उमा, एम.एस.सी. (उधानिकी) 
सब्जीविज्ञान कृषि महाविद्यालय रायपुर (छ.ग.)
टोसन कुमार साहू, एम. एस. सी. (कृषि) 
सस्यविज्ञान शहीद गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र जगदलपुर (छ.ग.)

चुकंदर एक कंदवर्गीय फसल है जिसका उपयोग फल सब्जी और सलाद के रूप मे किया जाता है। चुकंदर औषधीय गुणों से परिपूर्ण है इसलिए इसका उपयोग कई तरह के रोगों के इलाज में भी किया जाता है. साथ ही इससे कई तरह की आयुर्वेदिक दवाइयां भी बनाई जाती हैं इसलिए बाजार में इसकी मांग महेशा बनी रहती है चुकंदर स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है चुकंदर में आयरन भरपूर में मात्रा पाया जाता है इसके सेवन से शरीर में खून की मात्रा बढ़ती है चुकंदर में फाइबर समेत विटामिन ए और सी से भरपूर चुकंदर अपच कब्ज पित्ताशय विकारों कैंसर हृदय रोग बवासीर और गुर्दे के विकारों के इलाज में फायदेमंद होता है।

चुकन्दर की खेती हेतु उपयुक्त जलवायु एवं भूमि
चुकंदर की फसल को उगाने के लिये ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। देश के अधिकांश भागों में सितंबर व अक्टूबर से इसकी बुवाई शुरू हो जाती है। इसके अंकुरण के लिए 12-16 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान अनुकूल होता है। चुकन्दर के पौधों की अच्छी वृद्धि एवं बढ़वार के लिए 20-22 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त रहता है। चुकन्दर की खेतीके लिए बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। खेत में उचितजल निकास का प्रबन्ध होना आवश्यक है। उपयुक्त मृदा का pH मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए।

चुकंदर की फसल के लिए खेत की तैयारी
चुकंदर की खेती करने से पहले खेत को कल्टीवेटर रोटी वेटर के माध्यम से एक बार खेत की गहरी जुताई करें इसके बाद खेती की 2-3 हल्की जुताई करने के बाद ही बीजों की बुवाई करें।

चुकंदर की किस्में 
1. क्रिम सनग्लोब
यह किस्म सबसे अधिक पैदावार वाली है। इस पौधे में चुकंदर चपटा और गहरे लाल रंग का होता है। इसके पत्ते हरे रंग के होते हैं जिनमें कहीं-कहीं मरून रंग का शेड भी होता है। क्रिम सनग्लोब का अंदरूनी भाग भी गाढ़ा लाल होता है।

2. अर्लीवंडर
ये किस्म चपटी और चिकनी होती है। इसकी फसल तैयार होने में 55 से 60 दिन तक का समय लगता है। इसका ऊपरी भाग हरे पत्तों और लाल डंडियों से भरा होता है।

3. एम. एस. एच. – 102
इस किस्म के पौधों को तैयार होने में तीन महीने का समय लगता है। यह चुकंदर की अधिक पैदावार देने वाली किस्म है जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 क्विंटल का उत्पादन करती है ।



चुकन्दर में बीज की मात्रा एवं बीजोपचार एक हेक्टेयर की बुवाई के लिए 6 से 7 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज की बुवाई 2 से 3 सेमी. गहराई पर बोना चाहिए। चुकन्दर की फसल उगाने के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45-60 सेमी. व पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 से मी रखा जाता है। साथ ही खेतों की हल्की सिंचाई की जानी चाहिए। ऐसा भी पाया गया है कि कुछ किसान बीजों को बुवाई से पहले 12 घण्टे तक पानी में भिंगाकर रखते हैं। ऐसा करने से पौधों की उत्पादकता बड़ती है तथा अंकुरण जल्दी आता है। चुकन्दर के एक किग्रा. बीज को उपचारित करने के लिए 2 ग्राम थायरम की मात्रा पर्याप्त रहती है।

बुवाई की विधियां
मेड़ विधि– बुवाई की इस विधि में मेड़ बनाई जाती है। मेड़ों की दूरी लगभग 50 सेमी. होनी चाहिए। चुकंदर के बीज को 2 से 3 सेमी. गढ़े में उगाया जाता है। चुकंदर की खेती के लिए बीज इस तरह उगाए जाते हैं के पौधों को दूरी 8 से 10 सेमी रखा जाता है।

