डॉ.मीनाक्षी मेश्राम, कृषि विस्तार, 
डॉ.गुलाब दास बर्मन, डॉ.देवेन्द्र कुमार साहू, सब्जी विज्ञान,
(एमजीयूवीवी) सांकरा पाटन दुर्ग (छ.ग.)

भिंडी (एबेलमोस्कस एस्कुलेंटस एल.) एक लोकप्रिय सब्जी है। सब्जियों में भिंडी का प्रमुख स्थान है जिसे लोग लेडीज फिंगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं। मुख्य रुप से भिंडी में प्रोटीन, कार्बाेहाइड्रेट, खनिज लवणों जैसे कैल्शियम, फास्फोरस के अतिरिक्त विटामिन ए, बी, सी, थाईमीन एवं रिबोफ्लेविन भी पाया जाता है। इसमें विटामिन ए तथा सी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। भिंडी के फल में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है। भिंडी का फल कब्ज रोगी के लिए विशेष गुणकारी होता है।

जलवायुः-
भिंडी एक गर्म मौसम की सब्जी की फसल है और उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह से उगाई जाती है। यह कम रात के तापमान और सूखे के लिए अतिसंवेदनशील है। 17 डिग्री सेल्सियस से निचे बीज अंकुरित नहीं हो पाता है। विकास के लिए इष्टतम तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस तक होता है। इष्टतम उपज प्राप्त करने के लिए 35 डिग्री सेल्सियस आदर्श है। 42 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान पर फूल झड़ जाते हैं और पैदावार कम होती है। भिंडी का पौधा गर्म मौसम की अपेक्षा बरसात के मौसम में लंबा होता है।

मिट्टी व खेत की तैयारीः-
भिंडी को उत्तम जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है। भूमि का पी.एच मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है। भूमि की दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरी कर तथा पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए। बरसात के मौसम में जलभराव फसल के लिए हानिकारक होता है। ढेलेदार, ठूंठों और खरपतवारों को यंत्रवत् या शारीरिक श्रम द्वारा हटाना चाहिए है।

उन्नत किस्में-
  • पूसा ए-4ः- यह भिंडी की एक उन्नत किस्म है। यह एफिड तथा जैसिड के प्रति सहनशील है।यह पीतरोग यैलो वेन मोजैक विषाणु रोधी है। फल मध्यम आकार के गहरे, कम लस वाले, 12-15 सेमी लंबे तथा आकर्षक होते हैं। बोने के लगभग 15 दिन बाद से फल आना शुरू हो जाते है तथा पहली तुड़ाई 45 दिनों बाद शुरु हो जाती है।
  • परभनी क्रांतिः- यह किस्म पीत-रोगरोधी है। फल बुआई के लगभग 50 दिन बाद आना शुरू हो जाते हैं। फल गहरे हरे एवं 15-18 सेंमी लम्बे होते हैं।
  • पंजाब-7ः- यह किस्म भी पीतरोग रोधी है। फल हरे एवं मध्यम आकार के होते हैं। बुआई के लगभग 55 दिन बाद फल आने शुरू हो जाते हैं।
  • अर्का अभयः- यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी हैं। इसके पौधे ऊँचे 120-150 सेमी सीधे तथा अच्छी शाखा युक्त होते हैं।
  • अर्का अनामिकाः- यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है। इसके पौधे ऊँचे 120-150 सेमी सीधे व अच्छी शाखा युक्त होते हैं। फल रोमरहित मुलायम गहरे हरे तथा 5-6 धारियों वाले होते हैं। फलों का डंठल लम्बा होने के कारण तोड़ने में सुविधा होती है। यह प्रजाति दोनों ऋतुओं में उगाई जा सकती हैं।
  • वर्षा उपहारः- यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी हैं। पौधे मध्यम ऊँचाई 90-120 सेमी तथा इंटरनोड पासपास होते हैं। पौधे में 2-3 शाखाएं प्रत्येक नोड से निकलती हैं। पत्तियों का रंग गहरा हरा, निचली पत्तियां चौड़ी व छोटे छोटे लोब्स वाली एवं ऊपरी पत्तियां बड़े लोब्स वाली होती है। वर्षा ऋतु में 40 दिनों में फूल निकलना शुरु हो जाते हैं व फल 7 दिनों बाद तोड़े जा सकते हैं। फल चौथी पांचवी गाठों से पैदा होते हैं। इसकी खेती ग्रीष्म ऋतु में भी कर सकते हैं।
  • हिसार उन्नतः- यह प्रजाति चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा निकाली गई है। पौधे मध्यम ऊँचाई 90-120 सेमी तथा इंटरनोड पासपास होते हैं। पौधे में 3-4 शाखाएं प्रत्येक नोड से निकलती हैं। पत्तियों का रंग हरा होता हैं। पहली तुड़ाई 46-47 दिनों बाद शुरु हो जाती है। फल 15-16 सेंमी लम्बे हरे तथा आकर्षक होते हैं। यह प्रजाति वर्षा तथा गर्मियों दोनों समय में उगाई जाती हैं।
  • वी.आर.ओ.-6ः- इस किस्म को काशी प्रगति के नाम से भी जाना जाता है। यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी हैं। पौधे की औसतन ऊँचाई वर्षा ऋतु में 175 सेमी तथा गर्मी में 130 सेमी होती है। इंटरनोड पासपास होते हैं। औसतन 38 वें दिन फूल निकलना शुरु हो जाते हैं।

