डॉ. सौगात शासमल एवं डॉ. रेखा सिंह
कृषि विज्ञान केन्द्र, रायपुर (छ.ग.)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषक नगर, रायपुर (छ.ग.)

जलीय संवर्धन के विभिन्न तरीकों से मछली उत्पादन की बढ़ती हुई क्षमता को दृष्टिगत् रखते हुए किसानों को मछली आहार की अधिक आवश्यकता होती है। मछली का आहार, प्रक्षेत्रों पर काफी समय तक सुरक्षित रखना जरूरी है, जिससे इनकी गुणवत्ता में कोई कमी न हो एवं मछलियों में कोई बिमारी न पैदा हो। अतः प्रारंभ में ही अवयवों का चुनाव उत्तम तरीके से करें। आहार को बड़ी मात्रा में पैलेट्स के रूप में बनाते समय फीड मिल में ही सुरक्षित रखने हेतु निम्न बातों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है:-

अ. बैक/बोरा को जमीन पर उतारते एवं चढ़ाते समय ट्रक/लॉरी इत्यादि में नहीं फेकना चाहिए।

ब. फीड बैक के ऊपर चलना-फिरना नहीं चाहिए।

स. फीड बैक को बारी-बारी से गोदाम से निकालना चाहिए।

द. फीड बैक को गोदाम में रखते समय हवा का आदान-प्रदान होने हेतु स्थान रखना चाहिए।

संचयन समय
मछली पालन हेतु तीन प्रकार का भोजन प्रक्षेत्रों पर प्रयोग में लाया जाता है:-

1. सूखा आहार - इसमें नमी 7-13 प्रतिशत तक होती है। आहार सूखा नजर आता है।

2. अर्ध सूखा आहार - इसमें नमी 13-35 प्रतिशत तक होती है। आहार न ज्यादा गीला न ज्यादा सूखा नजर आता है।

3. गीला आहार - इसमें नमी 35-60 प्रतिशत होती है। आहार काफी गीला एवं लिसलिसा नजर आता है।

सूखे आहार को प्रक्षेत्रों एवं गोदामों में तीन माह तक उत्तम गुणवत्ता के साथ सुरक्षित रखा जा सकता है। अर्ध सूख एवं गीला आहार प्रतिदिन ताजा अवस्था में मछली को खिलाना चाहिए। अतः इनको ज्यादा दिनों तक नहीं रखा जा सकता है, अन्यथा फफूॅद की वृद्धि एवं हानिकारक जीवाणुओं से आहार की गुणवत्ता कम हो जाएगी।

आहार खिलाना
मछलियों की उत्तम वृद्धि एवं आर्थिक रूप से पालन को सफल बनाने हेतु भोजन खिलाने का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। आहार का ज्यादा मात्रा देेने से पानी प्रदूषित होगा और आहार की मात्रा कम देने से वृद्धि कम एवं गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ेगा। मछलियों को निम्न प्रकार से आहार खिलाना चाहिए -

1. आहार देने की अवस्था
प्रारम्भिक अवस्था जैसे जीरा एवं पौना अवस्था पर सूक्ष्म आकार का भोजन पावडर एवं दोनों की तरह उत्तम होता है। अतः आहार की किस्म मछली के मुंह के आकार अनुसार नहीं होगी तो शुरू में ही ज्यादा बीज डालने से मछली की मृत्यु होने की संभावना हो जाएगी।

2. आहार की मात्रा
आहार देने की मात्रा मछली के वनज के अनुसार निर्धारित करना चाहिए। प्रारम्भिक अवस्था पर आहार अधिक दिया जाता है, फिर जैसे-जैसे मछली बड़ी होती है, आहार कम कर दिया जाता है। कम तापक्रम एवं अधिक तापक्रम पर आहार की मात्रा कम दर से देनी चाहिए।

3. आहार देने का समय
सुबह-शाम दो बार में आहार देना काफी लाभदायक होता है। आहार देने से पूर्व स्थान का निरीक्षण करना चाहिए कि पहले का दिया आहार बचा तो नहीं है या पूर्णतया खा लिया गया है। अगर दिन में 3-4 घंटे के अन्तराल से 3-4 बार छोटी मछलियों को आहार दिया जाए तो वृद्धि एवं जीवितता अच्छी प्राप्त होती है।

4. आहार का वितरण
तालाब के चारों किनारे एवं केन्द्र में आहार छिड़काव करना चाहिए, जिससे समान रूप् से सभी मछलियों को भोजन ग्रहण हो सके। 2-3 बार में आहार छिड़काव वृद्धि के लिए अच्छा रहता है।

5. आहार का आकार
जीरा (0.07 मि.मी), पौना (0.08 मि.मी.) एवं अंगुलिकाएं (1.2-2.4 मि.मी.) आकार के कण पावडर एवं गुलिकाओं के रूप में मछली आसानी से खाती है। मछली बड़ी होते-होते आहार के कणों का आकार बढ़ाया जा सकता है। वैसे मछली अपनी लम्बाई के कारण् 1/20 से 1/40 लम्बाई के आकार का आहार खा सकती है। प्रयोगों से देखा गया है कि अगर 1 इंच लम्बाई की मछली है तो 0.0025 इंच से ज्यादा लम्बाई का आहार नहीं देना चाहिए।

आहार खिलाने का तरीका
जीरे को आहार नर्सरी तालाब (0.04 हेक्टेयर) पौना को संवर्धन तालाब (0.1-0.5 हेक्टेयर) में खाना छिड़क कर खिलाना चाहिए। बड़े मछलियों का बड़े तालाब 1 हेक्टेयर से अधिक में छिड़क कर या आधुनिक फीडिंग तरीके से खिलाना चाहिए। फीडिंग बैग एवं ट्रे का भी प्रयोग कर सकते हैं। स्वचलित प्रयोग छोटी एवं बड़ी मछलियों के लिए भी किया जा सकता है।

आहार हेतु सुझाव
मछली की अच्छी वृद्धि आहार का सुचारू रूप से प्रयोग करने के लिए निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए:-

1. मछली को पुरे हप्ते रोजाना आहार खिलाना चाहिए।

2. मछली की वृद्धि के अनुसार आहार की मात्रा हर सप्ताह बढ़ाते रहना चाहिए।

3. बड़े आकार के आहार के कण नहीं खिलाने चाहिए।

4. मछली को ज्यादा एवं कम आहार नहीं खिलाना चाहिए। ज्यादा आहार प्रदूषण पैदा करेगा एवं कम आहार देने से वृद्धि नहीं होगा।

5. मछली को तनावग्रस्त अवस्था में भोजन नहीं देना चाहिए, जैसे संचयन एवं परिवहन के तुरन्त बाद एवं तालाब सफाई करते समय आदि।

ऊपर वर्णित मछली के आहार के तकनीक एवं विधि का प्रयोग करने से तालाब में प्रदूषण नहीं होगा, मछली का अधिक उत्पादन होगा, मछली के अधिक उत्पादन से आर्थिक लाभ होगा।