साधना साहा, (आनुवंशिकी और पादप प्रजनन विभाग)
संजीव गुर्जर, (कृषि सांख्यिकी विभाग)
डॉ. एस.एस. पोर्ते, (मृदा विज्ञान विभाग)
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, कटघोरा, कोरबा (छ.ग.)

‘‘अक्षेत्रे बीजमुत्सृष्टमन्तरैव विनश्यति।
अबीजकमपि क्षेत्रं केवलं स्थण्डिलं भवेत्।।
सुबीजम् सुक्षेत्रे जायते संवर्धते।‘‘

अर्थात् अनुपयुक्त भूमि मे बीज बोने से बीज नष्ट हो जाते है औ अबीज अर्थात् गुणवत्ताहीन बीज भी खेत में केवल लाथड़ी बनकर रह जाते हैं। केवल सुबीज अर्थात् अच्छा बीज ही भूमि से भरपूर उतपादन दे सकता है। अब यह जानना आवश्यक है कि सुबीज क्या है ? सुबीजम् सु तथा बीजम का अर्थ है बीज अर्थात् अच्छा बीज। अच्छा बीज जानने से पहले यह आवश्यक है कि बीज क्या है ? बीज एक परिपक्व बीजाण्ड है, जो निषेचन के बाद क्रियाशाील होता है बीज उचित परिस्थितियों जैसे जल, वायु, सूर्रा प्रकाश आदि मिलने पर क्रियाशील होता है।

परिभाषा
  • ऐसी रचना जो साधारणतया गर्भाधान के बाद भ्रुण से विकसित होती है, बीज कहलाती है।
  • ऐसा परिपक्व भ्रुण जिसमें एक पौधा छिपा रहता है। पौधे के आरंभिक पोषण के लिए खाद्य सामग्री हो तथा यह बीज कवच से ढका हो और अनुकुल परिस्थितियों में एक स्वस्थ पौध देने में समर्थ हो, बीज कहलाता है।

बीज खरा हो तो भंडार भरा
देश में सिंचित क्षेत्र में अनाज की दो प्रमुख फसलें उगाई जाती हैं गेंहू और धान। इन फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए फसल को रोगों से बचाने के लिए और अच्छी किस्म का अनाज पाने के लिए उन्नत किस्म के बीज विकसित किए गए हैं। गेंहू और धान के अलावा मोटे अनाज, दालें तिलहन तथा फल-सब्जियों की उन्नत किस्में भी तैयार हुई है। ऐसे बीज किसान को उपलब्ध हो सके इस दिशा में भी बराबर प्रयास हो रहा है।

बीज कहॉ से प्राप्त करें
हर तीन चार साल बाद बीज बदल लेना अच्छी नीति है जिसके परिणामस्वरूप फसल अच्छी होती है। अच्छी उपज में लिए प्रमाणित बीज का उपयोग करें। जो कि अच्छे संस्थान से ही प्राप्त हो सकता है। इससे बीज का अच्छा जमाव एवं किस्म की उत्तमता के विषय में सुनिश्चितता होती है, साथ ही साथ बीज शारीरिक बीमारियों से मुक्त होता है।

कुछ बीज प्रमाणिकरण संस्थान

1) NSC राष्ट्रीय बीज निगम

2) SSC स्टेट सीड सर्टिफिकेशन

3) SSCB सीड सर्टिफिकेशन बोर्ड

4) CSCB सेन्ट्रल सीड सर्टिफिकेशन बोर्ड

भारत में बीज उत्पादन इतिहास एवं बीज उत्पादन का महत्व&

बीज उत्पादन का महत्व
प्राथमिक रूप से भारत में बीज उत्पादन में बढ़ोत्तरी का श्रेय अधिक उपज देने वाली किस्मों का प्रजनन है। साथ ही साथ सभी फसलों के उन्नत किस्मों के प्रजनन के प्रयास किए जा रहे हैं।

पादप प्रजनन के क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण घटनाओं से बीज उत्पादन बढ़ा है-

1) मक्का के संकट किस्मों का विकास।

2) गेंहू तथा चांवल की बौनी किस्मों का विकास।

1963-64 में भारत में कृषि उत्पादन निम्न स्तर पर था। देश की जनसंख्या अपेक्षित कम होने के बावजूद खाद्यानों का आयत करना जरूरी था। 1956 में Public law 480 के अंतर्गत USA से गेंहू के छूट पर आयात प्रारंभ किया गया, जिससे देश में खाद्यानों की पूर्ति की जाती थी। 1951 से 1962 तक खाद्यानों के उत्पादन में सिर्फ 2.87 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हुई। जिससे लगभग आधा भाग क्षेत्रफल में वृद्धि तथा आधा भाग उत्पादकता के फलस्वरूप था। उसके बाद 1966-1978 तक संकट एवं अन्य उन्नशील बीजों के उपयोग से खाद्यान्नों के उत्पादन में 4 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हुई।

हरित क्रांति अर्थात् गेंहूं तथा धान की बौनी किस्मों के प्रचलन से रासायनिक उर्वरकों की प्रचुरता तथा सिंचाई के साधनों की उपलब्धता से खाद्यान्नों के उत्पादन में अभूतपुर्व वुद्धि हुई। इसके फलस्वरूपअब देश की वृहद जनसंख्या (लगभग 120 करोड़ ) के लिए खाद्यान्नों के आपूर्ति स्वयं उत्पादन से हो जाती है। आनुवांशिक रूप से शुद्ध तथा अधिक उपज देने वाला बीज लाभप्रद फसल उतपादन का आधार होता है। पादप प्रजनक, उत्तम बीज के विकास के साथ उसकी अनूकुलता को देश तथा स्थानीयता में परीक्षण करता है।

