशी की बात है
आप स्रोत पर ही एक ताज़ी बनी चाय का स्वाद ले सकते हैं, भले ही अतिरिक्त शुल्क देना पड़े। बगीचे के सुव्यवस्थित रास्ते आगंतुकों को हरे-भरे चाय बागानों में ठहरने की अनुमति देते हैं, जो दैनिक जीवन की हलचल से एक शांतिपूर्ण और ताज़ा विश्राम प्रदान करते हैं। सारूडीह चाय बागान को जो चीज वास्तव में खास बनाती है, वह सिर्फ चाय की खेती नहीं है, बल्कि आसपास की प्राकृतिक सुंदरता भी है। यह संपत्ति सुरम्य पहाड़ियों के बीच बसी हुई है, जो एक आश्चर्यजनक पृष्ठभूमि प्रदान करती है जो समग्र अनुभव को बढ़ाती है। क्षेत्र की शांति और प्राकृतिक सुंदरता इसे फोटोग्राफी, प्रकृति की सैर और प्रकृति की गोद में आराम करने के लिए एक आदर्श स्थान बनाती है।

भविष्य में संभावनाएँ
वन विभाग ने स्थानीय किसानों के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू किया है। इसके लिए कबीरधाम जिले के चिल्फी घाटी में लगभग 70 हेक्टेयर भूमि चिन्हित की गई है। शुरुआत में 15 हेक्टेयर में चाय की खेती की जाएगी। क्षेत्र में इसका परीक्षण पहले ही किया जा चुका है। चिल्फी घाटी में चाय बागानों में बैगा समुदाय की भागीदारी होगी। इसके अलावा 24 किसान 26 एकड़ जमीन पर चाय उगा रहे हैं। मूल निवासियों की भागीदारी से गठित संयुक्त वन प्रबंधन समिति इस पहल को बढ़ावा दे रही है। वन विभाग के अधिकारियों ने कहा कि चाय को 'जशपुर चाय' के रूप में बेचा जाएगा और यह रायपुर में राज्य लघु वन उपज के 'संजीवनी केंद्रों' पर उपलब्ध होगी। अब सारूडीह का पहाड़ी इलाका भी अनुकूल दिख रहा है और अन्य जगहों को चिन्हित करने का प्रयास किया जा रहा है।