डॉ. चंदूलाल ठाकुर, विषय वस्तु विशेषज्ञ (सस्यविज्ञान)
श्री हेमंत कुमार भूआर्य, विषय वस्तु विशेषज्ञ (कृषि मौसम विज्ञान)
श्री उपेन्द्र कुमार नाग, विषय वस्तु विशेषज्ञ (पौघरोग विज्ञान)
कृषि विज्ञान केंद्र, कांकेर
उन्नत कृषि कार्यमाला
भूमि- मूंग की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।
खेती की तैयारी- खेत समतल एवं खरपतवार मुक्त होना चाहिये। ग्रीष्म की बुवाई के लिए खेत से रबी की फसल की कटाई के तुरंत बाद सिंचाई कर तैयार करना चाहिए अथवा कटाई के बाद सूखे खेत को दो या तीन बार बखरनी करके तैयार करना चाहिए। प्रत्येक बखरनी के साथ पाटा लगाकर खेत को समतल करना चाहिए।
बुवाई का समय- बुवाई मार्च से मध्य अप्रैल तक की जानी चाहिये। खेत की सूखी अवस्था में बुवाई करके सिंचाई करना चाहिये।
बीज दर- बीज की मात्रा गर्मी में 20-25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए।
बुआई- बीज को कतार से कतार 30 से. मी. एवं पौधे से पौधे को 10 से. मी. की दूरी पर बोना चाहिये। बीज की बुवाई सीडड्रिल से की जानी चाहिए।
बीज उपचार- बोने से पूर्व बीज को थाइरम या कार्बेन्डाजिम 2.5ग्रा०/कि.ग्रा. के साथ इमिडाक्लोप्रिड से उपचारित कर लेना चाहिए। साथ ही राइजोबियम कल्चर 250 ग्राम प्रति 10 किलोग्राम बीज से उपचारित करना चाहिए।
छत्तीसगढ़ की जलवायु हेतु उन्नत किस्मे
क्र. |
किस्म का नाम |
अवधि दिनों में |
औसत उपज (क्विं/हे.) |
महत्व |
1 |
बी.एम.-4 |
65-70 |
10-12 |
चूर्णी आसिता एवं मोजाइक सहनशील |
2. |
मालवीय ज्योति (हम-1) |
65-70 |
10-12 |
मोजाइक निरोधी |
3. |
पूसा विशाल |
60-65 |
10-12 |
मोजाइक सहनशील |
4. |
मालवीय जनचेतना (हम-12) |
60-65 |
10-12 |
मोजाइक एवं चूर्णी आसिता निरोधी |
5. |
एच.यू. एम. 16 |
55-60 |
10-12 |
पीला मोजैक निरोधक व् रबी के लिए उपयुक्त |
6. |
पी. के. वी. ए.के.एम.-4 |
62-66 |
10-12 |
पीला मोजैक निरोधक व् खरीफ के लिए उपयुक्त |
7. |
आई.पी.एम.410-3 (शिखा) |
65-70 |
11-12 |
पीला मोजैक निरोधक व् ग्रीष्म के लिए उपयुक्त |
8. |
पैरी मुंग |
90-95 |
10-12 |
पीला मोजाइक सहनशील भभूतिया रोग निरोधक , रबी
के लिए उपयुक्त |
खाद एवं उर्वरक- कम्पोस्ट या गोबर की खाद 8-10 टन, बीज बुवाई से पूर्व खेत में डालकर अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। साथ ही 20 कि. ग्रा. नत्रजन, 50 कि. ग्रा. फास्फोरस एवं 20 कि. ग्रा. पोटाश डालकर बुवाई की जानी चाहिए। उर्वरकों का उपयोग बुवाई के ठीक पहले बीज से 5-7 से.मी. की गहराई में डालकर करना चाहिये।
सिंचाई- ग्रीष्म में मूंग में 5-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई 20-25 दिन में देना चाहिए, इसके बाद 12-15 दिन के अंतराल पर सिचाई की जानी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण- बुवाई के 15 से 20 दिन की फसल पर इमेझिथापर 0.5 लि./ हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए।
