प्रो. (डाॅ.) भागचन्द्र जैन, उपाध्यक्ष, राष्ट्रीय कृषि पत्रकार संघ (नाज)
20 महावीर नगर, पोस्ट- रविग्राम, रायपुर (छत्तीसगढ़)
तन-मन-धन, सबके ऊपर वन। जन-जन की आशा- हमारे वन। जन-जन का जीवन वन। वन से बादल, बादल से पानी, पानी से जीवन। वृक्षों की महत्ता सदियों से है। भविष्य पुराण, भर्तहरि ऋषि, संत तुलसीदास और महाकवि कालिदास सभी ने वृक्ष की गाथा का वर्णन किया है। महाभारत में वृक्षों की महिमा बखानी है। भगवान श्रीकृष्ण ने वृक्षों की गाथा गायी है। हमारे जीवन का युगों-युगों से वनों से अटूट सम्बन्ध रहा है। भारतीय संस्कृति में वन गमन का एक आदर्श स्थान रहा है। महर्षि बाल्मीकि और भगवान श्री राम ने हमारे वनों की शोभा बढ़ायी है। भगवान बुद्ध को भी वृक्ष के नीये बोध हुआ था।
एक वृक्ष को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है। वृक्षों में पादप जीवन होता है। वृक्ष सदियों से पूज्यनीय है। विभिन्न प्रकार की औषधियां वृक्षों की देन है। वृक्षों से स्वादिष्ट, पौष्टिक फल हमें मिलते हैं। संत तुलसीदास ने फलदार वृक्षों की तुलना संतों से की है-
तुलसी संत सुअम्ब तरू,
फूले फलहिं पर हेत।
इतते पे पाहन हनत,
उतते वे फल देत।।
ऋषि-मुनियों ने वृक्षों की स्तुति देवी-देवताओं की तरह की है। पेड़-पौधों की रक्षा धार्मिक कार्य माना जाता है। ऋषि भतृहरि ने वृक्षों की कटाई के दुष्कर्म को नरक के समान बताया है-
व्क्षांश्छ कृत्वापशुन्हत्वा कृत्वा रूधिर कर्दमम्।
यद्मेव गम्यते स्वर्गे नरक केत गम्यते।।
भविष्य पुराण में कहा गया है कि जो बरगद, पीपल, नीम, इमली, बेल, आंवला तथा आम के वृक्ष लगाते हैं, वे कभी नरक नहीं जाते हैं। महाकवि कालिदास के आश्रम से जब शकुंतला ने विदाई ली थी, तब वे वृक्ष से लिपटकर रोयी थी। महाभारत में वृक्षों की संज्ञा धर्मपुत्रों से की गई है, वृक्ष लगाकर उनकी पुत्र की तरह रक्षा करनी चाहिये।
पावन वृक्ष और उनसे जुड़े देवता-
वृक्ष संबंधित देवता
- बरगद - ब्रम्हा, विष्णु, महेश, हरि, कृष्ण, पंचानन, कुबेर, लक्ष्मी।
- पीपल - विष्णु, बुद्ध, कृष्ण, ब्रम्हा, लक्ष्मी, सूर्य, दुर्गा, अप्सरा, गंधर्व।
- तुलसी - कृष्ण, विष्णु, राम, नारायण, हरि, जगन्नाथ, वृंदावती, चांद, लक्ष्मी।
- अशोक - बुद्ध, इन्द्र, विष्णु, गंधर्व, अप्सरा।
- बेल - शिव, दुर्गा, लक्ष्मी, सूर्य।
- आम - लक्ष्मी, गोवर्धन, बुद्ध, गंधर्व।
- बांस - कृष्ण, पूर्वज पूजा, वंश वृद्धि।
- नीम - शीतला, मनसा, वंश वृद्धि।
- केला - लक्ष्मी, पूर्वज पूजा, वंश वृद्धि।
- आंवला - लक्ष्मी, कार्तिकेय, विष्णु, गंधर्व।
स्त्रोतः कृषि व्यवस्था, जयपुर।
आज एक ओर औद्योगीकरण का प्रकाश तेजी से फैल रहा है, वहीं दूसरी ओर प्रदूषण से खतरा भी बढ़ता जा रहा है। इन परिस्थितियों के कारण ’’राष्ट्रीय वन महोत्सव’’ की भूमिका हर वर्ष बढ़ती जा रही है। सम्पूर्ण विश्व में प्रदूषण मुक्त वातावरण बनाने के लिये निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। वृक्ष पर्यावरण की रक्षा के सजग प्रहरी हैं। पर्यावरण की रक्षा के लिये वन ही एकमात्र उपयुक्त साधन सिद्ध हुये है।
