मकसूदन, पीएच.डी (उधानिकी) फल विज्ञान विभाग
रीतेश कुमार साहू, पीएच.डी (पादप आण्विक जीव विज्ञान एवं जैव प्रोद्योगिकी विभाग)
डॉ. जी.डी. साहू (सह – प्राध्यापक), उधानिकी, फल विज्ञान विभाग

अनार को शक्तिदाता कहा गया है क्योंकि इसमें शरीर को स्वस्थ रखने के सारे गुण पाए जाते हैं । चरक ने लिखा है अनार खाने से व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्रासि होती है किन्तु उसके लिए अच्छे स्वास्थ्य का होना आवश्यक है। इसलिए कहा गया है कि अनार निर्धनों के स्वास्थ्य का आधार है। परन्तु आजकल हम इस तरफ ध्यान नहीं देते हैं कि फलों में अनार का सेवन करने से छोटी-मोटी व्याधियां अपने आप दूर हो सकती हैं।

इसका नाम संस्कृत में दाडिम है तो अंग्रेजी में पामोग्रेनेट (Pomegranate) लैटिन में इसको पूनिका ग्रेनेटम (Punica granatum) कहते हैं।

सौन्दर्यवर्धक:- अनार सौन्दर्यवर्धक है। इसके छिलकों को सुखाकर महीन पीस लीजिए । उसके बाद उसमें आंवले का चूर्ण मिला दीजिए, फिर दोनों को कच्चे ढूध में घोलकर पेस्ट बना लीजिए। इस पेस्ट को मुंह, हाथ-पैरों तथा सारे शरीर में उबटन की तरह लगाकर स्नान कीजिए । शरीर के दाग, झाइयां, चेहरे का बासीपन आदि इससे आठ - दस दिन के प्रयोग से नष्ट हो जाते हैं।

त्रिदोषनाशक:- अनारदाने में सभी प्रकार के तत्व पाए जाते है। इसमें ऐसे द्रव्य हैँ जिनका प्रयोग दवाओं का काम करता है। आयुर्वेद के ग्रंथों में लिखा है, दाडिम रासायनिक गुणों से भरपूर है। मौसम के अनुसार जो लोग इसका प्रयोग करते हैं। वे सौ वर्ष की आयु पूर्ण करते हैं। इस दृष्टि से अनार स्वास्थ्य ररक्षक, छोटे-मोटे रोगों का शत्रु तथा दीर्घायु प्रदान करने वाला एक सस्ता फल है। इसके सेवन से शरीर में फैलेल जहरीले तत्व मूत्र तथा मल के साथ बाहर निकल जाते हैं, जिसके कारण शरीर दिन भर तरोताजा बना रहता है। यदि प्रकृति के प्रकोप के कारण कभी भूले-भटके शरीर पर रोगों का हमला होता है तो यह तलवार लेकर सामने आ डटता है और रोगों को मारकर भगा देता है। यदि मनुष्य नियमित रूप से इसका सेवन करे तो प्रकृति भी मानव से ईष्या करने लगेगी । आंखों के रोग, सिर के रोग, खून सम्बधी दोष, चमडी के रोग, मत्र-रोग, पेट के रोग आादि अनेक रोगो का अनार पक्का दुश्मन है । कब्ज़ को तोड़ने के लिए अनार का रस इंजेक्शन की तरह काम करता हैं । यह शरीर मे खून को साफ करता हैं तथा स्मरण शाक्ति की वृद्धि करता है । इसके रस में शारीरिक कमजोरी को जड़ से नष्ट करने या उखाड फैकने की शाक्ति हैं। कुछ ग्रंथों में लिखा है, अनार हमारे शरीर को वह शक्ति प्रदान करता हैं जो ढूध और घी में भी नहीं है।