बीमारियां एवं उनका नियंत्रण-
1. पीला मोजेक वायरस - इस बिमारी के लक्षण बुवाई के एक महिने बाद दिखाई देते है प्रभावित पौधा पूरी तरह से पीला पड़ जाता है।
नियंत्रण - इमिक्लोप्रिड (0.08 प्रतिशत) का घोले दो से तीन बार छिड़काव करना चाहिए।
2. लीफ कर्ल- यह एक वाइरल बिमारी है। इस बिमारी के लक्षण तीन हफ्तों के अन्दर दिखाई देने लगते है। ग्रसित पौधे की पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती है। पौधों की वृद्धि रूक जाती है। पत्तियों की शिराएं लाल, भूरा रंग में परिवर्तित होने लगती है।
नियंत्रण - फसल पर मेटासिस्टक्स का 0.1 प्रतिशत का घोल का छिड़काव करने से वाइरस फैलाने वाले कीटो का नियंत्रण करके बिमारी का नियंत्रण करना चाहिए।
3. बीज एवं पौध सड़न - कवक के कारण बीज एवं पौध में सड़न होने लगती है। जिससे खेत में पौधों की संख्या कम दिखाई देती है।
नियंत्रण - कवकनाशी जैसे थाइरम या कार्बेन्डेजिम से उपचारित करना चाहिए।
4. सरकोस्पोटा लीफ स्पॉट - इसके लक्षण पत्तियों पर गोल धब्बे, बैंगनी रंग के दिखाई देते है। ये धब्बे पत्तियों पर भी दिखाई देते है।
नियंत्रण- इसके नियंत्रण के लिए जिनेब या मेनकोजेब 75 डब्ल्यू पी का 2 कि.ग्रा / 1000 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
3. कीट नियंत्रणः-
1. रोयॅदार इल्ली-
नियंत्रण - कीट के अण्डे एवं इल्लियों को एकत्रित करके नष्ट कर देना चाहिए। 2 प्रतिशत मिथाइल फेराथिआन धूल का 25-30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर भुरकाव करके नियंत्रण किया जा सकता है।
2. गेलेएसिड बीटल- यह मूंग फसल का मुख्य कीट है। यह कीटरात्रि के समय अधिक हानि पहुँचाता है। दिन के समय भूमि में छिप जाता है प्रौढ़ बीटल पत्तियों में छोटे-छोटे गोल छेद बना देता है।
नियंत्रण - फोरेट 20 प्रतिशत दानेदार का 10 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के दर से भुरकाव करके इस कीट का नियंत्रण किया जा सकता है।
3. कीट हाफर - इस कीट की पौध एवं निम्न अवस्था पत्तियों में रसचूस कर पौधे को कमजोर बनाती है। रस चूसने से पत्तियाँ भूरी एवं सिरे से मुड़जाती है।
नियंत्रण -(1) इसके नियंत्रण के लिये फोरेट 10 प्रतिशत दानेदार का 10 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए।
(2) इमिडाक्लोप्रिड का 0.05 से 0.075 प्रतिशत का पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए।
4. जेसिड्स - इस कीट के प्रौढ़ एवं निम्फ पत्तियों में रस चूसकर हानि पहुंचते है। जिससे पौधा कमजोर हो जाता है।
नियंत्रण- इसके नियंत्रण के लिये 0.1 प्रतिशत मेटासिस्टाक का छिड़काव करना चाहिए।
फसल की कटाई एवं मड़ाई- जब फलियां अच्छी तरह पक जाये तो फलियों की तुड़ाई की जानी चाहिए। फलियों की तुड़ाई के बाद अच्छी तरह से सुखाकर माई करनी चाहिए।
उपज- अच्छी तरह से प्रबंधन की गई फसल से 10-12 क्वि. दानों की उपज प्राप्त कर सकते है।
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