पी मूवेंथन, उत्तम सिंह एवं सुमन सिंह
भाकृअनुप-राष्ट्रीय जैविक स्ट्रैस प्रबंधन संस्थान, बरोंडा रायपुर (छ.ग.)

गोभीवर्गीय फसलें, जिन्हें ब्रैसिका सब्जियां या क्रूसिफेरस सब्जियां भी कहा जाता है, ब्रैसिकेसी परिवार से संबंधित पौधों के एक विविध समूह को शामिल करती हैं। ये फसलें अपने पोषण मूल्य, विभिन्न जलवायु के अनुकूलनशीलता और बहुमुखी प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध हैं। शब्द "कोल" लैटिन शब्द "कौलिस" से लिया गया है, जिसका अर्थ है तना या डंठल, जो इन पौधों की विशिष्ट विशेषता को दर्शाता है। गोभीवर्गीय फसलों के कुछ सामान्य उदाहरणों में पत्ता गोभी, ब्रोकली, फूलगोभी, केल, ब्रसेल्स स्प्राउट्स और कोलार्ड ग्रीन्स शामिल हैं। इन सब्जियों की खेती दुनियाभर में की जाती है और कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व रखती है।

गोभीवर्गीय फसलों का महत्व:
  • कार्बोहाइड्रेट, वसा और कैलोरी की मात्रा कम होती हैं: गोभीवर्गीय फसलें स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होती हैं क्योंकि इनमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, और कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है, जिससे ये वजन प्रबंधन और दिल की सेहत के लिए फायदेमंद होती हैं।
  • प्रोटीन (संतुलित), खनिज, विटामिन ए, विटामिन सी और विटामिन डी का अच्छा स्रोत होता है: ये फसलें प्रोटीन, खनिज, और विभिन्न विटामिनों का उत्कृष्ट स्रोत होती हैं। इनमें विटामिन ए, सी और डी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाते हैं और त्वचा, दृष्टि और हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • गोभीवर्गीय फसल कैंसर रोधी गुणों (इंडोल-3-कार्बिनोल) के लिए भी जाना जाता है: गोभीवर्गीय फसलें कैंसर रोधी गुणों के लिए प्रसिद्ध हैं। इनमें इंडोल-3-कार्बिनोल नामक यौगिक होता है, जो कैंसर से लड़ने में मदद करता है। इसके अलावा, पत्तागोभी का रस जहरीले मशरूम के विष के खिलाफ भी प्रभावी होता है।
  • स्वाद यौगिक: गोभीवर्गीय फसलों में विभिन्न स्वाद यौगिक पाए जाते हैं, जैसे कि सिनग्रिन, एंटीऑक्सीडेंट, एस्कॉर्बिक एसिड, टोकोफेरॉल, कैरोटीनॉयड, आइसोथियोसाइनेट्स, इंडोल्स, और फ्लेवोनोइड्स। ये सभी यौगिक न केवल इनके स्वाद को अनूठा बनाते हैं बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होते हैं, जैसे कि एंटीऑक्सीडेंट यौगिक शरीर को मुक्त कणों से बचाने में मदद करते हैं।
  • गोभीवर्गीय फसलें: जैसे पत्तागोभी, ब्रोकली, और फूलगोभी, पोषण से भरपूर होती हैं और इनके विभिन्न स्वास्थ्य लाभ होते हैं। ये फसलें स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण आहार का हिस्सा हो सकती हैं, जो न केवल पोषण को बढ़ावा देती हैं बल्कि विभिन्न रोगों से लड़ने में भी सहायता करती हैं।

बीज का परिचय:-
कृषि उत्पादन में बीज सबसे महत्वपूर्ण कारक है, जो अन्य इनपुट का प्रदर्शन और प्रभावशीलता निर्धारित करता है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए गुणवत्तापूर्ण बीज का होना आवश्यक है, जो उचित कीमतों पर और उचित समय में विभिन्न कृषि जलवायु स्थितियों के लिए उपयुक्त मात्रा में उपलब्ध होना चाहिए। कृषि उत्पादन और उत्पादकता में निरंतर वृद्धि के लिए नई और उन्नत फसल किस्मों के साथ-साथ एक कुशल बीज प्रणाली का निर्माण महत्वपूर्ण है।देश की खाद्य सुरक्षा मांगों को पूरा करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज का चयन करना महत्वपूर्ण है, ताकि भारतीय किसानों को पर्याप्त मात्रा में और उचित समय पर बीज उपलब्ध कराया जा सके। सार्वजनिक क्षेत्र में बीज उत्पादकों को बीज उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे खाद्य और पोषण सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। उन्नत और गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता से न केवल उत्पादन क्षमता बढ़ेगी, बल्कि यह किसानों की आय में भी वृद्धि करेगी और कृषि क्षेत्र को अधिक स्थिर और टिकाऊ बनाएगी।

