काजल साहू , आशा, अजय सिंह
फल विज्ञान विभाग, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, (छ.ग.)
यह भारत में आम उगाई जाने वाली, पर व्यापारिक फसल है। इसका जन्म केंद्रीय अमेरिका में हुआ है। इसे उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय इलाकों में उगाया जाता है। सर्दियों के टाइम में इसकी पैदावार ज्यादा होने के कारण इसके भाव बाजारों में काफी कम होते है। जिस कारण अमरूद को गरीबों का सेव भी कहा जाता है। अमरूद में विटामिन सी बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा अमरूद में विटामिन ए और बी भी पाए जाते हैं। इसमें विटामिन सी और पैक्टिन के साथ साथ कैल्शियम और फासफोरस भी अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह भारत की आम, केला और निंबू जाति के बूटों के बाद उगाई जाने वाली चैथे नंबर की फसल है। इसकी पैदावार पूरे भारत में की जाती है। बिहार, उत्तर प्रदेश, महांराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश और तामिलनाडू के इलावा इसकी खेती पंजाब और हरियाणा में भी की जाती है। अमरूद में लोहा, चूना और फास्फोरस अच्छी मात्रा में होते हैं। अमरूद का उपयोग लोग खाने में कई तरह से करते हैं। अमरूद का जूस निकालकर उससे जैम और जेली बनाई जाती है। जबकि जूस निकालने के बाद बचे हुए गुदे से कई तरह की बर्फी बनाई जाती है। जिसको उचित ताप दाब पर पैकिंग करने के बाद ज्यादा दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता हैं।
अमरूद के लिए उपयुक्त मिट्टी
यह सख्त किस्म की फसल है और इसकी पैदावार के लिए हर तरह की मिट्टी अनुकूल होती है, अमरूद को उगने के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है। क्योंकि बलुई दोमट मिट्टी में ये सबसे ज्यादा पैदावार देता है। इसके अलावा इसे भारत की लगभग सभी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए मिट्टी की पी. एच. मान का ध्यान रखना जरूरी है, क्योंकि ज्यादा क्षारीय मिट्टी में उकठा रोग लगने की संभावना ज्यादा हो जाती है। इस कारण इसके लिए उपयोग में ली जाने वाली जमीन की पी.एच. का मान 6 से 6.5 के बीच होना चाहिए। अच्छी पैदावार के लिए इसे गहरे तल, अच्छे निकास वाली रेतली चिकनी मिट्टी से लेकर चिकनी मिट्टी में बीजना चाहिए।
जलवायु और तापमान
अमरूद की खेती के लिए उष्ण कटीबंधीय क्षेत्र की जलवायु सबसे उपयुक्त जलवायु मानी जाती है। जिस कारण अमरूद के पौधे को शुष्क और अर्ध शुष्क प्रदेशों में बड़ी मात्रा में उगाया जा सकता है। जबकि अधिक वर्षा वाली जगहों पर इसे नही उगाना चाहिए । अमरूद का पौधा गर्मी और सर्दियों में पड़ने वाले पाले को आसानी से सहन कर लेता है। लेकिन इसके छोटे पौधों पर पाले का प्रभाव देखने को मिलता है। अमरूद के पौधे के लिए तापमान 15 से 30 डिग्री तक होना आवश्यक है। जबकि पूरी तरह से विकसित हो चुका पौधा 44 डिग्री तापमान को भी सहन कर सकता है। भारत में इसकी पैदावार बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तामिलनाडू, पंजाब और हरियाणा में की जा रही है।
अमरूद की किस्में
अमरूद की बहुत सारी किस्में हैं। लेकिन कई ऐसी किस्में हैं, जिनसे सालभर अमरूद के फल मिलते हैं। इलाहाबादी सफेदा, लखनऊ 49, स्वेता यह तीनों वेरायटी के पेड़ों से सालभर अमरूद का फल प्राप्त किया जा सकता है। अमरूद की किस्में बहुत सारी किस्में हैं वह इस प्रकार है।
