डाॅ. खुशबू साहू, समीक्षा भुवाल, डाॅ. अमिता गौतम, डाॅ. प्रेरणा परिहार
उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, साजा, बेमेतरा

सब्जी उत्पादन में आधुनिक तकनीक के रूप में प्रयोग में ली गयी विधियों को उच्च तकनीकें अथवा हाईटेक कहते हैं। यह तकनीक आधुनिक, मौसम एवं वातावरण पर कम निर्भरता वाली तथा अधिक पूंजी निवेश से अधिक लाभ कमाने वाली है। सब्जियों की खेती के लिए कुछ प्रचलित हाईटेक तकनीक निम्न है।

फसलों की तुलना में सब्जियों की खेती से किसानों को बेहतर आमदनी मिलती है। हाल के दिनों में देश में सब्जियों की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है। कमर्शियल खेती को प्रोत्साहन के लिए स्वस्थ पौधे का उत्पादन महत्वपूर्ण है। किसानों द्वारा वैज्ञानिक तकनीक से पौधशाला तैयार न करने की वजह से आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। अगर किसान प्रो ट्रे तकनीक और पॉलीटनल तकनीक से सब्जियों के पौध तैयार करते हैं तो उनको नुकसान कम करने में मदद मिलेगी। देश में व्यावसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है। जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते है। एक अनुमान के अनुसार पौधशाला में सब्जी पौधों की औसतन क्षति 20-25 प्रतिशत होती है लेकिन कई बार यह क्षति 70-80 प्रतिशत तक हो जाती है।

ऑफ सीजन सब्जियां लो टनल में
भारत में बागवानी फसलों की खेती के लिये संरक्षित खेती का चलन बढ़ता जा रहा है। किसान अब जहां-तहां खेतों में पॉलीहाउस और ग्रीनहाउस का संरक्षित ढांचा लगाकर फल और सब्जियों का उत्पादन ले रहे हैं। इसी कड़ी में ऑफ सीजन सब्जियों की खेती के लिये लो टनल का इस्तेमाल भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। इसे पॉलीहाउस का छोटा अवतार भी कहते हैं, जो दिखने में प्लास्टिक की सुरंग जैसी होती है, लेकिन इसे लगाने में पॉलीहाउस से भी कम खर्च आता है।

पॉलीटनल तकनीक लो टनल में ऑफसीजन सब्जियों की खेती
पॉलीटनल तकनीक सब्जी पौध उगाने की सबसे सस्ती, कारगर एवं व्यावहारिक तकनीक है। इस तकनीक से पौध उगाने पर बीज का जमाव समुचित ढंग से होता है। जमाव के उपरान्त पौधों का विकास बेहतर होता है तथा पौधों के कठोरीकरण (हार्डनिंग) में सहायता मिलती है।

इस तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि विपरीत मौसम में (अधिक गर्मी व ठंड के समय) भी सही पौध सफलतापूर्वक तैयार की जा सकती है, जबकि खुले वातावरण में अधिक ठंड के समय पौध लगाना असम्भव होता है क्योंकि लगातार ठंड एवं गर्मी कारण बीज का जमाव बहुत कम होता है। पॉलीटनल तकनीक से वर्ष के किसी भी मौसम में चाहे अधिक गर्मी एवं ठंड हो उस समय भी सब्जियों की पौध सफलतापूर्वक तैयार की जा सकती है। पॉलीटनल तकनीक से पौध उगाकर खेत में रोपाई करने से पौधों की मृत्युदर नहीं के बराबर होती है।

वैसे तो लो टनल में हर तरह की बागवानी फसलों का बेहतरीन उत्पादन ले सकते हैं, लेकिन कृषि वैज्ञानिक इसमें गिनी-चुनी सब्जियां लगाने की ही सलाह देते हैं। इनमें लौकी, करेला, खीरा, खरबूजा और चप्पन कद्दू शामिल है। बता दें कि लो टनल में चप्पन कद्दू की खेती करने पर 40 से 60 दिनों के अंदर उत्पादन मिल जाता है। लौकी ,करेला, खीरा (30 से 40 दिनों में उत्पादन मिल जाता है।)

पॉली ग्रीन हाउस तकनीक
पॉली ग्रीन हाउस या प्लास्टिक ग्रीन हाउस पॉलिथीन शीट का उपयोग कर बनाया जाता है इसलिए इसे पॉली हाउस भी कहते है। सामान्यता पॉली हाउस का आकार 25 मीटर 5 मीटर रखा जाता है। इसका फ्रेम जंग रहित लोहे के पाइप द्वारा तैयार किया जाता है, जिसे 600 गैज की पॉलिथीन से ढक दिया जाता है। इसके अंदर बिजली से चलने वाले कूलर तथा हीटर लगाकर तापमान नियंत्रक उपकरण से जोड़ दिया जाता है।

सब्जियों पर आधारित सस्य प्रणाली
अधिकाशं सब्जियां कम अवधि वाली होती है, अतः इन्हें विभिन्न फसल चक्रों में आसानी से समाहित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त छोटे और मझोले किसान सब्जियों को पूरे वर्ष खेती करके अच्छा लाभ काम सकते हैं। सब्जियों का फसल चक्र में समायोजन करने से सस्य गहनता 300-400 प्रतिशत तक प्राप्त की जा सकती है। टमाटर, फूलगोभी तथा पत्तागोभी में पालक, प्याज तथा मूली का अंतः सस्य फसल के रूप में प्रयोग काफी लाभप्रद साबित हुआ है। विभिन्न अनुसन्धान केन्द्रों पर पाए गये सब्जियों पर आधारित कुछ प्रभावी फसल चक्रों का वर्णन दिया गया है।