छिटकवा विधि– बुवाई की इस विधि में खेत में अलग-अलग क्यारियां बनाकर उसमें बीजों का छिड़काव कर बुवाई की जाती है।

चुकंदर के खेत की सिंचाई
चुकंदर के खेत की पहली सिंचाई बीज रोपण के बाद की जाती है। दूसरी बार खेत की सिंचाई निराई गुड़ाई के बाद की जाती है। चुकंदर एक रबी फसल है यानी सितंबर से मार्च के बीच की फसल। इसलिए इसमें ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती। खेत की दोनों सिंचाइयो में 20 से 25 दिन का अंतराल होना चाहिए। अगर बारिश या नमी की कमी हो तो खेत में दस दिन के अंतराल में सिंचाई करना सही रहता है। ध्यान रहे खेत में पानी जमान हो। इससे फसल सड़ने का खतरा रहता है।

चुकन्दर की खेती के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक
चुकन्दर की खेती के लिए इसकी बुवाई से एक माह पूर्व 30-40 क्विटल प्रति हैक्टेयर गोबर की खाद खेत मे फैला देना चाहिए।

इस फसल की अच्छी पैदावार लेने के लिए 70 किग्रा. नाइट्रोजन 110 किग्रा. फास्फोरस व 70 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से खेत मे डालना करना चाहिए। मृदा परीक्षण के पश्चात् ही पोषक तत्वों की मात्रा का निर्धारण करना चाहिए। उपरोक्त नाइट्रोजन का आधामात्रा तथाफास्फोरस व पोटाश बुवाई के समय ही प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा फसल की बुवाई के लगभग 50 दिनों बाद विरलीकरण की क्रिया के बाद प्रयोग करनी चाहिए।

चुकन्दर में पौधों की छटाई
चुकन्दर के प्रत्येक बीज के बुवाई के एक माह पश्चा धों की छटाई करना जिससे प्रति इकाई क्षेत्रफल में पौधों की संख्या बहुत अधिक होने की सम्भावना रहती है। पौधों की छटाई करना ही विरलीकरण कहलाता है। चुकन्दर के एक हैक्टेयर खेत में पौधों की संख्या 70-75 हजार रखी जाती है।

चुकन्दर की फसल पर मिट्टी चढ़ाना
पौधों के कुछ बड़ा होने पर कन्द की अच्छी वृद्धिएवंविकासके लिए मिट्टी चढ़ाने का कार्य किया जाता है। अक्टूबर माह में बोई गईफसल के लिए मिट्टी चढ़ाने का कार्य दिसम्बर माह का समय उपयुक्त होता है। मिट्टी चढ़ाने से चुकन्दर की फसल के कन्द काआकारबड़ाहोजाताहैं जिससे उपज में वृद्धि होती है।

चुकंदर के खेत में रोग और निदान

पत्तियों का धब्बा रोग
इस रोग से पत्तियों पर धब्बे जैसे हो जाते हैं बाद में गोल छेद बनकर पत्ती गल जाती है। नियंत्रण के लिए फफूंदनाशक जैसे डाइथेनएम- 45 या बाविस्टीन के 1:1 घोल का छिड़काव 15 से 20 दिन के अंतर पर करने से आक्रमण रुक जाता है।

कीट आक्रमण
चुकंदर के खेत में कीट का आक्रमण भी हो सकता है। चूंकि चुकंदर के खेत में पत्तों की मात्रा अधिक होती है तो कीट रोग का खतरा भी अधिक होता है। कीट पत्तियों को खाकर उन्हे नष्ट कर देते हैं। इससे फसल पर भी असर पड़ता है। मेलाथियान का छिड़काव करके कीट आक्रमण बचा सकते हैं।

चुकन्दर की फसल की कटाई
अक्टूबर माह में बोई गई फसल को अप्रैल माहके प्रथम सप्ताहतक कटाई के लिए तैयार हो जाती है। चुकंदर की कटाई तब की जाती है जब उनका व्यास 3-5 सेमी हो जाता है।कटाई से 4-5 दिन पूर्व खेत मे हल्की सिंचाई करनी चाहिए जिससे खेत में पर्याप्त मात्रा मे नमी होने पर चुकन्दर के कन्दों को सरलतापूर्वक मृदा से निकाला जा सकता है।

औसत उत्पादन
चुकंदर की पैदावार 25-30 टनप्रति हेक्टेयर के बीच हो सकती है। पैदावार बीज के चुनाव मौसम एवं मिट्टी के प्रकृति पर निर्भर करता है।