1. इलाहाबाद सफेदा
अमरूद की इस किस्म के फल गोल, चमकदार सहत वाले होते हैं। इसका गूदा सफेद और मीठा होता है। इस प्रकार की किस्म के पौधे लंबे और सीधे बढ़ते हैं। इस किस्म की भंडारण क्षमता काफी अच्छी है, ये लंबे समय तक फ्रेश रहते हैं। इस किस्म से अमरूद के एक पेड़ से 40 से 50 किलोग्राम तक फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
2. लखनऊ- 49 (सरदार)
लखनऊ- 49 (सरदार) किस्म के पौधे छोटे, अधिक शाखावाले, फैलावदार ओर अधिक फलन वाले होते हैं। इसके फलों का आकार खुरदरी सतह वाला होता है। इसका गूदा मीठा और स्वाद में उत्तम होता है। इस किस्म की भंडारण क्षमता भी काफी अच्छी होती है। इस किस्म से अमरूद के एक पेड़ से करीब 50 से 60 किलोग्राम तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
3. ललित
अमरूद की ललित किस्म भी काफी अच्छी है। यह किस्म एप्पल कलर से चयनित उन्नत किस्म है। इस प्रजाति के अरूमद का गूदा लाल और खाने में स्वादिष्ट होता है। यह अमरूद की अधिक पैदावार वाली किस्म है। इसके रोपण के करीब 6 साल बाद 80 से 100 किलोग्राम फल प्रति पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं। इस किस्म से प्राप्त फल मध्यम आकार के होते हैं। इसके एक फल का वजन 185 से 200 ग्राम होता है।
4. श्वेता
यह किस्म भी अमरूद का अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों में से एक है। इसका पौधा मध्यम आकार का होता है। इसके फल कम बीज वाले, गोल और मुलायम होते हैं। यह किस्म पीले रंग की आभायुक्त मध्यम आकार की किस्म है जिसमें कभी-कभी लालिमा भी उभर आती है।
5. हिसार सफेदा
यह अमरूद की संकर किस्म है जिसे इलाहाबाद सफेदा व सीडलैस अमरूद के परपराग कण द्वारा तैयार किया गया है। इसके पेड़ सीधे और अच्छी बढ़वार वाले होते हैं। इसके फल गोल व चमकार होते है। इसका गूदा सफेद होता है, इसमें बीज बहुत कम होते हैं। इसके फल अधिक मिठास और खाने में काफी स्वादिष्ट होते हैं। इस अमरूद की खेती मध्यम वर्षा वाले इलाकों में अच्छी तरह से की जा सकती है।
6. हिसार सुरखा
यह अमरूद की संकर किस्म एप्पल कलर अमरूद व बनारसी सुरखा के पर परागण द्वारा तैयार की गई है। इस किस्म के पेड़ लंबे व अच्छे फैलाव वाले होत हैं। इसका फल गोल होता है और इसका छिलका हल्के पीले रंग का होता है। इस किस्म के फल का गूदा गुलाबी रंग का होता है जो अधिक मिठास वाला होता है।
7. ताइवान सफेदा
ताइवान सफेद अमरूद एक लोकप्रिय उष्णकटिबंधीय फलों वाला पेड़ है, जो अपने बड़े आकार और मीठे व रसीले स्वाद के लिए जाना जाता है। इसके पेड़ की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके पत्ते सदाबहार और फूल सफेद रंग के होते हैं। इस प्रजाति का फल खाने में काफी स्वादिष्ट होते हैं।
8. अर्का अमूल्य
अमरूद की यह किस्म इलाहाबाद सफेदा और ट्रिप्लॉइड के परस्पर संकरण द्वारा तैयार किया गया है। इसके पौधे में मध्यम औज होता है, इस प्रजाति के पेड़ का फैलाव काफी अच्छा होता है। इसके फल गोल और छिलका मुलायम और पीला होता है। इसके फल का औसतन वजन 180 से लेकर 200 ग्राम होता है। इसके गूदे का रंग सफेद और ठोस होता है। इस किस्म की टिकाऊपन बहुत अच्छी है।
9. वीएनआर बिही
