तरुण प्रधान,नन्दन मेहता,आशुलता कौशल एवं सोनल उपाध्याय
आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग
 ई.गाँ. कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)

1. आर.एल.सी.-92 (इंद्रावती अलसी):- 
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सन 2008 में विकसित यह किस्म वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः ओड़िसा, महाराष्ट्र,आंध्रप्रदेश व छत्तीसगढ़ के तैयार की गयी है। यह 111 दिन मे पकने वाली ऊपरी शाखा सीधा,फसल झुकाव कम,फली चटक प्रतिरोध वाली, उर्वरक के प्रति सहनशील, फूल नीले, मध्यम डिस्क आकार, पंखुड़ी बैंगनी और परागकण क्रीम रंग,बीज भूरे रंग और परीक्षण भार 6.9 ग्राम, जल्दी, सामान्य और देर से बोई जाने वाली स्थितियों के लिए उपयुक्त, उकठा रोग(विल्ट), रतुआ(रस्ट) रोग और चूर्णी/भभूतिया(पावड्री मिल्डु) फफूंदी रोग के लिए प्रतिरोधी और अल्टरनेरिया ब्लाइट(झुलसन) रोग और कलिका मक्खी (बड फ़्लाइ) कीट के लिए मध्यम प्रतिरोधी।

2. आर.एल.सी.-78 (इन्दिरा अलसी) या दीपिका:- 
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सन 2007 में विकसित यह किस्म वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः अर्ध सिंचित व उतेरा पद्धति छत्तीसगढ़ के लिए तैयार की गयी है। यह 110-120 दिन मे पकने वाली,नीला फूल,बीज का रंग भूरा तथा चूर्णी फफूंदी के लिए प्रतिरोधी है। इसमे तेल 40 प्रतिशत तक व औसत उपज 1000-1200(सि.) किग्रा./हे.,गेरुआ रोग, उकठा रोग व अल्टरनेरिया झुलसन रोग के लिए सहनशील है।

3॰ आर.एल.सी.- 81(इन्दिरा अलसी-32):-
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सन 2005 में विकसित यह किस्म वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः ओड़िसा, महाराष्ट्र,कर्नाटक व छत्तीसगढ़ के वर्षा आश्रित व सिंचित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। पौधा सीधा, छोटा नीला फूल, डिस्क रूप, पंखुड़ी मुड़ी हुई, पराग हल्का नीला, कैप्सूल छोटा, अर्ध-पतला, हल्का भूरा बीज, मध्यम आकार,चूर्णी फफूंदी रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी, उकठा रोग व अल्टरनेरिया झुलसन रोग के लिए मध्यम सहनशील है। इसमे तेल की मात्रा 43 प्रतिशत व औसत उपज 780-800(वर्षा आश्रित) किग्रा./हे. व 1500 किग्रा./हे.(सिंचित) है।

4. आर.एल.सी.-76(कार्तिका):- 
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सन 2005 में विकसित यह किस्म वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः छत्तीसगढ़ के वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 98-104 दिनों में पकने वाली,पौधा सीधा छोटा,फूल बैंगनी नीला, कीप के आकार का, आधार पर मुड़ा हुआ, परीक्षण भार 5.5 ग्राम, हल्के भूरे रंग के मध्यम बीज, रतुआ रोग, उकठा रोग, अल्टरनेरिया झुलसन रोग, चूर्णी फफूंदी रोग और कलिका मक्खी कीट के लिए प्रतिरोधी है। इसके बीजों मे तेल 43 प्रतिशत व औसत उपज 800-1000 किग्रा./हे. है।

5. जवाहर-552(आर-552):- 
सन 1984 में विकसित यह किस्म वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 118-125 दिनों में पकने वाली, भूरे मध्यम से बड़े बीज वाले, हल्के भूरे रंग के बीज, उकठा रोग, गेरुआ रोग और चूर्णी फफूंदी रोग के प्रति सहनशील है। इसके बीजों मे तेल 44 प्रतिशत व औसत उपज 900-1000 किग्रा./हे. है।

6. जवाहर-17 या (आर-17)या (JLS-7):- 
सन 1982 में विकसित यह किस्म शुद्धजनन चयन द्वारा मुख्यतः मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के सिंचित व वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 117-120 दिनों में पकने वाली, भूरे रंग के बड़े बीज, गेरुआ रोग के लिए प्रतिरोधी और उकठा रोग के लिए सहनशील है। इसके बीजों मे तेल 37 प्रतिशत व औसत उपज 800-1300 किग्रा./हे. है।

