अलका मिंज, पीएच.डी.स्कॉलर, सब्जी विज्ञान विभाग,
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)


वानस्पतिक नाम- कोर्डियाडाइ कोटोमा

कुल- बोरागिनेसी

केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि बोहार भाजी देश के अन्य राज्यों में भी पाया जाता है। कई राज्यों में इसे लासोड़ा, गुंदा, भोकर आदि नाम से भी पहचाना जाता है। अंगरेज़ी में इसे बर्डला इमट्री, इंडियन बेरी या ग्लूबेरी के नाम भी पहचाना जाता है।

छत्तीसगढ़ के लोगों को बोहार भाजी मार्च से मई महीने में ही खाने के लिए मिलता है। यह पेड़ पर उगने वाली एक तरह की सब्जी है। इस सीज़न में फूल बनने से पहले छोटे व मुलायम कलियां और मुलायम पत्ते होते हैं। पेड़ के पतली शाखाओं से इन कलियों को तोड़ना मुश्किल भी होता है। इसे तोड़ने के लिए खास तरीके और अनुभव की जरूरत होती है।

छत्तीसगढ़िया भाजियों में सबसे महंगी बोहार भाजी होती है। यह वर्षभर में कुछ दिनों तक ही मिल पाती है, परंतु इसके लाजवाब स्वाद के कारण लोग इस भाजी के लिए हर कीमत देने को तैयार रहते हैं। बोहार भाजी पनीर से भी महंगी सब्जी है, यह बाजार में उपलब्धता के आधार पर 250 से 500 रूपये प्रति किलोग्राम में बिकती है। बोहार भाजी के फूल, फल, कली तथा पत्तियों से सब्जी, फल से अचार, इसके पके फल से एक चिपचिपा द्रव्य निकलता है, जिसका उपयोग औषधी के रूप में किया जाता है। बोहार भाजी में पोषक तत्व भरपुर मात्रा में पाये जाते हैं। यह पाचन तंत्र में सुधार, कफ तथा दर्द को दूर करने वाला तथा शरीर को शीतलता प्रदान करती है। इसके छालका उपयोग खुजली उपचार के लिए किया जाता है तथा कृमि को खत्म करने में भी यह सहायक है।

यह जंगली पौधा है। बीज तथा जड़ से निकली हुई शाखाओं से इसका नया पौधा तैयार किया जा सकता है। इसे खाली पड़ी बंजर भूमि तथा खेत के मेड-बाड़ी में लगाकर खाली जगहों का उपयोग कर अतिरिक्त आय की प्राप्ति की जा सकती है। इस पौधे को किसी भी प्रकार के प्रबंधन की आवश्यकता नहीं पड़ती, यह थोड़े पानी मिल जाने पर जीवित रहते हैं। इसकी पुरानी पत्तियों को समय-समय पर तोड़ते हैं ताकि नयी कोमल पत्तियाँ प्राप्त हो सके। यदि बाड़ी में लगे पेड़ को गर्मी सीजन में समय-समय पर पर्याप्त मात्रा में पानी दिया जाये तो उत्पादन (मुलायम पत्तियाँ तथा फल-फूल ज्यादा मात्रा में तथा अच्छी गुणवत्ता प्राप्त होंगी।