इस प्रजाति के अमरूद को अमरूद अनुसंधान एवं विकास कृषि पंडित डॉ. नारायण चावड़ा चेयरमैन वीएनआर समूह के द्वारा विकसित किया गया है। इस किस्म के अमरूद की किसान अधिक करते हैं। इस किस्म के अमरूद का आकार बड़ा होता है। इसमें बीज कम होते हैं और इसका उत्पादन काफी बेहतर होता है। इसमें औसत मिठास और अधिक समय तक गुणवत्ता बनाए रखने की क्षमता होती है। इस किस्म के अमरूद का दाम भी किसानों को बाजार में अधिक मिलता है।
10. चित्तीदार अमरूद
इस किस्म के अमरूद के फल की सतह पर लाल रंग के धब्बे पाये जाते हैं। इसके फल मध्यम, अंडाकार, चिकने और हल्के पीले रंग के होते हैं। इसका गूदा मुलायम और सफेद होता है। इसका स्वाद सुवास युक्त मीठा होता है।
खेत की जुताई
अमरूद के पौधों को एक बार लगाने पर कई सालों तक पैदावार देता हैं। जिस कारण इनकी सिर्फ नीलाई गुड़ाई ही करनी पड़ती है। लेकिन इसकी पैदावार शुरू करते टाइम खेत में की हुई पहले की फसल के सभी अंश ख़तम कर दें। और खेत की अच्छे से तिरछी जुताई करें। जिसके बाद खेत को खुला छोड़ दे। कुछ दिन बाद उसमें गोबर की सड़ी हुई खाद् डाल दें। खाद् डालने के बाद उसकी अच्छे से जुताई कर दे। और ध्यान दे कि लास्ट जुताई के बाद खेत एकदम समतल हो जाए। जिसके बाद उसमें समतल से कुछ उंचाई पर 5 से 6 मीटर की दूरी पर गड्डे बना दें।
पौध की तैयारी-
- बिजाई का समय - फरवरी-मार्च या अगस्त-सितंबर का महीना अमरूद के पौधे लगाने के लिए सही माना जाता है।
- फासला- पौधे लगाने के लिए 6.5 मीटर का फासला रखें। यदि पौधे वर्गाकार ढंग से लगाएं हैं तो पौधों का फासला 7 मीटर रखें। 132 पौधे प्रति एकड़ लगाए जाते हैं।
- बीज की गहराई- जड़ों को 25 सैं.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।
- बिजाई का ढंग-
1. सीधी बिजाई करके
2. खेत में रोपण करके
3. कलमें लगाकर
4. एयर लेयरिंग विधि
1. बीज बोने का टाइम और तरीका-
अमरूद की खेती के लिए बीज बोने का उचित टाइम मार्च और जुलाई का महीना है। जहाँ सिचाई की व्यवस्था होती है वहां इसे मार्च में बोया जा सकता है। जबकि जहाँ सिचाई की सुविधा नही हो वहां इसे जुलाई या अगस्त माह में उगाना चाहिए। क्योंकि उस टाइम बारिश का मौसम होने की वजह से इसकी सिचाई की जरूरत नही होती। तैयार की हुई पौध या बीज को खेत में लगाते टाइम ध्यान रखे कि हम जिसे खेत में लगा रहे हैं उसे समतल से कुछ उचाई पर लगाये।इससे पानी भराव के टाइम में पौधे को थोड़ा लाभ मिलता है। पौध लगते टाइम दो पौधों के बीच लगभग 15 से 20 फिट का गैप रखे। जिससे पौधा आसानी से फैल सकता है। और पौधे की शाखाएं बढ़ने के साथ साथ पैदावार भी काफी बढती है।
2. कलम विधि-
इस विधि के मध्यम से लगभग सभी तरह के पौधों की कलम तैयार की जा सकती है। अमरूद की कलम तैयार करने के लिए पहले अमरूद के पेड की शाखा को तने से 2 सेंटीमीटर की दूरी से काटकर अलग कर लें। इस दौरान ध्यान रखे कि हम जिस शाखा को अलग कर रहे हैं वो हरे रंग की ना हो, क्योंकि इसके लिए पकी हुई शाखा का ही उपयोग लेते हैं। शाखा को तने से अलग करने के बाद उसके पत्तों को काटकर छोटा कर दें, और कलम लगाने के लिए कलम की लम्बाई लगभग 5 से 6 इंच ही रखे। जिसके बाद अलग की हुई शाखा के एक हिस्से को दो जगहों से हल्का हल्का छिल लें। और छिले हुए हिस्से पर रूटिंग हार्मोन लगा लें, फिर उसे खाद् मिलकर तैयार की हुई मिट्टी में एक इंच तक गाड़ दें, और उसको उपर से अच्छे से ढक दें। जिससे उसके अंदर हवा ना जा पायें। इस कलम को ऐसी जगह रखे जहाँ सुबह की धुप उसे लगती रहे। इस विधि द्वारा पौधे की कलम एक महीने में बन जाती है, जिसके दो महीने बाद उसे खेतों में लगाया जा सकता है। मई से जून तक का समय कलम विधि के लिए अनुकूल होता है। नए पौधे और ताजी कटी टहनियों या कलमें अंकुरन विधि के लिए प्रयोग की जा सकती हैं।