बीजों का प्रकार:-

1. नाभिकीय बीज - यह पौध प्रजनक (वैज्ञानिक) द्वारा स्वयं तैयार किया जाता है। यह भौतिक शुद्धता के साथ सौ प्रतिशत आनुवंशिक रूप से शुद्ध बीज हैं।

2. प्रजनक बीज - नाभिकीय बीज से प्रजनक बीज स्वयं प्रजनक (वैज्ञानिक) के देख-रेख में तैयार किया जाता हैं। यह केन्द्रीय बीज की संतति होती हैं। यह बीज भौतिक एवं अनुवांशिक रूप से 100% शुद्ध होता है। प्रजनक बीज के बोरे पर पीले रंग का टैग लगा होता है।

3. आधार बीज -सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में मान्यता प्राप्त बीज उत्पादक एजेंसियों द्वारा बीज प्रमाणीकरण एजेंसियों की देखरेख में उत्पादित बीज की संतान को इस प्रकार तैयार किया जाता है कि उसकी गुणवत्ता निर्धारित क्षेत्र एवं बीज मानकों के अनुरूप बनी रहें। बीज प्रमाणीकरण एजेंसियों द्वारा आधार बीज के लिए सफेद रंग का प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।

4. पंजीकृत बीज -पंजीकृत बीज आधार बीज की संतान होगी जिसे इस प्रकार संभाला जाता है कि प्रमाणित की जाने वाली विशेष फसल के लिए निर्दिष्ट मानक के अनुसार उसकी आनुवंशिक पहचान और शुद्धता बनी रहे। इस श्रेणी के बीज के लिए बैंगनी रंग का प्रमाणपत्र जारी किया जाता है।

5. प्रमाणित बीज– यही आधार बीज से तैयार किया जाता है। अतः यह आधार बीज की संगति होती है। इस श्रेणी के बीज के लिए बीज प्रमाणीकरण एजेंसी द्वारा नीले रंग का प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।

उत्पादन प्रौद्योगिकी:-

बुआई का समय:-

अगेती किस्में - जुलाई के दूसरे पखवाड़े में 25 जुलाई तक

मध्यम किस्में - जून का दूसरा पखवाड़ा (1-15 जून तक)

पछेती किस्में - 15 जून का पहला पखवाड़ा (30 जून तक)

पृथक्करण दूरी:-
बीज क्षेत्र को कम से कम अन्य किस्मों के खेतों से अलग किया जाना चाहिए जिसमें फाउंडेशन श्रेणी के लिए 1600 मीटर और प्रमाणित श्रेणी के बीज उत्पादन के लिए 1000 मीटर दूरी रखना चाहिए।

बीज दर:-

अगेती किस्म - 600g/ha

पछेती किस्म
-400g/ha (पत्तागोभी के लिए)

- 375-400g/ha (फूलगोभी के लिए)

- 500g/ha (बसेल्स स्प्राउटस, ब्रोकलीके लिए)

- 1.5 kg/ha (गांठगोभीके लिए)

