रूपारानी दिवाकर, पादप-रोग विभाग,
 इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
डॉ. शमशेर आलम, सहायक प्रबंधक
पादप-रोग विभागद्ध, कृषि विज्ञान केन्द्र, मैनपाट, सरगुजा (छ.ग.)


परिचय
अरहर एशिया, अफ्रीका और अमेरिका में 25 डिग्री उत्तर और 30 डिग्री दक्षिण के बीच अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाने वाली सबसे बहुमुखी अनाज वाली फसल है। इसकी खेती 5.25 मिलियन हेक्टेयर में की जाती है, जिसका वार्षिक उत्पादन 3 मिलियन टन से अधिक है, जो दालों के कुल विश्व उत्पादन का लगभग 5 प्रतिशत है (संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन एफएओ,, ऑनलाइन प्रकाशित)। वैश्विक अरहर की खेती का लगभग 90 प्रतिशत भारत और नेपाल तक ही सीमित है, शेष अफ्रीका (6 प्रतिशत), कैरेबियन (2 प्रतिशत) और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में है। अरहर का दलहनी फसलों में क्षेत्रवार एव उत्पादन की दृष्टि से चना के बाद दूसरा स्थान है। इसके मुख्य उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात, आँध्रप्रदेश एवं बिहार हैं।

अरहर की फसलें अनेक प्रकार के रोगों से प्रभावित होती है। इन्ही रोगों में से एक है बाँझपन मोजेक रोग (Sterility Mosaic Disease)। इस रोग से अरहर की उत्पादन में कमी, इस बात पर निर्भर करता है कि पौधों में रोग का संक्रमण फसल की किस अवस्था में हुआ है। पौधों में संक्रमण बुआई के 45 दिन से पहले होने पर उत्पादन में कमी 95-100 प्रतिशत तक होता है जबकि बुआई के 45 दिन के बाद उत्पादन में कमी, प्रभावित शाखाओं में संक्रमण पर निर्भर करती है और 26-97 प्रतिशत तक होती है। देर से संक्रमण होने पर, पौधों के कुछ हिस्सों में रोग के लक्षण दिखाई देते हैं जिसे हम आंशिक बाँझपन (Partial Sterility) कहते हैं। आंशिक रूप से प्रभावित पौधों से उत्पादित बीज सूखे, मुड़े-तुड़े एवं हल्के  रंग के होते हैं जो अंकुरित नहीं हो सकती है। गम्भीर रूप से प्रभावित पौधे पूरी तरह से बाँझ (Sterile) होते है। भारत के विभिन्न राज्यों में इस रोग का संक्रमण इस प्रकार है। बिहार-21.40 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश-15.40 प्रतिशत, तमिलनाडु-12.80 प्रतिशत, गुजरात-12.20 प्रतिशत एवं कर्नाटक-9.80 प्रतिशत है।

रोग के कारक
बांझपन मोजेक रोग एक विषाणु जनक रोग है जो कि अरहर बांझपन मोजेक विषाणु (Pigeon pea Sterility Mosaic Virus PPSMV) से होता है। यह रोग एक एरिओफाइड माईट (Aceria cajani) से फैलता है जो कि बहुत छोटा, गुलाबी रंग में (Spindle) आकार का होता है। ये पौधों के कोमल शाखाओं पर दूधिया सफेद रंग के अंडे देती हैं। इस के निम्फ (nymph) पत्रक में लपेटे हुए पाये जाते हैं।

एरिओफाइड माइट अति विशिष्ट एवं काफी हद तक अरहर एवं अपने जंगली रिस्तेदारों जैसे कि कैजनस सकरबइओइड्स एव।(Cajanus scarabaeoides) कैजनस कजनिफोलियस (C- cajanifolius) इत्यादि पर पाया जाता है। इसके वयस्क की लम्बाई 200-250 um होता है। इसका जीवन चक्र बहुत छोटा एवं दो हफ्तों का होता है जिसमें अंडे एवं दो भुृण स्थिति आते हैं अरहर बाँझापन मोजेक विषाणु से सवंमित पौधों पर माइट हमेशा पत्रक के निचले सतह पर और ग्रसित पत्तियों पर मुख्य रूप से पाया जाता है।

बाँझापन मोजेक विषाणु ग्रसित क्षेत्रों में अरहर की फसल में नियमित रूप से प्रकट होते हैं और उपयुक्त परिस्थितियों में महामारी का रूप ले लेता है। इस रोग के जानपदिक के लिए, इसके विषाणु (PPSMV), एरिओफाइड माइट (vector) अरहर की देशी किस्में, विविध कृषि प्रणाली तथा अप्रत्याशित पर्यावरण का होना है। जब मौसम में 60 प्रतिशत सापेक्ष आद्र्रता तथा 10-25 और 25-35 डिग्री का तापमान रहता है तब खेतों में एरिओफाइड माइट की संख्या बढ़ने लगती है।

सिंचाई के तरह या सिंचित क्षेत्रों के आसपास उगाई जाने वाले फसलों में खासकर गन्ने वाले क्षेत्रों में जल्दी से इसका संक्रमण हो जाता है। एरिओफाइड माइट गर्मिंयों के महीनों में बारह मासी अरहर पर जीवित रहता है। यह हवा के बहाव के द्वारा पौधे से पौधे में संक्रमण फैलता है। अरहर बाँझपन मोजेक विषाणु के भारत में पाँच संस्करण (variant) पाये जाते हैं जिसमें कर्नाटक संस्करण अधिक संक्रमण वाला है। सही संस्करण की जानकारी ना होने के कारण इस रोग के प्रबंधन में कठिनाई हो रही है।

