डॉ. हरेन्द्र कुमार (सस्य विज्ञान विभाग)
चन्द्रकला (कृषि अर्थशास्त्र विभाग)

हमारे देश की कृषि का अधिकांश हिस्सा मानसून पर आधारित है। वर्षा पर आधारित कृषि को रैनफेड कृषि के नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, और केरल ऐसे राज्य हैं जहाँ प्रतिवर्ष अधिक वर्षा होती है। इनमें से मध्यप्रदेश, झारखण्ड, तथा उड़ीसा के कुछ भागों और विशेषकर छत्तीसगढ़ में ब्यासी या बियासी विधि से एक बड़े पैमाने में धान की खेती की जाती है।

बियासी विधि - बियासी अगस्त के महीने में जब धान के पौधे 25-30 से.मी. की लंबाई के होते हैं और खेतों में पर्याप्त पानी भरा होता है तब खेत में हल चलाया जाता है हल चलाते समय लाइन की दूरी लगभग 10-15 से.मी. होती है जिसे बियासी मारना कहा जाता हैं, रोपाई वाले धान में बियासी नहीं किया जाता है।

धान के बीज की बुवाई
अब धान के बीजों को छिड़काव विधि से बो दिया जाता है। छिड़काव के बाद यह बहुत जरूरी है कि बीजों को मृदा की परत से ढँक दिया जाय। अतः इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु देसी हल और पाटा का उपयोग करते हैं।

जब फसल लगभग 30 से 35 दिनों का हो जाता है उस समय धान के खेत में 15 से 20 सेमी जल भराव की स्थिति भी हो जाती है। इस स्थिति में बियासी यंत्र का उपयोग कर बियासी करते हैं। हालाँकि इस हेतु देशी हल को धान की खड़ी फसल में चलकर भी यह कार्य किया जा सकता है।

सावधानियां एवं ध्यान रखने योग्य बातें
  • हमेशा उपचारित किये हुए बीजों की ही बुवाई करें।
  • बीजों को अधिक गहराई पर बुवाई न करें।
  • खरपतवार नियंत्रण हेतु अंकुरण पश्चात उपयोग में आने वाले खरपतवारनाशी का अनुप्रयोग करें।
  • फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कु जाती है।
  • बुवाई के समय कुल नत्रजन का 20% मात्रा ही उपयोग किया जाता है।
  • मध्यम अवधि की फसल में नत्रजन की बाकी मात्रा 40% बियासी के समय, 20% ब्यासी के 20 से 25 दिन बाद एवं शेष 20% मात्रा ब्यासी के 40 से 50 दिन बाद डाली जाती है।
  • हम जिस विधि की बात कर रहें हैं, उसे जल उपलब्ध होने के 30 से 35 दिनों के अंदर ही कि जानी चाहिए। चलाई का कार्य इसके 3 दिन बाद की जाती है।
  • बियासी हेतु संकरे फाल का ही उपयोग किया जाता है।
  • यदि इस कार्य हेतु पर्याप्त मात्रा में जल न हो तो निंदाई करके उर्वरक डाला जाता है।
  • बियासी के दौरान धान के कुछ पौधे मर जाते हैं, अतः नर्सरी के अतिरिक्त पौधों का होना जरूरी है। यहाँ से गेप फिलिंग की जा सकती है।