कृष्णा पी. एच. डी. शस्य विज्ञान विभाग
काजल साहू पी. एच. डी. फल विज्ञान विभाग
हरी खाद एक प्राकृतिक और सस्ता तरीका है जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। यह खेत में उगाई गई फसलों को काटने के बाद या बिना काटे ही मिट्टी में दबा दिया जाता है।
हरी खाद की आवश्यकता क्यों है -
- मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी- लगातार फसल उत्पादन के कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। हरी खाद इन पोषक तत्वों की पूर्ति करती है।
- मिट्टी की संरचना में सुधार- हरी खाद मिट्टी को मुलायम बनाती है, जिससे पानी की रिसाव क्षमता बढ़ती है और मिट्टी का कटाव कम होता है।
- जैविक पदार्थों की वृद्धि- हरी खाद मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा बढ़ाती है, जिससे सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है।
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण- कुछ हरी खाद वाली फसलें वायुमंडल से नाइट्रोजन को ग्रहण कर मिट्टी में छोड़ती हैं, जिससे पौधों को नाइट्रोजन की उपलब्धता बढ़ती है।
हरी खाद के मुख्य अवयव
हरी खाद मुख्यतः पौधों के जैविक पदार्थों से बनी होती है। जब इन पौधों को मिट्टी में दबाया जाता है, तो वे धीरे-धीरे अपघटन की प्रक्रिया से गुजरते हैं। इस प्रक्रिया में, पौधों के जटिल कार्बनिक पदार्थ सरल खनिज तत्वों में बदल जाते हैं, जिन्हें पौधे आसानी से अवशोषित कर सकते हैं।
- कार्बन- पौधों के मुख्य संरचनात्मक घटक के रूप में, कार्बन हरी खाद का एक प्रमुख अवयव है।
- नाइट्रोजन- कई हरी खाद वाली फसलें वायुमंडल से नाइट्रोजन को ग्रहण करने की क्षमता रखती हैं, जिससे हरी खाद में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है।
- फॉस्फोरस- पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक, फॉस्फोरस भी हरी खाद में पाया जाता है।
- पोटेशियम- पौधों के स्वास्थ्य और फसल उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण, पोटेशियम भी हरी खाद का एक घटक है।
- सूक्ष्म पोषक तत्व- हरी खाद में अन्य आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, बोरोन आदि भी पाए जाते हैं।
- इन अवयवों के अलावा, हरी खाद में विभिन्न प्रकार के जैविक पदार्थ, जैसे सेल्यूलोज, लिग्निन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि भी होते हैं, जो मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हरी खाद से फसल की उपज कैसे बढ़ती है?
हरी खाद का उपयोग फसल की उपज बढ़ाने का एक प्राकृतिक और किफायती तरीका है। यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाकर, मिट्टी की संरचना में सुधार करके और सूक्ष्म जीवों की गतिविधि को बढ़ाकर फसल की वृद्धि को बढ़ावा देता है।
- पोषक तत्वों की उपलब्धता- हरी खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम और अन्य आवश्यक पोषक तत्व होते हैं जो पौधों के लिए आसानी से उपलब्ध होते हैं। ये पोषक तत्व पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक होते हैं।
- मिट्टी की संरचना में सुधार- हरी खाद मिट्टी को मुलायम बनाती है, जिससे पानी और हवा मिट्टी में आसानी से प्रवेश कर सकती है। इससे पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं और वे अधिक पानी और पोषक तत्वों को अवशोषित कर पाते हैं।
- जैविक पदार्थों की वृद्धि- हरी खाद मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा बढ़ाती है, जिससे सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है। ये सूक्ष्म जीव मिट्टी में मौजूद जटिल कार्बनिक पदार्थों को तोड़कर सरल पोषक तत्वों में बदल देते हैं, जिन्हें पौधे आसानी से अवशोषित कर सकते हैं।
- मिट्टी का तापमान नियंत्रित करना- हरी खाद मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करती है, जिससे पौधों को अनुकूल तापमान मिलता है।
- खरपतवार नियंत्रण- हरी खाद खरपतवारों की वृद्धि को रोकने में मदद करती है, जिससे फसलों को खरपतवारों से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
- मिट्टी के कटाव को रोकना- हरी खाद मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करती है, जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति लंबे समय तक बनी रहती है।
- हरी खाद का उपयोग एक स्थायी और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धति है जो फसल की उपज बढ़ाने, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने और पर्यावरण को बचाने में मदद करती है।
हरी खाद के लिए मुख्यरूप से कौन सी फसल का उपयोग करें?
