निशा वर्मा(पी. एच. डी. स्कॉलर, कृषि मशीनरी एवं शक्ति अभियांत्रिकी) एवं डॉ. योगेश कुमार कोसरिया (अतिथि शिक्षक,कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन रायगढ़ )
स्वामी विवेकानंद कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रोद्योगिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र रायपुर (छ. ग.)

धृतकुमारी की खेती
धृतकुमारी की खेती के लिए तापमान 20-35 डिग्री  तक होना चाहिए। 35 डिग्री से अधिक तापमान तथा 20 डिग्री से कम तापमान पर खेती करने से फसल तैयार होने में अत्यधिक समय लगता है । धृतकुमारी को फसल की तरह ऑस्ट्रेलिया, यु.एस.ए., जापान तथा यूरोप में उत्पादित किया जाता है।

भारत में धृतकुमारी की खेती पंजाब, आंध्रप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गुजरात, हरियाणा, झारखण्ड, केरल, मध्यप्रदेश, मणिपुर, महाराष्ट्र, मिजोरम,नागालैंड, ओड़िसा, राजस्थान, उतराखंड, में किया जाता है। धृतकुमारी में विटामिन A,B,B2, B6, B12, फोलिक एसिड, नायसिन जैसे प्रोटीन मौजूद होते है।

धृतकुमारी लगाने की विधि-
धृतकुमारी की फसल तीन विधि से उगाई जा सकती है।

1 पत्तियों से

2 कटिंग मेथड से

3 सुकर से

कटिंग मेथड का उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है, क्योकि कटिंग मेथड से फसल जल्दी तैयार हो जाता है।

मृदा और वातावरण
धृतकुमारी की फसल हर तरह के मृदा में उगाई जा सकती है। इसे ज्यादा उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है। धृतकुमारी की पैदावार खुले क्षेत्र में अच्छी होती है। छायादार जगह पर फसल के ख़राब होने की संभावना बढ़ जाती है। यह गर्मी वाला फसल है। रेगिस्तान क्षेत्र में उगाई जा सकती है। पानी जब बहुत ज्यादा सुख जाए मृदा में तब ही पानी से सिचाई की जाती है। सिचाई के साथ साथ निकासी पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। धृतकुमारी की खेती में धृतकुमारी की बुआई के पूर्व खेत के लिए 1000-1200 मिमी वर्षा उत्तम होता है। धृतकुमारी में 2 पौधो के बीच की दुरी लगभग 2 फीट तक होती है।

उर्वरक का उपयोग / एकर
धृतकुमारी को 35 किलो ग्राम नाइट्रोजन , 70 किलो ग्राम फास्फोरस पेंटाऑक्साइड , 70 किलो ग्राम पोटेशियम ऑक्साइड की आवश्यकता होती है।

सिचाई तथा इंटरकल्चर
धृतकुमारी को बोंने के 40 दिन बाद सिचाई करना चाहिए अत्यधिक सुखा होने पर ही सिचाई करे अत्यधिक पानी धृतकुमारी की फसल को नुकसान करता है।

किटनाशक
किटनाशक में नीम के तेल का ही इस्तेमाल किया जाता है, क्योकि ज्यादातर देखा गया है। की धृतकुमारी की फसल में कीडो की समस्या नहीं आती है। इसलिए नीम तेल की ३०० – ४०० किग्रा/ एकर का उपयोग समय समय पर किया जाता है।

कटाई
धृतकुमारी की पत्तियों को कट कर उसके रस का उपयोग विभिन्न तरह के उत्पाद बनाने में किया जाता है। एक औसधिया गुण से भरपूर धृतकुमारी 2-4 साल में तैयार होता है। धृतकुमारी के पौधे में फुल आने के बाद औषधिय गुण बढ़ जाता है। भारत में एलोवेरा की हार्वेस्टिंग साल में 3-4 बार की जाती है। लेकिन व्यापारिक स्तर पर धृतकुमारी की कटाई दुसरे देशो में 2 – 4 साल बाद की जाती है।

प्रोसेसिंग
  • धृतकुमारी को काटने के 24 -72 घंटो में प्रोसेसिंग करना चाहिए ।
  • धृतकुमारी- आधुनिक युग के लिए एक प्राचीन जड़ी बूटी है ।
  • धृतकुमारी को सामान्य तौर पर एलोवेरा के नाम से जाना जाता है।
  • धृतकुमारी को मेडिकल नाम aloe barbadensis( एलो बर्बड़ेंसिस ) के नाम से जाना जाता है।
  • एलोवेरा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है एलो + वेरा ।
  • एलो शब्द एक अरेबिक शब्द है जिसका अर्थ “कड़वा चमकदार पदार्थ” है।
  • वेरा एक लेटिन शब्द है जिसका अर्थ true (ट्रू) मतलब सही है ।
  • वर्तमान में उपलब्ध बहुत सारी आयुर्वेदिक पोधो में सबसे लोकप्रिय और वैज्ञानिक द्वारा अत्यधिक उपयोग होने वाला पौधा है।
  • पुरे विश्व में धृतकुमारी की 400 से अधिक प्रजातिया पाई जाती है जिनमे से 395 प्रजातियों का उपयोग नहीं किया जाता है 11 प्रकार की धृतकुमारी जहरीली है केवल 2 ही तरह की धृतकुमारी का उपयोग व्यापारिक स्तर पर किया जाता है।
  • धृतकुमारी में 95% जल और 5% ठोस होता है।
  • धृतकुमारी एक ऐसापौधा है जो २४ घंटे आक्सीजन देता है।
  • धृतकुमारीउष्ठ कटिबंधीय पौधा है यह गर्म स्थानों में उगता है।
  • व्यापारिक स्तर पर जिस तरह धृतकुमारी अपनाई जाती है उसे तैयार होने में 2 – 4 साल लगते है।
  • 2 – 4 साल बाद ही उनमे औषधिय गुण आते है।

