पुरजीत एवं अनुज कुमार पटेल
एम. एस. सी. (कृषि), कीट विज्ञान
खिलेश कुमार साहू, एम. एस. सी. (कृषि), कृषि मौसम विज्ञान
कृषिमहाविद्यालय, रायपुर (छ. ग.)

परिचय-
कृषि क्रियाएं लघु व्यवसाय से बड़े व्यवसाय में बदलती जा रही है कृषि और बागवानीउत्पादन बढ़ रहा है। जबकि कुल कृषि योग्य भूमि घट रही है। कृषि के विकास के लिए फसल, सब्जियां और फलो के भरपूर उत्पादन के अतिरिक्त दुसरे व्यवसायों से अच्छी आय भी जरुरी है। मधुमक्खी पालन एक ऐसा ही व्यवसाय है जो मानव जातिको लाभान्वित कर रहा है, यह एक कम खर्चीला घरेलु उद्योग है जिसमे आय, रोजगार व वातावरणकोशुद्ध रखने की क्षमता है।यह एक ऐसा रोजगार है जिसे समाज के हर वर्ग के लोग अपना कर लाभान्वित हो सकते है। मधुमक्खी पालन कृषि व बागवानी उत्पादन बढ़ाने की क्षमता भी रखता है।

क्या है मधुमक्खी पालन -
मधुमक्खियां मौन समुदाय में रहने वाली कीट वर्ग की जंगली जीव है इन्हें उनकी आदतों के अनुकूल कृत्रिम गृह (हाईव) में पाल कर उनकी वृद्धि करने तथा शहद एवं मोम एवं अन्य उत्पाद प्राप्त करने को मधुमक्खी पालन या मौन पालन कहते है।

शहद एवं मोम के अतिरिक्त अन्य पदार्थ, जैसे गोंद (प्रोपोलिस, रायल जेली, डंक-विष) भी प्राप्त होते है। साथ ही मधुमक्खियों से फूलों में परपरागण होने के कारण फसलो की उपज में लगभग एक चौथाई अतिरिक्त बढ़ोतरी हो जाती है।

आज कल मधुमक्खी पालन ने कम लागत वालाकुटीर उद्योग का दर्जा ले लिया है। ग्रामीण भूमिहीन बेरोजगार किसानो के लिए आमदनी का एक साधन बन गया है|

मधुमक्खियों के विभिन्न जातियों का विवरण-

1. जायंट अथवा रॉक मधुमक्खी-
इनका आकार काफी बड़े होते हैं तथा इनके उग्र प्रवृत्ति के कारण इनका कृत्रिम रूप से पालन नहीं किया जा सकता है। ये वन्य वृक्षों के परागण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। ये अपना छत्ता आमतौर पर बड़े वृक्षों अथवा पुरानी ऊंची इमारतों के छज्जों में बनाते है। इनको क्षेत्रीय भाषा में भंवर मक्खी भी कहते है।

2. इटालियन या यूरोपियन मधुमक्खी –
ये मधुमक्खी शांत स्वभाव के होते हैं तथा इनका प्रबंधन आसान होता है। ये अंधेरे में रहना पसंद करते है, इसके पालन के लिए लकड़ी के बने बॉक्स उपयुक्त होते हैं। ये उत्तम परागक तथा मधु उत्पादक होते है।

3. भारतीय मधुमक्खी -
इसे देशी मधुमक्खी भी कहते है। ये भी स्वभाव में शांत एवं पुराने वृक्षों में खोखले स्थान (कैविटी नेस्टिंग) में रहना पसंद करते है। ये मक्खी हमारे मैदानी क्षेत्रों में मुख्य परागक के रूप में विभिन्न फसलों में 42 प्रतिशत तक परपरागण करता है।

4. लिटल या ड्वार्फ मधुमक्खी -
ये आकार में घरेलू मक्खी के समान होते है , ये वृक्षों की शाखाओं में छोटे आकार के गोलाकार एकल छत्ते बनाके रहते है।

5. डैमर या स्टिंगलेस मधुमक्खी -
ये मधुमक्खी छोटे आकार के तथा डंकविहीन होते है। ये पुरानी मिट्टी के दरारों तथा वृक्षों के खोखली टहनियों में असामान्य आकार के छत्ते बनाके रहते है।

इनमे से भारतीय व इटालियन प्रजाति की मधुमक्खियों को आसानी से लकड़ी के बक्सों में पाला जा सकता है। भारतीय मधुमक्खी प्रतिवर्ष औसतन 5-10 किलो ग्राम शहद प्रति परिवार तथा इटैलियन मधुमक्खी 50-70 किलोग्राम तक शहद उत्पादन करती हैं।

