कुन्ती बंजारे, डॉ साक्षी बजाज एवं प्रतिभा सिंह
सहा. प्राध्यापक, आर. एस. वी. कृषि महाविद्यालय एवं अनु. केन्द्र, बेमेतरा
ड्रैगन फू्रट, हिलोकेरस अनडाटस (Hylocereus undatus) केक्टेसि (Cactaceae) परिवार से संबंधित है। इसे होनोलुलु रानी व पिताया फल के नाम से भी जाना जाता है। यह संतरा, आम, पपीता, केला, सेब आदि की तुलना में अधिक पौष्टिक और फायदेमंद फल है। ड्रेगन फू्रट बाहर से अनन्नास की भाँति दिखाई देता है, लेकिन अंदर से गूदा सफेद और काले रंग छोटे-छोटे बीजों से भरा हुआ नाशपती या कीवी की तरह होता है। इस आकर्षक एवं रहस्यमय फल का रंग लाल-गुलाबी होता है। इसकी त्वचा में हरे रंग की पंक्तियाँ होती हैं, जो ड्रैगन की तरह दिखाई देती हैं इसलिए इसको ड्रैगन फू्रट के नाम से भी जाना जाता है।
ड्रैगन फू्रट ज्यादातर मैक्सिको और मध्य एशिया में पाया जाता है। यह फल खाने में तरबूज की तरह मीठा होता है।
ड्रैगन फू्रट के मुख्य प्रकार
बाहरी रंग और गूदे के आधार पर यह फल मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता हैः-
- सफेद गूदा वाला, लाल रंग का फल
- लाल गूदा वाला, लाल रंग का फल
- सफेद गूदा वाला, पीले रंग का फल पोषक तत्व
ड्रैगन फू्रट के प्रति 100 ग्राम ताजे फल में पाए जाने वाले प्रमुख पोषक तत्व सारणी में दिये गये हैं।
विदेशी फल है ड्रैगन फू्रटः-
ड्रैगन फू्रट भारतीय फल नहीं है, लेकिन इसके लाजवाब स्वाद और लाभकारी फायदों के कारण भारत में भी इसकी मांग काफी बढ़ गयी है। यही वजह है कि हमारे देश में पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में इसका सर्वाधिक उत्पादन किया जा रहा है। ड्रैगन फू्रट का उपयोग ताजे फल के रूप् में करने के साथ-साथ रस, जैम तथा आइसक्रीम के रूप में भी किया जाता है। यह फल खाने में तो स्वादिष्ट लगता ही है, इसके अलावा यह अनेक गंभीर रोगों को ठीक करने की क्षमता भी रखता है।
जलवायुः-
ड्रैंगन फू्रट की खेती के लिए उष्ण जलवायु जिसमें निम्नतम वार्षिक वर्षा 50 से.मी. और तापमान 20 से.36 डिग्री सेल्सियस हो, सर्वोत्तम मानी जाती है। पौधों के बढ़िया विकास और फल उत्पादन के लिए इन्हें अच्छी रोशनी व धूप वाले क्षेत्र मे लगाना चाहिए। इसकी खेती के लिए सूर्य की ज्यादा रोशनी उपयुक्त नहीं होती।
मृदाः-
इस खेती को रेतीली दोमट मृदा से लेकर दोमट मृदा जैसी विभिन्न प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए कार्बिनक पदार्थ से भरपूर, उचित जल निकास वाली काली मृदा, जिसका पी-एच मान 5.5 से 7 हो, अच्छी मानी जाती है।
भूमि की तैयारीः-
खेत की अच्छी तरह से जुताई किया हो, कीट-पतंगों व खरपतवारों से मुक्त होना चाहिए। भूमि में 20 से 25 टन प्रति हैक्टर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट मिला देनी चाहिए।
प्रवर्धन एवं लगाने की विधिः-
ड्रैगन फू्रट का प्रवर्धन कटिंग द्वारा होता है, लेकिन इसे बीज से भी लगाया जा सकता है। बीज से लगाने पर यह फल देने में ज्यादा समय लेता है, जो किसान के दृष्टिकोण से सही नहीं है। इसलिए बीज वाली विधि व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। कटिंग से इसका प्रवर्धन करने के लिए कटिंग की लंबाई 20 से.मी. रखते हैं। इसको खेत में लगाने से पहले गमलों में लगाया जाता है। इसके लिए गमलों में सूखे गोबर, बलुई मृदा तथा रेत को 1ः1ः2 के अनुपात से भरकर छाया में रख दिया जाता है।
अंतरणः-
अधिक उत्पादन के लिए पौधे से पौध एवं पंक्ति के बीज की दूरी 2×2 मीटर रखते हैं। गड्ढे का आकार 60×60×60 सें.मी. रखते हैं। गड्ढों को कम्पोस्ट, मृदा व 100 ग्राम सुपर फाॅस्फेट मिलाकर भर दिया जाता है।
पादप सघनताः-
