रूपेश खापर्डे, (कृषि विस्तार विभाग),
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)

परिचय
मशरूम मृत कार्बनिक पदार्थाें पर उगने वाला एक प्रकार का कवक (फफूंद) होता है जो वर्षा ऋतु में मिट्टी में से या पौधो की सड़ी-गली पत्तियों में से अपने आप खुम्भ या छतरी नुमा आकार के सफेद, लाल और पीले विभिन्न रंगो के कवक दिखते है। इसी को हम मशरूम कहते है, जिसे हमारे पूर्वज आदिकाल से ही खाने के लिए एंव दवा के रूप में प्रयोग करते आ रहे है। इनमें अन्य वनस्पति के समान हरित पदार्थ (क्लोरोफिल) नहीं होता। अब इसकी वैज्ञानिक खोजों द्वारा जानकारी हो चुकी है। इस पर पूरे विश्व में अनेक वैज्ञानिक एवं संस्थाएं कार्य कर रही है मशरूम तकनीकी रूप से वनस्पति कुल में रखा गया है तथा इसे कवक श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। सड़ रहे पदार्थ में से अपना भोजन कुछ महीन धागो जैसे रचना (कवक जाल) द्वारा सोखते है यह कवकजाल अधिकतर पदार्थ को ऊपरी सतह पर नजर नहीं आते। इनमें प्रजनन बीजाणुओं द्वारा होता है और यह बीजाणु इनके फलनकार्प में बनता है जिसका हम खाने में उपयोग करते है, इसे खुम्बी, छतरी व कुकुरमुत्ता के नाम से भी जाना जाता है।

ऑयस्टर मशरूम
ढिंगरी मशरूम को किसी भी प्रकार के कृषि अवशिष्टों पर आसानी से उगाया जा सकता है, इसका फसल चक्र भी 45-60 दिन का होता है और इसे आसानी से सुखाया जा सकता है। ढिंगरी मशरूम में भी अन्य मशरूमां की तरह सभी प्रकार के विटामिन, लवण तथा औषधीय तत्व मौजूद होते है तथा ढिंगरी को वर्षभर सर्दी या गर्मियों में सही प्रजाति का चुनाव कर उगाया जा सकता है। आज हमारे देश में इसकी व्यावसायिक खेती हो रही है। हमारे देश में भी इसके उत्पादन में वृद्धि की बहुत संभावनायें हैं।

ढिंगरी मशरूम उत्पादन करने की विधि:
ढिंगरी मशरूम उत्पादन करने के लिए हमें उत्पादन कक्ष की जरूरत होती है जो बांस, कच्ची ईटों, पाॅलीथीन तथा पुआल से बनाऐ जा सकते है। इन उत्पादन कक्षों में खिड़की तथा दरवाजों पर जाली लगी होनी चाहिए। ये किसी भी आकार के बनाये जा सकते है इस बात का ध्यान रखा जाए कि हवा के उचित प्रबंधन के लिए दो बड़ी खिड़कियां तथा दरवाजों के सामने भी एक खिड़की होनी चाहिए।

पोषाधार तैयार करना
ढिंगरी का उत्पादन साधारणतः किसी भी प्रकार के ऊपर लिखित फसल के अवशिष्ट का प्रयोग कर किया जा सकता है। इसके लिए यह जरूरी है कि भूसा या पुआल पुराना तथा सड़ा गला नहीं होना चाहिए। जिन पौधों के अवशिष्ट सख्त तथा लम्बे होते हैं उन्हें हम लगभग 2 से 3 से.मी. छोटे टुकड़े में काट लेते है। सर्वप्रथम कृषि अवशेषों को जीवाणु रहित किया जाता है जिसके लिए निम्नलिखित कोई भी विधि द्वारा कृषि अवशेषों को उपचारित किया जा सकता है।

(क) गर्म पानी उपचार विधि:-
इस विधि में कृषि अवशेषों को छिद्रदार जूट के थैले या बोरे में भर कर रात भर गीला किया जाता है तथा अगले दिन इस पानी को गर्म कर लगभग 30-45 मिनट उपचारित किया जाता है। उपचारित भूसे को ठंडा करने के बाद मिलाया जाता है।