बुवाई, बीज दर और दूरीः-
भिंडी के बीज सीधे मिट्टी में बोए जाते हैं। फसल की पंक्तिबद्ध बुवाई की जाती है। वसंत/गर्मी की फसल के लिए बीजों को कम दूरी (45 सेमी × 30 सेमी) पर बोया जाता है और बरसात के मौसम की फसल के लिए अधिक दूरी (60 सेमी × 45 सेमी) पर। आमतौर पर अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई से पहले रात भर पानी में बीज भिगोए जाते हैं। बीजों को 0.2ः बाविस्टिन के साथ भिगोना से प्रारंभिक अवस्था में मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से बीज और अंकुर को बचाने में मदद करता है। बीज दर 8-10 किलोग्राम प्रति एकड़ बसंत ग्रीष्म फसल के लिए और 3 -4 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ बरसात के मौसम के लिए इस्तेमाल करें।

खाद और उर्वरकः-
भिंडी पोषक तत्वों की भारी खपत करती है। भिंडी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने हेतु प्रति हेक्टेर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद एवं मिट्टी से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 10 किलोग्राम फास्फोरस, 15 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में दे। खाद और उर्वरक उर्वरता स्तर के आधार पर जगह-जगह भिन्न होते हैं। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय पर देते हैं। भूमि की तैयारी और आधा नाइट्रोजन का उपयोग दो बराबर भागों में किया जाता है, एक बुवाई के 4 सप्ताह के बाद और दूसरी फूल आने और फल लगने की अवस्था में।

निराई व गुड़ाईः-
नियमित निंदाई-गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बोने के 15-20 दिन बाद प्रथम निंदाई-गुड़ाई करना जरुरी रहता है। खरपतवार नियंत्रण हेतु रासायनिक कीटनाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है। खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन के 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। जैविक खेती में मल्चिंग की मदद से खरपतवार नियंत्रण किया जाता है। जैविक पलवार या कतारों के बीच काली पॉलिथीन के प्रयोग से खरपतवार की हानि को कम करने में मदद मिलती है।

सिंचाईः-
सिंचाई मार्च में 10-12 दिन, अप्रैल में 7-8 दिन और मई-जून में 4-5 दिन के अन्तर पर करें। बरसात में यदि बराबर वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।

ग्रोथ रेगुलेटरः-
आजकल फसल की उपज और फलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अलग-अलग ग्रोथ रेगुलेटर का इस्तेमाल किया जाता है।जिबरेलिक एसिड(400 पीपीएम), आईएए (200 पीपीएम) द्वारा बीज उपचार बीज बढ़ाने में मदद करता है। साइकोसेल (100 पीपीएम) के प्रयोग से फलों की आयु को बढ़ाया जा सकता है। एस्कॉर्बिक एसिड (250 पीपीएम) की मदद से क्लोरोफिल का प्रतिधारण सबसे अच्छा होता है।

प्रमुख रोग एवं कीट प्रबंधन:
  • येलो मोजेकः- यानी पीला रोग होने का खतरा काफी हद तक बना रहता है । इस रोग में फल, पत्तियां और पौधा पीला पड़ने लगता है। अगर इस रोग से फसल को समय रहते बचाना है, तो उसके लिए आवश्कयतानुसार मेलाथियान को पानी में घोलकर खेतों में समय -समय पर छिड़कते रहें। इससे पीला रोग का खतरा काफी कम हो जाता है।
  • प्ररोह एवं फल छेदक रोगः- यह छोटे कीट फसल के फलों में छेद करके उनमें घुस जाते हैं, फिर धीरे-धीरे पूरे फल को खा लेता हैं, इससे बचने के लिए फलऔरफूलों पर ये कीट लगाहोताहै, उसको इकट्ठा करके पूरी तरह नष्ट कर दें, ताकि उसकी वजह से बाकि फसल न ख़राब हो, यह कीट ज्यादा फसल पर फ़ैल रहे हैं तो आवश्यकतानुसार कार्बाेरिल को पानी में घोलकर फसल पर छिड़क दें या फिर आवश्यकतानुसार नीम ऑयल और लहसुन को पानी में घोलकर छिड़कें।
  • रस चूसक कीटः-भिंडी की फसल में मोयला, हरा तेला, सफेद मक्खी आदि कीट का प्रकोप हो सकता है, जो फसल की फूल-पत्तियों का पूरा रस चूस लेते हैं, जिस वजह से पौधों का विकास रुक जाता है। इसके साथ ही पत्तियां मुरझाकर पीली पड़ने लगती हैं और कमजोर हो कर गिर जाती हैं। इसके लिए पौधों के बढ़ते समय नीम के तेल को पानी में अच्छे से मिलाकर छिड़क दें। यह प्रक्रिया हर 10 दिन के बाद करे। इसके अलावा आवश्यकतानुसार डायमेथोएट, मोनोक्रोटोफोस, ऐसीटामीप्रीड, एसीफेट 2 में से किसी एक को पानी में अच्छे से घोलकर छिड़क दें. इस प्रक्रिया को हर 10 दिन के बाद 5 से 6 बार करें।

फसल की तुड़ाई उपज:-
भिंडी के फलों की तुड़ाई उसकी किस्म पर निर्भर करती है। वैसे इसकी तुड़ाई लगभग 45 से 60 दिनों में शुरू कर देनी चाहिए। ध्यान दें कि इसकी 4 से 5 दिनों के अंतराल पर रोजाना तुड़ाई करें भिंडी की खेती उन्नत किस्मों और अच्छी देखभाल के साथ करते हैं, तो इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 120 से 170 क्विंटल उपज प्राप्त कर सकते हैं।