फसलों की सामान्य जानकारी एवं मधुमक्खियों के भोजन स्त्रोतः
फसल विविधता में हमारा छत्तीसगढ़ पूरे भारत में दूसरे स्थान पर है , हमारे राज्य में विशेषकर मैदानी भागों में विभिन्न प्रकार के फसलों व फसल प्रजातियों की खेती पूरे वर्षभर की जाती है। छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्र में कुल 20 जिलें आते है इनमे बिलासपुर ,गौरेला -पेंड्रा -मरवाही ,जांजगीर -चांपा ,कोरबा, मुंगेली ,रायगढ़ ,सक्ती ,सारंगढ़ -बिलाईगढ़ ,बालोद, बेमेतरा ,दुर्ग, कबीरधाम (कवर्धा),खैरागढ़ -छुईखदान -गंडई, मोहला -मानपुर -चौकी, राजनांदगाव , बलोदाबाजार, धमतरी, गरियाबंद महासमुंद ,रायपुर शामिल है, इन जिलों में उगाई जाने वाली फसलों का विवरण निम्न प्रकार से है-
  • खरीफ में मुख्य रूप से धान, सोयाबीन, अरहर , राम तिल, तिल,मूंग उड़द आदि फसलों की बुआई की जाती है।
  • रबी में चना, गेंहू, तिवड़ा, मसूर, बटरी (छोटा मटर), मटर , सरसों, तोरियाँ, सूर्यमुखी, कुसुम, अलसी, धनिया, करैत आदि फसलों की बुआई की जाती है।
  • वहीं जायद में मूंग व कद्दूवर्गीय फसलों की खेती की जाती है।

उपरोक्त दलहन, तिलहन, व सब्जीवर्गीय फसलों में मधुमक्खी मुख्य परागक की भूमिका अदा करता है। अतः वर्षभर पुष्प उपलब्ध होने के कारण किसान भाई खेती के साथ-साथ मधुमक्खीपालन कर अतिरिक्त आय कमा सकते है, इससे न केवल मधुउत्पाद की प्राप्ति होगी बल्कि फसलों की गुणवत्ता एवं मात्रा पर सकारात्मक प्रभाव के फलस्वरूप 10-20 प्रतिशत तक उपज में वृद्धि देखने को मिलती है।



महीने वार मधुमक्खी हेतु भोजन स्त्रोतों की उपलब्धता -
  • जनवरी - सरसों, तोरियाँ, कुसुम, चना, मटर, तिवड़ा-बटरी, अरहरइत्यादि।
  • फरवरी - सरसों, तोरियाँ, चना ,मटर, तिवड़ा- बटरी, अलसीइत्यादि।
  • मार्च - कुसुम, सूर्यमुखी, अलसी, धनिया, करैतइत्यादि।
  • अप्रैल - सूरजमुखी, कुसुम,कद्दूवर्गीयफसलेंइत्यादि।
  • मई- मूंग, कद्दूवर्गीयफसलेंइत्यादि।
  • जून - कद्दूवर्गीय फसलें आदि।
  • जुलाई - बबूल आदि।
  • अगस्त- बबूल,मूंग उड़द, इत्यादि।
  • सितम्बर - बबूल,मूंग उड़द, बेर , रामतिल, तिल , धान, इत्यादि।
  • अक्टूबर- बेर, रामतिल, तिल, धान, इत्यादि।
  • नवंबर - स्थानीय झाड़ियां, वृक्षों, व फूलोंजैसे- सुबबूल, गेंदाइत्यादि।
  • दिसंबर - अरहर, स्थानीय झाड़ियां, वृक्षों, व फूलोंजैसे- सुबबूल, गेंदा इत्यादि।

उपरोक्त फसलें पराग एवं मकरंद के अच्छे स्त्रोत होते है। पराग प्रोटीन के मुख्य स्त्रोत होते है जो मधुमक्खियों के दैहिक क्रियाओं के लिए आवश्यक होते है तथा मकरंद (नेक्टर) कार्बोहायड्रेट के अच्छे स्त्रोत होते है, जो मधु निर्माण के लिए आवश्यक होते है। अतः स्थानीय फसलचक्र में सामंजस्यता बनाकर मधुमक्खी पालन हेतु वर्षभर फूलों की उपलब्धता की जा सकती है।

