निशी केशरी एवं के क्रांति केवीवीएस

मशरूम की विभिन्न प्रजातियों की खेती में लगभग 80 प्रतिशत बटन मशरूम उत्पादित किया जाता है क्योंकि इसकी खेती आसान है और थोड़े से जगह में या पॉलीथीन के थैले में भी की जा सकती है और इसी वजह से इसे सुदूर जगहों पर भी भेजा जा सकता है और इसकी बिक्री की जा सकती है। सामान्यतया मशरूम की खेती अक्टूबर माह से फरवरी-मार्च तक की जाती है। पूर्व में इसकी फसल मुख्यतः पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश में की जाती थी। लेकिन, अब बिहार में भी इसकी खेती बड़े पैमाने पर होने लगी है और यह गरीब तबके एंव ग्रामीण घरेलू महिलाओं के लिए आर्थिक संबल बन रही है क्योकि इसके लिए खेेत की जरूरत नहीं होती और थोड़े से खर्च में अधिक आमदनी ली जा सकती है बशर्ते इसकी देखभाल सुचारू रूप से की जाये। मशरूम की खेती में साफ-सफाई की बहुत आवश्यकता होती है अन्यथा इसमें कई प्रकार की बीमारियाँ लग जाती हैं तथा कीटों और सूत्रकृमि का आक्रमण हो जाता है।

सूत्रकृमि से होनेवाली बीमारियों की पहचान किसान नहीं कर पाते हैं क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। चूँकि मशरूम एक तरह का फफूँद है और फफूँद खानेवाले सूत्रकृमि यदि कम्पोस्ट में पहले से मौजूद हो तो मशरूम उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है क्योंकि अभी भी बहुत सारे कृषकगण कम्पोस्ट को पूरी तरह से असंक्रमित नहीं कर पाते हैं। फफूँदभक्षी सूत्रकृमि अक्सर इन कम्पोस्ट में ही पाये जाते हैं।

इसकी खेती में सबसे पहले कम्पोस्ट तैयार करना, मशरूम बीजों की बिजाई, केसिंग तथा मशरूम की तुड़ाई इत्यादि शामिल हैं। इसके उत्पादन के लिए पहले 21 दिनों तक 22-25 डिग्री से.ग्रे. तथा फल के लिए 14-18 डिग्री से.ग्रे. तापमान की जरूरत पड़ती है। बिहार में अक्सर वे किसान, जिनकी आमदनी कम है एवं जिनके पास खेती लायक जमीन नहीं होती, वे ही इसे अपना रहे हैं। हमारे यहाँ इसके लायक तापमान भी बहुत कम महीनों के लिए ही मिल पाता है। इस वजह से किसान उतनी सावधानियाँ नहीं बरत पाते हैं और बीमारियाँ लगने की आशंका रहती है।

बटन मशरूम के कम्पोस्ट में बहुत सारे सूक्ष्म जीव पाये जाते हैं जिनमें से कुछ इसके उत्पादन में सहायक हैं तो कुछ नुकसानदेह। इसमें पाये जाने वाले कुछ सूत्रकृमि फफूँदनाशक होते हैं जो सीधे-सीधे इनको अपना भोजन बनाते हैं। कुछ सूत्रकृमि स्वतंत्रजीवी होते हैं जो केवल जीवाणुओें पर अपना जीवन-चक्र चलाते हैं।

फफूँदभक्षी सूत्रकृमि:
फफूँदभक्षी सूत्रकृमि मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-एफेलेन्कस, एफेंलेन्क्वायडस और डाइटिलेन्कस। इनकी विशेषता है कि ये सूत्रकृमि बहृत ही छोटे होते हैं और इनके अंडे देने की क्षमता काफी अधिक होती है। एक मादा प्रति घंटे 3 अंडे देती है। इस कारण इनकी संख्या अचानक काफी तेजी से बढ़ जाती है और फलतः संक्रमण भी अधिक हो जाता है। इनमें कठिन वातावरण जैसे उच्च तापमान, नमी की कमी इत्यादि में भी जिंदा रहने की क्षमता होती है। इनका जीवन चक्र विभिन्न तापमान पर भी बहुत कम दिनों का होता है। सामान्यतया 25 डिग्री से.ग्रे. पर एक सप्ताह का जीवन चक्र होता है। मशरूम की खेती के समाप्त होने के समय मशरूममक्षी सूत्रकृमि सूखी अवस्था में एक जगह आ जाते हैं और एक तरह के रूई के आकार में आ जाते हैं। इस आकार में तकरीबन 40 से 45 हजार सूत्रकृमि जाये जाते है जो अगली फसल तक उसी अवस्था में पडे़ रहते हैं। अगली फसल लगते ही नमी की पर्याप्त मात्रा मिल जाती है और यह फिर से सक्रिय हो जाते हैं और नयी फसल पर आक्रमण करते हैं।