चरक सांहिता में एक स्थान पर महषि चरक ने लिखा हैं, मानव रोगों को स्वयं निमंत्रण देता है । जीभ के स्वाद के लिए हम शक्ति से अधिक चिकने, मीठे, पौष्टिक, गरिष्ठ, मीर्च - मसालेदार पदार्थ खाते हैं । मांस भक्षण करते हैं। मदिरापान भी नहीं छोडते। परिणाम यह होता है कि वेधिया रूपी विकार शरीर को घेर लेता है और हम रोग्रस्त हो जाते हैं। चरक ने आगे समझाया हैं कि दाडिम बिना हथियार के शरीर के रोगो को काटकर बाहर फेक देता है । अतः व्यायाम कारने के साथ-साथ भोजन के साथ दाडिम के 50 दाने अवश्य लेने चाहिए । दाडिम आालस, पीलिया, ज्वर, कुष्ठ, वायुदोष, त्चचादोष, मोटापा, भारीपन, अनिद्रा और कफ़ आदि रोगां को दूर करके काया को कचन बनाता हैं। अनार की बडाईं करते हुए एक कवि ने लिखा है।

  • दाडिम का दाना-दाना, मन को रहा लुभाय।
  • दस दानों के लेत ही, रोग भागता ज़ाय।
  • रोग भागता जाय, देह को करे सुनहर।
  • अंग-अंग रस-रग में डूबे , पाना से गहरा ।

गुणो की खान अनार
अनार के पेड़ हमारे देश में घर-घर लगाए जाते हैं। जो लोग अनार को बडी मात्रा में उगाना चाहते हैं, वे बडे-बड़े बाग लगाते हैं । भारतीय अनार की विदेशो में भी बहुत मांग है । भारत के अलावा अनार अन्य देशों जैसे श्रीलंका, चीन, जावा, मलाया, पाकिस्तान, पश्च्चमी यरोप के देशों में भी उगाया जाता है। यह एक ऐसा फल है जिसका स्वाद छोटे-बडे सभी लेना चाहते हैं। वैसे तो अनार जाडे- गर्मी के काल में अच्छा होता हैं, किन्तु गर्मी तथा बरसात में भी अनार मिलता रहता हैं । आजकल कोल्ड स्टोर में रखे फल बारह महीना बिकते हैं । चुकि यह फल अुन्न के समान श्रेष्ट हैं इसलिए लोग इसे अनार कहने लगे। अनार बच्चे बड़े शौक से खाते हैं। वैसे तो अनार की कई किसमें आती हैं।'जसे-देशी, पतिया, चिकना, बेदाना, गुलाबबाडी आदि लेकिन देशी अनार बहुत लाभदायक है । इसका प्रयोग चटनी, शरबत आदि बनाने के लिए किया जाता है। अनार बडे तथा छोटे दोनों प्रकार का होता है । बड़ी जाति के अनार मीठे होते हैं । एक प्रकार का दाडमी अनार भी आता है जो खट्टा होता है। इसके दानों में'खनिज, लवण, शर्करा, एल्कोहोलिक तत्व, प्रोटीन, विटामिन आदि पाए जाते है। इसके छिलके त्वचा रोगों को दुर करने के लिए बहुत गुणकारी हैं ।

वातरोग
आयुर्वेद के अनुसार, वात, कफ और पित्त इनके असंतुलन से ही रोगों की उत्पति होती है। वात अथार्त वायु की प्रधानता से जो रोग होते हैं, उनमें अनार का प्रयोग कैसे किया जा सकता हैं, आइए उसके बारे में सटीक जानकारी हासिल करें ।

आमवात का रोग

लक्षण- इस रोग में जीभ का स्वाद बिगड जाता है, मुह बंद-सा हो जाता है गले में कष्ट होता है । खाने-पीने तथा बोलने में परेशानी होती है। सिर में कम्पन तथा पीडा होती है। जोड़ों में दर्द होने लगता है ।

कारण- यह रोग भोजन के न पचने से बनता है । भोजन के न पचने के कारण धीरे-धीरे पेट में जो विकार इकटठा हो जाता है उसे आमवात कहते हैं । इसमें पेट की पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है। यह रोग बासी भोजन करने, रात में देर तक जागने, अचानक चोट लगने, अधिक मेहनत, भुखे रहना या अधिक उपवास करना, शोक, दु: ख आदि के कारण हो जाता है।