ड्रैगन फू्रट से अधिकतम उत्पादन लेने के लिए एक हैक्टर भूमि में लगभग 277 पौधे लगाए जा सकते हैं। ट्रिमिंग व प्रूनिंग पौधों की सीधी वृद्धि एवं विकास के लिए इनको लकड़ी व सीमेंट के खंभों से सहारा प्रदान करना चाहिए। अपरिपक्व पादप तनों को इन खंभों से बांधकर, पाश्रिवक शाखाओं को सीमित रखते हुए दो से तीन मुख्य तनों को बढ़ने के लिए छोड़ देना चाहिए। इसके बाद इसके ढांचे को गोलाकार रूप में सुरक्षित कर लेना चाहिए।
खाद एवं उर्वरकः-
अधिक उत्पादन लेने के लिए प्रत्येक पौधे को अच्छी सड़ी हुई 10 से 15 कि.ग्रा. गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिए। इसके अलावा लगभब 250 ग्राम नीम की खली, 30-40 ग्राम फोरेट एवं 5-7 ग्राम बाविस्टिन प्रत्येक गड्ढे में अच्छी तरह मिला दने से पौधों में मृदाजनित रोग एवं कीट नहीं लगते हैं। 50 ग्राम यूरिया, 50 ग्राम सिंगल सुपर फाॅस्फेट तथा 100 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश का मिश्रण बनाकर पौधों को फूल आने से पहले अप्रैल में फल विकास अवस्था तथा जुलाई-अगस्त और फल तुड़ाई के बाद दिसंबर में देना चाहिए।
सिंचाईः-
इस फल के पौधों को दूसरे पौधों की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार रोपण, फूल आने एवं फल विकास के समय तथा गर्म व शुष्क मौसम में बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके लिए सिंचाई की बूंद-बूंद पद्धति का उपयोग करना चाहिए।
कीट एवं व्याधियाँः-
सामान्यतः ड्रैगन फू्रट में कीट और व्याधियों का प्रकोप कम होता है। फिर भी इसमें एंथ्रेक्नोज रोग व थ्रिप्स कीट का प्रकोप देखा गया है। एंथ्रेक्नोज रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब दवा के घोल का 0.25 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें। थ्रिप्स के लिए एसीफेट का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करना चाहिए।
तुड़ाईः-
प्रायः ड्रैगन फू्रट प्रथम वर्ष में फल देना शुरू कर देता है। सामान्यतः मई और जून में पफूल लगते हैं तथा जुलाई से दिसम्बर तक फल लगते हैं। पुष्पण के एक महीने बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस अवधि के दौरान इसकी 6 तुड़ाई की जा सकती है। ड्रेगन फू्रट के कच्चे फल हरे रंग के होते हैं, जो पकने पर लाल रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। फलों की तुड़ाई का सही समय रंग परिवर्तित होने के तीन-चार दिनों बाद का होता है। फलों की तुड़ाई दरांती या हाथ से की जाती है।
उपजः-
ड्रैगन फू्रट का पौधा एक सीजन में 3 से 4 बार फल देता है। प्रत्येक फल का वनज लगभग 300 से 800 ग्राम तक होता है। एक पौधे पर 50 से 120 फल लगते हैं। इस प्रकार इसकी औसत उपज 5 से 6 टन प्रति एकड़ होती है।
औषधीय गुणः-
ड्रैगन फू्रट में अधिक मात्रा में विटामिन ‘सी‘, फ्लेवोनोइड और फादबर पाए जाने के कारण यह घावों को जल्दी भरने, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने एवं ह्दय संबंधित समस्याओं से बचाने के साथ-साथ भोजन को पचाने में भी सहायक होता है। यह आँखों की दृष्टि में सुधार करने के साथ ही त्वचा को चिकना और माॅयस्चराइज करता है। इसके नियमित सेवन से खांसी और अस्थमा से लड़ने में मदद मिलता है। इसमें विटामिन बी1, बी2 और बी3 पाए जाते हैं, जो ऊर्जा उत्पादन, कार्बोहाइड्रेड चयापचय, भूख बढ़ाने, खराब कोलेस्ट्राॅल, पेट के कैंसर और मधुमेह के स्तर को कम करने के अलावा कोशिकाओं को ठीक कर शरीर को मजबूती प्रदान करते हैं। दंत स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए भी इसको औषधीय रूप में प्रयोग किया जाता है।
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, ढोलिया, बेमेतरा में
ड्रैगन फ्रूट की खेती में शुरू हुआ अनुसंधान