वनों का क्षेत्रफल कम होते जा रहा है। विश्व की 11 प्रतिशत भूमि हमारे देश में है और संसार की 15 प्रतिशत से अधिक जनता हमारे देश में रहती है, परन्तु यह विसंगति है कि भारत में विश्व के वन भूभाग का केवल दो प्रतिशत हिस्सा स्थित है। यह चिंतनीय विषय है कि वन कम क्यों होते जा रहे हैं? वनों की रक्षा कैसे की जाये? आजादी के समय 1947 में हमारे देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 33 प्र्रतिशत क्षेत्र में वन क्षेत्र था, यह वन क्षेत्र आज लगभग 18 प्रतिशत रह गया है।
वन का क्षेत्रफल कम होने से पर्यावरण इतना प्रभावित हुआ है कि असामयिक और खण्ड वृष्टि होने लगी है। ऋतुओं ने अपने प्राकृतिक स्वभाव में परिवर्तन सा कर दिया है। वृक्षों से मिलने वाली आक्सीजन प्राण वायु होती है- यह प्राण वायु हमें दूषित वातावरण में आसानी से नहीं मिल पाती है। पर्यावरण में संतुलन बनाये रखने के लिये यह आवश्यक है कि वृक्षारोपण निरंतर किया जाये। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि ’जिस जगह वृक्ष अधिक होते हैं, वहां बादलों से पानी अपने आप बरस जाता है, पेड़ों की पत्तियों में ऐसा आकर्षण होता है कि पानी दूध की धार की तरह नीचे गिरने लगता है, जिस भूमि में वृक्ष नहीं होते हैं वह भूमि मरूभमि हो जाती है, क्योंकि पानी तो वहां बरसता नहीं। अगर वर्षा बंद करनी हो तो वृक्षों को काट दीजिये।
वृक्ष जीवन को प्राण वायु देते हैं। वृक्ष पर्यावरण की रक्षा करते हैं। जड़ी-बूटियां, तेल, गोंद, फल, राल देते हैं, इमारती और जलाऊ लकड़ी देते हैं। कृषि के लिये जो अनुपयुक्त भूमि है- उसे वृक्ष नया जीवन देकर कृषि योग्य बनाते हैं। वृक्ष प्राकृतिक छटा बिखेरते हैं और पशु पक्षियों को बसेरा देते हैं। वृक्ष जनता को रोजगार देते हैं और आर्थिक आमदनी भी देते हैं।
हमारे देश में वन का कुल क्षेत्रफल 6.3 लाख वर्ग किलोमीटर है, जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 18 प्रतिशत है। हमारे देश में कुल 726 जिले हैं, इन जिलों में से 106 जिलों में 33 प्रतिशत, 52 जिलों में 19 से 33 प्रतिशत तथा 216 जिलों में 1 से 19 प्रतिशत वन का क्षेत्रफल है। शेष जिलों में वन का क्षेत्रफल नही के बराबर है।
योजना आयोग के एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में लगभग पांच करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि हैं, जिसका 15 प्रतिशत क्षेत्र वृक्ष लगाकर सुधारा जा सकता है, जिसके लिये राष्ट्रीय बंजर भूमि विकास बोर्ड प्रयास कर रहा है।
अनुमान लगाया गया है कि पचास वर्ष पुराना वृक्ष 15.7 लाख रूपये के बराबर लाभ देता है। पीपल का एक परिपक्व वृक्ष 1712 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से आक्सीजन देता है और 2252 किलोग्राम की दर से कार्बन डाई आक्साइड सोखता है। दो से तीन मीटर घनत्व वाले जामुन, पीपल, बरगद, नीम, आम के वृक्षों से 100 मीटर दूरी तक औसतन 1.5 से 2.5 डिग्री सेल्सियस तापमान कम हो जाता है। एक हेक्टेयर में लगे वृक्ष 30 से 50 टन उड़ती धूल प्रतिदिन सोख लेते हैं।
हमारे देश में 6,29,149 गांव है, जहां पर लगभग 70 प्रतिशत जनता रहती है। ग्रामीण निवासियों को जलाऊ लकड़ी के लिये जंगल पर निर्भर रहना पड़ता है। हमारे देश में संसार के 9 प्रतिशत पशु पाये जाते हैं, जिनके आहार के लिये जंगल का चारा ही मुख्य स्त्रोत है। वृक्ष प्रकृति की अद्भुत देन है। यदि किसी स्थान की सुंदरता बढ़ाना है तो वहां आप वृक्ष लगा दीजिये, सचमुच सुंदरता आ जायेगी। वृक्षों से आपकी राशि, नक्षत्र जुड़े हुये हैंः
