डॉ. साक्षी बजाज, डॉ. विवेक कुमार सिंघल, डॉ. आदित्य सिरमौर, डॉ. गजेन्द्र सिंह तोमर और डॉ. अनुराग
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविधालय रायपुर (छत्तीसगढ़)

गाजरघास यानी पार्थेनियम को देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों जैसे कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी, गंधी बूटी आदि नामों से जाना जाता है। हमारे देश में 1955 में गाजरघास दृष्टिगोचर होने के बाद यह विदेशी खरपतवार लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुकी है। यह मुख्यतः खाली स्थानों, अनुपयोगी भूमियों, औद्योगिक क्षेत्रों, बगीचों, पार्को, स्कूलों, रहवासी क्षेत्रों, सड़कों तथा रेलवे लाइन के किनारों आदि पर बहुतायत में पायी जाती है। पिछले कुछ वर्षों से इसका प्रकोप सभी प्रकार की खाद्यान्न फसलों, सब्जियों एवं उद्यानों में भी बढ़ता जा रहा है। वैसे तो गाजरघास पानी मिलने पर वर्षभर फल-फूल सकती है परंतु वर्षा ऋतु में इसका अधिक अंकुरण होने पर यह एक भीषण खरपतवार का रूप ले लेती है। गाजरघास का पौधा 3-4 महीनें में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है तथा एक वर्ष में इसकी 3- 4 पीढ़ियां पूरी हो जाती है।

गाजर घास की पहचान
गाजर के पौधे के समान दिखने वाला एक वर्षीय शाकीय पौधा जिसकी लम्बाई 1.0 से 1.5 मीटर तक हो सकती हैतना रोयेदार एवं अत्याधिक शाखा युक्त होता हैएक पौधा 25000 तक बीज उत्पन्न कर सकता है, जो बहुत हल्के एवं पंख युक्त होते हैयह प्रकाश एवं तापक्रम के प्रति उदासीन होने के कारण पूरे वर्ष भर उगता एवं फलता-फूलता रहता है।

गाजरघास से होने वाले दुष्प्रभाव
गाजरघास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी रोग (उरमेटाइटिस), एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि जैसी बीमारियाँ हो जाती हैं। अत्यधिक प्रभाव होने पर मनुष्य की मृत्यु तक हो सकती है। पशुओं के लिए भी यह खरपतवार अत्याधिक विषाक्त होता है। गाजरधास के तेजी से फैलने के कारण अन्य उपयोगी वनस्पतियाँ खत्म होने लगती हैं। जैव विविधता के लिये गाजरधास एक बहुत बड़ा खतरा बनती जा रही है। इसके कारण फसलों की उत्पादकता बहुत कम हो जाती है।

नियंत्रण के उपाय

1. वर्षा ऋतु में गाजरघास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़कर कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट बनाना चाहिए।

2. घर के आस-पास एवं संरक्षित क्षेत्रों में गेंदे के पौधे लगाकर गाजरघास के फैलाव व वृद्धि को रोका जा सकता है।

3. अक्टूबर-नवम्बर में अकृषित क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मक पीधे जैसे चकौड़ा (कैसिया सिरसिया या कैसिया तोरा) के बीज एकत्रित कर उन्हें फरवरी-मार्च में छिड़क देना चाहिये। यह वनस्पतियां गाजरधारा की वृद्धि एवं विकास को रोकती हैं।

4. वर्षा आापारित क्षेत्रों में शीघ्र बढ़ने वाली फसलें जैसे ढेंचा, ज्वार, बाजरा, मक्काआदि की फसले लेनी चाहिए।

5. अकृषित क्षेत्रों में शाकनाशी रसायन जैसे ग्लायफोसेट 1.0-1.5 प्रतिशत यामेट्रीब्यूजिन 0.3-0.5 प्रतिशत घोल का फूल आने के पहले छिड़काव करने से गाजरघास नष्ट हो जाती है।

6. ग्रीष्म एवं शरद ऋतु में अकृषित क्षेत्रों में अंकुरित होने पर कुछ बढ़वार करने के बाद पानी न मिलने के कारण इनका विकास नहीं हो पाता है पर वर्षा होने पर यही पौधे शीघ्र बढ़कर बीजों का उत्पादन कर देते हैं। अतः ऐसे समय इन्हें शाकनाशियों द्वारा नष्ट करना चाहिये।

7. फसलों में गाजरघास को रसायनिक विधि द्वारा नियंत्रित करने के लिये खरपतवार वैज्ञानिक की सलाह अवश्य लें।

8. मेक्सिकन बीटल (जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा) नामक कीट को वर्षा ऋतु में गाजरघास पर छोड़ना चाहिए।

9.जगह-जगह संगोष्ठिया कर लोगों को गाजरधारा के दुष्प्रभाव एवं नियंत्रण के बारे में जानकारी देकर उन्हें जागरूक करें।