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, ढोलिया, बेमेतरा क्षेत्र के लिए ड्रेगन फ्रूट अनुकूलता एवं अन्य घटकों के संबंधी अनुसंधान विगत 3 वर्षों से डाॅ. के. पी. वर्मा, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय के सफल निर्देशन में श्रीमति कुंती बंजारे, वैज्ञानिक, उद्यानशास्त्री के द्वारा किया जा रहा है। अनुसंधान प्रक्षेत्र के मिट्टी काफी हल्की, जल निकास वाली एवं मुरूमी व भाटा मिट्टी है। इस मिट्टी में लाल से लाल प्रजाति लगायी गयी है और अभी तक पौधों की बढ़वार अच्छी है एवं पौधों के अनुसार दो से चार किलो प्रति पेड़ उपज प्राप्त हो रही है।
इस फसल को उन सभी जगहों पर लगाया जा सकता है जहाँ पर पानी बहुत कम है, मिट्टी हल्की है। जहां जानवरों एवं बंदरों का प्रकोप ज्यादा है उन क्षेत्रों में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है क्योंकि इसका पौधा काँटेंदार होता है। यह लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में लगायी जा सकती है मगर रेतीली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए अच्छी है। 25 से 40 डिग्री तापमान इसके वृद्धि के लिए आवश्यक है।
आज के परिवेश में जहां हर फसल में दवाइयों का बेतहासा उपयोग हो रहा है जो हमारे स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। इस फसल को उगाने के लिए बहुत की कम रासायनिक खादों की आवश्यकता होती है एवं रोग-व्याध भी कम लगते हैं। यह फसल जैविक खेती के लिए बहुत ही उपयुक्त है, क्योंकि सामान्य कंपोस्ट खाद देकर भी अच्छी फसल ली जा सकती है।
किसी भी फसल के उत्पादन के लिए उचित मात्रा में पानी की उपलब्धता एवं अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। ऐसी मिट्टी में फसल लगाने से किसानों को 1 से 2 लाख रूपये तक का मुनाफा प्राप्त होता है, मुरूमी, हल्की, भाटा मिट्टीयों में फसल लगाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है लेकिन ऐसी मिट्टी में ड्रेगन फ्रूट की फसल को लगाकर काफी लाभ कमाया जा सकता है। यह फल बाजार में 80 से 200 रूपये प्रति कि.ग्रा. से अधिक मूल्य में बिकते हैं। कम से कम मूल्य (80रूपये) में बेचने पर 5 से 6 लाख रूपये प्रति हेक्टेयर शुद्ध आय किसान कमा सकते हैं।
ड्रेगन फ्रूट एक उष्ण कटिबंधीय फल है। यह कैक्टस फैमिली का पौधा है जिसे पिताया नाम से भी जानते हैं। इसकी खेती थाइलैंड देश में व्यापक पैमाने में की जाती है जो अब भारत के कुछ राज्यों में भी हो रही है। लाल रंग का यह विदेशी फल दिखने में काफी सुंदर, स्वादिष्ट एवं मीठा होता है, जिसका स्वाद किवी और नाशपती फल के समान ही होता है। डेªगन फ्रूट को सुपर फ्रूट भी कहा जाता क्योंकि इसके बहुत से स्वास्थ्य लाभ होते हैं। यह ब्लडप्लेटलेट्स को बढ़ाने में बहुत ही फायदेमंद है। इसमें जीरो फैट, फाइबर (3ग्राम/100गा्रम) एंटी-आॅक्सीडेंट्स, प्रोटीन (1.2 ग्राम), आयरन(4%), मैग्नीशियम(10%), तथा विटामिन सी (3%), प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसका उपयोग शराब (वाॅइन), जैम-जेली बनाने में भी किया जाता है।
इसकी खेती एक आधुनिक खेती है, जिसमें खर्च कम लगता है। इसका फूल तीन हफ्तों में फल में बदल जाता है। ये रात को ही बढ़ता है, इसलिए इसके फूल को रात की रानी भी कहते हैं। ये फल लाल, गुलाबी तथा पीले रंग के होते हैं । लाल गुदा वाला फल ज्यादा अच्छा तथा स्वादिष्ट होता है और बाजार में लाल किस्म को ज्यादा पसंद किया जा रहा है तथा इसकी बाजार मांग भी ज्यादा है। अन्य फलों की तुलना में इस फल को लंबे समय तक भंडारित किया जा सकता है।
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