बीजोपचार :-
कुछ बीज-जनित रोगजनक जैसे काला सड़न, ब्लैक लेग, और अल्टरनेरिया पत्ती के अंकुरण से ही अंकुरों पर झुलसा रोग का आक्रमण शुरू हो जाता है। बीजों को 24 घंटे के लिए 40°C पर पहले सुखाया जाता है, और उसके बाद 75°C पर वायु उपचार करके बिना किसी बीज को काला सड़न से क्षति पहुँचाए 5.7 दिनों के लिए संक्रमित गोभी के बीजों को कीटाणुरहित करने का एक बहुत अच्छा तरीका है। बीज-जनित रोगों को रोकने के लिए बीज को 30 मिनट के लिए 50°C पर गर्म पानी का उपचार किया जाता है। उपचार के तुरंत बाद बीज को 24 घंटे के भीतर बुआई के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए।डैम्पिंग-ऑफ रोग को रोकने के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी (4 ग्राम/किग्रा बीज) या थिरम (3 ग्राम/किग्रा बीज) का कवक संवर्धन भी किया जा सकता है। फंगल रोगों की रोकथाम के लिए बीजों को कैप्टान या थीरम 2.5 ग्राम/किग्रा से भी उपचारित किया जा सकता है।

नर्सरी:-
बीजों को 15-20 सेमी. ऊँची पंक्तियों में 10 सेमी. रिक्ति पर ऊँची नर्सरी बेड पर बोया जा सकता है। 2 मीटर x 1 मीटरआकार के 25 नर्सरी बेड एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त हैं।

रोपण:-
3-4 सप्ताह पुराने पौधों को निश्श्चित दूरी पर शाम को प्रत्यारोपित किया जाता है।
  • पछेती किस्मों के लिए -60×60 सेमी.
  • मध्यम किस्मों के लिए -60x40 सेमी.
  • अगेती किस्मों के लिए-45×45 सेमी.

अगेती किस्मों के लिए अगस्त के दूसरे परखवाड़े में (15 इंच से आगे) रोपाई करें और मध्यम और पछेती किस्मों के लिए अगस्त का सप्ताह उचित हैं।

खाद एवं उर्वरक:
गोभीवर्गीय फसलों के लिए गोबर की खाद 10-15 टन/हेक्टेयर औरउर्वरक(N:P:K), 130 :110:100 (स्त्रोत यूरिया -283 किग्रा/हेक्टयर, एसएसपी -687 किग्रा / हेक्टयर और एमओपी - 167 किग्रा / हेकट्यर) होती है।

सिंचाई:
पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद की जाती है और 7 दिनों तक सिंचाई जारी रखी जाती हैं, उसके बाद नमी की उपलब्धता के अनुसार 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जाती हैं।

प्रमुख किस्में:

क्र.

सब्जियाँ

प्रमुख किस्में

विशेषताएँ

1.

फूलगोभी

अर्कास्फूर्ति

1.  सामूहिक वंशावली विधि द्वारा फूलगोभी की अगेती किस्म को IIHR  द्वारा विकसित किया गया है।

2.  इसमें सघन सफेद कर्ड , उष्ण कटिबंधीय परिस्थितियों में भी अच्छा बीज जमाव होताहैं

3.   65-75 दिनों में कर्ड की उपज 15-16 टन/हेक्टेयर होती हैं और यह डाउनी फफूंदी और अल्टरनेरि या लीफस्पॉट के लिए मध्यम प्रतिरोधी किस्म है।

अर्काविमल

1.  सामूहिक वंशावली विधि फूलगोभी की अगेती किस्मको IIHR   द्वारा विकसित किया गया है।

2. इसमें सघन मलाईदार सफेद कर्ड , उष्ण कटिबंधीय परिस्थितियों में अच्छा बीज जमाव होता हैं

3. 75-80 दिनों में कर्ड की उपज 17-18 टन/हेक्टेयर होती हैं औ रडाउनी फफूंदी और अल्टरनेरि या लीफस्पॉट के लिए मध्यम प्रतिरोधी है।

2.

पत्तागोभी

पूसाअगेती

1. यह उष्ण कटिबंधीय प्रकार की किस्म परन्तु उपोष्ण कटिबंधीय परिस्थितियों में बीज पैदा करती है।

2.  हेड का वजन 600-1200 ग्राम होता है और इसे रोपाई के 75-90 दिनों बाद कटाई के लिए तैयार हो जाता है।

3.  उपज 310 -330 क्विंटल/हे प्राप्त होती हैं।

पूसामुक्ता

1.  यह जीवाणु सड़न प्रतिरोधी किस्म, पौधे छोटे डंठल, मध्यम फ्रेम और हल्के होते हैं।

2. इसमें हेड का वजन 1.5-2.0 किलो ग्राम होता हैं और औसत उपज 200-300 क्विंटल/हेक्टेयर होती है।

3.

