डॉ. मुकेश कुमार साहू, पी.एफ.डी.सी,इं.गा.कृ.वि, रायपुर,
डॉ. जितेन्द्र सिंह, निदेशक शिक्षण, म.गां.उ. एवं वा.वि, दुर्ग
गुलदाउदी शरद ऋतु का एक अत्यंत आकर्षक एवं लोकप्रिय पुष्प है। गुलदाउदी, शरद ऋतु की रानी भी कहलाती है। इसे ग्लोरीआफ ईस्टके नाम से भी जाना जाता है। गुलदाउदी अपनी बहुरूपी फूलों की सुन्दरता के साथ-साथ विभिन्न आकार एवं रंग के कारण अपना विशेष महत्त्व रखती है। गुलदाउदी की एक वर्षीय व बहुवर्षीय दोनों ही प्रकार की जातियाँ पायी जाती हैं। एकवर्षीय एवं बहुवर्षीय गुलदाउदी का प्रयोग कटे फूलों के रूप में प्रयोग किया जाता है किन्तु प्रदर्शनी हेतु केवल बहुवर्षीय गुलदाउदी को ही उगाना चाहिये। इसके फूल सफेद, लाल, गुलाबी, पीला, क्रीम, हल्का हरा इत्यादि रंगों के होते हैं। गुलदाऊदी को कट एवं लूज फ्लावर, अलंकृत बगीचों की क्यारियों एवं गमलों में सजावट हेतु उगाया जाता है। कट फ्लावर का इस्तेमाल सजावट एवं गुलदस्ता में विशेष तौर पर किया जाता है। लूज फ्लावर का उपयोग माला बनाने एवं पुष्प पंखुड़ियों को पूजा में किया जाता है। गुलदाऊदी का कट फ्लावर कमरे के तापमान पर लगभग 15 दिनों तक तरोताजा बना रहता है।
विश्व पुष्प बाजार में यह सर्वश्रेष्ठ दस प्रमुख पुष्पों की श्रेणी में गुलाब के बाद दूसरे स्थान पर है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गुलदाऊदी की खेती जापान, चीन, इंग्लैंड, अमेरिका, इजरायल, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, भारत साहित अन्य देशों में व्यावसायिक तौर पर की जाती है। भारत में व्यावसायिक तौर परं उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक आदि प्रदेशो में इसकी खेती की जाती है।हमारे देश में पिछले दशक से गुलदाऊंदी के पुष्प की मांग काफी बढ़ गयी है। इस पुष्प फसल की एक खास महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे कृत्रिम वातावरण में पॉलीहाउस के अन्दर बेमौसम उगाया जा सकता है।
वर्गीकरण
1. वृद्धि का आधार पर
(क) वार्षिक गुलदाउदी इसकी तीन जातियाँ हैं- क्राईसेन्थिमम केरिनेटम (इन-कलर-क्राईसेन्थमम), क्राईसेन्थिमम कोरोनेरियम (क्राउन डेजी या मला गुलदाउदी) एवं क्राईसेन्थिमम सेजेटिम (कॉर्न मेरीगोल्ड)। इसके पौधे लंबे एवं एकहरे फूलने वाले होते हैं।
(ख) बहुवार्षिक गुलदाउदी- इसकी भी तीन प्रजातियाँ होती हैं जोकि क्राईसेन्थिमम मेक्सिमम, क्राईसेन्थिमम फ्रुटीसेन्स एवं क्राईसेन्थिमम मेरिफोलियम हैं। इसमें बहुत ही आकर्षक एकहरे, लगभग दोहरे एवं दोहरे फूल विभिन्न रंगों एवं आकारों में खिलते हैं।
2. फूल खिलने के आकार के आधार पर
फूल के आकार के आधार पर गुलदाउदी की प्रजातियों को दो समूहों में बाँटा गया है, बड़े फूल एवं छोटे फूल वाली गुलदाउदी।
बड़े फूल वाली गुलदाउदी को निम्न वर्गाे में पुन विभाजित किया गया हैं, इनकवर्ड (गदा आकार का), रिफ्ले रिफ्लेक्स्द (नीचे की ओर पंखुड़ियाँ), इंटरमीडिएट (बाहर वाली पंखुड़ियाँ की तरफ मुड़ी हुई एवं नीची, जबकि अंदर की पंखुड़ियाँ मुड़ी हुई), इर्रेगुलर (बाहर की तरफ की पंखुड़ियाँ मुड़ी हुई एवं टेढ़ी मेढ़ी), क्विल्ड (बाहर के पंखुड़ियाँ ट्यूब के आकार की), स्पून (बाहर वाली पंखुड़ियाँ का बाहरी किनारा चम्मच की तरह), बॉलर रेयोनेट (लगभग पूर्ण गेंदा जैसा), एनीमोन (एक पंखुड़ी का जिसमें ट्यूब के आकार का मध्य डिस्क)।