स्वतंत्रजीवी सूत्रकृमि :
कुछ स्वतंत्रजीवी सूत्रकृमि भी मशरूम के कम्पोस्ट में पाये जाते हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से मशरूम को नुकसान पहुॅचाते हैं। कम्पोस्ट का निर्जीवीकरण, कम्पोस्ट मंे जीवाणु की प्रजाति एवं जीवाणु तथा सूत्रकृमि के मशरूम कम्पोस्ट में प्रवेश का समय, ये सब स्वतंत्रजीवी सूत्रकृमि की संख्या को निर्धारित करते हैं। ये फफूँदमक्षी सूत्रकृमि की संख्या को कम कर देते हैं क्योंकि इनकी क्षमता उनसे ज्यादा होती है। इनका मुँह छोटा और चौड़ा होता है। इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है क्योंकि इनका जीवन-चक्र 3-4 दिनों का होता है और इनके अंडे देने की क्षमता बहुत अधिक होती है। इनके द्वारा उत्सर्जित पदार्थ कवक-जाल के फैलाव पर बुरा प्रभाव डालते हैं जिससे उत्पादन कम होती है। पूरी तरह निर्जीवीकृत कम्पोस्ट में सूत्रकृमि की संख्या बहुत कम हो जाती है और नमी की कमी की स्थिति में इनकी संख्या बढ़ती नहीं है। कवक-जाल कै फैलने के समय कम्पोस्ट का तापमान बढ़ जाता है और ऐसी स्थिति में बहुत सारे सूक्ष्मजीव मर जाते हैं। आंशिक निर्जीवीकरण की स्थिति में ये सूत्रकृमि कम्पोस्ट में रहनेवाले जीवाणुओं के ऊपर अपना जीवन-चक्र चलाते हैं। अगली बार खाने के समय ये जीवाणु वापस कम्पोस्ट में आ जाते हैं और तेजी से बढ़ते लगते हैं। इनकी वजह से मशरूम का उत्पादन सही समय पर नहीं होता, बटन का आकार खराब हो जाता है और उत्पादन कम होता है। मशरूम के गिल बैंगनी रंग के हो जाते हैं। ये बटन मशरूम के उपर काफी संख्या में पाये जाते हैं। क्योंकि बटन की सतह पर पर्याप्त मात्रा में नमी होती है। ये सूत्रकृमि कुछ एन्जाइम और विषकारी पदार्थ का स़्ा्राव करते हैं जिससे कम्पोस्ट का पी० एच० बढ़ जाता है यानि क्षारीय हो जाता है जिससे कवक-जाल का फैलाव सही से नहीं हो जाता है। फसल कम समय में ही खत्म हो जाती है तथा बटन की गुणवत्ता खराब हो जाती है। बटन का आकार बिगड़ा हुआ, छिला हुआ या किडनी की तरह हो जाता है। बटन सफेद रंग की जगह भूरे रंग के हो जाते हैं।

सूत्रकृमि संक्रमण कैसे और कब ?
मशरूम कम्पोस्ट में जब मशरूम के बीज मिलाये जाते हैं तो उसमें कुछ दिनों में मशरूम के जाल फैलने लगते हैं। इन जालों को सूत्रकृमि खाने लगते हैं और उसका विकास नहीं होने देते। मशरूम सूत्रकृमि का संक्रमण बेड की अपेक्षा पॉलीथीन थैले में ज्यादा होता हैै। सूत्रकृमि का संक्रमण मशरूम की खेती में बिजाई से लेकर तुड़ाई तक किसी भी अवस्था में हो सकता है लेकिन मुख्यतः ये कम्पोस्ट तैयार करने के समय या केसिंग के साथ फसल में आते हैं। कम्पोस्ट तैयार करने के समय गेहूँ या धान के डंठल, गोबर की खाद, मुर्गी या घोडे़ के अस्तबल से निकले खाद इत्यादि का इस्तेमाल किया जाता है जो सूत्रकृमि संक्रमण का कारण बन सकता है।