उपचार- अनार का रस 100 ग्राम गरम करके दिन में कई बार सेवन करे ।

  • हर्र्र की छाल, अनार के छिलके, सेंधा नमक, निशोथ, सबको समान मात्रा में लेकर | एक लीटर पानी में पकाएँ। पानी जब आधा रह जाए तो उसे आंच पर से उतार कर शीशे की बोतल में भर लें। इसमें से सुबह - शाम दो-दो चम्मच पानी के साथ ले। आमवात की बीमारी जाती रहती है।
  • अनारदाना को धुप में सुखा लें फिर उन्हें पीसकर चुर्ण बना लें। इसमें से एक चुम्मच चृण अरंडी के तेल के साथ चाट ले।
  • 10 ग्राम अनारदाने, 10 ग्राम मुणडी, 10 ग्राम सोङ-तीनों को पीसकर छान लें। इस चुर्ण में से आधा चम्मच चुर्ण सुबह - शाम गरम पानी के साथ सेवन करें।
  • अनार के छिलके, सोया, बच, सोंड, गोखरू, देवदास कपूर तथा गोरख मणडी-सबको बराबर मात्रा में लेकर चुर्ण बना ले। सबह-शाम एक-एक चम्मच चुर्ण गरम पानी के साथ सेवन करें।

पश्यापथ्य - इस रोग में ठंडी तथा अधिक गर्म चीजें नही खानी चाहिए। इसके अलावा गुड, दहीं, दूध, मास, मछली, उडद की दाल, अथिक गरम मसाले आदि भी न खाए।

वातरक्त का रोग

लक्षण - इस रोग में सबसे पहले खून में खराबी पैदा होती है। फिर धीरे-धरे शरीर कमजोर होने लगता है । खाल को छुने पर कुछ पता ही नहीं चलता। शरीर काला पड़ने लगता है। कुछ समय बाद शरीर पर लाल चकते दिखने लगते हैं। यदि शरीर के किसी अंग पर चोट लग जाती है तो घाव जल्दी नहीं भरता। शरीर में चींटियां-सी रेंगती हुई मालुम पड़ती हैं । पैरों में दर्द शरू हो जाता हैं और देर तक रहता है। चलना-फिरना कठिन हो जाता हैं।

कारण - यह रोग खट्टी चीजों को खाने से हो जाता है। इसके अलावा अधिक दालमोठ, चटपटी चीजें, गरम मसाले, घी, खारी, बेंगन, दही, मछली, शराब आदि के सेवन से रक्त में उबाल आ जाता है, जो इस रोग को उत्पन्न कर देता हैं ।

उपचार- 
  • अनारदाना, त्रिफला, कुटकी, गिलोय, शतावर इन सबको 'मोटा-मोटा कुट ले। इसमे से 100 ग्राम दवा आधा लिटर पानी में आंच पर पकाए। जब काढा 25% मात्रा में रह जाए तो ठंडा कारके महीन छलनी से छान ले। अब एक चम्मच सुबह और एक चम्मच शाम को काढे का सेवन करें। इससे वातरक्त का रोग दूर हो जाता है ।
  • अनार के छिलके 100 ग्राम, अनारदाना 100 ग्राम, गिलोय 100 ग्राम, त्रिफला चुर्ण 100 ग्राम चीजों को पकाकर गाढा बना लें । फिर इसे बोतल में भरकर रख ले । इसमें से एक चम्मच कादा सूबह को निहार मुह सेवन करें।

वातशूल का रोग

लक्षण - इस रोग में सारे शरीर में वायु भर जाती है जिसकी वजह से बाहरी हवा लगने पर शरीर में दर्द होता हैं । चलना-फिरना मुस्किल हो जाता है । कभी - कभी शरीर में बहुत ज्यादा पसीना आता है और कभी बिलकुल नहीं आता है ।