(ख) रासायनिक विधि:-
इस विधि में कृषि अवशेषों को विशेष प्रकार के कृषि रसायन या दवाईयों से जीवाणु रहित किया जाता है। इस विधि में एक 100 लीटर ड्रम या टब में 90 लीटर पानी में लगभग 20-25 किलो सूखे भूसे को गीला कर दिया जाता है। तत्पश्चात् एक प्लास्टिक कली बाल्टी में 10 लीटर पानी तथा 7.5 ग्राम बावस्टीन तथा फार्मेलीन (125 मिली.) का घोल बना कर भूसे वाले ड्रम के ऊपर उड़ेल दिया जाता है। तथा ड्रम को पाॅलाथीन शीट या ढक्कन से अच्छी तरह से बंद कर दिया जाता है। लगभग 12-14 घंटे बाद उपचारित भूसे को ड्रम से बाहर किसी प्लास्टिक की शीट या लोहे की जाली पर डाल कर 2-4 घंटो के लिए छोड़ दिया जाता हैं। इससे अतिरिक्त पानी बाहर निकल जायेगा तथा फाॅर्मलीन की गंध भी खत्म हो जायेगी।

बीजाई करना
ढिंगरी का बीज हमेशा ताजा प्रयोग करना चाहिए। भूसा तैयार करने से पहले ही स्पान खरीद लेना चाहिए तथा 1 क्विंटल सूखे भूसे के लिए 8-10 किलो बीज की जरूरत होती है। गर्मियों के मौसम में प्लूरोटस सजोर काजू को उगाना चाहिए। सर्दियों में जब वातावरण का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे हो तो प्लूरोटस फलोरिडा, कोर्नुकोपीया को उगान चाहिए। बीजाई करने के दो दिन पहले कमरे या झोपड़ी को 2 प्रतिशत फार्मेलीन से उपचारित कर लेना चाहिए। प्रति 3 किलों गीले भूसे में लगभग 100 ग्राम बीज अच्छी तरह से मिला कर पाॅलीथीन में चारों तरफ से तथा पैन्दे में छेद कर देना चाहिए जिससे बैग का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक न होने पाए।

फसल प्रबंधन:-
बीजाई करने के पश्चात् थैलियों को एक उत्पादन कक्ष में बीज फैलने के लिए रख दिया जाता है। बैगों को हफ्ते में एक बार अवश्य देख लेना चाहिए कि बीज फैल रहा है या नहीं। यदि किसी बैग में हरा, काला यो नीले रंग की फफूंद दिखाई दे तो ऐसे बैंगों को उत्पादन कक्ष से बाहर निकाल कर दूर फेंक देना चाहिए। बीज फैलाते समय हवा या प्रकाश की जरूरत नहीं होती है। अगर बैग तथा कमरे का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने लगे तो कमरे की दीवारों तथा छत पर पानी का छिड़काव दो से तीन बार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखाना चाहिए कि बैंगों पर पानी जमा न हो। लगभग 15 से 25 दिनों में मशरूम का कवक जाल सारे भूसे पर फैल जाता है तथा बैग सफेद रंग का प्रतीत होने लगता है। इस स्थिति में पाॅलीथीन का हटा लेना चाहिए। गर्मियों के दिनों में पाॅलीथीन को पूरा नहीं हटाना चाहिए क्योंकि बैंगों में नमी की कमी हो सकती है। उत्पादन कमरों में प्रतिदिन दो से तीन बार खिड़कीयाँ खुली रखनी चाहिए जिससे कार्बन डाईऑक्साईड की मात्रा 800 पी.पी.एम. से अधिक न हो। ज्यादा कार्बन डाइआक्साईड होन से ढिंगरी का डंठल बड़ा हो जाता ह। तथा छतरी छोटी रह जाती है। बैंगों को खोलने के बाद लगभग एक सप्ताह में मशरूम की छोटी-छोटी कलिकाएँ बनने लगती है जो चार से पाँच दिनों में पूर्ण आकार ले लेती है।


मशरूम की तुड़ाई करना:-
जब ढिंगरी पूरी तहर से तोड़ने लायक हो जाए तब इनकी तुड़ाई करनी चाहिए। ढिंगरी की छतरी के बाहरी किनारे ऊपर की तरफ मुड़ने लगे तो यह समझ लेना चाहिए कि ढिंगरी तोड़ने योग्य हो गई है। तुड़ाई हमेशा पानी के छिड़काव से पहले कनी चाहिए। मशरूम तोड़ने के बाद डंठल के साथ लगे हुए भूसे को चाकू से काटकर हटा देना चाहिए। पहली फसल के 8-10 दिन बाद दूसरी फसल आती है। पहली फसल कुल उत्पादन का लगभग आधा या उससे ज्यादा होती है। इस तरह तीन फसलों तक उत्पादन ज्यादा होता है। उसके बाद बैंगों को किसी गहरे गड्ढे में डाल देना चाहिए जिससे उसकी खाद बनाई जा सके तथा बाद में इसे खेतों में प्रयोग कर सके। जितनी भी व्यवसायिक प्रजातियां है उनमें एक किलों सूखे-‘भूसे से लगभग औसतन 600 से 800 ग्राम तक पैदावार मिलती है।