धृतकुमारी के भाग
धृतकुमारी के मुख्यतः 2 भाग होते है।

1. पहला पत्तियों के बीच का जेल वाला भाग जिसे parenchymal tissue ( परेंकैमल तिसु ) कहते है।

2. दूसरा पत्तियों का ऊपर हरा भाग जिसे pericyclic tabules (पेरिसैक्लिक ट्यूब ) कहते है।

धृतकुमारी के उपयोग
धृतकुमारी बहुत ही उपयोगी पौधा है, अगर हम सोचे तो लगभग हर क्षेत्र में धृतकुमारी बहुत उपयोगी है।

धृतकुमारी के उपयोग को तीन भागो में बाटा गया है-

1. औषधिय क्षेत्र में उपयोग

2. सौन्दर्य क्षेत्र में उपयोग

3. पौष्टिक आहार के क्षेत्र में


औसधिय क्षेत्र में उपयोग-
  • मधुमेह के रोगियों के लिए धृतकुमारी बहुत ही लाभकारी है। रोज सुबह धृतकुमारी का जूस पिने से मधुमेह की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।
  • यह बवासीर जैसे कष्टकारी रोग से आराम पहुचाता है।
  • पेट से सम्बंधित समस्या से निपटने में धृतकुमारी का जूस बहुत ही फायदेमंद होता है।
  • अगर जोड़ो में दर्द है तब उस जगह पर धृतकुमारी का लेप लगाने से बहुत आराम मिलता है।
  • नियमित धृतकुमारी के जूस के सेवन से खून की कमी दूर होती है तथा शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता बढती है।
  • जलने पर, जले हुए जगह पर एलोवेरा लेप लगाने से काफी आराम मिलता है। अंदरूनी चोटो पर धृतकुमारी अपने एंटीबेक्टेरिअल और एंटीफंगल गुणों के कारन घाव को जल्दी भरता है।
  • मछर के कटाने पर धृतकुमारी का लेप लगाने से आराम मिलता है, क्योकि इसमें प्राकृतिक रूप से mosquito repeliant जैसे गुण मौजूद होते है ।
  • धृतकुमारी रस में थोडी सी हल्दी मिलकर सिर पर लगाने से सिर दर्द में आराम पहुचता है।

सौन्दर्य क्षेत्र में उपयोग-
  • धृतकुमारी का इस्तेमाल जेल, बॉडी लोशन, हेयर जेल, स्किन जेल, शैम्पू, साबुन, फेशियल फोम, ब्यूटी क्रीम, हेयर स्पा आदि के निर्माण में किया जाता है ।
  • धृतकुमारी के रस में नारियल के तेल की थोड़ी सी मात्र मिलकर कोहनी, घुटना, व एडियो पर कुछ देर लगाकर धोने से इस जगहों पर पड़ने वाला कालापन दूर हो जाता है।
  • गुलाबजल में धृतकुमारीका रस मिलाकर त्वचा पर लगाने से त्वचा की खोई नमी लौटती है।
  • धृतकुमारी के गुदे में मुल्तानी मिटटी या चन्दन पावडर मिलकर लगाने से त्वचा के किल मुहासे आदि लम्बे समय के लिए मिट जाते है।
  • धृतकुमारी का इस्तेमाल मोइस्चराइजर के निर्माण में किया जाता है, क्योकि यह किसी भी किस्म के त्वचा के लिए उत्तम है ।
  • धृतकुमारी सूर्य की पराबैगनी किरणों से त्वचा को बचाती है, इसलिए sunscream की तरह धृतकुमारी रस का इस्तेमाल अच्छा होता है।
  • शेव करने के बाद कटे हुए स्थान पर धृतकुमारी का जेल लगाने से आराम मिलता है।
  • गर्भावस्था के दौरान पेट पर आने वाले स्ट्रेच मार्क्स को दूर करने में धृतकुमारी बेहद लाभकारी है ।
  • धृतकुमारी रस के लगातार सेवन से त्वचा में निखार आने लगता है। त्वचा लम्बे समय तक जावा और चमकदार लगती है, साथ ही साथ बालो में भी चमक आती है। रुसी दूर हो जाती है, और बालो को टेक्सचर भी अच्छा हो जाता है।

पौषक आहार की तरह उपयोग
  • इसके नियमित सेवन से आप लम्बे समय तक कई बीमारी से दूर रह सकते है।
  • बेक्टेरिया और फंगस से लड़ने का अद्भुत क्षमता होती है ।
  • धृतकुमारी जूस के नियमित इस्तेमाल से वजन बड़ी आसानी से घटाया जा सकता है।
  • आजकल बहुत कम उम्र में बच्चो को चश्मा लग जाता है इसमें आंवला और जामुन के साथ एलोवेरा जूस का सेवन करने से आँखों को काफी फायदा होता है ।
  • रोज सुबह इसके लगभग एक छोटे प्याले के सेवन से दिनभर शरीर में ताकत और स्फूर्ति बनी रहती है ।

सावधानिया
पेचिस या दस्त के दौरान एलोवेरा का सेवन नहीं करना चाहिए।