ब्रोकली

पालमसमृद्धि

1. पौधे में चिकनी पत्तियां होती हैं जो बड़े और गहरे हरे रंग की होती हैं।

2.  इसका हेड गोल होता है, जो सघन और हरे रंग का होता है।

3. हेड का औसत वजन 300 ग्राम होता है।यह किस्म रोपाई के 70-75 दिनों में पक जाती है और इसकी औसत उपज 72 क्विन्टल प्रति एकड़ होती है।

पंजाबब्रोकली -1

1.     इसकी पत्तियां चिकनी होती हैं जो लहरदार और गहरे हरे रंग की होती हैं।

2.  हेड कॉम्पैक्ट और आकर्षक हैं, यह किस्म लगभग 65 दिनों में पक जाती है और औसतन 70 tl/एकड़ उपज देती है।

3. यह किस्म सलाद और खाना पकाने दोनों उद्देश्यों के लिए उपयुक्त है।

 

4.

गांठगोभी

अर्लीपर्पलवियना

1.  पत्तियाँ बैंगनी रंग की होती हैं।

2.     नॉब गोलाकार से लेकर बड़े आकार की, हल्के हरे रंग के मांस के साथ बैंगनी त्वचा वाली होती हैं।

3. नॉब बनने में 55-60 दिन का समय लगता है।

पर्पलवियना

1.    यह एक पछेती किस्म है जिसकी पत्तियां और तना बैंगनी रंग का होता है।

2.    रोपाई के 55-60 दिन बाद नॉब कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं।

3.    इस किस्म की औसत उपज 150-200 क्विंटल/हेक्टेयर है।



कीट:- आमतौर पर पत्तागोभी और फूलगोभी पर ब्रोकली और गांठ गोभी की तुलना में कीटों द्वारा अधिक हमला होता है।

क्र.

कीट

लक्षण

प्रबंधन

1.

सेमी लूपर

हरे रंग का लार्वा होता है और वह पत्तों को खाता हैं

1. मैनुअल संग्रह करें और विनाश कर दें।

2. 1/हेक्टेयर की दर से लाइट ट्रैप लगाएं।

3. मैलाथियान 50 EC जैसे कीटनाशकों का 0.1% हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

4. सेमीलूपर को कम करने के लिए क्लोरपाइरीफोस और क्विनालोफोस का प्रयोग कर सकते हैं।

2.

पत्ता गोभी तितली

हरे रंग का लार्वा होता है और वह पत्तों को खाता हैं।

1. मैनुअल संग्रह करें और विनाश कर दें

2. कोटेसिया ग्लोमेरेटस जैसे परजीवियों का संरक्षण करें

3. क्विनालफॉस 25 ईसी @1000 मि.ली. जैसे कीटनाशकों का छिड़काव करें।

3.

डीबीएम (डायमंड बैक मोथ)

छोटा लार्वा पत्तियों की बाह्य त्वचा को खाता है

1. सरसों की रक्षक फसल की तरह उगाएं और बटोनिकल कीटनाशक का छिड़काव करें।

2. फेरोमोनट्रैप @12/हे का प्रयोग करें

3. कद्दू, सेम, मटर, टमाटर और खरबूजे के साथ फसलचक्र अपनाये

4. लार्वा परजीवी: डायडेग्मा सेमीक्लॉसम @1,00000/हेक्टेयर (पहाड़ियाँ-25-27ºC से नीचे) कोटेसियाप्लूटेला (मैदानी क्षेत्र) 20000/हेक्टेयर रोपण के 20 दिन बाद प्रयोग करें

5. बैसिलस थुरिंजिएन्सिस स्पीशीज कुर्स्ताकी 2 ग्राम/लीटर का प्रयोग करें

4.