इसी प्रकार दूसरे छोटे आकार के फूलों को अन्य समूहों में इस प्रकार विभाजित किया गया है जैसे-एनीमोन, बटन, कोरियन (एकहरे एवं दोहरे) डेकोरेटिव, पामपॉन, क्विल्ड, सेमी-क्विल्ड एवं स्टीलेट।
प्रमुख किस्में -
(1) राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित शरद किस्में -ज्योति, शरद बहार, शरद शोभा, शरद रश्मि, बौरवल साहनी।
(2) राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बंगलौर द्वारा विकसित किस्में - इन्द्रिरा, रेड गोल्ड, राखी।
(3) पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना द्वारा विकसित किस्में -शान्ति, बसन्ती, बागी, गुलेसाहिर।
(4) अन्य किस्में- ज्योति, कुन्दन, रिमझिम, वर्षा, सुहाग, सिंगार हेमन्त सिंगार, शरद सिंगार, वसन्तिका।
रंगों के अनुसार प्रचलित किस्में
(1) सफेद- स्नोवाल, ब्यूटी, कस्तुरबा गांधी, मौन गाडेस।
(2) पीला -चन्द्रमा, सोनार बंगला, माउन्टेनियर।
(3) लाल-गोल्डी, आटम ब्लेज, स्पर्ट, पाल, बेजर।
(4) बैंगनी -मीरा, मेप वाउल, पिंक क्लाउड, माहत्मा गाँधी, फिशटेल।
फूलने के समय के अनुसार किस्मों का वर्गीकरण
(1) सितम्बर-अक्टूबर में फूलने वाली किस्में गुलदाउदी की कुछ किस्में- जो सितम्बर-अक्टूबर में फूल देती है इस प्रकार से हैं-शिन कुन्जी, वोटेटेस, शरद बहार, शरद तारिका, शरद माला, शरद मुक्ता आदि।
(2) नवम्बर में फूलने वाली किस्में-नवम्बर में फूलने वाली किस्में मेगामी वमन, नसाको, अप्सरा, कोयम्बटूर आदि।
(3) दिसम्बर में फूलने वाली किस्में -पैरागन, लिलीपुट, फिलिस, फ्रीडम, इन्सोसेन्स, मोली एवंसीता आदि है।
प्रदर्शनी हेतु फ्रेड यूले (ताँबे जैसा रंग), स्नोवाल (सफेद), सुपर जायन्ट (पीला), राज (बैगन), डयमण्ड (लाल), स्टारयल (पीला) एवं सनराइज (पीला)।
वार्षिक गुलदाउदी की किस्में मोरनिंग स्टार, इवनिंग स्टार, इस्टर्न स्टार, रोमियों एवं यलोस्टोन आदि हैं।
बिना पिनचिंग एवं डंडियों वाली किस्में - अकीता, कोवन।
जलवायु
पौधों की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए उचित जलवायु होना आवश्यक है। गुलदाऊदी के पौधों की वृद्धि एवं पुष्पन उसकी आनुवंशिकता के साथ-साथ बाहरीकारक जैसे वातावरण, शस्य क्रियाएं इत्यादि पर निर्भर करता है। जलवायु के अन्तर्गत प्रकाश, तापमान, आपेक्षिक आद्र्रता एवं कार्बन डाइआक्साइड की सांद्रता पौधे के विकास एवं पुष्प की गुणवत्ता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
प्रकाश
गुलदाउदी के पौधों पर प्रकाश की अवधि एवं तीव्रता का प्रभाव अन्य कारकों जैसे तापमान, आद्र्रता एवं कार्बन डाइआक्साइड की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। प्रकाश पुष्पन की अवधि को घटाता एवं बढ़ाता है। गुलदाऊदी सामान्य रूप से छोटी दिन-अवधि का पौधा है। इसे पुष्प कलियों को उत्पन्न करने के लिए प्रतिदिन लगातार न्यूनतम 9 घण्टे अन्धेरा वातावरण की आवश्यकता होती है। गुलदाऊदी की विभिन्न किस्मों के पौधों को कृत्रिम रूप से 14 घण्टे काले कपड़े या पालीथीन से ढ़क कर अंधेरा बातावरण में पुष्पन की अवधि को एक महीना तक घटायाजा सकता है। इसी प्रकार पौधों को कृत्रिम प्रकाश द्वारा लम्बी अवधि में रखकर पुष्पन की अवधि को बढ़ाया जा सकता है।
