हरेन्द्र कुमार (सस्य विज्ञान विभाग)
चन्द्रकला (कृषि अर्थशास्त्र विभाग )
डॉ. शमशेर आलम (पादप रोग विज्ञान)

Cucumber Farming Profit: भारत में कई ऐसी फसलें हैं जो बेहद कम वक्त में बढ़िया मुनाफा दे जाती हैं। हालांकि, आभाव की जानकारी में किसान इन फसलों की खेती ठीक से नहीं कर पाते हैं और अपना ही नुकसान कर बैठते हैं। खीरे की खेती भी कुछ इसी तरह की फसल है। इसकी बुवाई कर किसान कम लागत में बढ़िया मुनाफा हासिल कर सकते है ।

खीरे की सबसे खास बात यह है कि इसे किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। इसके लिए किसी खास मिट्टी का जरूरत नहीं होती है। बता दें कि खीरे में ठीक-ठाक पानी की मात्रा मानी जाती है। ऐसे में गर्मियों में इसकी खपत बढ़ जाती है। इस फसल को तैयार होने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगता है। विशेषज्ञों का मानना है खीरे की फसल 60 से 80 दिनों में तैयार हो जाती है। ऐसे में इस वक्त किसान इस फसल की बुवाई कर अच्छा-खासा पैसा कमा सकते हैं।

कद्दूवर्गीय फसलों में खीरा का अपना एक अलग ही महत्वपूर्ण स्थान है। इसका उत्पादन देश भर में किया जाता है। गर्मियों में खीरे की बाजार में काफी मांग रहती है।किसान इसकी खेती खरीफ, रबी और जायद तीनों सीजन में कर सकते हैं। इसलिए कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि किसान खीरे की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

खीरे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान
खीरे की खेती किसी भी उपजाऊ भूमि में की जा सकती है, किन्तु बलुई दोमट मिट्टी में इसकी खेती कर अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इसकी खेती के लिए भूमि का ph मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए। शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु को खीरे की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। भारत में इसे अधिकतर बारिश और गर्मियों के मौसम में उगाया जाता है। इसके अलावा सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला भी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होता है। खीरे की अच्छी फसल के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है। इसकी फसल अधिकतम 40 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकती है।

खीरे की उन्नत किस्मे जो देती है ज्यादा पैदावार
पूसा संयोग, पूसा बरखा, स्वर्ण पूर्णिमा, पूसा उदय, पूना खीरा, स्वर्ण अगेती, पंजाब सलेक्शन, खीरा 90, कल्यानपुर हरा खीरा, खीरा 75, पीसीयूएच- 1, पूसा उदय, स्वर्ण पूर्णा और स्वर्ण शीतल आदि इसकी अच्छी किस्म मानी जाती हैं। पूसा संयोग एक हाइब्रिड किस्म है जो 50 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है। जबकि पूसा बरखा खरीफ के मौसम के लिए है। इसकी औसत पैदावार 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। उधर, स्वर्ण शीतल चूर्णी फफूंदी और श्याम वर्ण रोग प्रतिरोधी किस्म है।

खीरे के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका
खीरे की फसल अलग-अलग जलवायु के हिसाब से अलग-अलग समय पर की जाती है। भारत के उत्तरी क्षेत्रों में इसे मार्च से नवंबर के माह में उगाया जाता है, तथा दक्षिण भारत में इसे केवल नवंबर के माह में लगाया जाता है। इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी खेती के लिए अप्रैल और मई का महीना उचित माना जाता है।खीरे के बीजो की रोपाई खेत में तैयार की गई मेड़ पर की जाती है। इसके लिए खेत में चार फ़ीट की दूरी रखते हुए एक से सवा फ़ीट चौड़ी मेड़ को तैयार कर लिया जाता है।

इन मेड़ो पर बीजो की रोपाई दो से तीन फ़ीट की दूरी पर की जाती है। इसके अतिरिक्त यदि किसान भाई बीजो की रोपाई समतल खेत में करना चाहते है, तो उसके लिए खेत में एक फ़ीट गहरी नालियों को तैयार कर लिया जाता है। इसके बाद इन नालियों में एक फ़ीट की दूरी पर बीजो को लगाया जाता है। खीरे की साधारण क़िस्म में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 3 KG बीज तथा संकर क़िस्म में 2 KG बीजो की आवश्यकता होती है।

खीरे की निराई-गुड़ाई करने का जरुरी समय
खेत में खुरपी या हो के द्वारा खरपतवार निकालते रहना चाहिए। ग्रीष्मकालीन फसल में 15-20 दिन के अंतर पर 2-3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए तथा वर्षाकालीन फसल में 15-20 के अंतर पर 4-5 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। वर्षाकालीन फसल के लिए जड़़ों में मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।

खीरे के पौधों में खरपतवार नियंत्रण
खीरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है। इसके पौधों को केवल दो से तीन गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है। इसके पौधों की पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 25 दिन बाद और दूसरी गुड़ाई लगभग 20 दिन बाद की जाती है।

खीरे के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम-

चूर्णी फफूंदी
खीरे के पौधों में लगने वाला यह रोग एक महीने पश्चात् ही दिखाई देने लगता है। इस रोग से प्रभावित होने पर पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर सफ़ेद रंग के धब्बे पड़ जाते है। यह रोग पौधों की पत्तियों को नष्ट कर देता है, जिससे पैदावार भी प्रभावित होती है। इस रोग की रोकथाम के लिए सल्फेक्स और कैराथेन की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों की पत्तियों पर किया जाता है।

फल मक्खी
इस क़िस्म का रोग पौधों पर कीट के रूप में आक्रमण करता है। यह रोग पौधे पर लगे कच्चे और पक्के फल दोनों को ही ख़राब कर देता है, जिससे पैदावार भी अधिक प्रभावित होती है। कारटप एस पी की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।

सुंडी रोग
यह सुंडी रोग पौधों की पत्तियों को प्रभावित करता है। इस रोग की सुंडी पत्तियों को खाकर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देती है। इस रोग से प्रभावित पौधे अच्छे से वृद्धि नहीं कर पाते है। इस रोग का कीड़ा हरा और पीले रंग का होता है। इस रोग की रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरीफास की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर किया जाता है।

आद्र या बीज गलन रोग
इस तरह का रोग अक्सर जलभराव की स्थिति में देखने को मिलता है। इस रोग में बीज सड़कर ख़राब हो जाता है, जिससे बीज अंकुरण नहीं कर पाता है। इस रोग से बचाव के लिए मैन्कोजेब की उचित मात्रा से उपचारित कर बीजो की रोपाई करनी चाहिए।

खीरे की खेती से कमाई और पैदावार
खीरे की फसल बीज रोपाई के 40 से 45 दिन बाद पैदावार देना आरम्भ कर देती है। जब इसके पौधों में लगे फल आकर्षण दिखाई देने लगे तब उनकी तुड़ाई कर ली जाती है, किस्मो के आधार पर इसके फलो की तुड़ाई एक से दो दिन के अंतराल में कई बार की जाती है। अलग-अलग क़िस्म के आधार पर खीरे की फसल से 4 से 16 टन की पैदावार प्राप्त हो जाती है। खीरे का बाज़ारी भाव 1500 से 2000 रूपए प्रति क्विंटल होता है, जिससे किसान भाई खीरे की एक बार की फसल से 1 लाख से अधिक की कमाई कर अच्छा लाभ कमा सकते है।