3. एयर लेयरिंग विधि-
इस विधि को जून-सितंबर के माह मे किया जाता है। इसके लिए एक वर्ष पुरानी पेंसिल सामान मोटाई वाली स्वस्थ एव परिपक्व 45-60 सेंटीमीटर की लंबाई की शाखा का चयन करे । चुनी मई शाखा मे कलिका के नीचे 2-3 सेंटीमीटर का चैडी गोलार्ड के छाल पुर्ण रूप से निकालने के बादए स्फेगनम मास चारो ओर लगाकर पाॅलीथीन शीट से बांध देना चाहिए। बांधने के लिए सुतली का उपयोग किया जाता है। 45-60 दिनो के बाद अच्छी तरह से जडे दिखाई देने लगे तब जडो वाली गुटी को नीचे के तरू से मात्रृ पौधो से 75-90 दिनो बाद अलग कर लेना चाहिए या पाॅलीथीन बैग मे बागरोपण के लिए रखना चाहिए ।
उर्वरक
पौधे की आयु |
गोबर खाद (अच्छी सड़ी
हुई) (कि.ग्रा.) |
यूरिया (ग्रा.) |
सिंगल सुपर फास्फेट (ग्रा.) |
म्यूरेट आफ पोटाश
(ग्रा.) |
1 से 3 वर्ष |
10-20 |
150-200 |
500-1500 |
100-400 |
4 से 6 वर्ष |
25-40 |
300-600 |
1500-2000 |
600-1000 |
7 से 10 वर्ष |
40-50 |
750-1000 |
2000-2500 |
1100-1500 |
10 वर्ष से अधिक |
50 |
1000 |
2500 |
1500 |
जब पौधे 1 से 3 वर्ष के हो जाएं तो इसमें 10 से 25 किलोग्राम देसी रूड़ी की खाद, 155 से 200 ग्राम यूरिया, 500 से 1600 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट और 100 से 400 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधे के हिसाब से डालनी चाहिए। पौधे के 4 से 6 वर्ष का होने पर इसमें 25 से 40 किलोग्राम रूड़ी (देसी खाद), 300 से 600 ग्राम यूरिया, 1500 से 2000 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट 600 से 1000 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधे के हिसाब से डालनी चाहिए। 7 से 10 वर्ष की आयु के बूटों में 40 से 50 किलोग्राम रूड़ी (देसी खाद), 750 से 1000 ग्राम यूरिया, 2000 से 2500 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट और 1100 से 1500 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधे के हिसाब से डालनी चाहिए।
10 वर्ष से अधिक उम्र के पौधों के लिए 50 किलोग्राम रूड़ी (देसी खाद), 1000 ग्राम यूरिया, 2500 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट और 1500 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधे के हिसाब से डालनी चाहिए। रूड़ी (देसी खाद) की पूरी और यूरिया, सिंगल सुपर फासफेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश की आधी खुराक को मई से जून और दोबारा सितंबर से अक्तूबर महीने में डालनी चाहिए।
पौधे की रुपाई करने से पहले खेत की जुताई के टाइम खेत में 10 से 15 गाड़ी प्रति एकड़ के हिसाब से सड़ी हुई गोबर की खाद् डाल दे। जिसके बाद पौधा लगते टाइम गड्डों में 200 ग्राम तक गली हुई गोबर की खाद डाल कर उसमें पौधा लगाये, और उसके बाद साल में दो या तीन बार पेड की नीलाई गुड़ाई करते टाइम फिर से गोबर की खाद् देते रहे। जबकि इसके साथ नीम की खली देने से पौधा और भी तेज़ी से बढ़ता है, और ज्यादा फल देता है। देशी खाद् के अलावा हमें पौधे को आवश्कतानुसार यूरिया और पोटाश भी देना चाहिए, जिसे पौधों को शुरूआती तीन साल में सिर्फ 150 से 200 ग्राम तक ही दिया जाना चाहिए, और उसके बाद जैसे जैसे पौधा बड़ा होता जाता है वैसे वैसे ही इसकी मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। ये सभी खाद् पौधे को मई, जून या सितम्बर और अक्टूबर में दी जानी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