तापमान
गुलदाउदी को उगाने के लिए दिन का तापमान 20-25 सेंटीग्रेड एवं रात का तापमान 15-20 सेंटीग्रेड के बीच उचित पाया गया है। यदि दिन का तापमान 35 सेंटीग्रेड में ज्यादा रहने लगे तो पुष्प कलिकाएँ बनने की सम्भावना कम होने लगती है इसके पत्तियोंएवं पुष्पों के विकास के लिए रात्रि का तापमान दिन के तापमान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। पुष्प कलिका के उत्पन्न होने से उसके प्रत्यक्ष दिखने एक रात्रि का तापमान 16-18 सेंटीग्रेड तक बनाये रखना उचित पाया गया है।
आद्र्रता
पौधों को बढ़वार में सापेक्षिक आद्र्रता का बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। गुलदाऊदी के पौधों की वृद्धि एवं विकास 70-80 प्रतिशत आद्र्रता में अच्छी तरह होती है। आद्र्रता कमहोने पर पौधों पर लाल मकड़ी का प्रकोप होने लगता है।
कार्बन डाइआक्साइड
पॉलीहाउस में कार्बन डाइआक्साइड गैस की सांईता 1000-1200 पीपीएम के बीच उचित्त रहता हैं।
प्रवर्धन- गुलदाउदी के प्रवर्धन की मुख्यतया तीन विधियां हैं-
(1) बीज -बीज द्वारा प्रवर्धन मुख्यत वैज्ञानिकों द्वारा नई किस्में विकसित करने के क्रम में होता है। इस विधि का प्रयोग एक वर्षीय किस्मों के प्रवर्धन हेतु होता है। सूखे हुये फूलों से बीजों को रंग एवं किस्म के अनुसार एकत्रित कर लिया जाता है।
(2) कटिंग-कटिंग द्वारा अच्छे पौधों की कलम लगाना प्रवर्धन की श्रेष्ठ विधि है। कलमों से तैयार पौधे अधिक स्वस्थ होते हैं। इस विधि में पौधे की जड़ों के पास से निकले भूस्तारिकाओं एवं पौधों के शीर्ष भाग की 8-10 सेमी० गाँठ से नीचे से कटिंग काट लेते हैं। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कलम के ऊपरी भाग की दो-तीन पत्तियाँ छोड़कर बाकी शेष पत्तियाँ तोड़ देते हैं। इन कटिंग को जून के अन्तिम सप्ताह या जुलाई महीने में 2 भाग रेत, 1 भाग पत्ती की खाद एवं छनी मिट्टी के मिश्रण में लगा देते हैं। कटिंग लगने के 20-25 दिन बाद नये पौधे रोपने योग्य हो जाते हैं। जल्दी जड़ों के विकास हेतु कटिंग के नीचे के हिस्से को सिरेडिक्स-बी के पाउडर से उपचरित कर देना चाहिये।
(3) मूलस्तरी विधि- गुलदाऊदी के प्रवर्धन की यह बहुत ही पुरानी विधि है। आज भी कुछ पुष्प उत्पादक इस विधि का इस्तेमाल पौध प्रवर्धन में करते हैं। कलम विधि द्वारा तैयार किये गये पौध सामग्री के अपेक्षाकृत इस विधि द्वारा तैयार किए गए पौधों से पुष्प छोटे आकार के उत्पादित होते हैं। पौधों में फूल समाप्त होने के 1-1.5माह बाद जड़ को मातृ पौधों से तना एवं पत्ती के साथ अलग करते हैं एवं मूलस्तरी कों नर्सरी या क्यारी में छायादार स्थान पर लगाने के पहले 1.5-2.0 सेंमी. लम्बी जड़ें छोड़ कर काट देते हैं। यदि मुलस्तरी पर अधिक पत्तियाँ हों ती ऊपर की 5-6 पत्तियाँ छोड़कर नीचे की पत्तियाँ नर्सरी या व्यारी में लगाने में पहले काट देते हैं।
मिट्टी का चुनाव