हरी खाद के लिए कई तरह की फसलों का उपयोग किया जा सकता है। ये फसलें मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाने और फसल की पैदावार बढ़ाने में मदद करती हैं।
दलहनी फसलें-
- मूंग, उड़द, चना, मटर- ये फसलें वायुमंडल से नाइट्रोजन को स्थिर करती हैं, जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है।
- लोबिया, अरहर- ये फसलें भी नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करती हैं और मिट्टी की संरचना में सुधार करती हैं।
अन्य फसलें-
- सूर्यमुखी- यह फसल मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ाती है और मिट्टी की संरचना में सुधार करती है।
- ढैंचा- यह फसल तेजी से बढ़ती है और मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है।
- ज्वार, बाजरा- ये फसलें सूखे की स्थिति में भी अच्छी तरह से बढ़ती हैं और मिट्टी को ढककर मिट्टी के कटाव को रोकती हैं।
हरी खाद के लिए फसल का चयन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें
- मिट्टी की स्थिति- मिट्टी की उर्वरा शक्ति, जलवायु और अन्य स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर फसल का चयन करें।
- फसल चक्र- मुख्य फसल के साथ हरी खाद वाली फसल का चक्र बनाएं ताकि मिट्टी में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व मिल सकें।
- बढ़वार की अवधि- ऐसी फसल का चयन करें जो कम समय में अच्छी तरह से बढ़ जाए।
- जलवायु- जलवायु के अनुसार फसल का चयन करें।
- कौन सी फसल आपके लिए सबसे उपयुक्त होगी, यह आपकी खेत की मिट्टी और जलवायु पर निर्भर करता है। किसी कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेने से आपको सही फसल का चयन करने में मदद मिल सकती है।
दलहनी फसलें कितना नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती हैं?
दलहनी फसलें अपनी जड़ों में उपस्थित राइजोबियम जीवाणुओं की मदद से वायुमंडल की नाइट्रोजन को पौधों द्वारा उपयोग योग्य नाइट्रोजन यौगिकों में बदलने की क्षमता रखती हैं। इसे ही नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहा जाता है।
नाइट्रोजन स्थिरीकरण की मात्रा विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जैसे-
- फसल की किस्म- विभिन्न दलहनी फसलें अलग-अलग मात्रा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती हैं।
- मिट्टी की स्थिति- मिट्टी की उर्वरा शक्ति, नमी, तापमान आदि कारक नाइट्रोजन स्थिरीकरण को प्रभावित करते हैं।
- जलवायु- तापमान, वर्षा और अन्य जलवायु कारक भी नाइट्रोजन स्थिरी करण को प्रभावित करते हैं।
- खेती की प्रथाएं- उर्वरकों का उपयोग, सिंचाई और अन्य खेती की प्रथाएं भी नाइट्रोजन स्थिरीकरण को प्रभावित करती हैं।
- आमतौर पर, दलहनी फसलें प्रति हेक्टेयर 40 से 200 किलोग्राम तक नाइट्रोजन स्थिरी करण कर सकती हैं। हालांकि, यह मात्रा उपरोक्त बताए गए कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है।
कुछ प्रमुख दलहनी फसलें जो अधिक मात्रा में नाइट्रोजन स्थिरी करण करती हैं, उनमें शामिल हैं-
- मूंग- मूंग एक तेजी से बढ़ने वाली दलहनी फसल है जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को तेजी से बढ़ाती है।
- उड़द- उड़द भी एक अच्छी नाइट्रोजन स्थिरीकरण वाली फसल है।
- चना- चना मिट्टी की विभिन्न स्थितियों में उगाया जा सकता है और यह भी नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करता है।
