संजीव गुर्जर, (कृषि सांख्यिकी विभाग)
साधना साहा, (आनुवंशिकी और पादप प्रजनन विभाग)
रोहित सिंह, (कृषि सांख्यिकी विभाग)
डॉ. अभय बिसेन, (कृषि बागवानी विभाग)
कृषि महाविद्यालय अवं अनुसंधान केंद्र कटघोरा, कोरबा (छ.ग.)

खेती के लिए जल अति आवश्यक है और पानी (जल) के लिए हम मानसून पर निर्भर रहते हैं। किसान खेती के लिए मानसून पर निर्भर रहते हैं। फसलों की बुवाई के लिए बारिश की जरूरत पड़ती है। अगर मानसून की स्थिति सामान्य रहे, तो कृषि उपज अच्छी होती है। भारत की आधे से ज्यादा आबादी गांव में निवास करते हैं, इसलिए भारत में बड़े पैमाने पर लोग खेती करते हैं। अब जहां खेतीबाड़ी की बात आ जाए, वहां मानसून का ज्रिक होना अनिवार्य है, क्योंकि किसान भाई अच्छी तरह जानते हैं कि खेतीबाड़ी में मानसून का कितना महत्व है।

मानसून से तात्पर्य यह है कि यह अरबी शब्द मौसिम से निकला हुआ शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘हवाओं का मिज़ाज’। भारत की जलवायु की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता दक्षिण -पश्चिम मानसून है, क्योंकि यह भारतीय कृषि के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है। शीत ऋतु में हवाएँ उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बहती हैं जिसे शीत ऋतु का मानसून कहा जाता है। उधर ग्रीष्म ऋतु में हवाएँ इसके विपरीत दिशा में बहती हैं, जिसे दक्षिण-पश्चिम मानसून या गर्मी का मानसून कहा जाता है। चूँकि पूर्व के समय में इन हवाओं से व्यापारियों को नौकायन में सहायता मिलती थी, इसीलिये इन्हें व्यापारिक हवाएँ या ‘ट्रेड विंड’ भी कहा जाता है।

भारत में उगाई जाने वाली तमाम फसलें मानसून पर निर्भर हैं। अगर मध्य भारत के राज्यों की बात करें, तो यह वर्षा पर निर्भर खेती की जमीन से युक्त है। कुल मिलकर कहा जाए, तो मानसून से किसानों को खरीफ फसलों की बुवाई करने में बहुत मदद मिलती है। इससे फसलों का रकबा भी बढ़ जाता है। जब मानसून दस्तक देने वाला होता है, तब किसान अपने खेतों को लेकर बहुत सक्रिय हो जाते हैं और अधिकतर किसान खरीफ फसलों की बुवाई करने की तैयारियां शुरू कर देते हैं।

किसानों के लिए मानसून की स्थिति जानना काफी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि हर साल मानसून के आगमन, तीव्रता, अवधि और निकासी में उतार-चढ़ाव होता है। कभी मानसून की बारिश में देर हो जाती है, तो कभी सामान्य से अधिक बारिश होती है, जिसके चलते किसानों को खेतों की फसल में नुकसान भी हो जाता है। ऐसे में किसानों के लिए मानसून का पूर्वानुमान जानना जरूरी है।

जैसा कि हमने कहा कि किसान खेती के लिए मानसून पर निर्भर रहते हैं। कई फसलों की बुवाई के लिए बारिश की जरूरत पड़ती है। अगर मानसून की स्थिति सामान्य रहे, तो कृषि उपज अच्छी होती है। अगर किसानों को कृषि उपज बेहतर मिलती है, तो इस वजह से ग्रामीण इलाके की अर्थव्यवस्था में भी काफी अच्छा सुधार होता है। खरीफ की प्रमुख फसल- धान, सोयाबीन, अरहर, बाजरा, ज्वार, मक्का आदि, जो की पूर्णत मानसून पर निर्भर होती है। जब वर्षा अनियमित होती है, तब खरीफ की फसल प्रभावित हो जाने पर उपज पर प्रभाव पढ़ता है, साथ ही रबी की फसल भी प्रभावित होती है, जिससे उपज कम प्राप्त होता है।

जीडीपी की हालत बिगाड़ सकता है खराब मानसून
भारत को कृषि प्रधान देश ऐसे ही नहीं कहा गया है। तमाम एक्‍सपर्ट और आर्थिक मामलों के जानकार बताते हैं कि अगर भारतीय कृषि क्षेत्र को नुकसान पहुंचता है तो इसका खामियाजा पूरी अर्थव्‍यवस्‍था को भुगतना पड़ सकता है। इस पर ताजा चिंता मानसून को लेकर है, जो अभी तक उम्‍मीद के मुताबिक नहीं दिखा है।

भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए मानसून इसलिए भी काफी अहमियत रखता है, क्‍योंकि यहां सालभर में होने वाली कुल बारिश का 70 फीसदी पानी सिर्फ मानसून में बरसता है। इतना ही नहीं 60 फीसदी कृषि योग्‍य भूमि की सिंचाई भी मानसून की बारिश से ही होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल फरवरी-मार्च में ही तापमान बढ़ने से पहले ही कृषि क्षेत्र पर मुसीबत आ चुकी है, अब खराब मानसून को झेलना भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लिए किसी आपदा से कम नहीं होगा।

इसके महत्त्वपूर्ण परिणामों में से एक दक्षिण-पश्चिम मानसून में परिवर्तन और कृषि पर इसका प्रभाव है। अगर मानसून से ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था सुधरती है, तो भारत की जीडीपी को अच्छा लाभ होता है, क्योंकि जीडीपी में ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था का बड़ा योगदान है।