चंचल पोर्ते, पीएच॰ डी॰ स्कॉलर, सस्य विज्ञान विभाग
डॉ. एस के झा, प्रमुख वैज्ञानिक एवं प्राध्यापक सस्य विज्ञान विभाग
डॉ. सुनील वर्मा, सहा. प्राध्यापक अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग
अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (चारा फसलें एवं उपयोगिता) इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, (छ.ग.)

परिचय
दीनानाथ घास, पोएसी कुल/ घास कुल का एकवर्षीय तथा बहुवर्षीय पौधा है। इसमें एकवर्षीय चारे की खेती की जाती है जबकि, बहुवर्षीय चारे को चरागाह में उगाया जाता है। यह घास विपरीत परिस्थितियों एवं खराब व्यवस्था में भी पैदा होता है, इसलिए इसे ‘दीनानाथ घास’ कहते हैं, एवं गरीबों का दोस्त भी कहलाता है। यह मुख्यतः शुष्क स्थल, घास के मैदान, पड़ती भूमि एवं सड़क के किनारे मेड़ों पर पायी जाती है। यह शीघ्र वृद्धधी करने वाली एवं अधिक हरा चारा उपज देने में सक्षम होती है। यह फसल उच्च पोषकता वाली होने के साथ- साथ चरागाह हेतु उपयुक्त मानी जाती है। इस घास में अत्यधिक बीजोत्पादन की क्षमता होती है। यह फसल सूखा सहन के साथ-साथ गर्म जलवायु को भी सहन करने में सक्षम है। यह मूलतः इथियोपिया देश का घास है जहां से इसका फैलाव अन्य देशों में हुआ है। इसे चरागाह में उगाकर पशुओं द्वारा चराई करवाई जा सकती है तथा हे बनाकर संरक्षित भी किया जा सकता है।

पोषक तत्व
दीनानाथ घास में सोडियम, पोटाश, स्फुर और कैल्सियम प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। अतः इससे पशुओं में स्थूल एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की आपूर्ति की जा सकती है। इसमें लगभग 6.5-7.5 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन, 70-75 प्रतिशत उदासीन डिटर्जेंट फाइबर, 45-50 प्रतिशत अम्ल डिटर्जेंट फाइबर, एवं 55-60 प्रतिशत शुष्क पदार्थ पाचनशक्ति सूचकांक (इन विट्रो ड्राई मैटर डाइजेस्टीबिलिटी), राख 18 प्रतिशत तक पाया जाता है।

उत्पत्ति एवं वितरण
यह उत्तर उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, दक्षिण अफ्रीका और एशिया (भारत, मलेशिया, फ़िलीपिन्स, थायलैंड), ऑस्ट्रेलिया, फ़िजी, यूनाइटेड स्टेट्स और ईथियोपिया की मूल घास हैΙ यह पश्चिम अफ्रीका और भारत में विशेष रूप से बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं उत्तर प्रदेश में व्यापक रूप से पाया जाता है।

जलवायु
चूंकि इसे 15- 38 डिग्री से. तापमान वाली गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है, यह वर्षा आधारित परिस्थितियों मे मानसून के मौसम मे उगाने के लिए सबसे उपयुक्त हैΙ यह 800-1250 मिमी. तक वर्षा वाले क्षेत्र में मे उगता है।

दीनानाथ घास की पहचान
इस घास की पहचान मुख्य रूप से इसकी विशिष्ठ आकृति से की जा सकती है-
  • इसके पौधे मे संयुक्त तना अत्यधिक कल्ला उत्पादन क्षमता एवं लंबी पत्तियाँ होती हैं, जो कि लंबे समय तक हरी बनी रहती हैं।
  • इसका तना खोखला एवं पत्ते सरल, सीधे, गुच्छों के रूप में होते हैं।
  • यह घने फूलों वाली होती हैं, इसके पुष्प पौधे की सबसे ऊपरी भाग पर गुलाबी तथा बैंगनी रंग लिए भूसे की तरह होते हैं लेकिन परिपक्व होने पर सफ़ेद व धूमिल हो जाते हैंΙ
  • फूलों में असंख्य आंतरिक बालियाँ होती हैं Ι
  • फूल की एक इकाई (स्पाइकलेट) की लंबाई आमतौर पर लगभग 4 मिमी लंबी होती हैΙ
  • पत्तियाँ रैखिक, नुकीली, आधार पर गोलाकार कम बाल वाली व चमकदार होती हैं, आकार 15-25 से.मी. से 45- 60 से.मी. लंबी होती हैं।
  • यह प्रत्येक वर्ष स्वयं गिरे हुए बीजो से पुनः उत्पन्न हो तेजी से फैलने लगते हैं तथा यह भारी मात्रा मे बीज उत्पादन करने में सक्षम होते हैंΙ

