ग्लोरिया स्मिता किस्पोट्टा और खिरोमणी नाग
इं.गा.कृ.वि.वि. रायपुर (छ.ग.)

यह भारत में आम लोगों द्वारा वर्ष भर उगाया जाने वाला उपयोगी शाकीय पुष्पीय पौधा है। इस सजावटीय फूल को व्यापक रूप मे विभिन्न उत्सवों एवं कार्यों जैसे- ईश्वर को अर्पित करने, घर के दरवाजे पर सजाने, मेहमान को स्वागत करने में, त्यौहारें में और शाकीय किनारा बनाने में प्रयुक्त होने वाले गेंदें को वानस्पतिक रूप से टैगेट्सइरेक्टा तथा कंपोजिटी परिवार से जाना जाताहै। जिनका उत्पति स्थान मैक्स्किो है। इस फूल का वितरणमहाराष्ट्र के कई सीमावर्ती राज्यों में तथा मध्य प्रदेश प्रमुख गेंदा उत्पादक स्थानों मे से हैं। इसके अफ्रीकन प्रजाति के फूल लोगों के रिश्ते को वल्गर मांइड के रूप प्रर्दशित करता है।

जलवायु एवं मृदा
गेंदा को समशीतोष्ण जलवायु में 18-30 डिग्री से. तापमान पर एवं उतम जल निकास वाली उपजाऊ मृदा जिनकी पी.एच. मान 6.5 से 7.5 की हो मे अच्छा अनुकूल मिलने से बढवार और विकास अच्छे से होने लगता है।

खेत की तैयारी
गेंदा की खेती के लिए भूमि को अच्छे से मिट्टी पलटने वाले हल से जुताइ करके भुरभुरा बनाकर बखेरा की सहायता से गोबर की खाद को अच्छे से मिला देना चाहिए और उर्वरक की मात्रा मिट्टी की गुणवता जांचकर के पौध के शुरूवाती दिनों में उनके अच्छे वृद्धि और विकास के लिये नाइट्रोजन 32 किलोग्राम, फास्फोरस 16 किलोग्राम, पोटाश 32 किलोग्राम प्रति एकड़ में डालना चाहिये।

गेंदें की उन्नत प्रजातियां
अफ्रीकन प्रजातियां-पुसा नारंगी गेंदा, पुसा बसंती गेंदा, क्राउन ऑफ गोल्ड, स्टार गोल्ड और क्लाइमेक्स इत्यादि को बारिश के ऋतु में 3 मीटर लंबाई और 1 मीटर चौडाई तथा जमीन से थोड़ी ऊंची उठी हुई नर्सरी में बीजू पौधे तैयारकर आसानी से खेत में लगाया जा सकता है।

पौध तैयार करना
गेंदें के पौधे को वर्षा ऋतु में लगाने के लिये 1 से 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के लिये बीज को मध्य जून से मध्य जुलाई माह में तैयार कर 45 सेमी. पंक्ति से पंक्ति की दूरी तथा 45 सेमी. पौधे से पौधे की दूरी में 10-12 सेमी. ऊंचाई के हो जाने पर वर्षाऋतु में फफूंदनाशक डायथेन एम-45 का 2.5 ग्राम में बीज तथा जड़ उपचार करके इसे लगाया जाना चाहिये।

सिंचाई करना
गेंदा के पौधे को रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए इसके उपरांत कली बनने एवं कटाई के पहले की अवस्था तक अगर बारिश नही होती है तब आवश्यकता पड़ने पर ही पानी देना चाहिये।

चुटकी करना
जब पौधे की ऊंचाई 30 से 45 दिन की हो जाती है तब पौधे के शीर्ष भाग को अंगुली की सहायता से नोंच दिया जाता है। जिससे पौधे को झाड़ीनुमा और घना होने मे मदद मिलती है। इससे फूलों की गुणवता और अच्छा आकार भी प्राप्त होता हैं।

निराई-गुड़ाई
गेंदें के खेत में अनेक प्रकार के खरपतवार पौधे के वृद्धि एवं विकास के दौरान पनपने लगते हैं। जो पौधे के पोषण, पानी एवं प्रकाश के लिए के प्रति स्प्रधा करते हैं। जिससे पौधे के बढ़वार रूकने मे बाधक हो सकती है। इसलिये निराई-गुड़ाई करके खेत को साफ रखकर पौधे से अच्छे फूल उत्पादन लिया जा सकता हैं।

रोग एवं उनके निदान
धब्बा रोग- यह रोग पौधे के वृद्धि और विकास होने की किसी भी अवस्था में हो सकता है जो पत्तियों के निचली भाग में सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। यह अधिकतर पुरानी पत्तियों में होता हैं। जिससे प्रभावित पत्तियां नीचे गिरने लगते है जिनका निदान खेत में सफाई के साथ-साथ पानी रूकने भी न दें। पौधे में प्रभावित पत्तियों के दिखाई देने पर घुलनशील गंधक की 20 ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में अच्छे से घोलकर 10 दिनों के अंतराल में दो बार छिड़काव करना चाहिये।

नुकसानदायक कीडे़ एवं निदान

मिली बग्स- यह कीडे़ पौधे के मुलायम पत्तों और तनों में अधिकतर नुकसान करते देखा जाता है। जिनसे प्रभावित होने वाले पत्तियों के भाग में मोम जैसा पदार्थ छोड़ देता है। जो बाद में काले रंग के फफूँद का रूप ले लेती है। जिसे शूटी मॉल्ड कहतें हैं। इनके प्रभाव से पौधे में प्रकाश संशलेषण की क्रिया में बाधक होती हैं जिससे इनके वृद्धि एवं विकास में रूकावट होती हैं। जिनके निदान के लिये डाईमेथोएट 2 मिली को प्रतिलीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।

थ्रिप्स- इस कीडे़ के प्रभाव से पौधे की पत्तियों का रंग बदलने के साथ-साथ पत्तों का मुड़ना एवं गिरना भी इसके चूसने के कारण से ही होता हैं। इनके निदान के लिये थ्रिप्स कीडे की उपस्थिति के अनुसार प्रति एकड़ में 20 पीले स्टिकी ट्रैप का प्रयोग करके किया जा सकता हैं। इनको रोकने का दूसरा उपाय फिप्रोनिल 1.5 मिली को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।

फूल की तुड़ाई एवं उपज
गेंदें की प्रजातियां दो माह मे ही अपना सम्पूर्ण आकार विकसित कर लेती है और जब इसे तोडने के लिये होते है तब इससे पहले खेत में हल्की सिंचाई कर फूलों को सुबह तथा सांय काल मे तोडने से गुणवता लंबे समय तक तरोताजा बने रहने में सहायक होती है। वर्षाकालीन गेंदें के पौधे को उनकी अच्छी भूमि तैयारी, रोपण दूरी, खाद एवं उर्वरक, सिंचाई, निराई-गुड़ाई, कीडे़ एवं रोग को अच्छा देख-रेख करने के पश्चात् फूलों की पैदावार 120-180 क्विंटल प्रति एकड़ मिल जाती हैं। इनकी तुड़ाई के बाद ताजे फूलों को बांस की टोकरी या गनीबैग से पैंकिंग कर अपने लोकल या दूरस्थ स्थानों के बाजारों में बेचने के लिए भेज दिया जाता है।