पुष्पराज दीवान, अमिता गौतम, अमन एवं आर.के. नायक
स्वामी विवेकानंद कृषि अभियांत्रिकी 
महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, रायपुर (छ.ग.)

भारत चावल की खेती का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, यहाँ चावल की खेती बहुत बड़े क्षेत्र में की जाती है। धान का औसत बोया गया क्षेत्र लगभग 44 मिलियन हेक्टेयर है, जिसमें लगभग 18.8 मिलियन हेक्टेयर वर्षा आधारित स्थिति में है। धान का उत्पादन लगभग 104 मिलियन हेक्टेयर टन और उत्पादकता लगभग 2400 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। धान की उत्पादकता समय के अनुसार लगातार बढ़ी है पर देखा जाये तो उसमे उपयोग होने वाले साधनो का उपयोग का दर, उत्पादकता दर से अधिक है।

खरपतवार क्या है?
खरपतवार भारत में चावल के उत्पादन के लिए एक प्रमुख बाधा है। खरपतवार के संक्रमण से चावल की फसल बुरी तरह प्रभावित होती है। खरपतवार के खराब प्रबंधन के कारण, खेती के कई पद्धति या विफल हो गयी है। चावल की खेती को लाभदायक बनाने के लिए लागत में कमी भी बहुत महत्वपूर्ण है। निराई में यंत्रो का उपयोग निराई में होने वाली लागत को कम करने में सहायक हो सकते है। भारत में चावल को विभिन्न तरीकों से उगाया जाता है, जैसे छिड़कवा विधि, बायसी, ड्रिल्ड या लाइन बुवाई (कतार बोनी), ले ही और रोपाई जो की मुख्य रूप से स्थान, मिट्टी, सिंचाई सुविधाओं और खेती के संचालन के लिए उपलब्ध श्रमिकों पर निर्भर हैं। आज के दिनों में पंक्ति से पंक्ति रोपण (कतार बोनी) बहुत लोकप्रिय है, जिसे एकीकृत फसल प्रबंधन, एस.आर.आई. (श्री) के रूप में जाना जाता है। देश में चावल के उत्पादन को बनाये रखने के लिए, खेती की लाइन बुवाई प्रणालियों के माध्यम से प्रयास किए गए हैं, जो न केवल पौधों की आबादी को बनाए रखते हैं, बल्कि इसके कुछ अन्य फायदे भी हैं, जैसे कि कृषि मध्य गतिविधि वो खाद डालना, सिंचाई, प्रभावी निराई इत्यादि।

खरपतवार अवांछित पौधे हैं जो फसल के साथ पैदा हो जाते है और बढ़ने लगते है। खरपतवार कृषि पौधों से पानी, दिन की रोशनी, पोषक तत्वों और स्थान के लिए लड़ते हैं। खरपतवार निकालने की प्रक्रिया को निराई-गुड़ाई कहा जाता है। अन्य फसलों की तुलना में सिंचित भूमि वाले धान की फसल में खरपतवारों की समस्या अधिक है। चावल की उपज की मात्रा और गुणवत्ता खरपतवार के प्रभाव से काफी कम हो जाती है। खरपतवार हमेशा मानवीय गतिविधियों से जुड़े होते हैं और फसल की पैदावार में भारी कमी, खेती की लागत में वृद्धि, उत्पादक सामग्री की प्रभावशीलता में कमी, कृषि कार्यों में बाधा, खराब गुणवत्ता, कई कीटों और बीमारियों के लिए महत्वपूर्ण कारक के रूप में कार्य करते हैं। इसके अलावा देखा गया है की किसान के समय का महत्वपूर्ण हिस्सा निराई के काम के लिए बर्बाद हो जाता है।