ज्यादातर किसान कम्पोस्ट की तैयारी खुले में करते हैं जिसपर मक्खियाँ और दूसरे कीट सूत्रकृमि को अपने साथ ले आते हैं और कम्पोस्ट में डाल देते हैं। कुछ सूत्रकृमि मशरूम की खेती समाप्त होने पर प्रसुप्तावस्था में चले जाते हैं जो हवा के साथ उड़कर कम्पोस्ट में मिल जाते हैं। सूत्रकृमि कम्पोस्ट में रहनेवाले दूसरे फफूँद पर अपना जीवनचक्र चलाने लगते हैं और अपनी प्रसुप्तावस्था से सक्रिय अवस्था में चले आते हैं। एक बार जो यंत्र, रैक या टैªª इस्तेमाल की गई हो उसे भी बिना असंक्रमित किये दूसरी बार इस्तेमाल में लाने पर भी सूत्रकृमि का संक्रमण हो जाता है। संक्रमित पानी का उपयोग भी दूसरा स्त्रोत है सूत्रकृमि संक्रमण का। कम्पोस्ट का पूरी तरह से निर्जीवीकरण न होना, लकड़ी के टेª और रैक इत्यादि का बार-बार इस्तेमाल होना, पशुओं के मल का आसपास होना जिनसे संक्रमण तेजी से फैलता है, मिट्टी की सतह पर कम्पोस्ट की तैयारी करना इत्यादि कारण भी हैं। दूधिया मशरूम में सफेद बटन मशरूम की अपेक्षा सूत्रकृमि का संक्रमण अधिक होता है

सूत्रकृमि संक्रमण के लक्षण:
  • मशरूम जाल का कम विकसित होना।
  • कभी-कभी मशरूम जाल बिल्कुल ही विकसित नहीं होती।
  • कम्पोस्ट के सतह का नीचे बैठना।
  • कम्पोस्ट का खराब होना और उसमें दुर्गंध का आना।
  • मशरूम बटन का आकार खराब होना।
  • मशरूम के गिल्स का बैंगनी रंग का हो जाना।
  • बटन मशरूम का रंग खराब हो जाना।
  • बटन मशरूम के डंठल का लंबा, पतला होना।
  • मशरूम का कम उत्पादन होना।
  • फसल का समय से पहले ही खत्म हो जाना।
  • फफूँदमक्षी सूत्रकृमि बटन मशरूम में 40 से 100 प्रतिशत की हानि पहुँचाते हैं जो मशरूम की प्रजाति, सूत्रकृमि की प्रजाति, सूत्रकृमि की संख्या एवं फसल की अवस्था पर निर्भर करता है।
  • बड़े आकार वाले बेड में छोटे पॉलीथीन वाले मशरूम की अपेक्षा अधिक संक्रमण होते हैं।
  • बीजाई के समय फफूँदमक्षी सूत्रकृमि की संख्या कितनी है, यह निर्धारित करता है कि बटन मशरूम में संक्रमण का प्रतिशत क्या होगा। इसलिए किसी सूत्रकृमि विशेषज्ञ द्वारा इसकी जाँच करा लेना उचित होता है।
  • समय के बाद बटन का लगना और कम लगना।
  • फसल उत्पादन कम होना।
  • कवक जाल का सफेद से भूरा होना।
  • बटन निकलते समय भूरा होना।
  • केसिंग के उपर सफेद कवक जाल का फैलना।
  • अगर केसिंग के समय संक्रमण हुआ हो तो पहली या दूसरी फसल तक अच्छी फसल होना और उसके बाद अचानक उत्पादन में भारी कमी।
  • स्वतंत्रजीवी सूत्रकृमि की संख्या अधिक हो तो ये जीवाणुजनित बीमारियों को बढ़ाने में मदद करते है क्योंकि ये जीवाणु को एक जगह से दूसरे जगह ले जाते हैं।

प्रबंधन:
मशरूम की खेती में सूत्रकृमि प्रबंधन का सबसे कारगर उपाय है जितना हो सके, सफाई का ख्याल रखना और संक्रमित वस्तु का इस्तेमाल न करना।मशरूम कम्पोस्ट का असंक्रमित होना मशरूम की खेती को काफी हद तक सफल बनाता है।

