नेहा गावड़े
मृदा विज्ञान एवं रायायनिक शास्त्र विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)

वर्मीवॉश 
वर्मीवॉश घर में बनाने या निर्मित करने के लिए तीन पुराने मिट्टी के मटके लेते है उनमें से दो मटको की तली में छिद्र वाला मटका नीचे रखते है तथा छिद्र किये हुए मटकों को उसके ऊपर रखते है। सबसे ऊपर वाले मटके में पानी, बीच वाले मटके में जीवित केंचुआ एवं फिल्टर सामग्री (फिल्टर पेपर-कोयला-रेत) रखते है। 

ऊपर मटके से पानी वर्म के ऊपर गिरता है तो एक विशेष प्रकार का द्रव (इन्जाइम) निकलता है जो पानी के साथ घुलकर, छनता हुआ नीचे के मटके में एकत्रित होता है जिसे वर्मीवॉश कहते है। इस प्रकार प्राप्त वर्मीवॉश के बराबर बाजार में कोई भी वर्धक उपलब्ध नहीं होता है। फसल वृद्धि के लिए इस वर्मीवॉश को 100 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिश्रण कर स्प्रे करना चाहिए जिससे फसल की अच्छी बढवार होती है।

संजीवनी खाद
10 किलोग्राम गाय का गोबर, 10 लीटर गाय का मूत्र, 250 ग्राम गाय का घी, 500 ग्राम शहद मिलाकर चार दिन रखने के बाद बरगद के पेड़ के नीचे से 10 किलोग्राम मिट्टी में मिलाकर बीज को 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित किया जाता है।

अमृत पानी
10 किलोग्राम गाय का गोबर तथा 10 लीटर गो मूत्र में 500 ग्राम चांवल की मांड के मिश्रण को बड़े मटके में 48 घंटे के लिए रखा जाता है। उसके बाद मटके में प्रत्येक बार 5 लीटर पानी में तैयार मिश्रण को मिलाकर 20 दिन की फसल पर छिड़काव किया जाता है, जिससे पौधे की बढ़वार में वृ़िद्ध होती है।

मटका खाद
10 किलोग्राम गाय का गोबर 10 लीटर गोमूत्र में 500 ग्राम चांवल की मांड के मिश्रण को बढ़े मटके में 48 घंटे के लिए रखा जाता है। उसके बाद मटके में प्रत्येक 5 लीटर पानी निकालने पर तुरंत 5 लीटर पानी को पुनः मटके में डाल कर रखें। 100 मि.ली. प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करने से मटका खाद सभी प्रकार के फसलों में लाभकारी होता है। उक्त मटका खाद तीन महीने तक उपयोग में लाया जाता है।