स्पोडोप्टेरा

भूरे रंग का लार्वा कर्ड खाता है

1. ब्यूवेरिया बैसियाना कल्चर का स्प्रे करना चाहिए

2. नर पतंगों को आकर्षित करने के लिए फेरोमोनजाल (फेरोडिन एसएल) @ 15/हेक्टेयर का प्रयोग करें

3. एसआईएनपीवी @ 1.5 X 1012 पीओबी/हेक्टेयर + 2.5 किलोग्राम कच्ची चीनी + 0.1% टीपोल का छिड़काव करें।

4. सहस्थापन : चावल की भूसी 5 किलोग्राम + गुड़ या ब्राउन शुगर 500 ग्राम + कार्बेरिल 50 डब्ल्यूपी 500 ग्राम + 3 लीटर पानी/हेक्टेयर का प्रयोग करें।

5. क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी 2 लीटर/हेक्टेयर या डाइक्लोरोवोस 76 डब्ल्यू एससी 1 लीटर/हेक्टेयर का छिड़काव करें।

5.

हेड बोरर

क्रीमी पीला लार्वा हेड मैं छेद कर देता है

1. ब्यूवेरिया बैसियाना कल्चर का स्प्रे करना चाहिए।

2. प्रारंभिक अवस्था में बैसिलस थुरिंजिएन्सिस @ 2 ग्राम/लीटर का प्रयोग कर सकते हैं।

3. कार्टैपहाइड्रोक्लोराइड @ 500 ग्राम/हेक्टेयर या मैलाथियान 50 ईसी @500 मि.ली./हेक्टेयर का भी प्रयोग कर सकते हैं।



रोग:-
गोभीवर्गीय फसलों में नर्सरी के साथ-साथ मुख्य खेतों में भी रोग लगने की संभावना अत्यधिक होती है। आद्र गलन रोग होने से नर्सरी में अधिकतम क्षति होती है और ब्लैक लेग से मुख्य खेत प्रभावित होता हैं।

क्र.

रोग

लक्षण

प्रबंध

1.

आद्र गलन

प्रायः नर्सरी में लगने वाला रोग हैं।

1. सघन बुआई से बचें

2. ट्राइकोडर्मा हार्ज़ियानम @2%  के साथ मृदा उपचार करें।

3. कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP @ 2.5 ग्राम/लीटर @ 4 लीटर/वर्ग मीटर से प्रयोग करें।

4. बुआई से 24 घंटे पहले बीजों को मेटालेक्सिल-एम 31.8% ईएस @ 2 मिली/किग्रा बीज की दर से उपचारित करें।

2.

ब्लैक लेग

पौधों का मुरझाना

1. ट्राइकोडर्मा कल्चर से अंकुरण में  (5.0%) और मृदा उपचार में  (2.0%) का छिड़काव करें

2. कैप्टान या थीरम 4 ग्राम/किलोग्राम बीज से उपचार करें, इसके बाद ट्राइकोडर्मा विरडी  4 ग्राम/किलो ग्राम से बीज उपचार करें।

3. पूसा ड्रम हेड ब्लैक लेग रोग के लिए प्रतिरोधी किस्म हैं

3.

लीफ स्पॉट

पत्तियों पे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं

1. प्रभावित भाग को काट के जला दें

2. लक्षण दिखने के तुरंत बाद और 15 दिन के अंतराल पर मैंकोजेब 0.25% या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.25% का छिड़काव करें।


पत्तागोभी में बीज उत्पादन तकनीक:ー

1. बीज से बीज (इन-सीटू विधि):ー इस विधि का उपयोग व्यावसायिक बीज उत्पादन के लिए किया जाता है। इस विधि से सर्दियों में बीज अपनी मूल स्थिति में पैदा किया जाता है। यह किफायती होता हैं एवं इसमें उखाड़ने, भण्डारण करने एवं दोबारा रोपने के लिए श्रमिक की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं। अगेती किस्मों में यह बीज उत्पादन में मदद करता हैं। इस विधि की मुख्य हानि यह कि सिरो के यथार्थता के कारण यह उचित चयन नहीं कर पाता हैं। इस विधि का प्रयोग आधार बीज के लिए किया जाता हैं।

2. सिर से बीज तक (रोपाई):- इस विधि में अच्छी तरह से विकसित सिरों का चुनाव किया जाता है और सिर पर क्रॉस कट दिया जाता हैं और ऐसे ही कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता हैं। क्रॉस कट उचित वायु संचार, बोल्टिंग और बीज के उत्पादन में मदद करता है।