गुलदाउदी की सफल बागवानी के लिये उपयुक्त जल निकास युक्त बलुई दोमट मिट्टी का चुनाव करना चाहिये। मिट्टी का जीवांश स्तर उत्तम किस्म के पुष्प प्राप्त करने के लिये आवश्यक है। कंकरौली, पथरीली तथा भारी मृदा में गुलदाउदी को सफलतापूर्वक नहीं उगाया जा सकता है। अतः उपयुक्त पी-एच० मान (6.5-7.5) वाली मिट्टी का चुनाव करें। मिट्टी भुरभुरी हो तथा मिट्टी की जल धारण क्षमता एवं जीवांश स्तर उपयुक्त हो।मिट्टी की तैयारी जिस खेत में गुलदाउदी को उगाना हो उसकी ग्रीष्म ऋतु में अच्छी प्रकार से 2 से 3 बार गहरी जुताई करनी चाहियें। खेत को ऐसे ही सितम्बर माह तक खुला छोड़ देते हैं। ऐसा करने से खेत के खरपतवार व निष्क्रय रोग कारक जीव-जन्तु मर जाते हैं। सितम्बर माह में बुआई के 20-25 दिन पूर्व 250-300 कुन्तल गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से एकसमान बिखेर कर जुताई कर देते हैं। यदिगुलदाउदीको गमलों में लगाना हो तो 1भाग बालू, 1 भाग सड़ी हुई गोबर या पत्ती की खाद और 1 भाग मिट्टी को मिलाकरलगाना चाहिए।
पौध रोपण- अधिक फूल प्राप्त करने के लिए जड़ द्वारा विकसित तनों को 30× 30 सें.मी. (स्टैण्डर्ड टाइप) तथा 20 × 20 सें.मी. (स्प्रे टाइप) की दूरी पर विभिन्न आकार की क्यारियों में लगाते हैं। पौधा लगाने का समय किसी क्षेत्र विशेष के ऊपर निर्भर करता है जो मार्च से अगस्त तक होता है। पौधों को गमलों में लगाने पर तीन बार गमले बदले जाते हैं।
पहली बार 10 सें.मी. का गमला लेते है। लगाने का उचित समय फरवरी-मार्च होता है। इसमें मिश्रण के रूप में एक भाग बालू, एक भाग मिट्टी एवं एक भाग पत्ती खाद या गोबर की सड़ी खाद डालते हैं।दूसरी बार गमला को अप्रैल महीने के अंतिम सप्ताह में बदलते हैं। इसके लिए 15 सें.मी. का गमला चाहिए। इसमें मिश्रण के लिए एक भाग मिट्टी एक भाग बालू एवं दो भाग पत्ती खाद, एक भाग हड्डी चूर्ण या सिंगल सुपर फास्फेट एवं एक चैथाई भाग लकड़ी की राख डालते हैं।तीसरी एवं अंतिम बार गमला बदलने का काम अगस्त एवं सितम्बर महीने में करना चाहिए। इसके लिए 30 सें.मी. का गमला लेते हैं। इसमें एक भाग बालू, दो भाग मिट्टी, दो भाग पत्ती खाद, दो भाग गोबर की सड़ी हुई खाद दो चम्मच हड्डी चूर्ण या सिंगल सुपर फास्फेट एवं एक चैथाई भाग लकड़ी की राख मिलाकर गमले में भरते हैं
पोषण
गुलदाऊदी के पौधों को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं कैल्शियम की आवश्यकता होती है। क्यारियाँ बनाने के एक माह पहले लगभग गोबर की सड़ी-गली खाद 10 कि.ग्राम प्रतिवर्ग मीटर की दर से मिला देते हैं। गुलदाऊदी के लिए 40 ग्राम नत्रजन, 20 ग्राम फास्फोरस व 60-80 ग्राम पोटाश प्रतिवर्ग मीटर की दर से आवश्यकता होती है। क्यारियाँ बनाते समय फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा मिट्टी में मिला देते हैं तथा नत्रजन की मात्रा कोदो बराबर भागों में पौध रोपण के 30 एवं 45 दिनों बाद मिट्टी में मिलाते हैं।
ड्रीप सिंचाई पद्धति में पोषक तत्वों को सिंचाई के पानी के साथ ही पूर्ण घुलनशील उरर्वक जैसे 19:19:19,0:0:51, 13:13:13 (नत्रजन, फास्फोरस, एवं पोटाश) द्वारा नत्रजन 120 पीपीएम, फास्फोरस 60 पीपीएम एवं पोटाश 240 पीपीएम का घोल पौधों को देते हैं।
सिंचाई