7. जवाहर-7 या (आर-7) या (JLS-1):- 
सन 1982 में विकसित यह किस्म शुद्धजनन चयन द्वारा मुख्यतः मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के उतेरा व वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 116-120 दिनों में पकने वाली,हल्का भूरा, बड़े बीज वाला, गेरुआ रोग के लिए प्रतिरोधी और उकठा रोग के लिए सहनशील है। इसके बीजों मे तेल 37 प्रतिशत व औसत उपज 300-700 किग्रा./हे. है।


8. जवाहर-1 या (आर-1):- 
सन 1982 में विकसित यह किस्म शुद्धजनन चयन द्वारा मुख्यतः मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के वर्षा आश्रित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 116-120 दिनों में पकने वाली, मध्यम भूरा बीज वाला, गेरुआ रोग के लिए प्रतिरोधी और उकठा रोग,चूर्णी फफूंदी रोग व कालिका मक्खी कीट के लिए सहनशील है। इसके बीजों मे तेल 38 प्रतिशत व औसत उपज 900 किग्रा./हे. है।

9. किरण:- 
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सन 1988 में विकसित यह किस्म वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः ओड़िसा, महाराष्ट्र,कर्नाटक,राजस्थान व छत्तीसगढ़ के वर्षा आश्रित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 120-126 दिनों में पकने वाली, हल्के भूरे और मध्यम बीज वाले, बैंगनी लाल फूल, भूरे रंग के मध्यम बीज वाले, गेरुआ रोग और उकठा रोग, चूर्णी फफूंदी रोग के लिए प्रतिरोधी है। इसके बीजों मे तेल 43 प्रतिशत व औसत उपज 750 किग्रा./हे. है।

10. आर.एल.सी.-133 (छत्तीसगढ़ अलसी-1):- 
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सन 2015-16 में विकसित यह किस्म वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः छत्तीसगढ़ के वर्षा आश्रित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 100-105 दिनों में पकने वाली, छोटा, सीधा पौधा, सफेद फूल, कीप के आकार का, बीज गहरे भूरे रंग का, परीक्षण भार 7.1 ग्राम और पराग क्रीम रंग का, सामान्य ,जल्दी और देर से बुवाई के लिए उपयुक्त,रतुआ रोग, उकठा रोग, अल्टरनेरिया झुलसन रोग, चूर्णी फफूंदी रोग और कलिका मक्खी कीट के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। इसके बीजों मे तेल 36 प्रतिशत व औसत उपज 800-900 किग्रा./हे. है।

11. आर.एल.सी.-143 (उतेरा अलसी):- 
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सन 2016-17 में विकसित यह किस्म वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः बिहार, झारखंड, असम, ओड़ीसा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में उतेरा क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 118-120 दिनों में पकने वाली, पैरा व उतेरा फसल के लिए उपयूक्त, चूर्णी फफूंदी रोग और गेरुआ रोग के लिए प्रतिरोधी, कृत्रिम स्थिति में बडफ्लाई (कलिकामक्खी) कीट और अल्टरनेरिया ब्लाइट के लिए मध्यम प्रतिरोधी, जबकी, अल्टरनेरिया ब्लाइट रोग और गेरुआ रोग के लिए मध्यम प्रतिरोध, प्राकृतिक स्थिति में उकठा रोग और चूर्णी फफूंदी रोग के लिए मध्यम रूप से संवेदनशील है। इसके बीजों में तेल 34 प्रतिशत व औसत उपज 570 किग्रा./हे. है।

12. आर.एल.सी.-148 (वर्षा अलसी):- 
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा सन 2018 में विकसित यह किस्म सिको-10 व किरण के वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः कर्नाटक, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, ओड़ीसा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में वर्षा आश्रित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 110-115 दिनों में पकने वाली, वर्षा आधारित स्थिति के लिए उपयुक्त, मध्यम रूप से कलिका मक्खी कीट के लिए प्रतिरोधी, प्राकृतिक वातावरणीय दशाओं में उकठा रोग और चूर्णी फफूंदी रोग के लिए मध्यम रूप से संवेदनशील, जबकि कृत्रिम वातावरणीय दशाओं में उकठा रोग, चूर्णी फफूंदी रोग और गेरुआ रोग के लिए मध्यम रूप से अतिसंवेदनशील है। इसके बीजों में तेल 35 प्रतिशत व औसत उपज 1033 किग्रा./हे. है।

