सुरेश कुमार साहू (पीएचडी स्कॉलर) पादप रोग विज्ञान
पूर्णिमा साहू (एमएससी) वनस्पति विज्ञान

एंटोमोपैथोजेनिक कवक एकऐसाकवक है जो कीड़ों को मार सकता है या गंभीर रूप से अक्षम कर सकता है। उन्हें मौखिक अंतर्ग्रहण या सेवन के माध्यम से कीट के शरीर में प्रवेश करने की आवश्यकता नहीं है; बल्कि, वे सीधे बाह्यकंकाल में प्रवेश करते हैं।इसे प्राकृतिक मृत्यु कारक और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित माना जाता है, इसलिए कीटों के जैविक नियंत्रण के लिए एंटोमोपैथोजेनिक कवक का अध्ययन 100 से अधिक वर्षों से किया जा रहा है।कीटनाशकों के रूप में एंटोमोपैथोजेन्स का विकास उनके मेजबान विशिष्टता, स्थिरता, निर्माण और उपयोग के तरीकों पर पर निर्भर करता है।

कृषि रसायनों के प्रयोग से जहाँ कीटों / रोगों एवं खरपतवारों में इन रसायनों के प्रति सहनशक्ति उत्पन्न हो रही है और कीटों के प्राकृतिक शत्रु (मित्र कीट) कुप्रभावित हो रहे है, वहीं कीटनाशकों के अवशेष खाद्य पदार्थों, मिट्टी, जल एवं वायु की गुणवत्ता को खराब कर प्रकृति एवं मानव स्वास्थ्य को हानि पहुँचा रहे है। कीटनाशी रसायनों के हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए जैविक कीटनाशी / जैविक एजेण्ट का प्रयोग नितान्त आवश्यक है।

1. ब्यूवेरिया बैसियाना:
ब्यूवेरिया बैसियाना फफूँद पर आधारित जैविक कीटनाशक है। ब्यूवेरिया बैसियाना 1 प्रतिशत डब्लू.पी. एवं 1.15 प्रतिशत डब्लू.पी. के फार्मुलेशन में उपलब्ध है, जो विभिन्न प्रकार की फसलों, फलों एवं सब्जियों में लगने वाले फलीबेधक, पत्ती लपेटक, पत्ती खाने वाले कीट, चूसने वाले कीटों, भूमि में दीमक एवं सफेद गिडार आदि की रोकथाम के लिए लाभकारी है। ब्यूवेरिया बैसियाना अधिक आर्द्रता एवं कम तापक्रम पर अधिक प्रभावी होता है। ब्यूवेरिया बैसियाना के प्रयोग से पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ब्यूवेरिया बैसियाना की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है।

ब्यूवेरिया बैसियाना के प्रयोग की विधि :

1. भूमिशोधन हेतु ब्यूवेरिया बैसियाना की 2.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर 65-70 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर अन्तिम जुताई के समय प्रयोग करना चाहिए।

2. खड़ी फसल में कीट नियंत्रण हेतु 2.5 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें, जिसे आवश्यकतानुसार 15दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है।

3. धान में पत्ती लपेटक के लिए ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत डब्लू.पी. 2.5 3.किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 400-500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

4. चना में फली बेधक के नियंत्रण हेतु ब्यूवेरिया बैसियाना 1 प्रतिशत डब्लू.पी. 3 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

5.भिण्डी में फली बेधक के नियंत्रण हेतु ब्यूवेरिया बैसियाना 1 प्रतिशत डब्लू.पी. 4-5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।

2. मेटाराइजियम एनिसोप्ली:
मेटाराइजियम एनिसोप्ली फफूँद पर आधारित जैविक कीटनाशक है।मेटाराइजियम एनिसोप्ली 1 प्रतिशत डब्लू.पी. एवं 1.15 प्रतिशत डब्लू.पी. के फार्मुलेशनमें उपलब्ध है, जो विभिन्न प्रकार के फसलों, फलों एवं सब्जियों में लगने वाले फलीबेधक,पत्ती लपेटक, पत्ती खाने वाले कीट, चूसने वाले कीटों, भूमि में दीमक एवं सफेद गिडारआदि के रोकथाम के लिए लाभकारी है। मेटाराइजियम एनिसोप्ली कम आर्द्रता एवंअधिक तापक्रम पर अधिक प्रभावी होता है। मेटाराइजियम एनिसोप्ली के प्रयोग से 15दिन पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।मेटाराइजियम एनिसोप्ली की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है।