3. स्टेप एवं कोर अक्षुण्ण विधि:- पत्तो के घेरे को बरकरार रखते हुए सिरों को आधार के ठीक नीचे काटा जाता है। सिर कलम कर दिये पौधे के भाग को ठूंठ कहा जाता हैं। सिरों की कटाई करके विपणन किया जाता है। ठूंठ को खाइयो में संग्रहित किया जाता है और शरद ऋतु के दौरान खेतो में दोबारा लगाया जाता है। यह विधि वाणिज्यिक नहीं है क्योंकि इसमें बीज की उपज कम होती हैं।

4. कोर अक्षुण्ण विधि:- इस विधि में बाहरी कुछ चक्रों को हटा दिया जाता है और केंद्रीय कोर को बरकरार छोड़ दिया जाता है जिसे बाद में इस तरह से क्रॉस कट दिया जाता है कि केंद्रीय विकास को नुकसान न हो। क्रॉस कट की मदद से बीज डंठल को उगाया जा सकता हैं। पिरामिड कट से बीज की पैदावार बढ़ती हैं। यह विधि अधिक किफायती है क्योंकि कटे हुए पत्ते वाले हिस्से का विपणन किया जा सकता है।

5. सिर अक्षुण्णण विधि:- इस विधि में सिर को बरकरार रखा जाता है और क्रॉस कट की सुविधा से डंठल को उगाया जाता हैं। इस विधि में बहुत भारी स्टैकिंग की आवश्यकता पड़‌ती है और बीज की उपज कम हो जाती हैं।

पृथक्करण दूरी :ー
  • आधार बीज - 1600 मीटर
  • प्रमाणित बीज - 2000 मीटर

स्टेकिंग - बीज के डंठलों को सीधा रखने और धूप के संपर्क में रखने के लिए उन्हें डंडे का सहारा देना चाहिए।

कटाई :–
  • बीज डंठल बढ़ाव - 10-20 मार्च
  • फूल आना और फली बनना -अप्रैल का पहला सप्ताह
  • फलियों का पकना -15-20 जून
  • कटाई - जुलाई के दूसरे सप्ताह तक

शुरुआती पौधों की कटाई पहले की जाती है और जब फली का रंग पीला भूरा हो जाता है तब पूरी तरह से कटाई की जाती हैं और उपचार के लिए ढेर लगा दिया गया जाता है। 4-5 दिन बाद इसे उल्टा कर दिया जाता है और इसे अगले 4-5 दिनों तक इसी तरह ठीक होने दिया जाता हैं। फिर इसे डंडो से कूटकर छान लिया जाता हाथ से छानने वाली मशीन से छान लिया जाता है। जब बीज अच्छी तरह सूख जाये तब साफ करके बीजों को भंडारित कर लिया जाता है।

बीज उपज -500-600 किलोग्राम / हेक्टेयर

फूलगोभी में बीज उत्पादन:–

1. यथास्थान विधि(बीज से बीज विधि)

2. रोपाई विधि (सिर से बीज विधि)

बीज उत्पादन के लिए सिर से बीज विधि के स्थान पर बीज से बीज विधि को उपयुक्त माना गया हैं। यह विधि भारत में बहुत सफल नहीं रही हैं। बीज से बीज विधि में फसल को सर्दियों में उगने दिया जाता हैं जिससे बीज को मूल अवस्था में पैटा किया जा सकें, जहाँ उसे पहली बार अंकुर के लिए उपयोग किया जाता है। फूलगोभी में कर्ड काटने की तीन विधियाँ हैं –

1. स्कूपिंग - यहाँ केंन्द्रीय कर्ड को चाकू का उपयोग करके स्कूप किया जाता है। लगभग आधे कर्ड को बीच से हटा दिया जाता हैं।

2. कर्ड की छँटाई- सबसे बाहरी कर्ड की पत्तियों को बीच से 5 सेमी दूर कर दिया जाता हैं।

3. आधे कर्ड को निकालना - कर्ड का आधा भाग निकाल लें। इन्हें लंबवत रूप से दो भागों में काटा जाता है और एक को हटा दिया जाता है और दूसरे को पौधों के साथ बरकरार रखा जाता है।

पृथक्करण दूरी

1. प्रमाणित बीज - 1000 मीटर

2. फाउंडेशन बीज - 1600 मीटर

कटाई - फलियाँ भूरे होने पर कटाई की जा सकती हैं। अधिक पकी फलियाँ सूख जाती हैं। हाथों के बीच बीज को रगड़ने से फलियाँ फट जाती हैं। जब 60-70% फलियाँ भूरे रंग की हो जाती है तब कटाई कर देना चाहिए।

