डॉ. साक्षी बजाज, डॉ. विवेक कुमार सिंघल, डॉ. आदित्य सिरमौर, डॉ. गजेन्द्र सिंह तोमर और डॉ. अनुराग
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविधालय रायपुर (छत्तीसगढ़)

अजोला जल की सतह पर तैरने वाला एक जलीय फर्न है जिसकी पत्तियों की कैविटी में नीलहरित शैवाल सहजीवी के रूप में विद्यमान होता है। इस नील हरित शैवाल को एनाबिना अजोली के नाम से जाना जाता है जो कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके अजोला को नाइट्रोजन प्रदान करता है। इससे अजोला में प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है एवं बदले में अजोला इसे वृद्धि के लिये आवश्यक कार्बन एवं वातावरण प्रदान करता है। अजोला का विभाजन काफी तेजी से होता है तथा अनुकूल वातावरण मिलने पर यह 3-5 दिनो में अपने जैवभार को दोगुना करने की क्षमता रखता है। इसकी अजोला पिन्नाटा प्रजाति अधिक उपयुक्त एवं लाभदायक होती है जो मुख्यत: जल की सतह पर तैरते हुए दिखाई देती है। इसका उपयोग पशु आहार के रूप में गाय भैंस बकरी भेड़ शुकर मछली और मुर्गियों आदि के लिये किया जाता है। इसमे प्रोटीन खनिज लवण अमीनो अम्ल विटामिन 'ए' विटामिन 'बी' तथा बीटा कैरोटीन आदि प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।

अजोला वृद्धि के लिये उपयुक्त जलवायु
प्राकृतिक रूप से यह उष्ण एवं गर्म उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों का पौधा है जो खाइ‌यों तालाबों आद्र भूमि में पाया जाता है। आमतौर पर आंशिक छायावाली जगह जहां 25 से 50 प्रतिशत सूर्य का प्रकाश आता हो अजोला की बढ़वार और प्रकाश संश्लेषण के लिये सर्वोतम मानी जाती है। इसको अच्छी वृद्धि के लिये पानी की गहराई 10-12 से.मी. रखना अति आवश्यक हो जाता है इसकी अधिक बढवार के लिये तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस आपेक्षिक आर्दता 80-85 प्रतिशत और पानी का पी-एचमान 5-7.2 उपयुक्त माना जाता है। इसकी वृद्धि एवं विकास के लिये सभी अनिवार्य पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें फॉस्फोरस की भूमिका अहम होती है एवं पानी में फॉस्फोरस का स्तर 20 पीपीएम तक बनाए रखना चाहिए।

अजोला उत्पादन तकनीक
कम गहरी क्यारी अजोला के उत्पादन के लिये उपयुक्त होती है। अजोला उत्पादन की प्रक्रिया निम्नलिखित है:

स्थान का चयन
अजोला उत्पादन के लिये स्थान का चयन घर के आसपास अनुपयोगी पड़ी भूमि पर करना चाहिए ताकि क्यारी की नियमित रूप से निगरानी एवं रखरखाव हो सके। भूमि का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जहां क्यारी का निर्माण करना है वहां की भूमि का स्तर ऊचा होना चाहिए ताकि वर्षा का पानी या अन्य किसीप्रकार का गन्दा पानी क्यारी में न आ सके।नियमित रूप से पानी की आपूर्ति के लिये पास में एक अच्छे जल स्रोत का होना अति आवश्यक है। पानी के वाष्पीकरण को कम करने के साथ-साथ अजोला की अधिक वृद्धि और विकास के लिये आंशिक छायां वाले स्थान का चयन करना चाहिए।

क्यारी का आकार
क्यारी का आकार पशुओं की संख्या आवश्यक आहार की मात्रा और संसाधनों की उपलब्धता (पानी भूमि और श्रमिक) पर निर्भर करता है। मुख्यतः 3 मीटर लंबी 1 मीटर चौड़ी और 0.2 मीटर गहरी क्यारी से प्रतिदिन 0.8 से 10 कि.ग्रा. ताजा अजोला का उत्पादन किया जा सकता है।



क्यारी निर्माण और अजोला कल्चर
अजोला को भूमि की सतह के ऊपर या नीचे बनी कच्ची या इंटों सीमेंट एवं कंक्रीट से बनी पक्की क्यारी में आसानी से उगाया जा सकता है। आजकल बाजार में विभिन्न आकार की उच्च घनत्व वाली पॉलीथीन से बनी अजोला उत्पादन क्यारी भीउपलब्ध है। सर्वप्रथम चयनित स्थान पर भूमि के अन्दर 3 मीटर लंबी 1 मीटर चौड़ी और 0.2 मीटर गहरी क्यारी की खुदाई करें। इसमें एक समान जल स्तर बनाए रखने के लिये सभी किनारों को समान रूप से समतल कर लेना चाहिए। कच्ची क्यारी से पानी के रिसाव को रोकने के लिये इसको प्लास्टिक शीट (सिल्पालीन शीट जो पराबैगनी किरणरोधी है) द्वारा ढक दें। क्यारी के किनारों से प्लास्टिक शीट को पत्थरों या इंटों द्वारा अच्छी तरह दवाकर सुरक्षित कर देना चाहिए। पक्की क्यारी में प्लास्टिक शीट बिछाने की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बाद इसके अंदर प्लास्टिक शीट के ऊपर 10-15 कि.ग्रा. छनी हुई उपजाऊ मिट्टी को समान रूप से फैला दें तथा क्यारी में 10-12 सें.मी. तक पानी से भर देना चाहिए। इसके बाद गाय का गोबर 2 कि.ग्रा. एवं 30 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) को पानी में घोलकर क्यारी में डालकर अच्छी तरह मिला देना चाहिए। कुछ घंटों बाद लगभग 1 कि.ग्रा. ताजा और शुद्ध अजोला पिन्नाटा का कल्चर क्यारी में समान रूप से फैला देना चाहिए। अंत में आंशिक छाया बनाए रखने पत्तियों एवं अन्य कचरे को इसमें गिरने से रोकने के लिये इसको जालीनुमा शीट (शेड नेट)द्वारा ढक देना चाहिए।

