दिशा राजेंद्र चव्हाण, कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी, सहायक अध्यापक 
डॉ. अविनाश सुरेश काकडे, सहाय्यक अध्यापक, कृषि अभियांत्रिकी विभाग, 
कृषि महाविद्यालय, सोनई,तहसील- नेवासा, जिला: अहमदनगर


प्रस्तावना
पानी वाले इलाके में 3 फीट चौड़ा ऊँची बाँध बनाकर उस बाँध पर बागवानी कर सकते हैं, फल पपीता, केला, अमरूद नारियल, सब्जियाँ जैसे कि टमाटर, बैंगन, गोभी इ. उगा सकते हैं। दलहन हरा चना, अरहर, मटर इ. भी उगा सकते हैं। औषधीय पौधे जैसे कि धृत कुमारी, तुलसी, नीम, सहजन इ. का भी उत्पादन कर सकते हैं। इसके अलावा मुर्गी पालन भी किया जा सकता है। 3 फीट चौड़ा तथा 25-30 फीट लम्बा घर 25-30 मुर्गियों को पालने के लिये उपयुक्त होता है, क्योंकि एक मुर्गी के लिये 1 वर्ग फीट जगह काफी होती है। इसके साथ मै जल क्षेत्र में मछली पालन के अलग-अलग तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है। अलग-अलग तकनीकों के प्रयोग करनेसे पहले, जल क्षेत्र की पारिस्थितिकी को समझने की आवश्यकता होती है। फसल, पालतु जनावर और मछलियों का एक साथ पालन भी किया जा सकता है. एकीकृत खेती पालन का मुख्य उद्देश्य है एकल पालन के अवशिष्ट पदार्थ का पुनर्चक्रण एवं संसाधनों का इष्टतम उपयोग करना। इस पालन में अवशिष्ट पदार्थों को फेंका नहीं जाता बल्कि उनका पुनर्चाक्रण किया जाता है। अतः यह जीविकोपार्जन एवं आय की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। एकीकृत पालन कई प्रकार से किया जाता है जैसे-कृषि सह जलकृषि, मछली सह मुर्गी पालन, मछली सह बतख पालन एवं मछली सह अनाज खेती।

कृषि सह जलकृषि
इसमें उत्पादनो का दीर्घकालिक तौर पर इष्टतम उपयोग होता है और वह भी स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों और तकनीकों के उपयोग से। यस पालन से छोटे व गरीब किसानों के भरण-पोषण के लिये बहुत ही लाभकारी है। एकीकृत मत्स्य पालन से अधिकतर आय भी प्राप्त होती है। इस तरह के पालन के लिये विभिन्न तरह की फसल हम चून सकते है। फल मै जैसे कि पपीता, केला, अमरूद, नींबू, सीताफल, नारियल, सब्जियाँ मै देखा जाये तो चुकन्दर, करेला, लौकी, बैंगन, बन्दगोभी, फूलगोभी, खीरा, खरबूजा, मटर, आलू, कोहरा, मूली, टमाटर, दलहन मै हम हरा चना, काला चना, अरहर, राजमा, मटर तिलहन मैमूँगफली, सरसों, तिल, फूल मै देखे तो गेंदा, गुलाब, रजनीगंधा, औषधीय पौधे मै धृतकुमारी, तुलसी, कालमेध, नीम आदि। चौर के पानी वाले इलाके में 3 फीट चौड़ा ऊँचा बाँध बनाकर उस बाँध पर बागवानी पपीता, केला, अमरूद, नारीयल इत्यादि कर सकते हैं। ग्रास कार्प के खाने के लिये नेपियर घास की खेती तालाब के किनारे हम कर सकते है। चौर से प्राप्त गाद एवं जलीय अपतृणों को खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस तरह से हम चौर के किनारे बेकार पड़े खेत को बिना पानी खर्च किये उपजाऊ भी बना सकते हैं।

मछली सह मुर्गी पालन
इस पालन में मुर्गियों के अवशिष्ट को पुनः चक्रण कर अनाज के रूप में उपयोग किया जाता है। एक मुर्गी 0.3-0.4 वर्ग मी. कि जगह मै र्रेह सकती है। 50-60 पक्षियों से एक टन उर्वरक प्राप्त होता है। ऐसे पालन में 500-600 पक्षियों से प्राप्त खाद एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिये पर्याप्त होती है। इस पालन द्वारा 4.5-5.0 टन मछली, 70000 अंडे और 1250 कि. मुर्गी के मांस का उत्पादन होता है। इसमें अन्य सम्पूरक आहार और अतिरिक्त उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है।

मछली सह बतख पालन
इस पालन में हम मछली और बतख एक साथ पाल सकते है। जिस जल क्षेत्र में बतखों का पालन किया जाता है वह मछलियों के लिये आदर्श जलक्षेत्र होता है, क्योंकि इस तालाब मै रोगमुक्त होती है। बतख जल क्षेत्र में उपस्थित घोंघा, टैडपोल एवं पतंगों के लार्वा ग्रहण करती है। इसके अलावा बतखों के अवशिष्ट सीधा तालाब में गिरने से मछलियों के लिये आवश्यक पोषक पदार्थ की पूर्ति होती है। प्रत्येक बतख से 40-50 किग्रा खाद प्राप्त होता है। जिससे लगभग 3 कि. मछली उत्पादन होता है। बतख की औसत पालन दर 4 बतख प्रति वर्ग मी. होती है। एक बतख200 अंडे प्रतिवर्ष देती है।

मछली सह मवेशी खेती
इस तरह के पालन से बहुत सारी सम्भावनाएँ हैं। इसमें मछली के साथ हम पालतुगाय, बैल, भैंस ओर बकरी पालन भीकिया जा सकता है। साधारणतः एक गाय, बैल या भैंस से 6 कि. एवं बकरी से 0.5 कि. भोजन प्राप्त होती है। अतः एक वर्ष में एक मवेशी से 9000 कि. अवशिष्ट निकलता है। अनुमानतः 6.4 किग्रा गोबर से एक कि. मछली उत्पादन होता है। आठ गायों से प्राप्त गोबर एक हेक्टेयर जल क्षेत्र के लिये पर्याप्त होता है और इससे बिना किसी आहार के 3-5 टन मछली का उपज ली जा सकती है। इसके साथ मै गाय का दूध भी प्राप्त होता है।

मछली सह अनाज खेती
मछली के साथ अनाज की खेती कियी जा सकती है। इस तरह के पालन में मछली के साथ धान की खेती सर्वाधिक उपयुक्त होती है। धान का खेत पानी से भरा रहता है इसलिये इसमें धान के साथ कम खर्च में मछली पालन किया जा सकता है।