कारण - यह रोग भी आमवात की बीमारी के समान है ।

उपचार - अनारदाना, छोटी हर्र, अजवायन, सेंधा नमक, भूनी हींग सबको समान मात्रा में लेकर चुर्ण बना ले । इसमें एक चुटकी चुर्ण लेकर सेवन करे। इससे वात विकार के कारण शरीर का दर्द दूर होता है ।

गठिया (जोडों का दर्द)

लक्षण - शरू में इस बीमारी में भोजन अच्छा नहीं लगता, प्यास अधिक लगती है तथा भोजन ठीक तरह से नहीं पचता हैं। शरीर का अंग-अंग टूटता है । शरीर के सभी जोडों में दर्द होता है ।

कारण - यह बडी खतरनाक बीमारी है । ज्यादातर यह रोग जवाना की उम्र निकल जाने के बाद होता है। यह रोग शरीर में वायु के अत्यधिक बढ जाने के कारण हो जाता है । जो लोग सदी- गर्मी की चिन्ता नहीं करते, भोजन के बाद व्यायाम कर लेते हैं, भूख लगने पर खाना नहीं खाते, सदा आलस्य का परिचय देते हैं, पानी में अधिक तैरते हैं उनको यह रोग लग जाता है। इस रोग में वायु के साथ कफ मिल जाता है जो जोड़ों में एकत्र हो जाता हैं।

उपचार - 
  • 10 ग्राम अनार की छाल या अनार के छिलके तथा 5 ग्राम पुन्नारवा दोनां को एक कप पानी में उबालकर काढ़ा बना ले । इसके बाद सुबह शाम सेवन करे ।
  • अनारदाना तथा एक कलीं लहसून, दोनां की चटनी बनाकर गरम पानी से लें।
  • रात को गरम पानी में अनार के थोडे -से छिलके भिगो दे। सुबह को उसमें से आधा कप पानी छुड़ का चुर्ण खाकर पी ले ।

पश्यापथ्य - जोडो के दर्द में रोगी को बाजरे की रोटी अधिक लाभदायक है । सब्जियो में मेथी, चौलाई, बैंगन, करेला, तोरई आदि फायदेमंद हैं। फलों में सेब, पपीता, खजूर विशेष लाभदायक हैं ।

टांग का दर्द

कारण - जब कभी कमर के नीचे स्नायुओ में वायु रुक जाती है तो पैरों में दर्द शरू हो जाता है । ऐसी हालत में वायु बनाने वाले पदार्थ नहीं खाना चाहिए। उदाहरण के लिए चावल, उडद की दाल, मूली, ककड़ी, केला, तरबूज आादि।

उपचार -
  • 10 ग्राम अनारदाना, दो पूती लहसून, 10 ग्राम सोठ तथा 5 ग्राम हरड-सबको सुखाकर चुर्ण बना ले । यह चुर्ण सुबह-शाम भोजन के बाद सवन करें ।
  • अनार के छिलके सोठ, सेधा नमक सब चीजें समान मात्रा में लेकर चुर्ण बना ले। इस चुर्ण में से एक चम्मच चुर्ण गरम पानी के साथ नियमित रूप से सेवन करे ।

सिएटिका

लक्षण – आयुर्वेद में इस रोग को गध्रसी कहते हैं । इसमें सबसे पहले कूल्हे में दर्द शरू होता है। फिर नसों से होता हआ एडी तक चला जाता है। इस रोग में उठना - बैठना तथा चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है। रोगी के प्राण दर्द में ही पडे रहते हैं ।

उपचार - 
  • अनारदाना, असगध, चोपचीनी सोंठ, सबको समान भाग में लेकर चुर्ण बना ले । एक-एक चम्मच चुर्ण सुबह - शाम दुध के साथ सेवन करे ।
  • अनार के छिलके, काली मिर्च, सोंठ , त्रिफला, तथा सेंधा नमक। इनको बराबर की मात्रा में लेकर चुर्ण बना लें। इस चुर्ण में से एक चम्मच चुर्ण सुबह - शाम गरम पानी के साथ सेवन करे ।

