सुप्रिया ठाकुर (सस्य विज्ञान विभाग)
जयेश शेष (सस्य विज्ञान विभाग)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

लो प्लास्टिक टनल तकनीक:फसलों को जोखिम से बचाने और उत्पादन की लागत को कम करने के लिये भारत के किसान खेती की आधुनिक तकनीकों (Advanced Farming Technique) पर जोर दे रहे हैं. इसमें पॉली हाउस (Polyhouse), ग्रीन हाउस (Greenhouse), प्लास्टिक मल्चिंग (Plastic Mulching) और लो टनल (Low Tunnel) का प्रयोग शामिल है. लो टनल को पॉली हाउस का छोटा पर प्रभावशाली रूप कहते हैं, जिसमें कम ऊंचाई पर 2-3 महीने के लिये अस्थाई संरचना बनाई जाती है. लो टनल में पॉली हाउस -ग्रीन हाउस की तरह बे-मौसमी सब्जियां उगाई जाती हैं।

लो प्लास्टिक टनल ऐसी संरक्षित संरचना है जिसे मुख्य खेत में फसल की रोपाई के बाद तथा दोपहर बाद 20-30 माईक्रोन मोटाई तथा लगभग 2 मीटर चौडाई की, पारदर्शी प्लास्टिक की चादर से ढका जाता है।ढकने के बाद प्लास्टिक के लम्बाई वाले दोनों सिरो को मिट्टी से दबा दिया जाता है।इस प्रकार रोपित फसल पर प्लास्टिक की एक लघु सुरंग बन जाती है। यह फसल को कम तापमान से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बनाई जाती है। यह तकनीक उत्तर भारत के उन मैदानों में सब्जियों की बेमौसमी खेती के लिए बहुत उपयोगी है जहाँ सर्दी के मौसम में रात का तापमान लगभग 40 से 60 दिनो तक 8 डीग्री सें.ग्रे. से नीचे रहता है।

ऐसी संरचना बनाने के लिए सबसे पहले ड्रिप सिंचाई की सुविधा युक्त खेत में, जमीन से उठी हुई क्यारियों उत्तर से दक्षिण दिशा में बनाई जाती है। इसके बाद क्यारियों के मध्य में एक डिप लाइन बिछा दें। क्यारी के उपर 2 मी.मी. मोटे जंगरोधी लोहे के तारो या पतले व्यास के पाईपों को मोडकर हुप्स या मेरे इस प्रकार बनाते हैं कि इसके दो सिरों की दूरी 50 से 60 सेमी तथा मध्य से उचाई भी 50 से 60 सेमी रहे। तारों के बीच की दूरी 1.5 से 2 मीटर रखनी चाहिए।

यदि रात को तापमान लगातार 5 डिग्री सें.ग्रे से कम है तो 7 से 10 दिन तक प्लास्टिक में छेद करने की आवश्यकता नही है लेकिन उसके बाद प्लास्टिक में पूर्व दिशा की ओर चोटी से नीचे की ओर छोटे छोटे छेद कर देते हैं। जैसे जैसे तापमान बढ़ता है इन छेदों का आकार भी बढ़ाया जाता है। पहले छेद 2.5 से 3 मीटर की दूरी पर बनाते है, बाद में इन्हें 1 मीटर की दूरी पर बना देते हैं।

आवश्यकता अनुसार मौसम ठीक होने पर तापमान को ध्यान में रखते हुऐ टनल की प्लास्टिक को फरवरी के अंत से मार्च के प्रथम सप्ताह में पूरी तरह से हटा दिया जाता है। इस समय तक फसल काफी बढ़ चुकी होती है तथा कुछ फसलों में तो फलस्थापन भी आरम्भ हो चुका होता है। इस तकनीक से बेल वाली समस्त सब्जियों को मौसम से पहले या पूर्णतः बेमौसम में उगाना संभव है। विभिन्न बैल वाली सब्जियों में इस तकनीक से संभावित फतन अगतापन इस प्रकार है-

लो टनल खेती के फायदे (Benefits of Low Tunnel Farming) अत्याधिक सर्दी वाले क्षेत्रों में लो टनल (Low Tunnel Farming) काफी प्रभावी तकनीक साबित हो रही है

  • कम तापमान, पाला और बर्फबारी में लो टनल तकनीक से संरक्षित खेती करने पर नुकसान की संभावना कम हो जाती है।
  • कद्दूवर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के लिये इसकी प्रकार लो टनल बनाई जाती है।
  • वैसे तो इसका इस्तेमाल ज्यादातर सर्दियों में किया जाता है, लेकिन गर्मी में भी इसमें खेती करने पर अच्छे रिजल्टसामने आये हैं।
  • लो टनल में चप्पन कद्दू, लौकी, खीरा, करेला और खरबूज-तरबूज जैसे बेलदार फल सब्जियों की खेतीकर सकते हैं।
  • इस तरह लो टनल में संरक्षित खेती (Protected Farming) करने पर सरकार भी उचित दरों पर सब्सिडी देती है।
  • इस संरक्षित ढांचे में खेती करने पर हवा की आर्द्रता को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • इसमें टपक सिंचाई का प्रयोग किया जाता है, जिससे पानी और खाद दोनों की काफी बचत होती है।
  • लो टनल में उगाई गई फसल में खरपतवार, कीड़े और बीमारियों की संभावना नहीं रहती।
  • इस तरह से खेती करने पर मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है और नमी बनी रहती है।
  • पॉली हाउस की तरह लो टनल में खेती करने पर फसल 2-3 महीना पहले ही पककर तैयार हो जाती है।
  • इससे किसानों को जल्दी-जल्दी फसलें उगाने और दोगुना पैसा कमाने का मौका मिल जाता है।
  • पॉली हाउस को लंबे समय के लिये लगाया जाता है, लेकिन लो टनल को 2-3 महीने पानी कम अवधि वाली फसलों (Short Term Crops) के लिये प्रयोग करते हैं. यही कारण है कि ये तकनीक पॉली हाउस से सस्ती है।
  • इस तकनीक बेमौसमी सब्जियों उगाने के लिए सब्जियों की पौध को प्लास्टिक प्लग ट्रे तकनीक (plastic tray technique) से दिसम्बर व जनवरी माह में ही तैयार किया जाता है।

किसान लो टनल पॉलीहाउस तकनीक से कमा सकते हैं लाखों किसानों के पास इस तकनीक से पैसा कमाने का अवसर है। इस विधि से आप किसानों को अपनी नर्सरी के पौधे बेचकर अच्छा लाभ कमा सकते हैं। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के रानियाला दयालपुर गांव के रहने वाले सतपाल सैनी एक ऐसे ही प्रगतिशील किसान हैं। सतपाल सैनी लो टनल नर्सरी में सब्जी के पौधे तैयार कर अपने क्षेत्र के किसानों को बेचकर सालाना लाखों रुपये कमाते हैं। सतपाल सैनी अपनी 2 बीघा ज़मीन पर लो टनल में एक बार में बैगन, • मिर्च, टमाटर और प्याज के करीबन ढाई लाख पौधे तैयार करते हैं। उन्होंने बताया कि एक पौधा तैयार करने में उन्हें 60 पैसे का खर्च आता है। उसे एक 10 पैसे या एक रुपया 20 पैसे की दर से बेचकर एक से डेढ़ लाख रुपये कमाते हैं। वो हर साल 3 से 4 बार पौधा तैयार करके बेचते हैं। इस तरह उनकी सालाना कमाई 4 से 5 लाख रूपये तक हो जाती है ।