संक्रमण रोकने के उपाय:
  • मशरूम बेड को ईटों से बनाने पर हवा आने-जाने की पूरी व्यवस्था करना तथा कमरे को पूरी तरह से कीटों से बचाना। इसके लिए महीन छिद्रों वाले जाल की व्यवस्था की जा सकती है।
  • जहाँ कम्पोस्ट लगा रहे हों वह जगह ऊपरी स्थान पर होनी चाहिए, साफ-सुथरी होनी चाहिए एवं उस जगह को फार्मेलीन से असंक्रमित करना चाहिए ताकि सूत्रकृमि संक्रमण मिट्टी से कम्पोस्ट में कोई मिलावट न हो।
  • जितनी भी सामग्रियाँ कम्पोस्ट या केसिंग में मिलानी हो उसे पहले से असंक्रमित कर लेना चाहिए।
  • कम्पोस्ट तैयार करने वाले मनुष्य अपने हाथ और पैरों की सफाई अच्छे से करने के बाद मशरूम बेड में प्रवेश करें।
  • कम्पोस्ट रखनेवाले टोकरी, यंत्र इत्यादि को पूरी तरह से साफ करके ही इस्तेमाल में लायें और इस्तेमाल के बाद भी साफ कर लें। केसिंग को भी फार्मेलीन से असंक्रमित कर इस्तेमाल में लायें।
  • मशरूम की खेती खत्म होने के बाद बचे कम्पोस्ट को केसिंग के रूप में कभी भी इस्तेमाल न करंे। लकड़ी के टेª या रैक की जगह नयी पॉलीथीन के थैले को इस्तेमाल में लाएँ क्योंकि टेª या रैक के कोनों पर सूत्रकृमि की संख्या हो सकती है।
  • मशरूम खेती वाले कमरे में हवा आने-जाने का पर्याप्त साधन हो। सिंचाई वाले पानी मे किसी प्रकार का संक्रमण न हो।
  • कम्पोस्ट की तैयारी सीमेेंट वाली पक्की सतह पर होनी चाहिए जो 5ःफार्मेलीन द्वारा निर्जीवीकृत किया गया हो।
  • सीमेंट वाली पक्की सतह न हो तो पॉलीथीन जो 5ःफार्मेलीन द्वारा निर्जीवीकृत किया गया हो, उसे इस्तेमाल में लाना चाहिए।
  • मशरूम की खेती के दौरान साफ-सफाई का खास ख्याल रखना चाहिए।
  • मशरूम की खेती में काम करने वाले एवं आगंतुकों को काम करने से पहले 5ःफार्मेलीन से हाथ साफ करने चाहिए।
  • बीजाई के पहले कम्पोस्ट में 70 प्रतिशत नमी तथा पी० एच० 7-7.2 (यानि उदासीन) होना चाहिए।
  • कम्पोस्ट का निर्जीवीकरण पूरी तरह से उसके लिए बने उपकरण में होना चाहिए।
  • इस्तेमाल में आनेवाले औजारों को उबलते पानी से निर्जीवीकृत करना चाहिए।
  • मशरूम घर में कीटों का प्रवेश प्रतिबंधित होना चाहिए।
  • मशरूम की खेेती समाप्त होने के बाद बचे हुए कम्पोस्ट जिसे स्पेन्ट बोलते हैं, का इस्तेमाल अगली खेती में न कर खाद्य फसलों की खेती में खाद की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • कीटनाशी या फफूँदनाशी का कम-से-कम इस्तेमाल या ना के बराबर इस्तेमाल करें।
  • बीजाई के पहले कम्पोस्ट को 60 डिग्री से.ग्रे. तक भाप से उपचारित करें।
  • स्पेन्ट कम्पोस्ट को केसिंग में कभी भी इस्तेमाल न करें।
  • मशरूम घर को भी, अगर संभव हो तो 70 डिग्री से.ग्रे. पर वाष्प से उपचारित करें।
  • स्पेन्ट कम्पोस्ट को मशरूम घर से दूर निष्कासित करें।
  • अगली फसल लगाने से पहले मशरूम घर को पूरी तरह से उपचारित करें।
  • मशरूम घर में आवश्यकतानुसार उपयुक्त तापमान तथा नमी बनाये रखें।
  • केसिंग सामग्री का मिश्रण साफ सुथरी सतह पर करें तथा पर्याप्त निर्जीवीकरण की प्रक्रिया के बाद इस्तेमाल करें।
  • खल्लियों (नीम, करंज, सरसों, नारियल, अण्डी इत्यादि) का इस्तेमाल कम्पोस्ट बनाने के समय करें।
  • नीम बीजों की दवा का इस्तेमाल कम्पोस्ट पर छिड़काव करके किया जा सकता है। इसके लिए सूखे हुए नीम गिरी का पाउडर 40 ग्राम 1 लीटर पानी में मिलाकर रात भर रखंे। सुबह मलमल के कपड़े में छान लें, इस दवा का इस्तेमाल 75 मिली दवा 1 किलो कम्पोस्ट के लिए किया जाता है। इसका कोई बुरा प्रभाव मानव शरीर पर नहीं होता।
  • कम्पोस्ट की तैयारी के अंतिम चरण में उसमें तैलीय अखाद्य खल्लियाँ, एण्डोसल्फान या क्लोरपाइरीफॉस का इस्तेमाल करें।