परथ्यापश्य - भोजन में दही, केला, मूली, आलू, लॉकी पदार्थ बिल्कल न खाए । खटी चीजें जैसे इमली, अचार, टमाटर, खटाईं आदि तथा उडद व चने की दाल आदि इस रोग में हानिकारक हैं । रेत की पोटली बनाकर गरम करके रोगग्रस्त भाग पर सिकाई करे ।

मिर्गी

लक्षण - रोगी को लगता है जैसे वह अधेरे में जा रहा है। उसकी आखो में खिचाव उत्पन्न हो जाता हैं तथा बेहोश आ जाती हैं । कभी-कभी कपडो में मल-मुत्र भी निकल जाता है। जीभ अकड जाती है तथा आखो पर यदि प्रकाश डाला जाए तो उसका प्रभाव नहीं होता।

मिर्गी के दौरे पड़ने वाले रोगी को पानी, आग, सडक पर अकेले भेजना, गडढे आदि से दूर रखना चाहिए । दौरे पडने पर रोगी के मुख से झाग निकलते हैं, शरीर कापने लगता है, दांत किटकिटाने लगते है । शरीर, चेहरा तथा आखे पीली पड जाती हैं, प्यास अधिक लगती है तथा शरीर में जलन होती है।

कारण - यह रोग अत्यधिक चिन्ता, शोक आदि मानसिक कारणो से हो जाता है । इसका प्रभाव मस्तिष्क पर पडता हैं। वातवाहिनिया याददाश्त को नाष्ट कर देती हैं।

उपचार –
  • अनार के रस में ऊपके नामक दवा का प्रयोग कराए।
  • सारिका का काढा अनार के शरबत के साथ दे। ।
  • अनारदाने की चटनी में जायी असगंध तथा जटामासी का चर्ण'मिलाकर दिन में दो बार ताजे पानी से हें।

लकवा या पक्षाघात

'यह एक-बड़ा गम्भीर रोग है। यदि इसकी समय पर चिकित्सा नहीं की जाती है तो यह स्त्री/ पुरुष को अपाहिज बना देता है। इसमें शरीर का कोई विशेष अंग'मारा जाता है या रोगी का आआधा हिस्सा बेकार हो जाता है ।

लक्षण- लकवा की हालत में आधे शरीर की नाडियां सुख-सी जाती हैं।'उनमें रक्त का संचार बंद हो जाता है, वे शिशथिल हो जाती हैं। यदि मंख पर फालिज गिरता है तो बोलने की शक्ति जाती रहती है।

कारण - जो लोग अधिक ठंडी चीजों का सेवन करते हैं या बाय उत्पन्नकरने वाले पदारथ अधिक मात्रा में खाते हैं, उनको यह रोग हो जाता है। यदि व्यक्ति के शारीर की धात अधिक मेथन करने से क्रीण हो जाती है तो रक्त की कमी सेभी यह बीमारी लग जाती है। इसके अलावा अधिक व्यायाम् करने, उल्टा-सीधा भोजन खाने या विपरीत चीजें खाने से भी यह रोग हो जाता है ।

उपचार –
  • अनार के छिलकों को तिल्ली के तेल में पकाकर उस तेल से पक्षाघात वाले अंग पर सुबह-दोपहर तथा शाम को गहरी मालिश करे ।
  • अनारदाने का चुण, सुखा लहसन, सेधा नमक, त्रिकूटा, हींग, सबको राबर की मात्रा में लेकर छान-पीसकर पुर्ण बना लौं। इसमें से चौथाई चम्मच चुणगरम पानी के साथ दिन में चार बार सेवन करें।
  • अनार के पत्ते, अनार के छिलके, अनार के दाने- तीनों 10 ग्राम,‘गगल, गिलोय, हरड का बक्कल, बहेडे के छिलके, आंवले का सुखा गृदा—सब 50-10 ग्राम लेकर सुखा लैं। फिर इसको पीसकर पुर्ण बना लें। इस चर्ण में से एक चम्मच शहद के साथ चाटे ।