तालिका 2ः राशि, नक्षत्र और वृक्ष
क्र. |
वृक्ष |
राशि |
नक्षत्र |
देवता |
1. |
कुचिला |
मेष |
अश्विनी |
अश्विनी |
2. |
आंवला |
मेष |
भरणी |
टाम |
3. |
गूलर |
मेष/वृष |
कृतिका |
अग्नि |
4. |
जामुन |
वृष |
रोहिणी |
ब्रम्हा |
5. |
खैर |
वृष/मिथुन |
मृगशिरा |
सोम |
6. |
शीशम |
मिथुन |
आद्र्रा |
रूद्र |
7. |
बांस |
मिथुन/कर्क |
पुनर्वस |
अदिति |
8. |
पीपल |
कर्क |
पुष्य |
वृहस्पति |
9. |
नागकेसर |
कर्क |
अश्लेषा |
सर्प |
10. |
बरगद |
सिंह |
मघा |
पितर |
11. |
ढाक |
सिंह |
पू. फाल्गुनी |
भग |
12. |
पाकड़ |
सिंह/कन्या |
उ. फाल्गुनी |
अर्यमा |
13. |
रीठा |
कन्या |
हस्त |
सविता |
14. |
बेल |
कन्या/तुला |
चित्रा |
त्वष्टा |
15. |
अर्जुन |
तुला |
स्वाती |
वायु |
16. |
कताई |
तुला/वृश्चिक |
विशाखा |
इंद्राग्नि |
17. |
मौल श्री |
वृश्चिक |
अनुराधा |
मित्र |
18. |
चीड़ |
वृश्चिक |
ज्येष्ठा |
इन्द्र |
19. |
साल |
धनु |
मूला |
निऋति |
20. |
जलवेतस |
धनु |
पूर्वाषाढ़ा |
जल |
21. |
कटहल |
धनु |
उत्तराषाढ़ा |
विश्वदेव |
22. |
आक |
मकर |
श्रवण |
विष्णु |
23. |
खेजड़ी |
मकर/कुंभ |
धनिष्ठा |
वसु |
24. |
कदम |
कुंभ |
शतभिखा |
वरूण |
25. |
आम |
कुंभ/मीन |
पू. भाद्रपद |
अजैकपद |
26. |
नीम |
मीन |
उ. भाद्रपद |
अर्हिवुध्न्य |
27. |
महुआ |
मीन |
रेवती |
पूषा |
लकड़ी देने वाले वृक्षों की अहम भूमिका होती है, इसके लिये बबूल, शीशम, नीम, इमली तथा यूकेलिप्टस को लगाना चाहिये। घर की बागवानी के लिये नीबू, पपीता, आंवला, कटहल, आम, केला, संतरा आदि लगाना चाहिये। छत्तीसगढ़ वन सम्पदा का धनी है। ऐसा माना जाता है कि बस्तर शब्द की उत्पत्ति ’बांस’ से हुई है, यहां के सागौन के वन प्रसिद्ध हैं। छत्तीसगढ़ का शिमला कहलाने वाला सरगुजा में भी पहाड़ों की वादियों के बीच में प्रचुर मात्रा में वन है।
संतोष सबसे बड़ा सुख है।, ’संतोष परम सुख’, मनुष्यों को फल-फूलों से लदे हुये पेड़ संतोष प्रदान करते हैं। इसलिये राष्ट्रीय वन महोत्सव, विश्व वानिकी दिवस, विश्व पर्यावरण दिवस, वसुंधरा दिवस मनाने के साथ ही साथ वृक्षारोपण कीजिये। भारत में एक से आठ जुलाई तक हर्ष-उल्लास के साथ राष्ट्रीय वन महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें करोड़ों वृक्ष प्रति वर्ष लगाये जाते हैं, इसलिये राष्ट्रीय वन महोत्सव को ’अधिक वृक्ष लगाओ आंदोलन’ की संज्ञा दी गई है। राष्ट्रीय वन महोत्सव का शुभारंभ वर्ष 1950 में तत्कालीन कृषि मंत्री श्री कन्हैया लाल मणिकलाल मुंशी ने किया था। तब से यह महोत्सव प्रति वर्ष मनाया जाता है, हर साल करोड़ों वृक्ष लगाने का लक्ष्य पूरा किया जा रहा है।
वृक्ष भविष्य है। वृक्ष आशा है। इसलिये प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वृक्षारोपण के पुनीत कार्य को लगन से करें तथा पुराने वृक्षों की देखभाल अवश्य करें। वृक्ष लगाना कठिन कार्य नहीं है, कठिन है उनकी देखभाल करना। पर्यावरण की रक्षा के लिये कृषि की अनुपयुक्त भूमि पर, सड़कों और नहरों के किनारे, पंचायत जमीनों, खेत की मेड़ों, गृह वाटिकाओं, मंदिरों में वृक्षारोपण कीजिये। कुओं और तालाबों के पास भी वृक्ष लगायें।
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