सुरेश कुमार साहू (पीएचडी स्कॉलर) पादप रोग विज्ञान विभाग

अरहर खरीफ की मुख्य दलहनी फसल है। दलहनी फसलों में चना के बाद अरहर का स्थान है। अरहर की दाल में उच्च मात्रा में प्रोटीन और महत्वपूर्ण अमीनो एसिड, मेथियोनीन , लाइसिन और ट्रिप्टोफैन होते हैं। अरहर अंतर फसल एवं बीच के फसल के रूप में उगाई जाती है, अरहर ज्वार, बाजरा, उर्द एवं कपास के साथ बोई जाती है।अन्य फलों की तरह अरहर में भी विभिन्न रोग का प्रकोप होता है।अरहर की फसल में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का प्रकोप होता है जैसे कि कवकजनित, जीवाणुजनित, विषाणुजनित व सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी इत्यादि।

1. उकठा या विल्ट रोग
अरहर की फसल में उकठा रोग की रिपोर्ट 1906 में बटलर द्वारा भारत के बिहार राज्य से की गई थी। यह रोग भारत, केन्या, मलावी, तंजानिया और मोजाम्बिक सहित दुनिया भर के अरहर की फसल उगाने वाले क्षेत्रों में व्याप्त है। यह रोग फ्यूजेरियम नामक कवक से होता है।इस रोग में पौधा पीला पड़कर सुख जाता है। फसल में फूल एवं फल लगने की अवस्था में एवं बारिश के बाद इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।रोग ग्रसित पौधों की जडें सड़कर गहरे रंग की हो जाती हैं तथा छाल हटाने पर जड़ से लेकर तने तक काले रंग की धारियां पाई जाती हैं।एक ही खेत में कई वर्षों तक अरहर की फसल लेने पर इस रोग की उग्रता बढती है।उकठा रोग से अनाज की उपज में 30-100% की हानि हो सकती है।

रोकथाम के उपाय–
  • जिस खेत में रोगका प्रकोप अधिक हो वहां 3-4 साल तक अरहर की फसल न लें।
  • खेतों की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें।
  • ज्वार के साथ अरहर की फसल लेने से रोग की तीव्रता में कमी की जा सकती है।
  • कवक नाशी जैसे कार्बेन्डाजिम50% + थायरम 50% के मिश्रण का 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
  • ट्राइकोडर्मा 10ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोएं।
  • रोग रोधी किस्में आशा, राजीव लोचन, सी -11 आदि का उपयोग बुआई हेतु करें।

2. बाँझ रोग
इस बीमारी से ग्रसित अरहर के पौधों में फूल नहीं खिलते और फलियाँ नहीं बनतीं। इसीलिए इसे बाँझ रोग कहा जाता है।यह रोग विषाणु जनित है जिसका वाहक एरियोफिड माईट है जो की एक प्रकार का सूक्ष्म जीव है। इस रोग की अधिकता के कारण 75% तक उत्पादन में कमी देखी गयी है। रोग से ग्रसित पौधे पीलापन लिए हुए झाड़ीनुमा हो जाते हैं। पत्तियों के आकार में कमी, शाखाओं की संख्या में वृद्धि तथा पौधों में आंशिक या पूर्ण रूप से फूलों का नहीं आना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। फसल पकने की अवस्था में रोगी पौधे लम्बे समय तक हरे दिखाई देते हैं जबकि स्वस्थ पौधे परिपक्व होकर सूखने लगते हैं।

रोकथाम के उपाय:–
  • जिस खेत में अरहर लगाना हो उसके आसपास अरहर के पुराने एवं स्वयं उगे हुए पौधे नष्ट कर देना चाहिए।
  • खेत में जैसे ही रोगी पौधे दिखे उनको उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • फसल चक्र अपनाना चाहिए।
  • रोग रोधी प्रजातियाँ जैसे:- पूसा-9, आई.सी.पी.एल.-87119, राजीव लोचन, एम.ए.-3, 6, शरद आदि का चयन करना चाहिए।
  • डाईकोफोल 18.5 ई. सी. 2.5 ml./ली. पानीका छिडकाव रोगवाहक माईट के रोकथाम में प्रभावी होता है।

3. तना अंगमारी रोग (स्टेम ब्लाइट)
यह रोह कवक के द्वारा होता है। तना अंगमारी मिट्टी में पनपने वाले फंगस से पैदा होने वाली एक ऐसी घातक बीमारी है जो सिर्फ़ अरहर की फसल को अपनी चपेट में लेती है। इसका प्रकोप 7 दिन से लेकर एक माह के पौधों में दिखाई देता है। शीघ्र पकने वाली किस्मों में इस रोग का प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक होता है। प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पनीले धब्बे बन जाते हैं एवं एक सप्ताह के भीतर पूरी पत्तियां जलकर नष्ट हो जाते हैं। साथ ही तने एवं शाखाओं पर धब्बे गोलाई में बढ़कर उतने भाग को सुखा देते हैं, जिससे तना एवं शाखाएं टूट जाती हैं। इस रोग का प्रकोप कम उम्र के पौधों में अपेक्षाकृत अधिक होता है। अनुचित जल निकास वाले क्षेत्रों में भी इस बीमारी का प्रभाव अधिक होता है।

रोकथाम के उपाय:-
  • बीजों को बुवाई से पूर्व रिडोमिल नामक कवकनाशी की 2 ग्रा. मात्रा प्रति किग्रा.बीज की से उपचारित करें।
  • खेतों में जल निकास की उचित व्यवस्था करें।
  • जहाँ इस रोग का प्रकोप अधिक होता है वहां 3-4 वर्ष तक अरहर की फसल नहीं लेनी चाहिए।
  • रोग की प्रारभिक अवस्था में ताम्रयुक्त कवकनाशी जैसे मैकोज़ेब 75% की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से या रिडोमिल एम.जेड. 1.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से 10-12 दिन के अन्तराल में छिडकाव करना चाहिए।
  • रोगरोधी किस्में जैसे :- पूसा-9, एन.ए.-1, एम.ए.-6, बहार, शरद, अमर आदि का बुवाई करना चाहिए।

4. पर्ण चित्ती या सरकोस्पोरा लीफ स्पॉट
पर्ण चित्ती भी एक कवक जनित बीमारी है, जो अरहर के पौधों पर सरकोस्पोरा केजानी नामक फफूँद के प्रकोप से फैलता है। रोग के प्रारम्भिक लक्षण पौधों की निचली (पुरानी) पर अनियमित धब्बे के रूप दिखाई पड़ते है। इस रोग का प्रकोप जब मौसम ठंडा व आर्द्र हो उस समय ज्यादा होता है। रोग की उग्र अवस्था में पौधों की शाखायें भी सूखने लगती है। इस रोग के कारण संक्रमित पत्तियाँ झड़ जाती है।

रोकथाम के उपाय:-
  • अरहर की रोग प्रतिरोधक किस्मों की सही समय पर बुआई करना चाहिए।
  • मेंकोजेब (डाईथेन M-45) दवा की 25 ग्राम मात्रा का 10 लीटर पानी में घोलकर तथा 10 से 15 दिन के अन्तराल पर दो से तीन बार छिड़काव करना चाहिए।