इन किस्मों को बीज परीक्षण केन्द्र से मान्य की जाती है। कृषक को अधिकतम लाभ के लिए संस्तुत का दी जाती है।

अनुसंधान केन्द्र हमेशा किसानों को शुद्ध एवं उन्नत बीज देने की स्थिति में नहीं रह पाते क्योंकि सुविधायें तथा कार्य सीमित होते हैं। प्राकृतिक तथा मानवीय कारणोें जैसे- मिश्रण, प्राकृतिक संकरण तथा उत्परिवर्तन से अशुद्धधताएं आ जाती है। जिसमें बीज कुछ वर्षो तक ही शुद्ध रह पाता है। बीज की मांग तो बढ़ जाता है परंतु इन कारणों से बीज की आनुवांशिक शुद्धता तथा सामान्य विशेषताएँ प्रभावित हो जाती है। जिससे किसानों को पूरा लाभ नहीं मिल पाता। नई किस्मों को विकसित करने तथा उपयोग में लाने तक का उत्तरदायित्व प्रजनन सर्टिफिकेट तथा व्यावसायिक बीज वर्धन पर है।

डॉ. ए.ए. जानसन के अनुसार- ‘‘बीज उत्पादन, वर्धन तथा वितरण वह विधि है जिससे बीज प्रयोगकर्ताओं को यह विश्वास होता है कि उन्हें उसे उत्तम किस्म को उगाने से अन्त तक बीज की उत्तमता की रक्षा होने से मूल्य मिलेगा, बीज शुद्ध है तथा उत्तम गुण तथा आपेक्षित हानिकारक बीमारियों से रहित है।‘‘

अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनुसार बीज प्रमाणीकरण का ध्येय जनता को फसलों की उत्तम किस्मों का उच्च गुणवता का बीज तथा प्रर्वधन पदार्थ प्रदान करना है, जिसके उगाने एवं वितरण पूर्व आनुवांशिक सर्वसामिका रखी गई हों। केवल वे प्रमाणीकरण जर्मप्लाज्म उत्कृष्ट या अच्छा होता है उनका ही प्रमाणीकरण किया जाता है। प्रमाणीकरण बीज की वेराइटल शुद्धधता तथा अंकुरण क्षमता उत्तम होती है।

बीज प्रमाणीकरण से किसानों को आनुवांशिक रूप से शुद्ध बीज उचित मूल्य पर प्रदान किया जाता है। अधिकतर देशों में खाद्यान्न का अभाव है। अतः उन्नत बीजों का अत्याधिक महत्व है क्योंकि ये उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होती है। स्पष्टताः भारत में बीजोत्पादन के व्यावसाय के लिये विशाल एवं व्यापक क्षेत्र विद्यमान हैं।

उन्नत बीजों के महत्व के परीपेक्ष में कई राज्यों ने उन्नत बीजों के प्रयोग तथा गुणवत्ता के नियमन के लिए अधिनियम बनाए हैं। किसी भी प्रकार या किस्म कि बीज की गुणवत्ता के नियमन हेतु संसद ने 1966 को बीज अधिनियम पारित किया जो कि 1 अक्टूबर 1969 को लागू हुआ। जिसके अंतर्गत उन्नत किस्मों के बीजों के प्रमाणीकरण तथा बोने के लिए बीज के व्यावसायिक विक्रय पर नियंत्रण का प्रावधान है।

भारत में बीज उत्पादन का महत्व
बीज उत्पादन के महत्व के दृष्टिकोण से भारत सरकार ने राष्ट्रीय बीज निगम (NSC) की स्थापना सन् 1963 में की जिसका प्राथमिक उद्देश्य सुदृढ़ बीज उद्योग का प्रबंधन एवं विकास करना है। मौलिक रूप से इसका ध्येय आधार बीज उत्पादन, अनुरक्षण एवं विवरण संस्थान के रूप में कार्य करना है।

मुख्य कार्य

1. कृषि बीजों का उत्पादन संसाधन, सुखाना अनुरक्षण वितरण एवं उपयुक्त स्थानों पर परिवरन करना ।

2. सहकारी समितियों निगमों तथा सरकारी एजेंसियों से समझौता करके बीजों का उत्पादन, संसाधन, सुखाना, अनुरक्षण वितरण एवं परिवहन करना।

3. बीज निरीक्षण एवं बीजोत्पादन के प्रत्येक चरण पर नियंत्रण रखना।

4. प्रत्येक प्रकार के आवश्यक बीजों का परीक्षण, अनुरक्षण भंडारण एवं वितरण करना।

केन्द्रीय रूप से भारत में अनुसंधान एवं प्रजनन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा नियंत्रित अनुसंधान संस्थाओं तथा कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा सम्पन्न किया जाता है। इनमें समन्वय बनाए रखने का दायित्व ICAR का है।

भारत में बीज उद्योग का विकास
वर्ष 1950 के पहले भारतवर्ष में बीज उत्पादन लगभग असंगठित था। बीज उत्पादन का कार्य मुख्य रूप से निजी कंपनियों तथा व्यापारियों तक ही सीमित था और सरकार का योगदान सीमित ही था। लेकिन ये सभी प्रयास बीजों की वास्तविक आवश्यकता की तुलना में बहुत ही अपर्याप्त थे।

1956-57 में भारत सरकार ने State Seed Farms Project शुरू की। इस परियोजना के तहत् धान्य फसलों के आधार बीजों का उत्पादन करना था। बाद में 1963 में NSC की स्थापना 1966 में भारतीय बीज अधिनियम पारित किया गया। राष्ट्रीय बीज निगम (NSC) की स्थापना भारतवर्ष में बीज उद्योग के विकास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना थी।