देवेन्द्र कुमार साहू, लक्ष्मी प्रसाद भारद्वाज
(पी‐एच‐डी‐स्कॉलर सब्जी विज्ञान विभाग) 
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)

देश के मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में पत्तागोभी (बंद गोभी) की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। कटी हुई पत्तागोभी का उपयोग सब्जी, कढ़ी, सलाद, अचार, पकौड़ा बनाने में किया जाता है। पत्तागोभी में पाचन शक्ति को बढ़ाने की क्षमता होती है साथ ही मधुमेह रोगियों के लिये भी लाभदायक है। इसमें प्रचुर मात्रा में खनिज, जल तथा विटामिन पाये जाते है।

मिट्टी व जलवायु
पत्तागोभी की खेती वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है जिस मिट्टी का पी‐एच‐ मान 6 से 6.5 हो। पत्तागोभी की अच्छी वृद्धि के लिए ठंडी आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है। अधिक सर्दी और पाले से पत्तागोभी को नुकसान हो सकता है। गांठों के विकास के समय 20 डिग्री के आस पास तापमान होना चाहिये।

प्रमुख उन्नत किस्में-
प्राइड ऑफ इंडिया- यह मध्यम आकार का अधिक उपज देने वाली किस्म है। रोपाई के 75-85 दिनों के कटाई के समय के साथ औसत उपज 20-29 टन प्रति हेक्टेयर है।

गोल्डन एकड़- यह पत्तागोभी की जल्दी तैयार होने वाली छोटे गोल वाली किस्म होती है, पत्तों का रंग बाहर से हल्का हरा तथा अंदर से गहरा हरा होता है यह रोपण से 60 से 65 दिनों के अंदर तैयार हो जाती है औसत पैदावार 20 से 24 टन प्रति हक्टेयर है।

पूसा ड्रम हेड- इस किस्म का आकार बड़े, चपटे, कुछ हद तक ढीले तथा ड्रम के आकार के होते हैं बाहर के पत्ते हल्के हरे रंग के होते है, जिन पर उभरी हुई न सें होती है अच्छी फसल के लिए लम्बी सर्दी का मौसम चाहिए यह ब्लैक लैग रोग के प्रति सहनशील है औसत उपज 50 से 54 टन प्रति हेक्टयेर है।

श्री गणेशगोल- यह पत्तागोभी की किस्म रोपण के लगभग 80 दिन बाद तैयार हो जाती है इसका आकार काफी बड़े गोलाकार ठोस व अधिक पैदावार देने वाले होते हैं, जो तैयार होने के बाद बहुत दिनों तक नहीं फटते तथा प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार 35 टन है।

पूसा मुक्ता- इस किस्म का आकार सपाट गोल होता है, यह मध्यम आकार की होती है तथा बाहर के पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं यह काली सडन रोग के प्रति सहनशील होती है औसत पैदावार 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर है।

पूसा सिंथेटिक- इस पत्तागोभी की किस्म का आकार मध्यम होता है यह अत्याधिक पैदावार देने वाली किस्म है औसत उपज 43 से 45 टन प्रति हेक्टेयर तक है।

खाद एवं उर्वरक का प्रबंधन 
पत्तागोभी को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है इसके लिए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20 से 25 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डालनी चाहिये। इसके बाद जब बुवाई होनी हो उससे पहले खेत में 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, 60 किलो पोटाश की आवश्यकता होती है बुवाई से पहले आखिरी जुताई के समय फास्फोरस और पोटाश कि पूरी मात्रा डाल दें और नाइट्रोजन की केवल एक तिहाई मात्रा ही डालें। बची हुई नाइट्रोजन को आधा-आधा बांट लें। उसमें से एक हिस्सा 30 दिन के बाद और दूसरा हिस्सा 50 दिन के बाद खेत में खड़ी फसल पर छिड़कना चाहिये।

