- फफूँदनाशी रसायन या ट्राइकोडर्मा से बीजोपचार करें।
- बीमारी से प्रभावित क्षेत्रों में बचाव हेतु रोगप्रतिरोधी किस्में उगाना। मध्यम अवधि वाली किस्मों का चयन करें
- किस्मों की अवधि व वृद्धि के अनुरूप कतार की दूरी व प्रति हेक्टेयर पौधों की समुचित संख्या रखें। रिज एवं फरो (कुडी-मादा) पद्धति से बुवाई करें। हेक्टेयर के हिसाब से लगावें तथा हर 15 दिनों बाद से प्टा बदलें।
- अरहर की बुवाई के समय से ही खेत में फेरोमोन ट्रैप लगाकर हेलिको वर्पा (फली छेदक सूँडी) का नियमित आँकलन करें तथा पाॅच फरोमोन ट्रेप लगाये तथा पैकेट में वर्णित अवधि में सेफ्टा को बदले।
- सही समय पर संतुलित मात्रा में खाद का प्रयोग करें।
- फसल की प्रारम्भिक अवस्था में समुचित खरपतवार नियंत्रण करें।
- फसल में फूल आने पर नियमित देखभाल करें।
- खेत में पक्षियों के बैठने की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करें। पक्षियों इल्लियों को खाती हैं।
- फसल में फूल आने पर नीम के 5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।
- एन.एच.पी.व्ही. के 500 लार्वा समतुल्य घोल का कीट के अण्डे देने की अवस्था से 2-3 बार व 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें।
- पौधों को हिलाकर लार्वा गिरायें तथा उन्हें नष्ट करें।
- सघन कीट प्रकोप की दशा में यदि उपरोक्ततरी के से सन्तोसजनक कीट नियंत्रण नहीं हो पाता है तो सावधानीपूर्वक रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव करें।
क्रं. |
अंत: फसल |
अनुपात |
1. |
ज्वार + अरहर |
2:1 |
2. |
मक्का + अरहर |
2:1 |
3. |
मूंगफली + अरहर |
2:1 |
4. |
सोयाबीन + अरहर |
2:1 |
5. |
मूंग/उड़द + अरहर |
2:1 |
क्रं. |
नाशीजीव का नाम |
अनुशंसित कीटनाशक |
कीटनाशक की मात्रा |
1. |
फलीछेदक सून्डी |
प्रोफेनोफास 50 ई.सी. क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. क्विनालफास 25 ई.सी. एन.पी.व्ही.
(Ha) NSKE 5 प्रतिशत |
2.0 मि.ली./ली. 2.5 मि.ली./ली. 2.0 मि.ली./ली. 250 से 500 LE/ हे. 50 ग्रा./ली. |
2. |
प्लूम मोथ |
क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. क्विनालफास 25 ई.सी. एसीफेट 75 एस.पी. मिथोमिल 40 एस.पी. |
2.5 मि.ली./ली. 2.0 मि.ली./ली. 1.0 ग्रा./ली. 0.6 ग्रा./ली. |
3. |
फली मक्खी |
इमिडाक्लोप्रिड 17.5
एस.एल. + गुड़
(1 प्रतिशत) थायोडीकार्ब 75 एस.पी.
+ गुड़ (1 प्रतिशत) |
0.2 मि.ली./ली. + 10 ग्रा./ली. 0.6 मि.ली./ली. + 10 ग्रा./ली. |
4. |
चित्तीदारफलीछेदक |
प्रोफेनोफास 50 ई.सी. NSKE 5 प्रतिशत |
2.0 मि.ली./ली. 50 ग्रा./ली. |
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