अमरूद के पौधे की देखभाल करना जरूरी होता है, इसलिए शुरूआती टाइम में जब पौधे को खेत में लगाए तो 10 से 15 दिन के अंतराल में पौधे की हलकी हलकी नीलाई गुड़ाई करते रहना चाहिए, ताकि पौधे के आसपास किसी भी तरह की कोई खरपतवार पैदा ना हो पाए, और जब पौधा बड़ा हो जाए तब बारिश के मौसम के बाद पौधे के आसपास अच्छे से जुताई कर दें।
फसल विनियमन
उच्च व्यावसायिक मूल्य के साथ गुणवत्तापूर्ण फल प्राप्त करने के लिए विशेष मौसम की फसल को प्रोत्साहित करने के लिए अमरूद में फसल विनियमन का अभ्यास किया जाता है। उदाहरण के लिए, उत्तरी भारत में, बरसात की फसल की तुलना में सर्दियों की फसल को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि बरसात के मौसम में पैदा होने वाले फल गुणवत्ता में निम्न होते हैं और अन्य की तुलना में कम बाजार मूल्य प्राप्त करते हैं। इसी तरह, दक्कन क्षेत्र में, एक वर्ष में केवल दो वांछनीय फसलों को प्राथमिकता दी जाती है और तीसरी को छोड़ दिया जाता है। फसल नियमन का मुख्य सिद्धांत एक पेड़ को आराम के लिए मजबूर करना और विशेष मौसम के दौरान प्रचुर मात्रा में फूल और फल पैदा करना है। अवांछित मौसम के दौरान फसल को डीब्लॉसमिंग के अभ्यास से बचाया जा सकता है।
कटाई और छंटाई
पौधों की मजबूती और सही वृद्धि के लिए कटाई और छंटाई की जरूरत होती है। जितना मजबूत बूटे का तना होगा, उतनी ही पैदावार अधिक अच्छी गुणवत्ता भरपूर होगी। बूटे की उपजाई क्षमता बनाए रखने के लिए फलों की पहली तुड़ाई के बाद बूटे की हल्की छंटाई करनी जरूरी है। जब कि सूख चुकी और बीमारी आदि से प्रभावित टहनियों की कटाई लगातार करनी चाहिए। बूटे की कटाई हमेशा नीचे से ऊपर की तरफ करनी चाहिए। अमरूद के बूटे को फूल, टहनियां और तने की स्थिति के अनुसार पड़ते हैं इसलिए साल में एक बार पौधे की हल्की छंटाई करने के समय टहनियों के ऊपर वाले हिस्से को 10 सैं.मी. तक काट देना चाहिए। इस तरह कटाई के बाद नईं टहनियां अकुंरन में सहायता मिलती है।
जल तनाव का प्रेरणः उत्तरी मैदानी इलाकों में शीतकालीन फसल की कटाई के बाद सिंचाई रोककर जल तनाव उत्पन्न करने से फूल झड़ जाते हैं और पेड़ निष्क्रिय हो जाते हैं। शीतकालीन फसल प्राप्त करने के लिए जून में फूल आने को प्रोत्साहित किया जाता है; उसके लिए, जून में पेड़ के बेसिन को खोदा जाता है, खाद दी जाती है और सिंचाई की जाती है। लगभग 20-25 दिनों के फर्टिगेशन के बाद, जुलाई में पेड़ पर प्रचुर मात्रा में फूल आते हैं और सर्दियों में फल लगते हैं। जल तनाव को जड़ प्रदर्शन और जड़ छंटाई जैसी प्रथाओं से भी प्रेरित किया जा सकता है।
डी-ब्लॉसमिंग रसायनों का उपयोगः कुछ रासायनिक यौगिक या पौधे विकास नियामक अमरूद की फसल में बहुत उपयोगी रहे हैं। फूल खिलने के बाद 80-100 पीपीएम पर एनएए का प्रयोग फलों के सेट को कम करने में उपयोगी रहा है। इस उपचार से वर्षा ऋतु की फसल में 80% से अधिक की कमी की जा सकती है तथा आगामी शीत ऋतु की फसल में फूल आने में वृद्धि की जा सकती है। 50 पीपीएम पर एनएडी और 30 पीपीएम पर 2, 4-डी भी गर्मियों के फूलों के खिलने के लिए प्रभावी हैं।