मृदा
अच्छी जलनिकासी वाली सभी प्रकार की मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है लेकिन, दोमट से लेकर बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त है। भारी चिकनी मिट्टी या बाढ़ या जल भराव की स्थिति मे इसकी बढ़वार नहीं होती, परंतु उचित जल निकासी और पर्याप्त उर्वरक देकर अनउपजाऊ भूमि पर भी उगाया जा सकता है।

भूमि की तैयारी
इसके लिए एक अच्छी तरह से तैयार नम बीज शैय्या की आवश्यकता होती है। इसके लिए सबसे पहले ठूँठों और जड़ों को हटा देना चाहिए। इसके बाद डिस्क हैरो या मोल्ड बोर्ड हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिए और 2 बार हैरो चलाना चाहिए। मानसून की शुरुआत के बाद साफ बीजों की बुवाई लाइनों में या छिड़काव विधि से करनी चाहिए।

दीनानाथ घास के प्रचलित किस्म

1. जवाहर पेन्नीसेटम-12
यह किस्म जवाहर लाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, मध्यप्रदेश से सन 1974 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश के कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए विकसित की गयी थी। यह एक बहुवर्षीय, लगभग 156 से.मी. ऊंचाई वाला, आधार की ओर अत्यधिक कंसेदार (30-35 कंसे प्रति पौधा), पत्तियाँ लंबी व चौड़ी, औसत पत्ती तना अनुपात 1.27 तथा दो कटाई के लिए उपयुक्त है। सालाना यह 550-600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा और 120-140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखा चारा देने में सक्षम है।

2. पूसा दीनानाथ घास
यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान परिसर, नई दिल्ली से सन 1983 में सभी राज्यों (केवल पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर जहां तापमान औसत से कम हो) के लिए विकसित की गयी थी। इसके पौधे सीधे, खड़े एवं ऊंचाई लगभग 200-225 से.मी. की होती है। तने गाढ़े हरे रंग के एवं बैंगनी रंग लिए होते हैं, फूल गुलाबी, लगभग 90-100 दिनों में पौधों के 50 प्रतिशत फूल खिल जाते हैं। यह एक वार्षिक घास है जो की सभी तरह की भूमि में उगाई जा सकती है। उत्तरी भारत में इसके खरीफ मे जबकि दक्षिणी भारत (जहां ठंड कम पड़ती है) में इसे वर्षभर उगाया जा सकता है। यह एक वर्षा आधारित फसल है जिसे सीमांत भूमि और वन क्षेत्रों मे भी लगाया जा सकता है। सालाना यह 600-700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा और 150-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखा चारा देने में सक्षम है।

3. बुंदेल दीनानाथ-1
पूरे भारतवर्ष मे उगाई जा सकने वाली यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान परिसर- भारतीय चारगाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झाँसी से 1987 में विकसित की गयी। यह बहुवर्षीय किस्म अत्यधिक कंसे पैदा करता है, इसकी लंबाई लगभग 107 से.मी. तक होती है। यह देर से पकने वाली घास है। इसका तना बैंगनी तथा पत्ते लंबे व मखमली होते हैं। पुष्पक्रम इकाई (स्पाइक) बड़े व लटकने वाले तथा उनमे लंबे बाल होते हैं। यह पत्ती धब्बा रोग एवं हेल्मिन्थोस्पोरियम के लिए प्रतिरोधी और लॉजिंग के लिए सहनशील है। सालाना यह 300-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा और 600-700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखा चारा देने में सक्षम है।

4. बुंदेल दीनानाथ-2
यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान परिसर- भारतीय चारगाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झाँसी से 1990 में पूरे भारतवर्ष के लिए विकसित की गयी। इसकी विशेषताएँ बुंदेल दीनानाथ-1 के समान ही है ।