सिंचाई की आवृत्ति पौधविकास स्तर, मौसम और मिट्टी के स्तिथिपर निर्भर करती है। गुलदाउदी की फसल को उचित निकास वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई पौध रोपन के बाद करना चाहिए।फिर सप्ताह में दो बार करना चाहिए।
खरपतवार नियन्त्रण
शुरुवातके दिनों में जब पौधा बढ़वार की प्रारम्भिक अवस्था में होता है। इस समय खरपतवार नियन्त्रण करना आवश्यक होता है। क्योंकि खरपतवार पौधे पोषण को सीमित करते हैं साथ ही बढ़वार के साथ साथपुष्पन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। आरंभिक दिनों में ्खरपतवारों का प्रकोप अत्यधिक होता है। अतः इनको उचित निराई-गुड़ाई द्वारानष्ट कर देना चाहिये।
पीचिंग
गुलदाऊदी के पौधों की वृद्धि एवं पुष्प की डण्डी की संख्या को बढ़ाने के लिए पीचिंग क्रिया की जाती है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप सेस्प्रेप्रकार के किस्मोंमें की जाती है।इस प्रक्रिया में शीर्षस्थ भाग को हाथ से नोच कर पौधों से अलग कर देते हैं। ऐसा करने से पौधा औसतन 3-4 पुष्प इण्डियाँ उत्पादित करता है। यह क्रिया पौध रोपण के 30 दिनों बाद करनी चाहिए। पॉचिंग के माध्यम से गुलदाऊदी की पुष्पन अवधि बढ़ाई जा सकती है। इसके लिए पूरे पॉलीहाउस पौधों को 3 या 4 अलग-अलग दिनो में पीचिंग करना चाहिए।
डिसबडिंग
यह प्रक्रिया मुख्य रूप से स्टैण्डर्ड प्रकार के किस्मों में किया जाता हैं।इस प्रक्रिया में अवांछित कलिकाओं को पुष्प डण्डियों से तोड़ कर अलग कर देते हैं। ऐसा करने से पुष्प डण्डी की अन्य कलिकाओं का आकार बड़ा हो जाता है। स्टैण्डर्ड गुलदाऊदी में एक पुष्प डण्डी पर केवल शीर्षस्थ कलिका छोड़ कर अन्य कलिकाओं को मटर के दाने के आकार की आवश्यकता से पहले तोड़ देते हैं।
डिसूटिंग
डिसूटिंग गुलदाऊदी की स्टैण्डर्ड टाईप किस्मों में किया जाता है। इस प्रक्रिया में एक पुष्प डण्डी पर अन्य दूसरो शाखाएँ निकलने के बाद उन शाखाओं को 1-2 सेंमी. लम्बी होने पर पुष्प डण्डियों से अलग कर देते हैं। ऐसा करने से बड़े आकार के पुष्प प्राप्त होते है।यह प्रक्रिया समय समय पर आवश्यकतानुसार चलती रहती है।
डिसकरिंग
पौधे की जड़ों के पास से निकलने वाली शाखाओं को हटाना डिसकरिंग कहलाता है। इन शाखाओं को हटाने का उद्देश्य पौधों को दी जाने वाली खाद एवं उर्वरक की उपयोग क्षमता को बढ़ाना एवं किस्म के अनुरूप पुष्प प्राप्त करना होता है।
सहारा देना
प्रत्येक पाश्र्व शाखा को बाँस की खपच्चियों से सहारा देना अच्छे पुष्प प्राप्त करने के लिये आवश्यक समझा गया है। जिससे पौधे सीधे खड़े रहते है एवं उच्च गुणवक्ता के साथ साथ अधिक पुष्प की प्राप्ति करने में मदद मिलती है।
हानिकारक कीट और उनका रोकथाम
चेपा-यह मुख्य तौर पर फूल निकलने के समय हमला करता है। ये कीट डंठल, तने, फूल, कलियों आदि में से रस चूसते हैं। इस कीट को नियंत्रित करने के लिये रोगोर 30 ई सी या मैटासिसटोक्स 25 ई सी, 2 मिली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
कली छेदक -लार्वा बढ़ते फूलों को खाते हैं, जिससे फूलों का काफी नुकसान होता है। क्षतिग्रस्त कलियों और फूलों को इकट्ठा करके नष्ट करने से आगे की क्षति कम होती है। प्रकाश जाल लगाने से वयस्क आबादी को आकर्षित करके उन्हें नियंत्रित करने में मदद मिलती है। कलियों और कोमल पत्तियों पर अंडे दिखाई देने पर रोगोर 30 ई सी 2 मि.ली. या प्रोफैनोफॉस 25 ई सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर का छिड़काव करने से छेदक की क्षति नियंत्रित होती है।
