डॉ.कोमल गुप्ता, (सस्य विज्ञान विभाग)
डॉ.योगिता कश्यप, (कृषि अर्थशास्त्र विभाग)
संजीव गुर्जर, (कृषि सांख्यिकी विभाग)
साधना साहा, (आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग)
कृषि महाविद्यालय अवं अनुसंधान केंद्र कटघोरा, कोरबा (छ.ग.)

मक्का की फसल एक बहुपयोगी फ़सल है क्योंकि मक्का मनुष्य और पशुओं के आहार का प्रमुख स्रोत है। मक्का औद्योगिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है। मक्का की खेती भारत के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ मैदानी इलाकों में बहुतायत में उगाई जाती है। मक्का की कुछ प्रजाति खरीफ ऋतु में ही उपयुक्त रहती है, तो कुछ ऐसी होती हैं, जो सिर्फ रबी सीजन में ही उपयुक्त रहती है। मक्का की खेती भारत में मुख्य रूप आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, राजस्थान, एमपी, छ्त्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है मक्के का उपयोग दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है चाहे वो खाने में या फिर औद्योगिक छेत्र में। मक्के की चपाती से लेकर भुट्टे सेंककर, मधु मक्का के कॉर्नफलेक्स, पॉपकार्न, लइया के रूप मे आदि के साथ-साथ अब मक्का का उपयोग कार्ड आइल, बायोफयूल के लिए भी होने लगा है। करीब 65 प्रतिशत मक्का का उपयोग मुर्गी एवं पशु आहार के रूप मे किया जाता है। भुट्टे तोड़ने के बाद बची हुई कड़वी पशुओं के चारे के रूप उपयोग किया जाता है बिना परागित मक्का के भुट्टों को बेबीकार्न मक्का कहते है जिसका उपयोग सब्जी और सलाद के रूप में किया जाता है। बेबीकार्न पौष्टिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होता है।

भूमि की तयारी
मक्के की फसल के लिए खेत की तैयारी जून माह से कर देनी चाहिए। मक्के की फसल के लिए गहरी जुताई करना लाभदायक होता है। खरीफ की फसल के लिए 15-20 सेमी गहरी जुताई करने के बाद पाटा लगाना चाहिए जिससे खेत में नमी बनी रहती है। इस तरह से जुताई करने का मुख्य उदेश्य खेत की मिट्टी को भुरभुरी बनाना होता है।

फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए मिट्टी की तैयारी करना उसका प्रथम पड़ाव होता है, जिससे हर फसल को गुजरना होता है। मक्का की फसल के लिए खेत की तैयारी समय 5 से 8 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद खेत मे डालनी चाहियें। भूमि परीक्षण उपरांत जहां जस्ते की कमी हो वहां 25 किलो जिंक सल्फेट वर्षा से पूर्व खेत में डाल कर खेती की अच्छे से जुताई करें ।

बुवाई का समय
  • खरीफ :- जून से जुलाई तक
  • रबी :- अक्टूबर से नवम्बर तक
  • जायद :- फरवरी से मार्च तक

उन्नत किस्में
मक्का की क़िस्में अवधि के आधार पर मक्का की क़िस्मों को निम्न चार प्रकार में बाँटा गया है –

अति शीघ्र पकने वाली:- किस्मे (75 दिन से कम)- जवाहर मक्का-8, विवेक-4, विवेक-17, विवेक-43, विवेक-42, प्रताप हाइब्रिड मक्का-1

शीघ्र पकने वाली किस्मे:- (85 दिन से कम)- जवाहर मक्का-12, अमर, आजाद कमल, पंत संकुल मक्का-3, चन्द्रमणी, प्रताप-3, विकास मक्का-421, हिम-129, डीएचएम-107, डीएचएम-109, पूसा अरली हाइब्रिड मक्का-1, पूसा अरली हाइब्रिड मक्का-2, प्रकाश, पी।एम।एच-5, प्रो-368, एक्स-3342, डीके सी-7074, जेकेएमएच-175, हाईशेल एवं बायो-9637

