डॉ. योगेश कुमार कोसरिया, शिवांगिनी, सौरभ सिन्हा, एवं डॉ. द्रोणक कुमार
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, रायगढ़ के मसाला अनुसंधान केन्द्र द्वारा मसाला फसलों में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परीक्षणों में विभिन्न मसाला फसलों की अनेक प्रजातियों का योगदान दिया गया है। केन्द्र द्वारा विकसित धनिया की दो किस्मों छत्तीसगढ़ धनिया-1 को छत्तीसगढ़ राज्य हेतु एवं छत्तीसगढ़ श्री चन्द्रहासिनी धनिया-2 को छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, उत्तराखंड, आंध्रप्रदेश एवं तमिलनाडु राज्यों के लिए वर्ष 2019 में जारी तथा अधिसूचित किया गया है।

उपयोग एवं महत्व
धनिया एक बहुमूल्य बहुउपयोगी मसाले वाली आर्थिक दृष्टि से भी लाभकारी फसल है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते है। धनिया बीज में बहुत अधिक औषधीय गुण होने के कारण कुलिनरी के रूप में, कार्मिनेटीव और डायरेटिक के रूप में उपयोग में आते है भारत धनिया का प्रमुख निर्यातक देश है । धनिया के निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है ।

जलवायु
शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिये अनुकूल होता है । बीजों के अंकुरण के लिय 25 से 26 से.ग्रे. तापमान अच्छा होता है । धनिया शीतोष्ण जलवायु की फसल होने के कारण फूल एवं दाना बनने की अवस्था पर पाला रहित मौसम की आवश्यकता होती है । धनिया को पाले से बहुत नुकसान होता है । धनिया बीज की उच्च गुणवत्ता एवं अधिक वाष्पशील तेल के लिये ठंडी जलवायु, अधिक समय के लिये तेज धूप, समुद्र से अधिक ऊंचाई एवं ऊंचहन भूमि की आवश्यकता होती है ।

भूमि का चुनाव एवं उसकी तैयारी
धनिया की सिंचित फसल के लिये अच्छा जल निकास वाली अच्छी दोमट भूमि सबसे अधिक उपयुक्त होती है और असिंचित फसल के लिये काली भारी भूमि अच्छी होती है । धनिया क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नही करता है । अच्छे जल निकास एवं उर्वरा शक्ति वाली दोमट या मटियार दोमट भूमि उपयुक्त होती है । मिट्टी का पी.एच. 6.5 से 7.5 होना चाहिए । सिंचित क्षेत्र में अगर जुताई के समय भूमि में पर्याप्त जल न हो तो भूमि की तैयारी पलेवा देकर करनी चाहिए । जिससे जमीन में जुताई के समय ढेले भी नही बनेगें तथा खरपतवार के बीज अंकुरित होने के बाद जुताई के समय नष्ट हो जाऐगे । बारानी फसल के लिये खरीफ फसल की कटाई के बाद दो बार आड़ी-खड़ी जुताई करके तुरन्त पाटा लगा देना चाहिए। 

बोनी का समय
धनिया की फसल रबी मौसम में बोई जाती है । धनिया बोने का सबसे उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर है । धनिया की सामयिक बोनी लाभदायक है। दानों के लिये धनिया की बुआई का उपयुक्त समय नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा हैं । हरे पत्तों की फसल के लिये अक्टूबर से दिसम्बर का समय बिजाई के लिये उपयुक्त है। पाले से बचाव के लिये धनिया को नवम्बर के द्वितीय सप्ताह मे बोना उपयुक्त होता है। 

बीज दर 
सिंचित अवस्था में 15-20 कि.ग्रा./हे. बीज तथा असिंचित में 25-30 कि.ग्रा./हे. बीज की आवश्यकता होती है।

खाद एवं उर्वरक
असिंचित धनिया की अच्छी पैदावार लेने के लिए गोबर खाद 20 टन/हे. के साथ 40 कि.ग्रा. नत्रजन, 30 कि.ग्रा. स्फुर, 20 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से तथा 60 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. स्फुर, 20 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित फसल के लिये उपयोग करें ।

असिंचित अवस्था में उर्वरको की संपूर्ण मात्रा आधार रूप में देना चाहिए। सिंचित अवस्था में नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस, पोटाश एवं जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा बोने के पहले अंतिम जुताई के समय देना चाहिए । नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग के रूप में प्रथम सिंचाई के बाद देना चाहिए । खाद हमेशा बीज के नीचे देवें । खाद और बीज को मिलाकर नही देवें। धनिया की फसल में एजेटोबेक्टर एवं पीएसबी कल्चर का उपयोग 5 कि.ग्रा./हे. केहिसाब से 50 कि.ग्रा. गोबर खाद मे मिलाकर बोने के पहले डालना लाभदायक है ।

