सौरभ कुमार सिन्हा(एम.एस.सी. कृषि प्रसार)
डॉ. योगेश कुमार कोसरिया (अतिथि शिक्षक,कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, रायगढ़, छ.ग.)
डॉ. सरिता अग्रवाल (सह. प्राध्यापक कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, रायगढ़, छ.ग.)

बिजीय मसाले स्वाद एवम खुशबू के कारण भोजन में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखते है। इनकी यह विशेषता इनमे पाये जाने वाले वाष्पशील तेल के कारन होती है। इनके बीजो में खाध पोषक तत्व जैसे- कार्बोहाइड्रेड,प्रोटीन, वसा, खनिज लवण इत्यादि भी बिभिन्न अनुपात मे पाये जाते है। स्वाद एवं खुशबू बिखेरने के अतरिक्त ये कई ओषधीय गुणों से परिपूर्ण होते है यही विशेषता ये इनके महत्व को और भी बढ़ा देती है।

अजवायन औषधीय उपयोग 
आयुर्वेद में अजवायन को पाचक, रुचिकर, तिछ्ण, गरम, चटपट, हल्की, दीपन तथा कडवी बताया गया है। अपने इन विशेष गुणों के कारन यह कफ, वायु , पेटदर्दवा युगोला, अफरा आदि रोगों को ठीक करने में सछम है। इन रोगों की रामबाण ओषधी के रूप में कई नुस्खे प्रचलित है अग्निवर्धक चूर्ण का उपयोग कब्जियत , अजीर्ण अम्ल पति एवं संघ्रहणी रोगों में किया जाता है जीवन रक्षक सुधा, सिरदर्द, छाती एवं कमर दर्द में मालिश के काम आता है अतिसार, पेट दर्द ओएत की मरोड़, वायु गोला एवं उल्टी में इसका प्रयोग लाभकारी होता है। अपच में एक चम्मच अजवायन को थोड़े से नमक के साथ लेना लाभकारी होता है पेटदर्द, खासी एवं अपच में बिज को रगड़कर खाने तथा उसके बाद एक गिलास पानी लेने से काफी आराम मिलता है ये दोनों ही प्रचलित घरेलु नुस्खे है।

सुआ (डील) औषधीय उपयोग 
बीज से निकाले गये वाष्पशील तेल का प्रयोग कई प्रकार की दवाओ के निर्माण में करते है, इसक तेल में पानी मिलाकर डील-वाटर बनाया जाता है जो बच्चो को अफरा, पेटदर्द तथा हिचकी जैसी बीमारियों में दिया जाता है। सुवा के बीजो से निकाले वाष्पशील तेल को ग्राइप वाटर बनाने में भी प्रयोग किया जाता है।

कलोंजी औषधीय उपयोग
इनमे कई ओषधिय गुण पाये जाते है या हवातहर, उतेजक, व मूत्रवर्धक होता है, मृदु प्रसवसम बन्धित बुखार, चमड़ी केफफोले एवं बिच्छु के काटने पर इसका प्रयोग करना लाभकारी होता है बीजो में रोगणुना सकगुण होते है। इसके तेल में मौजूद नाइजोलोन तत्व की उपस्थिति के कारण खासी व दमा के रोगों में लाभकारी होता है इसके बीजो को ऊनि कपड़ो के तहों में रखते है जिससे कीड़े नहीं लगते है।

सेलेरी औषधीय उपयोग
सेलेरी का उपयोग बिभिन्न प्रकार के ओषधीयो के निर्माण में भी किया जाता है इसके दानो को बलवर्धक एवं उत्तेजक के रूप में दमा एवं यकृत के रोगों में प्रयोग किया जाता है। घरेलु ओषधी के रूप में इसके बीजो का प्रयोग नाडी मंडल की बीमारियों को ठीक करने में प्रयुक्त होता है। इसका उपयोग शान्ति कर तथा बलवर्धक के रूप में किया जाता है बीजो से प्राप्त तेल का प्रयोग माशपेसियो के ऐठन से आराम दिलाता है एवं जोड़ो के दर्द वाले गंठिया में भी लाभदायक होता है। वाष्पशील तेल का उपयोग प्रसाधन सामग्री उधोग में भी किया जाता है सेलेरी के पत्तो को टमाटर या गाजर या दोनों को मिलाकर स्वास्थ्यपूर्वक पेय में भी किया जाता है।

विलायती सौंफ औषधीय उपयोग
एनाईस अपने ओषधिय गुणों के लिए है यह वात हर होता है तथा पाचन में सहायक होने के साथ-साथ मुह के बदबू को भी ठीक करता है यह एक मृदुक फोत्सारक का भी काम करता है। इसमे रोगाणुरोधक, ऐठन एवं जकड़न नाशक तथा निद्राजनक गुण पाये जाते है। हिचकी को ठीक करने के लिए पानी के साथ कुछ दाने लेना पर्याप्त होता है। पशुओं में तथा माताओं में इसका प्रयोग दुग्धवर्धक सिद्ध हुआ है।

सह जीरा औषधीय उपयोग
यह मृदु अग्निवर्धक एवं वातहर होता है तथा इसका उदर वा युविकार में प्रयोग करने से लाभ होता है। स्वर की खराबी, अजीर्ण तथा दीर्घ स्थायी डायरिया में इसका सेवन लाभदायक होता है। सूजाक के लिए बनाये जाने वाले ओषधि में इसका प्रयोग होता है। इसके बिज को नीबू के रस में मिलाकर पितिय उल्टी को रोकने के लिए दिया जाता है। इसके तेल में उपलब्ध का र्वोन का प्रयोग आंत के कीड़ो में विशेषकर हुक वर्म को नष्ट करने के लिए किया जाता है। चर्म रोग के उपचार हेतु इसका प्रयोग विभिन्न सामग्रियों के साथ मिलाकर करते है।