डॉ. विवके कुमार सिंघल, डॉ. साक्षी बजाज, डॉ. आदित्य सिरमौर, कोमल चावला और डॉ. अनुराग
इंदिरागाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)
परिचय
केंचुओं की मदद से जैविक अवशिष्ट को खाद में परिवर्तित करने हेतु केंचुओं को नियंत्रित वातावरण में पाला जाता है। इस क्रिया को वर्मी कल्चर कहते हैं, केंचुओं द्वारा जैविक अवशिष्ट खाकर जो कास्ट निकलती है उसे एकत्रित रूप से वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम उर्वरक होता है।
वर्मी कम्पोस्ट में प्रयोग होने वाले प्रदार्थ
गोबर, गोबर गैस की स्लरी, सड़ी-पत्तिया, घरेलुकचरा, कृषि अवशेष, साग-सब्जी आदि।
केंचुआ
केंचुओं को कृषकों का मित्र कहा जाता है। यह ऑर्गैनिक पदार्थ, ह्यूमस व मिट्टी को मिश्रित कर जमीन के सभी पर तों में फैलाता है। केंचुआ मृदा को भुरभुरा बनाने में सहायक होता है, जिससे मृदा में वायु संचरण के साथ-साथ जल धारण क्षमता में भी वृद्धि होती है। केचुँए के पेट में जो रासायनिक क्रिया व सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया होती है, उससे भूमि में पाये जाने वाले नत्रजन, फॉस्फोरस, पोटाश व अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है। वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए सतही केंचुओं का उपयोग किया जाता है, जिन्हें एपीगेइक केंचुआ कहते है। ये 1 किलो केंचुए प्रतिदिन लगभग 4 से 5 किलो तक कचरा पचा सकते है। हमारे देश में केंचुओं के 2 प्रजातियां आइसिनिया फेटिडा और यूड्रीलस यूजैनी का उपयोग वर्मी कम्पोस्ट के निर्माण में किया जाता है।
वर्मी कम्पोस्ट निर्माण की विधि
- सर्वप्रथम ऐसे स्थान का चयन करें जिसमें उपयुक्त नमी एवं तापमान निर्धारित किया जा सके। यह स्थान छप्पर, स्थाई शेड या अस्थाई शेड भी हो सकता है।
- इसके पश्चात 10-12 फीट लंबा 3-5 फीट चौड़ा एवं 2.5 फीट ऊंचाई के टैंक का निर्माण किया जा सकता है। टैंक की लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊंचाई सुविधानुसार बड़ा/छोटा भी कर सकते है। टैंक की तली के पास बाहर की ओर जलनि का सहेतु एक छिद्र बनाकर बारीक जाली से ढ़क देवें जिससे खाद भरने के पश्चात वर्मीवाश भी एकत्र किया जा सकता है।
- अब इन टंकियों पर वानस्पतिक कचरे का 0.5 फीट सतह बिछा देवें एवं उसमें गोबर का घोल डाल देवें ताकि यह कचरा आसानी से सड़ सके। इस परत के ऊपर 15-20 दिन पुराना पका गोबर डाल देवें, इसी प्रक्रिया को अपनाकर टैंक को पुरी तरह भर लेवें एवं इसमें रोज पानी का छिड़काव करें।
- अब ढ़ेर को हटाकर उसमें 1000 केंचुआ (1 किलों ग्राम) प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से छोड़ने चाहिए एवं पुनः पिट को ढ़ंक देवें तथा पिट की ऊपरी सतह पर तापमान नियंत्रित करने के लिए पुराने बोरे या घास-फुस का उपयोग करें।
- टंकियों में नियमित रूप से पानी का छिड़काव करते रहें। जिससे पर्याप्त नमी (30-35 प्रतिशत) बनी रहें।
- टैंक में सदा अंधेरा बना रहना चाहिए क्योंकि अंधेरे में केंचुए ज्यादा क्रियाशील होते हैं।
- उपरोक्त क्रियाएँ विधिवत कर लेने पर 35-40 दिनों पर उपरी सतह परचाय की पत्ती के समान केंचुओं द्वारा विसर्जित कास्टिंग दिखाई देने लगती है। इस तरह अगले 35-40 दिनों यानी 70-80 दिनों के उपरांत सारा कचरा कांस्टिंग (कम्पोस्ट) के रूप में परिवर्तित हो जाएगा।