सिंचाई
पहली सिंचाई पौधे लगाने के तुरंत बाद और दूसरी सिंचाई तीसरे दिन करें। इसके बाद मौसम और मिट्टी की किस्म के हिसाब से सिंचाई की जरूरत पड़ती है। अच्छे और तंदरूस्त बागों में सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती। नए लगाए पौधों को गर्मियों में सप्ताह बाद और सर्दियों के महीने में 2 से 3 बार सिंचाई की जरूरत होती है। पौधे को फूल लगने के समय ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती क्योंकि ज्यादा सिंचाई से फूल गिरने का खतरा बढ़ जाता है।
पौधे में लगाने वाले रोग और उनकी रोकथाम
अमरूद के पौधों में कई तरह के रोग लगतेे है, अमरूद के पौधों पर लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम इस प्रकार के हैं।
हानिकारक कीट
अमरूद के पौधों पर कीटों का प्रकोप ज्यादातर बारिश के मौसम में ही देखने को मिलता है। जिस कारण बारिश के टाइम पौधे की देखभाल ज्यादा करनी पड़ती है। बारिश के मौसम में पौधे पर छाल खाने वाले कीड़े, फल में अंडे देने वाली मक्खी और फल छेदक का प्रकोप ज्यादा बढ़ जाता है। इसकी रोकथाम के लिए पौधे पर नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर उसका छिडकाव पौधों पर करना चाहिए। अगर इससे प्रभाव ना पड़े तो फैनवेलरेट का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।
फल की मक्खी: यह अमरूद का गंभीर कीट है। मादा मक्खी नए फलों के अंदर अंडे देती है। उसके बाद नए कीट फल के गुद्दे को खाते हैं जिससे फल गलना शुरू हो जाता है और गिर जाता है। यदि बाग में फल की मक्खी का हमला पहले भी होता है तो बारिश के मौसम में फसल को ना बोयें। समय पर तुड़ाई करें। तुड़ाई में देरी ना करें। प्रभावित शाखाओं और फलों को खेत में से बाहर निकालें और नष्ट कर दें। फैनवेलरेट 80 मि.ली को 150 लीटर पानी में मिलाकर फल पकने पर सप्ताह के अंतराल पर स्प्रे करें। फैनवेलरेट की स्प्रे के बाद तीसरे दिन फल की तुड़ाई करें।
मिली बग: ये पौधे के विभिन्न भागों में से रस चूसते हैं जिससे पौधा कमज़ोर हो जाता है। यदि रस चूसने वाले कीटों का हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस 50 ई सी 300 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
अमरूद का शाख का कीट: यह नर्सरी का गंभीर कीट है। प्रभावित टहनी सूख जाती है। यदि इसका हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस 500 मि.ली. या क्विनलफॉस 400 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
चेपा: यह अमरूद का गंभीर और आम कीट है। प्रौढ़ और छोटे कीट पौधे में से रस चूसकर उसे कमज़ोर कर देते हैं। गंभीर हमले के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं जिससे उनका आकार खराब हो जाता है। ये शहद की बूंद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं। जिससे प्रभावित पत्ते पर काले रंग की फंगस विकसित हो जाती है। यदि इसका हमला दिखे तो डाइमैथोएट 20 मि.ली. या मिथाइल डेमेटान 20 मि.ली. का प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
बीमारियां और रोकथाम