बीज की मात्रा
अगेती किस्म की फसल लेने के लिए प्रति हेक्टेयर 500 ग्राम की बीज की आवश्यकता होती है जब कि पछेती खेती के लिए 400 ग्राम के आस पास ही जरूरत होती है। इसका कारण यह है कि अगेती किस्म की पौध लगाने में मरने वाले पौधों की संख्या अधिक होती है। इसलिये बीज अधिक लगाया जाता है।

बुवाई का समय
पत्तागोभी की अगेती खेती के लिए अगस्त के अंतिम सप्ताह सितम्बर मध्य तक नर्सरी में बीज की बुवाई कर देनी चाहिए मध्यम एवं पछेती किस्मों के लिए 15 सितम्बर से अक्टूबर अंत तक बीज की बुवाई कर देनी चाहिए बीज की बुवाई यदि समय पर की जाती है तो इसका सीधा प्रभाव उपज पर देखने को मिलता है।

सिंचाई प्रबंधन
रोपाई के तुरंत बाद प्रथम सिंचाई करे तथा बाद में मिट्टी के प्रकार एवं मौसम के अनुसार 10 से 15 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करते रहे इस प्रकार 6-8 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

खरपतवार का नियंत्रण
खरपतवार को नियंत्रण करने के लिए खेत की कम से कम 3 से 4 बार निराई गुड़ाई करनी चाहिये। निराई गुड़ाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि खरपतवार निकालने जो मिट्टी जड़ों से हट जाती है उसे फिर से चढ़ा देना चाहिये। इसके अलावा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडी मेथालिन की 3 लीटर मात्रा को एक हजार लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

प्रमुख रोग एवं कीट प्रबंधन-
हीरक पतंगा कीट (डायमंड बैक मोथ)
यह गोभीवर्गीय सब्जियों में सबसे ज्यादा नुकसानदायक कीट है। इस कीट की सूंडी हानिकारक होती है जो शुरू की अवस्था में हरे पीले रंग की होती है तथा बाद में पत्तियों के रंग की हो जाती है इस कीट की सूंडियां पत्तियों की निचली सतह को खुरचकर खाती हैं।

नियंत्रण
इस कीट के नियंत्रण के लिए नीम बीज अर्क (4 प्रतिशत) की दर से दो बार छिड़काव करें। पहला छिड़काव रोपण के 25 दिन बाद तथा दूसरा, पहले छिड़काव के 15 दिन बाद करें तथा फसल के साथ सरसो को ट्रेप के रूप में उगाना चाहिए।

आर्द्रगलनरोग
इस फफूंदजनित रोग का प्रकोप गोभी में नर्सरी अवस्था में होता है। इस रोग में पौधे का तना सतह के पास से गलने लगता है और पौध मर जाती है।

नियंत्रण
रोग नियंत्रण के लिए बीज को बुवाई से पहले फफूंदनाशी बावस्टीन 2 ग्राम पर किग्रा की दर से उपचारित करें।

काला विगलन
इस रोग की शुरुआत पत्तियां पीली पड़ने से होती है। इसके उपरांत शिराएं काली होने लगती हैं रोग पत्ती के किनारे से फैलना शुरू होता है तथा शिरा की ओर बढ़ता है एवं ऊपरी हिस्सा मुलायम तथा काला होकर सड़ने लगता है।

नियंत्रण
बुवाई के लिए स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का प्रयोग करें। बीज को उपचारित करें। संक्रमित पौधों को निकलकर नष्ट कर दें।

तुड़ाई और पैदावार
पत्तागोभी की उपज किस्मो, जलवायु, उत्पादन व्यवस्था, भूमि की उर्वरा सकती अदि पर निर्भर करती है ठोस तथा पूर्ण विकसित पत्तागोभी तुड़ाई के योग्य मानी जाती है अगेती फसल की पैदावार प्रति हैक्टेयर 200 से 300 क्विंटल तथा पिछेती किस्म की पैदावार 300 से 400 क्विंटल प्रति हैक्टेयर के लगभग होती है।