बोने की विधि
बोने के पहले धनिया बीज को सावधानीपूर्वक हल्का रगड़कर बीजो को दो भागो में तोड़ कर दाल बनावें । धनिया की बोनी सीड ड्रील से कतारों में करें । कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से. मी. रखें । भारी भूमि या अधिक उर्वरा भूमि में कतारों की दूरी 40 से.मी. रखना चाहिए । धनिया की बुवाई पंक्तियों मे करना अधिक लाभदायक है । कूड में बीज की गहराई 2-4 से.मी. तक होना चाहिए । बीज को अधिक गहराई पर बोने से अंकुरण कम प्राप्त होता है ।

सिंचाई प्रबंधन
धनिया में पहली सिंचाई 30-35 दिन बाद (पत्ति बनने की अवस्था), दूसरी सिंचाई 50-60 दिन बाद (शाखा निकलने की अवस्था), तीसरी सिंचाई 70-80 दिन बाद (फूल आने की अवस्था) तथा चैथी सिंचाई 90-100 दिन बाद (बीज बनने की अवस्था ) करना चाहिऐ। हल्की जमीन में पांचवी सिंचाई 105-110 दिन बाद (दाना पकने की अवस्था) करना लाभदायक है ।

  • डायबिटीज में फायदेमंद हरा धनिया को ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने के लिए रामबाण माना जाता है
  • किडनी रोगों में असरदार
  • पाचन शक्ति बढ़ाने में
  • कोलेस्ट्रॉल को करता है कम
  • एनीमिया से दिलाए राहत
  • आंखों की रोशनी बढ़ाएं

विवरण
यह मेडिटरानियन देशज है और भारत, मोरोक्को, रूस, पूर्वी यूरोपीय देश, फ्रांस, मध्य अमरीका, मेक्सिको और यू एस ए में वाणिज्यिक तौर पर इसका उत्पादन किया जाता है। धनिया एक उष्ण कटिबंधी फसल है और ऐसी जगहों में, जहाँ फरवरी में, जब फसल पर फूल आने तथा फल लगने के समय भारी ओले की समस्या नहीं होती हो, रबी मौसम की फसल के रूप में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।

धनिया खाद्या वस्तुओं को स्वाद एवं सुगंध प्रदान करनेवाली प्रमुख मसाला फसल है। इसका पौधा पतले तनोंवाला, छोटा, झाडीनुमा शाक है, 25-50 से.मी. ऊँचे, इसमें कई शाखाएँ व पुष्पछत्र होते हैं। इसके पत्ते एकान्तर और संयोजित होते हैं। पूरे पौधे की अपनी अच्छी सुगन्ध रहती है। इसका पुष्पगुच्छ पाँच छोटे छोटे पुष्पछत्रों का एक संयोजित पुष्पछत्र है। इसके फल 3.4 मि.मी. व्यास के गोलाकार होते हैं, जिसे दबाने पर दो भागों, प्रत्येक में एक बीज होता है , बीजों का रंग फीके सफेद से हल्का भूरा तक रहता है।

धनिया दो विशेष आकार की होती है
ऊर्ध्व और अपेक्षत: अधिक मज़बूत मुख्य प्ररोहवाली एक किस्म और दूसरी झाडीनुमा, अपेक्षत: कमज़ोर मुख्य प्ररोह और लम्बी, फैलनेवाली शाखाएँ सहित किस्म ।

उपयोग
किशोर पौधों का इस्तेमाल व्यंजनो तथा सूप को सुवासित करने व सजाने के लिए किया जाता है। इसके फलों (बीज) का व्यापक प्रयोग करी पाउडर, सॉसेज और सीसनिंग्स के बनाने में मसाले के रूप में सेंक कर या बिना सेंक के किया जाता है। खाद्य सुवास कारकों , बेकरी उत्पादों, मांस उत्पादों, सोडा ओर सीरप पुड्डिंग, कैण्डी प्रिज़र्व और पेयों के निर्माण का प्रमुख घटक है ? दवाओं में, वातहर, प्रशीतक, मूत्रवर्ध्दक ओर कामोत्तेजक के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। घरेलू नुस्खों में, मौसमी बुखार, पेट की गडबडियों तथा मिचली के उपचार में इसका इस्तेमाल किया जाता है। धनिया तेल ओर तैलीराल सोसेजों ओर अन्य माँस उत्पादों के संरक्षण में मुख्यत: प्रयुक्त किये जाते हैं।