5. सी.ओ.डी.-1 (टी.एन.डी.एन.-1)
यह मुख्यतः तमिल नाडु क्षेत्र के लिए तमिल नाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बटूर द्वारा 1997 मे विकसित की गयी थी। पौधे की ऊंचाई लगभग 190 से.मी. होती है, अत्यधिक कंसेदार (385 कंसे प्रति मी.), गांठों पर नीचे की ओर बैंगनी रंग होती है, जबकि ऊपर की ओर हरा होता है, पत्तियाँ रेशेदार होती हैं, ब्लूम अवस्था मे बालियाँ पीलापन लिए होती है और यह परिपक्वता के साथ भूरे रंग की होने लगती है । लगभग 70-75 दिनों मे 50 प्रतिशत फूल आ जाते हैं तथा सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होने पर इनसे 3-4 कटाई तक ली जा सकती है। सालाना यह 600-700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा और 120-140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखा चारा देने मे सक्षम है।

बीज की मात्रा एवं दूरी
छिड्काव विधि से बुवाई हेतु 4-5 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर एवं कतार बोनी के लिए 2.5 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। साथ ही यदि जड़दार पौधे से फसल लगानी हो तो 40,000 अंकुर (छः सप्ताह पुरानी) एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होती है। अतः इन्हे एक कुड़ में दो पौधे लगाने से चरागाह की बेहतर स्थापना में मदद मिलती है। इसके लिए कतार से कतार व पौधों से पौधों की दूरी 50 x 50 से.मी. होनी चाहिए।

बोने का समय
इसकी बुवाई का उपयुक्त समय जून माह के पहले पखवाड़े से लेकर जुलाई तक है। यदि सिंचाई की उत्तम व्यवस्था हो तब इसकी बोनी मार्च-अप्रैल में भी की जा सकती है।

खाद एवं उर्वरक
बुवाई के 15 दिन पहले 8-10 टन पूरी तरह सड़ी हुई खाद को खेत में डालकर अच्छी तरह मिला देना चाहिए। दीनानाथ घास की खेती के लिए 30 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर और 30 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। शेष नत्रजन का छिड़काव बुवाई के 45 दिन बाद देनी चाहिए। बाद के वर्षों में बारिश की बौछार आने पर 40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर एवं 20 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से घास के मैदान में छिड़काव किया जाता है।

सिंचाई
जैसा की यह एक वर्षा ऋतु की फसल है, इसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं है। लेकिन जब जड़ों मे पानी की कमी होती है तब सिंचाई करना अति महत्वपूर्ण हो जाता है। अक्टूबर- नवम्बर माह में फसल से अच्छी मात्रा में हरा चारा प्राप्त होता है अतः इस दौरान सिंचाई पर्याप्त रूप से करनी चाहिए व अधिक पानी होने पर जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए।

फसल चक्र
मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए निम्नलिखित फसल चक्र अपनाए जा सकते हैं –
  • दीनानाथ घास- बरसीम- सरसों
  • दीनानाथ घास- बरबट्टी- बरसीम- मक्का
  • दीनानाथ घास- बरबट्टी - जई- मक्का
  • दीनानाथ घास- बरबट्टी - लूसर्न- सरसों

खरपतवार नियंत्रण
शुरुआत मे घास की बढ़वार धीरे होती है, अतः इस समय खरपतवार नियंत्रण बहुत ही जरूरी है। चूंकि, दीनानाथ घास एक शीघ्र वृद्धि वाली घास है यह 40-45 दिन के बाद अन्य खरपतवारों की वृद्धि रोक देती है। इसलिए 25-30 दिन की अवस्था में खुरपी या वीडर कम मलचर से एक गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण के लिए आवश्यक होती है।

कीट नियंत्रण
इस घास मे कीट व्याधियों का ज्यादा प्रकोप नही देखा गया है।

कटाई
लगभग 70-75 दिनों मे यह पहले कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई भूमि से 10 से. मी. ऊपर से करनी चाहिए ताकि पौधे की पुनः बढ़वार हो सके। तत्पश्चात अन्य कटाइयाँ 40-45 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए। दीनानाथ घास की दो कटाई से काफी हरा चारा उपलब्ध हो जाता है। लेकिन सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होने पर तीन कटाई भी ले सकती है।

उपज
अच्छी खेती से औसतन 300-480 क्विंटल हरा चारा एवं 60-70 क्विंटल सूखा चारा प्रति हेक्टर प्राप्त हो जाता है।

बीज उत्पादन
दीनानाथ घास के बीज उत्पादन हेतु फसल को एक कटाई उपरांत छोड़ देना चाहिए ताकि स्वस्थ एवं भरे हुए बीजों का उत्पादन किया जा सके। लगभग 3- 4 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है।