सूखा: यह अमरूद के पौधे को लगने वाली खतरनाक बीमारी है। इसका हमला होने पर बूटे के पत्ते पीले पड़ने और मुरझाने शुरू हो जाते हैं। हमला ज्यादा होने पर पत्ते गिर भी जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए खेत में पानी इकट्ठा ना होने दें। प्रभावित पौधों को निकालें और दूर ले जाकर नष्ट कर दें। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 25 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी के नज़दीक छिड़कें।
एंथ्राक्नोस या मुरझाना: टहनियों पर गहरे भूरे या काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। फलों पर छोटे, गहरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। संक्रमण के कारण 2 से 3 दिनों में फल गलना शुरू हो जाता है। खेत को साफ रखें, प्रभावित पौधे के भागों और फलों को नष्ट करें। खेत में पानी ना खड़ा होने दें। छंटाई के बाद कप्तान 300 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। फल बनने के बाद कप्तान की दोबारा स्प्रे करें और 10-15 दिनों के अंतराल पर फल पकने तक स्प्रे करें। यदि इसका हमला खेत में दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 30 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर प्रभावित वृक्ष पर स्प्रे करें।
उकठा रोगः अमरूद के पौधों में ये रोग सरदार किस्म पर सबसे कम देखने को मिलता है। जबकि बाकी किस्मों में ये रोग भी बारिश के टाइम ही देखने को मिलता है। पौधों में ये रोग पानी भराव की वजह से होता है। इसलिए इसका सबसे अच्छा उपचार है कि पौधों के आसपास पानी का भराव ना होने दें। इस रोग के लक्षण पौधे पर बारिश के मौसम के बाद दिखाई देते हैं। इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों का रंग बारिश के बाद भूरा पड़ने लगता है। और धीरे धीरे पौधे की सभी पत्तियां मुरझाने लगती है। और जल्द ही पीली होकर सभी पत्तियां गिरने लग जाती है। अगर पौधे को ये रोग लग जाए तो पौधे को एक ग्राम बेनलेट या कार्बेनडाज़िम की 20 ग्राम मात्रा को 20 लिटर पानी में घोलकर पेड़ की जड़ों के पास की मिट्टी में कुछ दूरी तक छिड़क दें।
अमरूद की तुड़ाई
अमरूद का पौधा साल में दो बार फल देता है, जबकि दक्षिण में ये पौधा साल में तीन बार फल देता है। इनमें से सिर्फ पहली बार की फसल को ही सबसे अच्छा माना जाता है, इसकी पहली फसल सर्दियों के मौसम में आती है, जो नवम्बर से जनवरी के बीच में तैयार होती है। इस वक्त तैयार होने वाले फलो का बाजार में अच्छा दाम मिलता है, और इस वक्त आने वाले फलो को खाने के लिए उपयोगी माना जाता है क्योंकि ये स्वाद में मीठे और शरीर के लिए लाभदायक होते हैं। दूसरी फसल जुलाई महीने के बाद तैयार होती है। इस वक्त लगने वाले फल स्वाद में कम मीठे और कम लाभदायक होते हैं। जबकि तीसरी फसल फ़रवरी और मार्च महीने में तैयार होती है। इस टाइम के फल भी स्वाद में मीठे होते हैं। लेकिन इस टाइम पैदावार सबसे कम होती है। अमरूद का फल पेड़ पर फूल आने के लगभग तीन से चार माह बाद ही पककर तैयार हो जाता है। अमरूद के फल की तुड़ाई उसके हलके पीले पड़ने के बाद ही कर लेनी चाहिए। अमरूद को तोड़ने के बाद ज्यादा दिनों तक नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इसको ज्यादा दिनों तक भंडारण करके नही रखा जा सकता। इसलिए इसको तोड़ने के तुरंत बाद मार्केट में बेच देना चाहिए।
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