मध्यम अवधि मे पकने वाली किस्मे:- (95 दिन से कम)- जवाहर मक्का-216, एचएम-10, एचएम-4, प्रताप-5, पी-3441, एनके-21, केएमएच-3426, केएमएच-3712, एनएमएच-803 , बिस्को-2418

देरी की अवधि मे पकने वाली किस्मे:- (95 दिन से अधिक )- गंगा-11, त्रिसुलता, डेक्कन-101, डेक्कन-103, डेक्कन-105, एचएम-11, एचक्यूपीएम-4, सरताज, प्रो-311, बायो-9681, सीड टैक-2324, बिस्को-855, एनके 6240, एसएमएच-3904

बीज की मात्रा 
  • संकर जातियां:- 12 से 15 किलो/हे.
  • कम्पोजिट जातियां:- 15 से 20 किलो/हे.
  • हरे चारे के लिए:- 40 से 45 किलो/हे.

बुवाई का तरीका
मक्का की बुआई मेंड़ के पूर्वी और पश्चिमी भाग के मेंडों व उपर 3-5 से.मी. की गहराई पर करनी चाहिए। मक्का की बुआई के लिए प्लांटर का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि इससे बीज और उर्वरक को उचित स्थान पर एक ही बार में पहुंचाने में मदद मिलती है। चारे के लिए बुआई सीडड्रिल का उपयोग करनी चाहिए वर्षा प्रारंभ होने पर मक्का की बुआई शुरू कर देनी चाहियें। अगर आपके पास सिंचाई का साधन हो तो मक्का को 10 से 15 दिन पूर्व ही बो देनी चाहिए।

  • शीघ्र पकने वाली:- कतार से कतार-60 से.मी. पौधे से पौधे-20 से.मी.
  • मध्यम/देरी से पकने वाली:- कतार से कतार-75 से.मी. पौधे से पौधे-25 से.मी.
  • हरे चारे के लिए :- कतार से कतार- 40 से.मी. पौधे से पौधे-25 से.मी.

खाद व उर्वरक की मात्रा
मक्का की खेती के लिए खाद व उर्वरक की मात्रा भी चुनी हुयी प्रजाति के अनुसार करनी चाहिए जिससे फसल की वृद्धि और उत्पादन दोनों को ही फ़ायदा होता है। जैसे – मक्का की खेती के लिए प्रयोग की जाने वाली नाइट्रोजन की मात्रा का तीसरा भाग बुआई के समय, दूसरा भाग बुआई के लगभग एक माह बाद साइड ड्रेसिंग के रूप में, तथा तीसरा और अंतिम भाग नरपुष्पों निकलने से पहले। फ़ोसफ़ोरस और पोटाश दोनों की पूरी मात्रा बुआई के समय खेत डालना चाहिए जिससे पौधों की जड़ों से होकर पौधों में पहुँच सके जिससे मक्का के पौधों की बृद्धि अच्छी होगी। जब आप किसी फसल के लिए खेती की तैयारी कर लेते है यूं समझिए आपका 50 फीसद काम पूरा हो चुका होता है।
  • शीघ्र पकने वाली:- 80 : 50 : 30 (N:P:K)
  • मध्यम पकने वाली:- 120 : 60 : 40 (N:P:K)
  • देरी से पकने वाली:- 120 : 75 : 50 (N:P:K)

सिंचाई
मक्का की पूरी फसल अवधि को करीब 400-600 mm पानी की जरुरत होती है। इसकी सिंचाई की महत्वपूर्ण अवस्था पुष्पन और दाने भरने का समय है। मक्का के खेत से जल निकासी उचित व्यवथा होनी चाहिए जिससे खेत में अपनी जमा नहीं होना चाहियें।

खरपतवार नियंत्रण:-

निराई और गुड़ाई
खरीफ की फसल में खरपतवारों का प्रकोप अधिक रहता है, जोकि ये फसल से पोषण, जल एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते है जिसके कारण फसल के पैदावार में 40 से 50 प्रतिशत तक का नुकसान पहुंचते है। 