सब्जियों पर आधारित कुछ प्रभावी फसल चक्रों

1. भिन्डी-टमाटर-करेला

2. भिन्डी-टमाटर-चैलाई

3. बैंगन-मटर-करेला

4. खरीफ प्याज-आलू-लिबिया

5. लोबिया-फूलगोभी-भिन्डी

सब्जियों में ड्रिप सिंचाई पद्धति
सब्जियों की अधिक उपज, गुण तथा स्वाद को बनाये रखने के लिए समुचित जल प्रबंधन बहुत आवश्यक है। अभी हाल ही के वर्षों में कुछ सब्जियों में ड्रिप सिंचाई की विधि अच्छी साबित हुई है। इस विधि से सिंचाई करने से 50 से 60 प्रतिशत तक जल की बचत होती है और सब्जियों की उपज जल्दी, गुणवत्ता वाली तथा अधिक होती है क्यूंकि पौधों को पानी बराबर नियंत्रित मात्र में मिलता रहता है। ड्रिप विधि के माध्यम से पौधों के लिए आवश्यक घुलनशील तत्वों की आपूर्ति करना सुविधाजनक होता है।

जैव प्रोद्योगिकी
जैव प्रोद्योगिकी अनुसंधान में काफी प्रगति हुई है। जिसके फलस्वरूप परम्परागत प्रजनन तकनीकों से जिन गुणों का समन्वय नई किस्म के विकास में असंभव प्रतीत होता था। उसे अब इस तकनीक के जरिये सुगमता से प्राप्त किया जा सकता है। सब्जियों में भ्रूण संवर्धन, जीव द्रव्यक तथा पराग संवर्धन और कृत्रिम संकरण तथा आनुवंशिक अभियांत्रिक के प्रयोग से जैविक तथा अजैविक दवाओं के प्रति सहनशीलध्अवरोधी किस्मे आसानी से विकसित की जा सकती है। खरबूजे के अंतर्गत इसकी दो प्रजातियों कुकुमिस मिटेलिफेरस तथा सी. एन्गुरिया में भ्रूण संवर्धन द्वारा निमाटोड अवरोधी किस्में विकसित की गयी है।

सब्जियों की कार्बनिक खेती
सब्जियों के रोगों तथा कीड़ों से रक्षा करने के लिए विभीन्न किटनाशी रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिनका की पूर्णरूप से विखंडन न होने पर इसके अवशेष मानव शरीरतक पहुंच जाते है जिससे की कैंसर आदि भयावह रोगों के उत्पन्न होने का खतरा रहता है। इसी वजह से कार्बनिक विधि से उगे गयी सब्जियों की मांग निरंतर बड़ रही है।

नई शीतकालीन विदेशी सब्जियां
अनुसंधान में कुछ नई शीतकालीन विदेशी सब्जियों को अपनी जलवायु तथा मिट्टी की स्थिति में सफलतापूर्वक उगने की तकनीक किसानों के लिए उपलबध हुई है। इनमें प्रमुख है ब्रोकली, ब्रसल स्प्रोउस, चाईंनिस कैबेज, लीक, पार्सेले, सेलनी, लेट्टूस, चेरी टमाटर, रेड कैबेज, एस्पेराग्स, फ्लोरंस, फिनल, आरटीचोक आदि।

संकर किस्मों का विकास
अधिक उपज, फसलों का आकर्षक रंग, सुडोल आकार, कीट व रोगों की प्रतिरोधकता तथा अधिक समय तक भण्डारण क्षमता संकर किस्मों की मुख्या विशेषताये है। टमाटर, बैंगन, पत्तागोभी, भिन्डी, मिर्च, फूलगोभी, खरबूजा, तरबूजव कुश्मांड कुल की सब्जियों में संकर किमों का प्रयोग अधिक हुआ है।

सब्जी उत्पादन में वृद्धि नियामकों का उपयोग
सब्जी उत्पादन में वृद्धि नियामकों का प्रयोग का प्रचलन काफी बढ़ रहा है। आकिज्न जैसे आई.ए.ए.,आई.बी.ए.,जिब्रेलीन द्वारा टमाटर, बैगन, मिर्च तथा मूली के बीजों का उपचार करने से अनुकरण तथा पौधों की बढ़वार और उपज में काफी वृद्धि होती है। आकिज्न , जिब्रेलिन, एथेलिन के प्रयोग से कद्दू वर्गीय सब्जियों में लिंग परिवर्तन द्वारा उपज में बहुत अधिक वृद्धि की जा सकती है। इसी प्रकार खीरे की फसल में 1000 पी.पी. एम. सान्द्र के जिब्रेलिक अम्ल के दो बार, प्रथम दो सत्य पत्ती अवस्था पर तथा दूसरी चार सत्य पत्ती अवस्था पर छिडकने से जायंगीय वंशक्रमों को बनाये रखा जा सकता है। एथरेल का 50-100 पी.पी. एम. घोल खीरे, खरबूजे, लौकी में मादा फूलों की संख्या बढ़ा देता है जिसके फलस्वरूप अधिक फल लगते हैं। टमाटर में जब अधिक तथा कम तापक्रम पर फल लगने की समस्या आती है उस दशा में पी.सी.पी.ए. का 50-100 पी.पी. एम. के दो छिड़काव पहला रोपाई के एक सप्ताह बाद तथा दूसरा रोपाई के चार सप्ताह बाद करने से नियंत्रित किया जा सकता है।