कटाई के बाद इसे उपचारित करने के लिए ढेर लगा दिया जाता है। चार-पाँच दिन बाद उसे उल्टा कर दिया जाता है और अगले चार से पाँच दिनों तक इसी तरह ठीक होने दिया जाता है। इसके बाद छड़ी की मदद से थ्रेशिंग किया जाता है। और फिर हाथ से छानने वाली मशीन से छानलिया जाता हैं। इसके बाद बीज को साफ करके, धूप में सुखाने के बाद भण्डारण किया जाता है।

बीज उपज :- 250-400 किग्रा / हेक्टेयर

गांठगोभी में बीज उत्पादन:–
गांठगोभी का बीज आमतौर पर यथास्थान विधि द्वारा उत्पादित किया जाता है। हालांकि केन्द्रीय बीज को बढ़ाने के लिए रोपाई विधि का अभ्यास किया जाता है।

1. इन-सीटू विधि - इस विधि में फसल को सर्दियों में उगने दिया जाता हैं जिससे बीज को मूल अवस्था में पैदा कियाजा सकें जहाँ उसे पहली बार अंकुरण के लिए उपयोग किया जाता हैं।

2. रोपाई विधि –
इस विधि में शरद ऋतु में परिपक़्व पौधे को उखाड़ दिया जाता हैं। क्राउन को बरकरार रखते हुए नॉब और ऊपर के चारों ओर की पत्तियाँ हटा दी जाती है। चयनित प्रकार के पौधों को तुरंत एक गमले में दोबारा लगाया जाता हैं। नॉब तक पूरा तना मि‌ट्टी में दबा दिया जाता हैं कि जिससे नॉब जमीन को छूती शाखा प्ररोह के आधार पर फूल अवस्था में आमतौर पर तीन प्रकार के पौधे देखे जाते हैं: -

1) अशाखित प्रकार

2) मध्यवर्ती

3) पूरी तरह शाखायुक्त

बीज प्लॉट में पूर्णतः शाखित पौधे का अधिक अनुपात अधिकबीज उपज देता हैं। इनमें से किसी भी प्रकार के गांठगोभी में कटाई के बाद पाये गए बीज से उत्पन्न नॉब की गुणवत्ता में कोई उल्लेखनीय अंतर नहीं पाया जाता हैं।

पृथक्करण दूरी - गांठगोभी के किन्ही दो किस्मों के बीच की दूरी 1000-1600 मीटर हैं।

बीज उपज - 600-750 किग्रा । हेक्टेयर

अंकुरित ब्रोकली में बीज उत्पादन
रोपण के समय को समायोजित करके ब्रोकलीमौसम में एक ही गौसम में बीज उत्पादन किया जा सकता हैं। इसे पत्तागोभी और फूलगोभी की तुलना में गर्म और कम नमीपरिस्थितियों की आवश्कयता होती है। इसे ठंड के मौसम में उगाया जाता है।

बुआई का समय - सिंतबर - अक्टूबर

रोपाई का समय - अक्टूबर - नवंबर

बीज दर - 400-500 ग्राम

बीच उत्पादन तकनीक

1)बीज से बीज विधि

2) हेड टू सीड विधि

पकने और फूल आने का समय - मध्य फरवरी

बीज कटाई - मई

बीज उपज - 8-10 किंटल / हेक्टयर

अन्यकोलफसलें जैसे ब्रुसेल्स स्प्राउट्स, केल आदि में बीज उत्पादन फूलगोभी और पत्तागोभी के समान ही होता है।

निष्कर्ष:-बीज कृषि उत्पादन का महत्वपूर्णनिर्धारकहैं जिस पर अन्य इन‌पुट का प्रदर्शन और प्रभावकारिता निर्भर करता है। गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादकता बढ़ाते हैं। इसलिए बीज उत्पादन की विभिन्न विधियों को जानकर बड़ी मात्रा मेंकोल फसलों में बीज प्राप्त किया जा सकता हैं। इससे किसान और उपभोक्ता दोनोंकी बढ़ती मांगों को पूरा किया जा सकता है।