13. आर.एल.सी.-153 (उतेरा अलसी-2):- 
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा सन 2019 में विकसित यह किस्म वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, ओड़ीसा, मध्यप्रदेश, झारखंड, असम, छत्तीसगढ़ में उतेरा पद्धति के लिए तैयार की गई है। यह 118-120 दिनों में पकने वाली, गेरुआ रोग के लिए अत्यधिक प्रतिरोधी; प्राकृतिक वातावरणीय दशाओं में उकठा रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी जबकि गेरुआ रोग के लिए अत्यधिक प्रतिरोधी, उकठा रोग और कलिका मक्खी कीट के लिए मध्यम प्रतिरोधी, कृत्रिम वातावरणीय दशाओं में चूर्णी फफूंदी रोग और अल्टरनेरिया ब्लाइट रोग के लिए अतिसंवेदनशील। इसके बीजों में तेल 34 प्रतिशत व औसत उपज 535 किग्रा./हे. है।

14. आर.एल.सी.-161:- 
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा सन 2016 में विकसित यह किस्म वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़ में वर्षा आश्रित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 118-120 दिनों में (छत्तीसगढ़) तथा 170 दिन (जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब) में पकने वाली उकठा रोग और गेरुआ रोग के लिए प्रतिरोधी; प्राकृतिक वातावरणीय दशाओं में अल्टरनेरिया झुलसा रोग और चूर्णी फफूंदी रोग के लिए मामूली रूप से अतिसंवेदनशील; जबकि उकठा रोग के लिए प्रतिरोधी; अल्टरनेरिया झुलसा रोग और कलिका मक्खी कीट के लिए मध्यम प्रतिरोधी, कृत्रिम वातावरणीय दशाओं में गेरुआ रोग और चूर्णी फफूंदी के लिए मध्यम रूप से अतिसंवेदनशील हैं। इसके बीजों में तेल 32 प्रतिशत व औसत उपज 1262 किग्रा./हे. है।


15. आर.एल.सी.-164:- 
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा सन 2020 में विकसित यह किस्म पोल्फ-22 व जे.आर.एफ.-5 के वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़ में वर्षा आश्रित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 117-124 दिनों में (छत्तीसगढ़) तथा 161 दिन (जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब) में पकने वाली गेरुआ रोग के लिए प्रतिरोधी; अल्टरनेरिया झुलसन रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी, कृत्रिम वातावरणीय दशाओं में उकठा रोग और पाउडर फफूंदी रोग के लिए मध्यम रूप से प्रतिरोधी, जबकि अल्टरनेरिया झुलसन रोग और गेरुआ रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी, प्राकृतिक वातावरणीय दशाओं में उकठा रोग के लिए मध्यम रूप से अतिसंवेदनशील और कलिका मक्खी के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। इसके बीजों में तेल 32 प्रतिशत व औसत उपज 1161 किग्रा./हे. है।

16. आर.एल.सी.-167:- 
इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा सन 2020 में विकसित यह किस्म T-397 व पोल्फ-22 के वंशावली चयन द्वारा मुख्यतः जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़ में सिंचित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह 116-122 दिनों में (छत्तीसगढ़) तथा 160 दिन (जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब) में पकने वाली उकठा रोग (विल्ट) के लिए मध्यम रूप से अतिसंवेदनशील और गेरुआ (रस्ट) रोग के लिए अत्यधिक प्रतिरोधी; व अल्टरनेरिया ब्लाइट(झुलसन) के लिए मध्यम प्रतिरोधी, प्राकृतिक वातावरणीय दशाओं में चूर्णी/पाउडर फफूंदी (पाउड्री मिल्डू) के लिए मध्यम रूप से अतिसंवेदनशील; जबकि गेरुआ रोग और अल्टरनेरिया झुलसन के लिए प्रतिरोधी, उकठा रोग व पाउडर फफूंदी रोग के लिए अतिसंवेदनशील, कृत्रिम वातावरणीय दशाओं में कलिका मक्खी के लिए मध्यम प्रतिरोधी। इसके बीजों में तेल 34 प्रतिशत व औसत उपज 1297 किग्रा./हे. है।