- अरहर- अरहर एक गहरी जड़वाली फसल है जो मिट्टी की गहराई से पोषक तत्व खींचती है और नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती है।
- दलहनी फसलें नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये फसलें मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती हैं, रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करती हैं और पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होती हैं।
हरी खाद के उपयोग में आने वाली समस्याएं
हरी खाद का उपयोग खेती में एक बहुत अच्छा तरीका है, लेकिन इसके उपयोग में कुछ चुनौतियाँ भी आती हैं।
- समय और श्रम- हरी खाद की फसलों को उगाने, काटने और मिट्टी में दबाने में समय और श्रम लगता है। यह पारंपरिक खेती के तरीकों की तुलना में अधिक श्रम साध्य हो सकता है।
- खरपतवार- हरी खाद की फसलों के साथ खरपतवार भी उग सकते हैं, जिससे फसल की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।
- कीट और रोग- हरी खाद की फसलों को कीट और रोगों का खतरा भी रहता है।
- मिट्टी की उर्वरता- अगर हरी खाद की फसलें सही समय पर नहीं काटी जाती हैं तो वे मिट्टी में नाइट्रोजन को बांध सकती हैं, जिससे अगली फसल के लिए नाइट्रोजन की उपलब्धता कम हो सकती है।
- जलवायु- शुष्क क्षेत्रों में हरी खाद की फसलों को उगाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि इन फसलों को अच्छी वृद्धि के लिए पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है।
- मशीनरी- हरी खाद की फसलों को काटने और मिट्टी में दबाने के लिए विशेष प्रकार की मशीनरी की आवश्यकता होती है, जो सभी किसानों के पास उपलब्ध नहीं होती है।
इन समस्याओं के समाधान के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-
- फसल चक्र- विभिन्न प्रकार की हरी खाद वाली फसलों को उगाकर खरपतवार और कीटों की समस्या को कम किया जा सकता है।
- जैविक खाद- हरी खाद के साथ जैविक खाद का उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है।
- समय पर कटाई- हरी खाद की फसलों को सही समय पर काटने से नाइट्रोजन की हानि को रोका जा सकता है।
- सिंचाई- शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई की व्यवस्था करके हरी खाद की फसलों को उगाया जा सकता है।
- सहकारी समूह- किसान मिलकर सहकारी समूह बनाकर मशीनरी और अन्य संसाधनों को साझा कर सकते हैं।
हरी खाद के लाभ
- मिट्टी की उर्वराशक्ति में वृद्धि- हरी खाद में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम और अन्य आवश्यक पोषक तत्व होते हैं जो मिट्टी की उर्वराशक्ति को बढ़ाते हैं।
- मिट्टी की संरचना में सुधार- हरी खाद मिट्टी को मुलायम बनाती है, जिससे पानी की रिसाव क्षमता बढ़ती है और मिट्टी का कटाव कम होता है।
- जल धारण क्षमता में वृद्धि- हरी खाद मिट्टी में जल धारण क्षमता बढ़ाती है, जिससे सूखे की स्थिति में फसलों को पानी की कमी नहीं होती है।
- मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करता है- हरी खाद मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे फसलों को अनुकूल तापमान मिलता है।
- कीट-पतंगों का नियंत्रण- कुछ हरी खाद वाली फसलें कीट-पतंगों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।
- पर्यावरण संरक्षण- हरी खाद का उपयोग रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण कम होता है।
- हरी खाद के रूप में उपयोग की जाने वाली प्रमुख फसलें- ढैंचा, सूर्यमुखी, अरहर, मूंग, उड़द, आदि।
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