बिहार सुंडी और अमेरिकन सुंडी -बिहार सुंडी मुख्य रूप से पौधे के पत्तों को खाती है जब कि अमेरिकन सुंडी पौधे की कलियों और फूलों को खाती है। बिहार सुंडी की रोकथाम के लिए, क्विनलफॉस 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। अमेरिकन सुंडी की रोकथाम के लिए, नुवाक्रॉन (डाइक्लोरोफॉस) 2-3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
बीमारियां और उनका रोकथाम
पत्तों पर काले धब्बे- यह सेप्टोरिया क्राइसैंथेमेला और एस. ओबेसा के कारण होता है। इसके कारण पत्तों पर गोल आकार के सलेटी भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। पत्ते अपने आप पीले रंग में बदल जाते हैं और फिर मर जाते हैं।इस बीमारी की रोकथाम के लिए ज़िनेब या डाइथेन एम-45/400 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे करें। यदि इसका प्रकोप दिखे तो डाइथेन एम-45 /400 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे 15 दिनों के अंतराल पर करें।
पत्तों के धब्बा रोग- पत्तों पर सफेद धब्बे यह ओइडिअम कराईसैन्थेमि के कारण होता है। पत्तों और तनों पर सफेद रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। इस बीमारी की रोकथाम के लिए कैराथेन 40 ई सी, की स्प्रे करें।
तना सड़न (फ्यूसैरियम सोलानी)- यह रोग कटिंग, स्टॉक पौधों और फूल वाले पौधों में देखा जाता है। बरसात के मौसम में यह गंभीर होता है। प्रभावित पत्तियों के हरित हीनता, परिगलन, क्षय और तने के अंदरूनी हिस्से के रंग में परिवर्तन जैसे विभिन्न लक्षण दिखाई देते हैं। इस बीमारी की रोकथाम के लिए स्वस्थ पौधों से कटिंग ली जानी चाहिए। सख्त खेत की सफाई और फसल चक्र का पालन करने से रोग की घटनाओं को कम करने में मदद मिलती है। बाविस्टिन (0.1%) या बोर्डा मिश्रण (1%) का छिड़काव करें।
फूलों की तुड़ाई
कर्तित पुष्प डण्डियों की कटाई
पुष्प डण्डियों को काटने की उचित अवस्था, किस्मों, संभावित पुष्प बाजार से दूरी तथा यातायात की सुविधा पर निर्भर करता है। स्टैण्डर्ड गुलदाऊदी की किस्मों के फूल तभी काटने चाहिए जब पुष्प पूर्ण रूप से खिल जायें और बाह्य पँखुड़ियाँ पूरी तरह से सीधी हो जाएं। स्प्रे प्रकार की गुलदाऊदी की किस्मों को उस समय काटना चाहिए जब पुष्प डण्डी पर ऊपरी एक पुष्प पूर्ण रूप से खिल जाए एवं अन्य पुष्प कलियों में रंग दिखने लगे। पुष्प टहनी को जमीन से लगभग 10-12 सेंमी. की ऊँचाई पर काटना चाहिए। पुष्प डण्डियों को काटने का कार्य सुबह या सायंकाल के समय करनी चाहिए। पुष्प डण्डियों को काटने के तुरन्त बाद इसका निचला 5-6 सेंमी. हिस्सा साफ पानी में डुवा देना चाहिए तथा किसी ठण्डे कमरे या छायादार स्थान पर 3-4 घण्टे के लिए रख देना चाहिए।
उपज
यदिगुलदाऊदी खेती समुचित देखभाल से की जाये तो 15-20 पुष्प डण्डियाँ/पौधास्टैण्डर्ड प्रकार केगुलदाऊदीसेएवं स्प्रे प्रकारप्रकार केगुलदाऊदी 12-15 टन प्रति हेक्टर पुष्प का उत्पादन होता है।
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