युगलकिशोर लोधी, जितेन्द्र त्रिवेदी, प्रवीण कुमार शर्मा एवं संगीता
उद्यान विज्ञान विभाग,
इंदिरा गांधी कृषि विश्वाविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

परिचय
अरबी का वैज्ञानिक नाम कोलोकेशिया इस्कुलेंटा है और यह अरबी कुल में आता है। इसे विभिन्न नामों से जाता है जैसे - कोचई, कच्चु, टारो, झुइयाँ आदि। इस फसल की खेती सब्जी के रूप की जाती है। अरबी के मूलकन्द, मूल कन्द के बगल से निकले कन्दों, तना और उसकी पत्तियों का उपयोग विभिन प्रकार से सब्जियाँ बनाने में किया जाता है। इसके पौधों में निकलने वाले पत्तो का आकार काफी चौड़ा होता है, जिन्हें सुखाने के बाद इन पत्तों से सब्जी और पकोडे बनाकर खा सकते है, इसके सूखे कंदों से आटा प्राप्त किया जाता है। अरबी के कन्द में कार्बोहाईड्रेट, कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम और सोडियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसके साथ ही इसमें बहुत से सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाये जाते हैं जोकि हमारे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते हैं। सब्जी के अलावा अरबी का उपयोग औषधीय रूप में भी करते हैं। इसका सेवन करने से कई तरह की बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है। इससे कैंसर, ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारियां, शुगर, पाचन क्रिया, त्वचा और नजर तेज करने के लिए दवाईयां तैयार की जाती हैं।

अरबी के पोषक मूल्य
अरबी का कंद कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत हैं। इसके कंदो में स्टार्च की मात्रा आलू तथा शकरकंद से भी अधिक होती हैं। इसमें फाइबर, प्रोटीन, पोटैशियम, विटामिन ए, विटामिन सी, कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होती हैं। इसके अलावा इसमें प्रचुर मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट भी पाए जाते हैं। यहां तक इसकी पत्तियों में भी विटामिन ए, खनिज लवण जैसे - फास्फोरस, कैल्शियम व आयरन और बीटा कैरोटिन भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं। इसके प्रति 100 ग्राम में 112 किलो कैलोरी ऊर्जा, 26.46 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 43 मिली ग्राम कैल्शियम, 591 मिली ग्राम पोटेशियम पाया जाता है।

खेती का सही समय
अरबी की खेती खरीफ और रबी दोनों मौसम में की जाती हैं। खरीफ मौसम की फसल की बुवाई जुलाई माह में की जाती हैं, जो दिसंबर और जनवरी महीने तक तैयार हो जाती है। वहीं रबी मौसम की फसल अक्टूबर महीने में लगाई जाती हैं, जो अप्रैल और मई माह में तैयार हो जाती हैं।

भूमि
अरबी की खेती किसी भी तरह की जीवांश युक्त उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती हैं। किन्तु अरबी के लिए पर्याप्त जीवांश एवं उचित जल निकास युक्त रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी वाली भूमि को सबसे उपयुक्त पाया गया है। इसकी खेती में भूमि का पी.एच. मान 5.5 से 7 के मध्य होना चाहिए। अरबी की फसल को एक ही भूमि पर लगातार नहीं उगाना चाहिए अन्यथा उस मिट्टी में मृदाजनित बीमारी लगने का आशंका बढ़ जाती है। इसके साथ ही यदि पिछले वर्ष के अरबी के कन्द उस खेत में रह गया हो तो वह भी मुख्य फसल के साथ उग जाएगा, जिससे प्रभेद विषमता गुणों पर प्रतिकुल प्रभाव पड सकता है।

जलवायु
उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु को अरबी की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता हैं। यह गर्म मौसम की फसल है, जिसे गर्मी और बरसात दोनों मौसम में उगा सकते हैं। इसके पौधे बारिश और गर्मियों के मौसम में अच्छे से विकास करते है, किन्तु अधिक गर्म और सर्द जलवायु इसके पौधों के लिए हानिकारक होता हैं। सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला पौधों की वृद्धि को रोक देता हैं। अरबी के कंद अधिकतम 35 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान में ही अच्छे से विकसित होते हैं। इससे अधिक तापमान पौधों के लिए हानिकारक होता हैं।

भूमि की तैयारी
इसकी सफल खेती के लिए खेत को अच्छे से तैयार करना होता है। खेत तैयार करने के लिए पहले एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से 2 से 3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए। खेती के लिए भूमि तैयार करते समय 200 से 250 किं्वटल गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से अरबी की बुवाई के 15 से 20 दिन पहले खेत में मिला देनी चाहिए। अब भूमि को पाटा चलाकर समतल कर लेनी चाहिए।