मेटाराइजियम एनिसोप्ली के प्रयोग की विधि :

1. भूमिशोधन हेतु मेटाराइजियम एनिसोप्ली की 2.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर 65-70 किग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर अन्तिम जुताई के समय प्रयोग करना चाहिए।

2. खड़ी फसल में कीट नियंत्रण हेतु 2.5 किग्राप्रति हेक्टेयर की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें जिसे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है।

3. धान में भूरे फुदके के लिए मेटाराइजियम एनिसोप्ली 1.15 प्रतिशत डब्लू.पी. 2.50 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

4. बैगन में तना एवं फलबेधक के लिए मेटाराइजियम एनिसोप्ली 1 प्रतिशत डब्लू.पी. 25-50 किग्रा. प्रति हेक्टेयर 500-750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

3. बैसिलस थूरिनजियेन्सिस (बी.टी.) :
बैसिलस थुरिनजियेन्सिस बैक्टीरिया पर आधारित जैविक कीटनाशक है। बैसिलस थूरिनजियेन्सिस प्रजाति कर्सटकी 0.5 प्रतिशत डब्लू.पी., 2.5 प्रतिशत ए.एस., 3.5 प्रतिशत ई.एस. एवं 5 प्रतिशत डब्लू.पी. के फार्मूलेशन में उपलब्ध है। बैसिलस थूरिनजियेन्सिस विभिन्न प्रकार की फसलों, सब्जियों एवं फलों में लगने वाले लेपिडोप्टेरा कुल के फली बेधक, पत्ती खाने वाले कीटों की रोकथाम के लिए लाभकारी है। बैसिलस थूरिनजियेन्सिस के प्रयोग के 15 दिन पूर्व या बाद में रासायनिक जीवाणुनाशी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। बैसिलस थूरिनजियेन्सिस की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है।

बैसिलस थूरिनजियेन्सिस के प्रयोग की विधि :

1. चने में फलीबेधक के लिए बैसिलस थूरिनजियेन्सिस प्रजाति कर्सटकी 0.5 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. की 2 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

2. अरण्डी में सेमीलूपर के लिए बैसिलस थूरिनजियेन्सिस कर्सटकी 0.5 प्रतिशत डब्लू.पी. 400 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 250-300 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

3. कपास में बालवर्म के लिए बैसिलस थुरिनजियेन्सिस कर्सटकी 3.5 प्रतिशत ई.एस. की 750 मिली. से 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 750-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

जैविक कीटनाशी से लाभ :

1 जीवों एवं वनस्पतियों पर आधारित उत्पाद होने के कारण जैविक कीटनाशी मृदा में अपघटित हो जाते हैं तथा उनका कोई भी अंश अवशेष नहीं रहता।

2. जैविक कीटनाशी केवल लक्षित कीटों/रोगों को प्रभावित करते हैं, मित्र कीटों पर इनका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।

3.जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों / रोगों में सहनशीलता अथवा प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न नहीं होती जिससे जैविक कीटनाशक हमेशा प्रासंगिक, बने रहते हैं।

4.जैविक कीटनाशकों के प्रयोग के तुरन्त बाद फलों, सब्जियों आदि को प्रयोग में लाया जा सकता है, जबकि कीटनाशी रसायनों के प्रयोग के बाद फलों, सब्जियों आदि का प्रयोग तुरन्त नहीं किया जा सकता है।

5.जैविक कीटनाशकों के सुरक्षित होने के कारण इनके प्रयोग से उत्पादित फल, सब्जियाँ, खाद्यान्न आदि अच्छे मूल्यों पर बिक जाते हैं, जिससे कृषकों का आर्थिक सुदृढ़ीकरण भी हो जाता है।