रोग के लक्षण
बांझपन मोजेक रोग का सबसे सामान्य लक्षण पौधों में पत्तियों का छोटा होने के साथ, हल्के पीले एवं गहरे रंग का मोजेक हरे-पीले धब्बेदार का होता है। पौधे अनेक शाखाओं (Profuse branching) में बँटी होती हैं एवं इसका विकास रुक (Stunted growth) जाता है और फूल नहीं लगते हैं। यदि इक्का-दुक्का फूल बन भी जाते हैं तो इसमें फल एवं बीज नहीं बनते हैं।

एरीओफाइड माइट वेक्टर द्वारा कारक वायरस का संचरण
पीपीएसएमवी एरीओफाइड माइट, ए. कजानी द्वारा फैलता है। घुन पत्तों की निचली सतह पर रहते हैं और मुख्य रूप से पीपीएसएमवी-संक्रमित पौधों की रोगसूचक पत्तियों पर पाए जाते हैं। उनके भोजन से मेजबान को कोई स्पष्ट क्षति नहीं होती है। एक बार पीपीएसएमवी-अतिसंवेदनशील जीनोटाइप पर स्थापित होने के बाद, घुन कुछ ही हफ्तों में उच्च घनत्व तक बढ़ सकते हैं। उनका फैलाव निष्क्रिय है, जिसमें मुख्य रूप से पवन धाराओं द्वारा सहायता मिलती है।

वायरस वेक्टर माइट द्वारा अर्ध-निरंतर तरीके से फैलता है। दो अन्य घुन-संचारित विषाणुओं पर अध्ययन भी संचरण के अर्ध-स्थायी मोड का संकेत देते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि एकल ए. कजानी पीपीएसएमवी संचारित करता है, लेकिन एकल कण के साथ प्राप्त अधिकतम संचरण लगभग 50 प्रतिशत था, जो कि विस्तार से अध्ययन किए गए कुछ अन्य कण-संचारित वायरस के लिए रिपोर्ट की गई दक्षता की तुलना में अधिक है। पीपीएसएमवी को प्रसारित करने के लिए, ए. कजानी को न्यूनतम 15-मिनट अधिग्रहण पहुंच अवधि और 90-मिनट टीकाकरण पहुंच अवधि की आवश्यकता होती है, लेकिन जब भोजन से पहले घुनों को भूखा रखा जाता था, तो ये समय क्रमशः 10 और 60 मिनट तक कम हो गया था। विषाणुयुक्त घुन स्वस्थ पौधों पर 2 से 10 घंटे तक भोजन करने के बाद पीपीएसएमवी संचारित करने की क्षमता खो देते हैं और कोई स्पष्ट गुप्त अवधि नहीं होती है। ए. काजानी खिलाते समय पीपीएसएमवी को 6 घंटे तक बनाए रखता है और अतिसंवेदनशील मेजबान तक पहुंच के बिना 13 घंटे से अधिक समय तक बनाए रखता है, जिससे ए. काजानी की पवन धाराओं में नए पौधों में ले जाने के बाद पीपीएसएमवी संचारित करने की क्षमता का पता चलता है। यद्यपि ए. कजानी एक नम कक्ष में 30 घंटे तक भोजन के बिना जीवित रहते हैं, लेकिन पौधों में स्थानांतरित होने पर वे जीवित नहीं रहते हैं, इसलिए प्रकृति में यह संभावना नहीं है कि कण भोजन के बिना बहुत अधिक घंटों तक जीवित रह सकें।

प्रबंधन

बुआई से पहले

1. अरहर के बारह मासी किस्मों की बुवाई न करें तथा रैटून (ratoon) फसल न लें।

2. निम्नलिखित रोग प्रतिरोधी किस्मों का इस्तेमाल करें।

अल्प अवधि (130-140 दिन)- जीटी 101, बनस।

मध्यम अवधि (170-180)- विपुला, लोचन, मारूति, बी.एस.एम.आर. 853, बी.डी.एन. 711, बी.एस.एम.आर.736, बी.डी.एन. 708।

दीर्घ अवधि (190-220 दिन- पूसा 9, बहार, एन.डी.ए. 1, एन.डी.ए. 2, अमर, एम.ए.एल. 13।

कई अध्ययनों से पता चला है कि बाँझपन का प्रकोप- बुआई की तिथियाँ, पौधों से पौधों की दूरी या बार्डर एवं अंतः फसल से थोड़ी कमी आती है।

बुआई के बाद

1.फसल की नियमित निरीक्षण करनी चाहिए तथा प्रारंभिक चरण में ही सवंमित पौधों को उखाड़ कर उसे नष्ट कर देना चाहिए।

2. अगर प्रांरभिक लक्षण खेतों में ज्यादा दिखने लगे तो माइट के प्रबंधन के लिए प्रदेशीय स्वीकृत रासायनिक कीटनाशकों जैसे कि डाइमेंथोएट 30 EC (1.7 मि.ली./लीटर), डाइकोफाल 18.5 EC(2 मि.ली./लीटर) या मिथाइल डेमेंटोन 25 EC (2 मि.ली./लीटर) पानी में मिलाकर छिड़काव करें।