अरबी की बुवाई
अरबी की बुवाई समतल या मेड़ पर की जाती है। इसके लिए पहले से तैयार खेत में 45 सें.मी की दूरी पर एक से ड़ेढ फीट की ऊंचाई रखते हुए मेड़ बनाकर एक किनारें से शुरू कर 30 सें.मी की दूरी पर इसके कंदों की बुवाई करनी चाहिए। बुवाई के बाद कंद को मिट्टी से अच्छी तरह से ढंक देना चाहिए। क्यारियों में बुवाई के लिए तैयार समतल खेत में पंक्ति से पंक्ति की आपसी दूरी 45 सें.मी रखते हुए क्यारियों को तैयार करें तथा पौधें की दूरी 30 सें.मी रखते हुए कंदों को 5 सें.मी की गहराई पर बुवाई करें।

अरबी कीे उन्नत किस्में
अरबी की किस्मों में पंचमुखी, राजेन्द्र अरबी-1, सफेद गौरिया, सहस्त्रभुजी, सी-9, मुक्ताकेशी सलेक्शन नरेंद्र अरबी-1 प्रमुख हैं। इंदिरा अरबी-1 छत्तीसगढ़ के लिए अनुमोदित किस्म है।

बीज की मात्रा एवं बीजोपचार
अरबी की बुवाई इसके कंदो के द्वारा की जाती हैं। इसके कंद को खेत में उचित गहराई 5-6 से.मी. में बोना चाहिए, ताकि इसके कंदों का समुचित विकास हो सकें। अरबी की बुवाई के लिए 10-15 ग्राम औसत वजन वाले अंकुरित कंद 7 से 9 किग्रा. प्रति हेक्टेयर में जरूरत पड़ती है एवं कंद बड़े 20-25 ग्राम औसत वजन हो तो 10 से 15 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरत पड़ती है। बोने से पहले कंदों को मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. के 1 ग्राम/लीटर पानी के घोल में 10 मिनट डुबोकर उपचारित कर बुवाई करना चाहिए। बुवाई के बाद कंद को मिट्टी से अच्छी तरह ढक देना चाहिए।

खाद और उर्वरक
अरबी के लिए खेत तैयार करते समय 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद और आधार उर्वरक को अंतिम जुताई करते समय मिला देना चाहिए। रासायनिक उर्वरक नत्रजन 80 किलोग्राम, फास्फोरस 50 किलोग्राम और पोटाश 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। नत्रजन तथा पोटाश की आधी मात्रा तथा फास्फोरस की पूरी मात्रा को आधार उर्वरक के रूप में बुवाई के पहले दें एवं रोपण के एक माह पश्चात नत्रजन तथा पोटाश की आधी मात्रा का प्रयोग करें।

सिंचाई
अरबी की गर्मी के मौसम वाली फसल को अधिक सिंचाई की जरूरत होती हैं। गर्मी के मौसम के दौरान इसके खेत में नमी बनाए रखने के लिए शुरूवात में 7 से 8 दिन के अंतराल में सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त यदि कंदो की बुवाई बारिश के मौसम में की गई है, तो इसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती हैं। यदि बारिश समय पर नहीं होती हैं, तो 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई कर लेनी चाहिए। ठंडी के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतराल में सिंचाई कर लेनी चाहिए।

निराई-गुड़ाई
अरबी के खेत की समय-समय पर हाथों से निराई-गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण करें एवं खेत में खरपतवार का ज्यादा प्रकोप हो जाने पर खरपतवारनाशी जैसे एट्राजीन या सीमाजिन का एक किलोग्राम क्रियाशील तत्व/हेक्टर की दर से छिड़काव करें। अरबी की पहली निराई-गुड़ाई खेत की बुवाई के 30 से 35 दिनों के पश्चात करें व दूसरी निराई-गुड़ाई 60 से 65 दिन के पश्चात करें। निराई-गुड़ाई के दौरान इसके पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाएं। यदि इसके पौधें से तने अधिक मात्रा में निकल रहे हो, तो एक या दो तनों को छोड़कर शेष तनों की कटाई करें।

कीट व रोग नियंत्रण

अरबी के इल्ली और लाही कीट:- इसके नियंत्रण के लिए डायमिथोएट (30 ई.सी.) की 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल में 2 से 3 छिड़काव करना चाहिए।

झुलसा रोग:- डाईथेन एम 45 का 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल में 4 से 5 छिड़काव करना चाहिए।

खुदाई एवं पैदावार
जब अरबी की खेती सब्जी के रूप में बाजार में बेचने के लिए की जाती है तब खुदाई के लिए फसल 120 से 130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। कंदों को संपूर्ण पकने के बाद ही बाजार में भेजने और संग्रहित करने के लिए खोदना चाहिए। अरबी के किस्मों एवं खेती की तकनीक के आधार पर इसकी उपज 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।