भंडारण उपयोग:-
ढिंगरी तोड़ने के बाद उसे तुंरत पाॅलीथीन में बंद नहीं करना चाहिए। अपितु लगभग दो घंटे कपड़े पर फैलाकर छोड़ देना चाहिए जिससे की उसमें मौजूद नमी उढ़ जाए। ताजा ढिंगरी को एक छिद्रदार पाॅलीथीन में भरकर रेफ्रिजरेटर में दो से चार दिन तक रखा जा सकता है। ढिंगरी को ओवन में या धूप में सुखा कर वर्ष भर उपयोग मंे लाया जा सकता है।

पुआल मशरूम:-
पुआम मशरूम (वोल्वेरिएला वोल्वेसिया) जिसे चाईनीज मशरूम तथा पैडी स्ट्रा मशरूम के नाम से भी जाना जाता है। यह उपोषण तथा उष्ण कटिबंध भाग की तेजी से उगने वाली मशरूम है तथा अनुकूल उत्पादन परिस्थितियों में इसका एक फसल चक्र 3 से 4 सप्ताह में पूर्ण हो जाता है। इस के उत्पादन हेतु विभिन्न प्रकार के सेलुलोज युक्त पदार्थांे का इस्तेमाल किया जा सकता है तथा इन पदार्थाें में कार्बन व नाईट्रोजन के 40 से 60:1 अनुपात की आवश्यकता होती है, जो अन्य मशरूमों के उत्पादन की तुलना में बहुत उच्च है। इस मशरूम को बहुत से अविघटित माध्यमों (पोषाधारों) पर उगाया जा सकता है जैसे धान का पुआल, कपास उद्योग से बचा अवशेष, गन्ने की खोई तथा अन्य सेलुलोज युक्त जैविका पदार्थ।

उत्पादन तकनीक:
पुआल मशरूम की चेती के लिए विभिन्न प्रकार के व्यर्थ पदार्थ इस्तेमाल किये जाते है जिसमें प्रमुख हैं- धान का पुआल, जल कुम्भी, केले के पत्ते तथा लकड़ी का बुरादा एंव गन्ने की खोई इत्यादि। पुआल मशरूम की खेती कम जटिल तथा कम व्यापक है। पुआल मशरूम निम्नलिखित विधि द्वारा उगाई जा सकती है।

पारंपरिक विधि:
इस विधि में निम्नलिखित चरण शामिल है-

1. पुआल के 500 ग्राम वजन (45-60 से.मी.) लम्बे तथा 12-16 सेमी. मोटे के बंडल बनाये जाते है।

2. टैक में बंडलों को प्रतिशत कैल्शियम कार्बोनेट के घोल में 12-18 घंटे तक डुबोया जाता है।

3. बांस से बने प्लेटफार्म पर रख कर इनका अतिरिक्त पानी बाहर निकाल देते है।

4. पहली परत जो कि 45-60 सेंमी लम्बी व 45-60 सेंमी चैड़ी होती है, तीन बंडलों को खोलकर बनाई जाती है।

5. इसी प्रकार से दूसरी, तीसरी तथा चैथी परतें, परतों के बीच बीजाई करते हुए बनाई जाती है। बीजाई पहली तथा दूसरी परत, दूसरी तथा तीसरी परत, तीसरी तथा चैथी परत के मध्य करनी होती है।

6. शैय्या की हर परत के धरातल पर बीजाई 6-8 जगह पर करनी होती है। किनारांे से 12-15 सेंमी, की जगह छोड़कर 10 सेंमी, के अन्तर पर बीजाई करें।

7. बीजाई किये गये स्थान पर दाल का पाउडर (बेसन) भी 50 ग्राम प्रति शैय्या के हिसाब से डाला जाता है।