पादपजनित सूत्रकृमिनाशी दवाओं का प्रयोगः
कुछ चुने हुए पौधों के उत्पाद मशरूम कम्पोस्ट की गुणवत्ता को बढ़ा देते हैं, मशरूम का उत्पादन बढ़ जाता है तथा ऐसे फफूँद की संख्या को कम्पोस्ट में बढ़ा देता है जो सूत्रकृमि को अपने जाल में फँसाकर मार देता है। ये पादपजनित दवायें मशरूम में रोग पैदा करने वाले फफूँदों का भी नाश करती हैं। सूत्रकृमि इन दवाओं के विषैलेपन से तथा इनकी सड़न से भी मर जाते हैं। इन दवाओं में नीम मे पत्तों का पाउडर, नीम बीजों, करंज, नारियल, अण्डी और मूँगफली की खल्लियाँ, सूत्रकृमि नियंत्रण में कारगर साबित हुई हैं।
  • नीम बीज के पाउडर को पानी में मिलाकर, छानकर 75 मिली प्रति किलो कम्पोस्ट की दर से इस्तेमाल करने पर अच्छी फलन मिलती है।
  • केसिंग को असंक्रमित करने के लिए केसिंग सामग्री को अच्छी तरह सुखाकर उसे 2 प्रतिशत नीम बीज पाउडर के घोल में या अचूक (नीम की दवा) के घोल से पूरी तरह भिंगाकर इस्तेमाल करना चाहिए।
  • मशरूम बीज को कम्पोस्ट में मिलाते समय 2 प्रतिशत नीम बीज पाउडर के घोल का छिड़काव करने से भी अच्छी उपज मिलती है। इस घोल का मशरूम के उत्पादन पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है।
  • नीम के पत्तों का 16 ग्राम प्रति किलो कम्पोस्ट की दर से तथा नीम की खल्ली 20 ग्राम प्रति 2 किलो की दर से इस्तेमाल करने पर बटन की संख्या में वृद्वि होती है और उत्पादन भी बढ़ता है।
  • नीम की खल्ली कम्पोस्ट में मौजूद नमी के कारण विखंडित होती है और इस प्रक्रिया में बहुत प्रकार के सूत्रकृमिनाशी रसायनों का स्ताव होता है जिससे सूत्रकृमि मर जाते है।
  • नीम की खल्ली में 5-7 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है जिससे कम्पोस्ट की गुणवत्ता अच्छी होती है
  • नीम पत्तों के सड़ने की प्रक्रिया में कम्पोस्ट का तापमान बढ़ जाता है जिससे वैसे सूक्ष्मजीवों की संख्या कम्पोस्ट में बढ़ जाती है जिससे कवक जाल तेजी से फैलता है।
  • नीम पत्तों द्वारा उत्सर्जित रासायनिक पदार्थ सूत्रकृमियों की वृद्वि को नुकसान पहुँचाते है।

रासायनिक दवाओं द्वारा नियंत्रण:
सामान्यता मशरूम की खेती में रासायनिक दवाओं का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए क्योंकि मशरूम की तुड़ाई तकरीबन प्रतिदिन होती है और दवाओं का बुरा असर उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर पड़ सकता है। मशरूम रासायनिक दवाओं के प्रति काफी संवेदनशील होता है। ये दवाएं मशरूम के ऊपर गलत प्रभाव डाल सकती हैं। मशरूम बिजाई के बाद कम्पोस्ट को बार-बार न छुएँ। इसलिए कोई भी उपचार करना हो तो बिजाई से पहले या केसिंग के समय करें।