डॉ. देवेन्द्र कुमार साहू , (पीएच.डी.),
सब्जी विज्ञान, इं.गां.कृ.वि. रायपुर (छ.ग.)

ग्वार एक गहरे जड तंत्र वाली सूखा-प्रतिरोधी दलहनी फसल हैं। इसकी फसल से 25-30 कि. ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर भूमि में उपलब्ध होती हैं। इसकी खेती सब्जी (हरी फलियाँ), चारा, दाना, हरी खाद, भूमि संरक्षण एवं ग्वार गम आदि के लिए की जाती है। ग्वार फली की सब्जियाँ शाकाहारी लोगों का संतुलित आहार है। प्रोटीन और रेशायुक्त होने के कारण इसे सब्जियों में प्रमुखता दी जाती है इसके अलावा कुछ पोषक तत्व आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन सी, थाइमिन और फोलिक अम्ल भी मौजूद होता है। इसकी ताजा व सूखी ग्वार फली को अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर तरह-तरह की सब्जियाँ बनाई जाती हैं।

जलवायु एवं भूमि:-
ग्वार गर्म जलवायु की कम पानी की आवश्यकता वाली फसल है। इसकी खेती असिंचित व बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्रो में सफलतापूर्वक की जा सकती हैं। ग्वार को ग्रीष्म और वर्षा ऋतु दोनों में ही उगाया जा सकता है। इसे भारी काली मृदाओं को छोड़कर सभी प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है। अधिक ग्वार उत्पादन के लिए उचित जल निकास वाली बलुई दोमट मृदाएं जिसका पी.एच मान 7.5 से 8.0 तक हो सर्वोत्तम होता है।

हरी फलियों हेतु उन्नत किस्मः- 
शरद बहार, पूसा नवबहार, पूसा सदाबहार, पूसा मौसमी गोमा मंजरी, पी 28-1-1, एम 83, और आईसी 1388 आदि।

बुवाई एवं बीजोपचारः- 
ग्वारफली की खेती के लिए जायद फसल की बुवाई फरवरी से मार्च और वर्षा ऋतु के लिए बुवाई जून से जुलाई में किया जाता है। ग्वार की फसल दानो और हरी फलियों के लिए 15 से 18 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है, इन बीजो को खेत में लगाने से पहले उन्हें कैप्टान या बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर ले ताकि बीजो को आरम्भ में फफूंद जैसे रोग न लगे। पौधों में जड़ो की अधिक मात्रा में गांठ प्राप्त करने के लिए जीवाणु रोधक राइजोबियम उवर्रक से उपचारित कर लेना चाहिए। एक हेक्टेयर के खेत में 200 ग्राम के दो पैकेट जीवाणुरोधक की जरूरत होती है।

सिंचाई प्रबंधन:-
ग्वार की फसल को कम सिंचाई की जरूरत होती है, मार्च में 10 से 12 दिन तथा मई और जून में 4 से 5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए खरीफ के मौसम में यदि बराबर वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।

खरपतवार प्रबंधन:-
ग्वार की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत में समय-समय पर निराई गुड़ाई करना चाहिए, ताकि पौधों की जड़ो का विकास ठीक तरह से हो सके और जड़ो में ताजी हवा भी पहुंच सके। इसके अलावा रासायनिक तरीके से खरपतवार को रोकने के लिए बुआई के तुरन्त बाद बासालीन 800 मि.ली. प्रति एकड़ 250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा एवं प्रयोग विधि:-
बुआई से पहले खेत की जुताई के समय 10-12 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद मिलानी चाहिए। ग्वार फसल में सामान्यतः 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 50 कि.ग्रा. पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। जिसमें नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग बुआई के समय करना चहिए तथा शेष नाइट्रोजन बुआई से एक माह बाद छिटकवॉ विधि से प्रयोग करना चाहिए।

पौधसंरक्षण:
कीटप्रबंधन:

दीमक:-
यह रोग पौधों की जड़ो पर आक्रमण करता है। इस रोग से बचाव के लिए क्लोपाइरीफॉस पॉउडर की 20 से 25 किलोग्राम मात्रा या क्यूनलफोस 1.5 प्रतिशत का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत की आखरी जुताई के समय करना होता है।

एफिड्स (माहू):- 
यह कीट पौधों के नाजुक अंगो का रस चूसकर उन्हें हानि पहुँचाता है। जिससे पौधा कुछ समय पश्चात् ही सूखकर नष्ट हो जाता है। इस रोग से फसल को बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड या मोनोक्रोटोफॉस की 500 मिली. की मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर उसका छिड़काव प्रति हेक्टेयर खेत में करे। ग्वार की शीघ्र पकने वाली तथा एफिडरोधी किस्मों का चयन करें।

सफेद मक्खी:- 
यह पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है जिसके कुछ समय पश्चात् ही पौधों की पत्तियां सूखकर नष्ट हो जाता है। इस रोग से बचाव के लिए फसल पर ट्राइजोफॉस 40 ई. सी. 2.0 मिली. प्रति लीटर या डायमेथएट 30 ई. सी. 1.0 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिये।

फली बेधकः- 
यह किट पहले फलिओं की ऊपरी सतह को खाता है फिर छेद करके फलिओं में प्रवेश कर बीजों को खाता है इस तरह पैदावार पर बुरा असर पड़ता है इस किट के रोकथाम क लिए मेलाथियान 50 ई. सी. 1. 5 मि.ली. दवा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।

रोग प्रबंधन:

बैक्टीरियल ब्लाइट:-
यह एक अति हानिकारक रोग होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर गोल आकार के धब्बे दिखाई देने लगते है। ग्वार के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बीज रोपाई से पहले उन्हें स्ट्रेप्टो साइक्लिन की उचित मात्रा से उपचारित कर ले। इसके अतिरिक्त रोग प्रति रोधक किस्मों का चुनाव करना चाहिए।

छाछिया:-
इस किस्म का रोग पौधों की पत्तियों पर आक्रमण कर उन्हें हानि पहुँचाता है। छाछिया रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर सफेद रंग का चूर्ण एकत्रित हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर खेत में एक लीटर केराथेन की मात्रा को 500 लीटर पानी में अच्छे से मिलाकर उसका छिड़काव करे। इसके अलावा गंधक चूर्ण का इस्तेमाल भी कर सकते है।

जड़ गलन रोग:-
इस किस्म का रोग अक्सर ग्वार की फसल में अधिक समय तक जल भराव होने की स्थिति में देखने को मिलता है। यह फफूंद के रूप में पौधों को प्रभावित करता है, जिससे पौधों की जड़े गलने लगती है और पौधा कुछ समय पश्चात् ही सूखकर गिर जाता है। इस रोग से बचाव के लिए बीजो को में को जेब या थाइरम से उपचारित कर ले।

ग्वार की कटाई और उपज:- 
फसल को सब्जी के लिए उगाया गया है तो फलियों को मुलायम अवस्था में ही तोड़ लेना चाहिए मुलायम, कच्ची, हरी, फलियों को 4-5 दिन के अंतराल पर नियमित रूप से तुड़ाई करना चाहिए अच्छी फसल उत्पादन व्यवस्था अपनाकर प्रति हेक्टेयर से लगभग 8 से 13 टन तक फलिया की उपज प्राप्त हो जाती है।