छिड़काव
खरपरवार नियंत्रण के लिए एट्राजीन 2 किग्रा. प्रति हेक्टेयर या 800 ग्राम प्रति एकड़ से भारी मृदाओं में तथा 1.25 किग्रा प्रति हेक्टेयर या 500 ग्राम प्रति एकड़ हल्की मृदओं में, बुवाई के तुरन्त 2 दिन बाद में 500 लीटर/हेक्टेयर और 200 लीटर/एकड़ पानी में मिलाकर स्प्रे करें। इसके इस्तेमाल से फसल में घासकुल और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है।

मक्का के प्रमुख कीट:-

मक्का का धब्बेदार तनाबेधक कीट:- इस प्रकार के कीट पौधे की जड़ को छोड़कर समस्त भाग को प्रभवित करते है। इस कीट की इल्ली सर्वप्रथम तने में छेद करती है। इसके प्रकोप से पौधा बौना हो जाता है और उस पौधे में दाने नहीं आते है। शुरूआती अवस्था में डैड हार्ट (सूखा तना) बनता है। इसे पौधे के निचले स्थान के दुर्गध से पहचाना जा सकता है।

गुलाबी तनाबेधक कीट:- इस कीट का प्रकोप होने से पौधे के मध्य भाग में नुकसान होता है। जिसके फलस्वरूप मध्य तने से डैड हार्ट का निर्माण होता है जिसकी वजह से पर दाने नहीं आते है।

उक्त कीट प्रबंधन हेतु निम्न उपाय है:-
तनाछेदक के नियंत्रण के लिये अंकुरण के 15 दिनों बाद फसल पर क्विनालफास 25 ई.सी. का 800 मि.ली./हे. अथवा कार्बोरिल 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. का 1.2 कि.ग्रा./हे. की दर से छिड़काव करना चाहिए।



मक्का के प्रमुख रोग:-

1. डाउनी मिल्डयू:- इस रोग का प्रकोप मक्का बोने के 2-3 सप्ताह बाद लगने लगते है। सर्वप्रथम पर्णहरिम का ह्रास होने से पत्तियों पर धारियां पड़ जाती है, प्रभावित हिस्से सफेद रूई जैसे नजर आने लगते है, पौधे की बढ़वार रूक जाती है

उपचार:- डायथेन एम-45 दवा आवश्यक पानी में घोलकर 3-4 स्प्रे करना चाहिए।

2. पत्तियों का झुलसा रोग:- पत्तियों पर लम्बे नाव के आकार के भूरे धब्बे बनते हैं। रोग नीचे की पत्तियों से बढ़कर ऊपर की पत्तियों पर फैलता हैं। नीचे की पत्तियां रोग द्वारा पूरी तरह सूख जाती है।

उपचार:- रोग के लक्षण दिखते ही जिनेब का 0.12 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

3. तना सड़न:- पौधों की निचली गांठ से रोग संक्रमण प्रारंभ होता हैं तथा विगलन की स्थिति निर्मित होती हैं एवं पौधे के सड़े भाग से गंध आने लगती है। पौधों की पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं व पौधे कमजोर होकर गिर जाते है।

उपचार:- 150 ग्रा. केप्टान को 100 ली. पानी मे घोलकर जड़ों पर डालना चाहिये.

उपज

1. शीघ्र पकने वाली:- 50-60 क्ंविटल/हेक्टेयर

2. मध्यम पकने वाली:- 60-65 क्ंविटल/हेक्टेयर

3. देरी से पकने वाली:- 65-70 क्ंविटल/हेक्टेयर

कटाई व गहाई
फसल अवधि पूर्ण होने के पश्चात अर्थात् चारे वाली फसल बोने के 60-65 दिन बाद, दाने वाली देशी किस्म बोने के 75-85 दिन बाद, व संकर एवं संकुल किस्म बोने के 90-115 दिन बाद तथा दाने मे लगभग 25 प्रतिशत् तक नमी हाने पर कटाई कर लेनी चाहिए।

मक्का की फसल की कटाई के बाद गहाई सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। मक्का के दाने निकलने के लिए सेलर का उपयोग किया जाता है। सेलर न होने की स्थिति में थ्रेशर में सुखे भुट्टे डालकर गहाई की जा सकती है।