- अब 3-4 दिनों तक पानी का छिड़काव बंद कर दें तथा तैयार वर्मी कम्पोस्ट को टैंक से बाहर निकालकर छायादार स्थान पर पॉलीथीन शीट पर ढ़ेर लगा दें। दो-तीन घंटे के उपरान्त केंचुए पॉलीथीन के फर्श पर ढ़ेर के नीचे चले जायेंगे। इस स्थिति में वर्मी कम्पोस्ट को अलग करके इकट्ठे हुए केंचुओं को आगे वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाने के काम में लाया जा सकता है तथा अलग किये हुये कम्पोस्ट को 4-5 घंटे तक छाया में ही हवा लगाने के उपरांत 2 मी.मी. के जाली या पलना से चलाकर तैयार वर्मी कम्पोस्ट को सुरक्षित रख सकते है या उपयोग में ला सकते है।
केंचुआ खाद की विशेषताएँ
वर्मी कम्पोस्ट एक अच्छी किस्म की खाद है तथा साधारण कम्पोस्ट या गोबर की खाद से ज्यादा लाभदायक साबित हुई है। इसके प्रयोग करने में निम्नलिखित लाभ है।
- वर्मी कम्पोस्ट को भूमि में बिखेरने से भूमि भुरभुरी एवं उपजाऊ बनती है। इससे पौधों की जड़ों के लिये उचित वातावरण बनता है। जिससे उनका अच्छा विकास होता है।
- भूमि एक जैविक माध्यम है तथा इसमें अनेक जीवाणु होते हैं जो इसको जीवन्त बनाए रखते हैं इन जीवाणुओं को भोजन के रूप में कार्बन की आवश्यकता होती है। वर्मी कम्पोस्ट मृदा से कार्बनिक पदार्थों की वृद्धि करता है तथा भूमि में जैविक क्रियाओं को निरन्तरता प्रदान करता है।
- वर्मी कम्पोस्ट में आवश्यक पोषक तत्व प्रचुर व सन्तुलित मात्रा में होते हैं। जिससे पौधे सन्तुलित मात्रा में विभिन्न आवश्यक तत्व प्राप्त कर सकते हैं।
- वर्मी कम्पोस्ट के प्रयोग से मिट्टी भुरभुरी हो जाती है जिससे उसमें पोषक तत्व व जल संरक्षण की क्षमता बढ़ जाती है व हवा का आवागमन भी मिट्टी में ठीक रहता है।
- वर्मी कम्पोस्ट क्योंकि कूड़ा-करकट, गोबर व फसल अवशेषों से तैयार किया जाता है अतः गन्दगी में कमी करता है तथा पर्यावरण को सुरक्षित रखता है।
- वर्मी कम्पोस्ट टिकाऊ खेती के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है तथा यह जैविक खेती की दिशा में एक नया कदम है। इस प्रकार की प्रणाली प्राकृतिक प्रणाली और आधुनिक प्रणाली जो कि रासायनिक उर्वरकों पर आधारित है के बीच समन्वय और सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है इस खाद को तैयार करने में प्रक्रिया स्थापित हो जाने के बाद एक से डेढ़ माह का समय लगता है।
- प्रत्येक माह एक टन खाद प्राप्त करने हेतु 100 वर्ग फुट आकार की नर्सरी बेड पर्याप्त होती है।
- केचुँआ खाद की केवल 5 टन मात्रा प्रति हैक्टेयर आवश्यक है।
तालिका- 1 वर्मी कम्पोस्ट और
गोबर की खाद
में तुलना
क्र. |
मानक |
वर्मी कम्पोस्ट |
गोबर की खाद |
1. |
पीएच |
7-7.5 |
7.2-7.9 |
2. |
कुल नाइट्रोजन |
2.5-3.0प्रतिशत |
0.5-0.93 प्रतिशत |
3. |
फॉस्फोरस |
1.5-2.0 प्रतिशत |
1.0 प्रतिशत |
4. |
पोटैशियम |
1.5-2.0 प्रतिशत |
1.3 प्रतिशत |
5. |
उपयोग |
5 टन मात्रा प्रति हैक्टेयर |
10 टन मात्रा प्रति हैक्टेयर |
6. |
अन्य तत्व |
सोडियम आयरन जिंक मैंगनीज कॉपर और बोरान संतुलित मात्रा में उपस्थित होता है। |
सोडियम आयरन जिंक मैंगनीज कॉपर और बोरान कम मात्रा में उपस्थित होता है। |
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