मधुमक्खी पालन हेतु स्थान का चुनाव
  • बॉक्स को स्थापित करने के लिए सदैव ऊंचे स्थान का चुनाव करना चाहिए |
  • खुला सूर्य की प्रकाश मिलनी चाहिए क्योंकि सूर्य की किरणों के साथ ही मधुमक्खियां अपने गतिविधियों की शुरुआत करती है।
  • ऐसे स्थान जहां पर फूलवर्ष भर उपलब्ध हो उत्तम रहते हैं।

मधुमक्खी पालन के लिए अवश्यक सामग्री
मौनपेटिका, मधुनिष्कासनयंत्र, स्टैंड, छीलनछुरी, छत्ताधार, रानीरोकपट, हाईवेटूल (खुरपी), रानीरोकद्वार, नकाब, रानीकोष्ठरक्षणयंत्र, दस्ताने, भोजनपात्र, धुआंकर और ब्रुश आदि।

मौन पेटिका या बी-बॉक्स कैसे प्राप्त करे
किसान भाई अपने जिले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र अथवा कृषि महाविद्यालय से मधुमक्खी पालन सम्बन्धी समग्र जानकारी प्राप्त कर सकते है। यहाँ से उचित अनुदान में मौन पेटिका के साथ प्रशिक्षण भी ले सकते है। इसके अलावा ऐसे किसान जो पहले से ही मधुमक्खी पालन कर रहे है वहाँ से भी मौन पेटिका प्राप्त कर सकते है। किसान भाई मौन पेटिका के खरीदी के समय ध्यान रखे की कॉलोनी प्रबल (स्ट्रांग) हो, रानी वयस्क हो तथा कॉलोनी में किसी प्रकार के पर जीवी कीट एवं रोगजनक उपस्थित न हो।

मौन पेटिका का प्रक्षेत्र में स्थापन
मौन पेटिका को सदैव स्टैंड के ऊपर ही स्थापित करे। मौन पेटिका का मुंख (जहाँ से मधुमक्खियां प्रवेश करते हैं) पूर्व दिशा की ओर रखते है, इससे कमेरी मक्खियां प्रातः जल्दी से क्रियाशील होते है। शुरुआत में दो पेटिकाओं की बीच में लगभग 10 फिट की दुरी रखते है ताकि नए स्थान में अनुकूलन में बाधा न हो। मधुमक्खियां पराग व मकरंद एकत्र करने के लिए 2-3 कि.मी. तक की दुरी तय करते हैं अतः मौन पेटिकाओं के स्थापन के समय यह सुनिश्चित कर लें कि 1.5 कि.मी. तक के रेडियस में पुष्प पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो।

आइये जानते है मधुमक्खियां कैसे शहद का निर्माण करती है
कमेरी मक्खियां फूलों के रस को अपने मुखांग के माध्यम से एकत्र करती है इसे ही मकरंद कहते है। मधुमक्खियों के आहार नाल में एक थैलानुमा संरचना होती है जिसेम धुस्टमक कहते है, इस मधुस्टमक में एंजाइम इन्वेर्टस उपस्थित रहता है जो कि मकरंद को मधु में रूपांतरित करने का कार्य करती है। इसके पश्चात मधुमक्खियां मधु को छत्ते के कोंब (कोष्ठ) में स्थानांतरित कर देती है ,कोंब में मधु स्थानांतरण के पश्चात मक्खियाँ कों बके ऊपरी सतह को मोमी परत से ढँक देती है जिससे मधु अपने मूलरूप में सुरक्षित रहती है।

शहद निष्कासन
बक्सों में स्थित छत्तों में 75-80 प्रतिशत कोष्ठ मक्खियों द्वारा मोमी टोपी से बंदकर देने पर उनसे शहद निकाला जाए इन बंद कोष्ठों से निकाला गया शहद परिपक्व होता है। शहद निष्कासन, मधु निष्कासन यन्त्र से ही करना चाहिए, क्योंकि परम्परागत विधि से छत्तो के मोम का नुकसान अधिक होता है।

शहद को बेचे कैसे
किसान भाई शहद प्रसंस्करण के बाद विभिन्न आकार के बोतलों में अलग-अलग भार के अनुसार भरकर अपने खुद का ब्रांड बनाकर शहद बजार मे बेच सकते है। इसके अलावा किसान प्रसंस्करण के पश्चात शहद को अन्य शहद के क्रेता एवं फुटकर विक्रेता को भी बेच सकते हैं।

किसान भाई स्वसहायता समूहो के माध्यम से भी अपने शहद को बेच सकते है तथा कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से भी अपने शहद को प्रदर्शनी व कृषि मेला में ले जाकर आसानी से बेच सकते हैं।