8. 8-10 किलोग्राम सूखे धान के पुआल की शैय्या के लिए 250 ग्राम बीज तथा 50 ग्राम चने के पाउडर (बेसन ) की जरूरत होती है।

9. शैय्या को ऊपर से दबाकर साफ पाॅलिथीन की सीट से ढक देते है ताकि वांछित आर्द्रता (80-85 प्रतिशत) तथा तापमान (30-35 डिग्री सेल्सियस) रहे।

10. इसके 7-8 दिनों के पश्चात् पाॅलिथीन सीट को हटाया जाता है तथा 28-32 डिग्री सेल्सियस तापमान और वांछित आर्द्रता (80 प्रतिशत) रखी जाती है।

11. सीट हटाने के 4-5 दिन पश्चात् मशरूम दिखाई देने शुरू हो जाती है जो अगले 20 दिनों तक उगते रहते है।

12. फसल की तुड़ाई के पश्चात् पोषाधर को खेतों में खाद के रूप में उपयोग लाया जा सकता है।

कक्ष में उचित आर्द्रता बनाये रखने के लिए बहुत महीन फुहासे का ही उपयोग किया जाना चाहिए। शैय्या में नमी कम होने पर उस पर बहुत ही महीन फुहासे के रूप मं पानी का छिड़काव करना चाहिए। कक्ष के अन्दर रखने के लिए संशोधन की जरूरत होती है।

फलन तथा फसल प्रबंधन:
स्पाॅन फैलने की अवधि के दौरान पानी तथा प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है परन्तु थोड़ी ताजी हवा के संचार की आवश्यकता होती है। तीन से चार दिनों के पश्चात् कमरों में हल्का प्रकाश तथा ताजी हवा दी जाती है। चार से पाॅच दिनों के पश्चात् सीट को हटाया जाता है तथा बैड़ों पर पानी का हल्का छिड़काव किया जाता है। बीजाई के 5-6 दिनों के पश्चात् मशरूम कलिकाएँ (पिन हेंडस) निकालनी शुरू हो जाती है। अगले 4-5 दिनों के पश्चात् मशरूम की पहली फसल तुड़ाई योग्य हो जाती है। अच्छे फलन के लिए कक्ष में आवश्यक तापमान 28 से 32 डिग्री सेल्सियस, आर्द्रता 80 प्रतिशत, हल्का प्रकाश तथा ताजी हवा का संचार होना चाहिए।

तुड़ाई:
पुआल मशरूमे की तुड़ाई झिल्ली फटने से पहले या फिर फटने के तुरन्त आद की जाती है। इन अवस्थाओं को बटन तथा अंडाकार अवस्थाएँ कहते हैं। यह मशरूम उच्च तापमान तथा नमी में उगती है इसलिए इसका विकास तेजी से होती है। उत्तम अनुकूल वातावरण में इस मशरूम की तुड़ाई दिन में दो या तीन बार करनी पड़ती है। (सुबह, दोपहर, अपराह्न) । इस मशरूम को बीजाई के पश्चात् पहली तुड़ाई तक के लिए साधारणतः 9-10 दिन का समय लगता है पहली फसल सामान्यतः 3 दिनों तक चलती है, जिसमें कुल अपेक्षित मशरूम पैदावार का लगभग 70 से 90 प्रतिशत पैदावार होती है। तीन से 5 दिन के अंतराल पर इसमें पूर्ण रूप से पानी की आवश्यकता होती है तथा कमरे के अन्दर अनुकूल परिस्थितियाँ बनाये रखी जाती है।

भण्डारण
अन्य खाद्य मशरूमों की अपेक्षा पुआल मशरूम जल्दी खराब हो जाती है इसका भण्डारण 4 डिग्री सेल्सियस तापमान पर नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इस तापमान पर इसका स्वलयन हो जाता है। इस मशरूम का 10 से 15 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 3 दिनों तक भण्डारण किया जा सकता है।

आय
मशरूम का व्यवसाय एक लाभकारी व्यवसाय है जिसमें लागत बहुत कम लगती है। इसके लिए उत्पादन कक्ष कम लगती है। इसके लिए उत्पादन कक्ष कम लागत पर बनाए जा सकते है तथा फसल चक्र भी 40-50 दिन का होता है। एक किलोग्राम ढिंगरी घ्ध्ध पुआल का लागत मूल्य लगभग रू 20 से 25 तक होती है तथा इसे 100-150 रू तक बाजार में आसानी से बेचा जा सकता हैं।