क्यारी का रखरखाव
लगभग 20 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) और 1 कि.ग्रा. गोबर को पानी में घोलकर 8-10 दिनों में एक बार क्यारी में डालकर अच्छी तरह मिला देना चाहिए जिससे अजोला तेजी से विकसित होता है। क्यारी से कूड़ा-कचरा और जलीय खरपतवारों को नियमित रूप से साफ करते रहना चाहिए। यदि क्यारी में अजोला कीट या रोग से ग्रसित है तो इसे साफ कर देना चाहिए एवं ताजा और शुद्ध अजोला कल्चर डालकर खेती करनी चाहिए। प्रत्येक छह महीने बाद क्यारी को खाली कर देना चाहिए और ताजा अजोला कल्चर और मिट्टी के साथ खेती शुरू करनी चाहिए।

कटाई एवं पशुओं को खिलाना
अजोला की तीव्र वृद्धि और गुणन दर के कारण पूरी क्यारी 12-15 दिनों में एक मोटी हरी परत द्वारा भर जाती है। यह हरी चटाई के रूप में दिखाई देती है। अजोला द्वारा क्यारी भरने की दर प्रारंम्भ में डाले गए अजोला कल्चर की मात्रा पानी में पोषक तत्वों की मात्रा और जलवायु कीस्थिति पर निर्भर करती है। 12-15 दिनों बाद 800-1000 ग्राम ताजा अजोला प्रतिदिन क्यारी की सतह से प्राप्त किया जा सकता है। अजोला को पानी की सतह से स्कूप नेट या प्लास्टिक की छलनी द्वारा हटाने के बाद इसे साफ ताजे पानी से अच्छी तरह से धो लेना चाहिए जिससे कूड़ा-कचरा एवं गोबर की गंध दूर हो जाती है। इसके बाद यह पशुओं और पोल्ट्री पशुओं को खिलाने के लिये तैयार है। इसको पशु आहार के रूप में गाय भैंस बकरी भेड़ शूकर मछली और मुर्गियों के लिये उपयोग में लाया जाता है। ताजा अजोला को सीधे या सांद्र फीड के साथ मिलाकर खिलाया जा सकता है। यदि अजोला का उत्पादन अधिक हो तो इसे छाया में सुखाकर भविष्य में उपयोग के लिये सुरक्षित रख सकते हैं।

अजोला उत्पादन में सावधानियां:-
  • अजोला उत्पादन के लिये आशिक छापावाली जगह का चयन करें जहां 25 में 50 प्रतिशत सूर्य का प्रकारा आता हो।
  • कच्ची क्यारी के अन्दर से नुकीले पत्थर पेड़ की जड़ों और कांटों को भली-भांति साफ कर लेना चाहिए। ये प्लास्टिक शीट में छेद कर देते हैं जिससे पानी का रिसाव होता रहता है तथा यह सुनिश्चित कर लें कि प्रयोग में लो जाने वालोप्लास्टिक शोट में कोई छेद या दरार न हो।
  • अजोला उत्पादन अवधिके दौरान क्यारी में नियमित रूप से पानी का समान स्तर (10-12 सें.मी.) बनाएरखना चाहिए।
  • पहली बार अजोला कल्चर किसी प्रतिष्ठित संस्थान से क्रय करना चाहिए।
  • अजोला की तेज बढ़वार तथा अधिक उत्पादन करने के लिये प्रतिदिन 200-250ग्राम प्रतिवर्ग मीटर की दर से उपयोग हेतु इसे निकाल लेना चाहिए।
  • क्यारी में समय समय पर गोबर व सिंगल सुपर फॉस्फेट डालते रहना चाहिएजिससे अजोला फर्न तीव्र गति से विकसित होता रहे।
  • प्रत्येक 10-15 दिनों बाद क्यारी में से 25-30 प्रतिशत पुराने पानी को ताजा पानी में बदल देना चाहिए जिससे नाइट्रोजन के संग्रहण को कम किया जा सकता है।
  • प्रत्येक माह क्यारी में से 5 कि.ग्रा. पुरानी मिट्टी को ताजो मिट्टी से बदल देनाचाहिये। ऐसा करने से क्यारी के जल में नाइट्रोजन को अधिकता तथा अन्य पोषक तत्वों की कमी को बराबर किया जा सकता है।