खरपतवार का प्रबंधन
खरपतवार प्रबंधन पुरानी प्रथा है, जो पैदावार में सुधार के लिए कई वर्षों से किया जा रहा है लेकिन निराई की विधि समय के साथ बदल रही है। खरपतवारों को विभिन्न तरीकों से नियंत्रित किया जा रहा है जैसे किबियासी, हाथ से निराई, रासायनिक विधि और यांत्रिक विधि। धान के विकास के प्रारंभिक चरणों (रोपण के 2-6 सप्ताह बाद) के दौरान खरपतवार पौधों के साथ अधिक आक्रामक होते हैं, अतः उपज में सुधार के लिए इस अवधि में निराई करना आवश्यक है। चावल की खेती की रोपाई विधि में 10-15 दिन पुराने अंकुरन का इस्तेमाल किया जाता है और पहली निराई रोपाई के 10-15 दिन बाद होनी चाहिए, जिसमें 10-12 दिनों के अंतराल के बाद पुनः निराई कार्य किया जाना चाहिए। कतार बोनी में निराई कार्य बुवाई के 15 दिन बाद और 30 दिन बाद किया जाना चाहिए।


निराई करने की पारंपरिक विधि (मैनुअल हैंड पिकिंग) में बहुत ज्यादा लोगो की आवश्यकता होती है, जो कि अनौपचारिक है और कार्य में इतने लोगो का शामिल होना समय पर मुमकिन नहीं है। रासायनिक निराई विधि में खरपतवारनाशी के प्रयोग से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। कई रासायनिक जैसे ब्रोमैसिल, डायरोन, एट्राजीन प्रभावी निराई के लिए एक विशेष मात्रा में लागू होते हैं। रसायनों को लागू करते समय अधिक सुरक्षा लेना बहुत जरुरी होता है, क्योंकि यह हमारी त्वचा या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इस पद्धति का उपयोग किसानों द्वारा व्यापक रूप से इसकी प्रभावशीलता के कारण किया जाता है, लेकिन खरपतवारनाशक उत्पादों के स्वास्थ्य, स्वाद और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है जबकि रासायनिक निराई से मिट्टी की उर्वरता और मृदा में रहने वाले कार्बनिक पदार्थो और जीवो को काफी नुकसान पहुँचता है। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण विधि में कार्य की लागत हाथ से निराई करने से आधी है परन्तु इसके जहरी ले प्रभाव के कारण कृषि में खाद्य रसायनों की सुरक्षा का उपयोग नहीं किया जा सकता है। रसायन का उपयोग जीवित जीव के लिए जोखिम भरा और असुरक्षित हैं। खरपतवार में धीरे धीरे शाकनाशी के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न होने लगता है, जिसके वजह से रसयानो की प्रभावशीलता कम या फिर पूरी तरह असफल हो सकती है, रासायनिक नियंत्रण विधि पर निर्भरता सवाल से बाहर है क्योकि इससे वातावरण और जीवो पर दुष्प्रभाव देखा गया है।

यांत्रिक खरपतवार नियंत्रण एवं उसके फायदे
यांत्रिक औजारों और मशीनों का उपयोग इसमें किया जाता है। आजकल बहुत से यन्त्र इसके लिए उपलब्ध है जैसे अम्बिका वीडर, कोनो वीडर, फिंगर वीडर, स्वचालित पावर वीडर इत्यादि। इन सब यंत्रो का उपयोग खरपतवार नियंत्रण में बहुत ही कारगर साबित हुआ है।

यांत्रिक निराई मिट्टी की सतह को ढीला करती है, जिसके परिणाम स्वरूप बेहतर वातावरण और बेहतर नमी संरक्षण होता है। पारिस्थितिक (इको फ्रेंडली) तरीके से खरपतवार प्रबंधन बहुत ज्यादा आवश्यक है जिससे प्रदुषण कम से कम रहे। यांत्रिक खरपतवार नियंत्रण खरपतवारों को उखाड़ने के साथ-साथ उसको मिटटी में मिलाने का भी कार्य करता है तथा कार्य मशीनों के द्वारा होने की वजह से निराई में कम लोगो की आवश्यकता होती है। यांत्रिक निराई अन्य विधियों की तुलना में अधिक प्रभावी पाई जाती है क्योंकि यह खरपतवारों को मिटटी में मिलाकर वहां के वातावरण को भी बेहतर बनाती है। यह पौधों के मध्य पंक्तियों के बीच की मिट्टी को ढीला करती हैं जिससे मिट्टी की वायु और जलग्रहण क्षमता बढ़ती है। अतः चावल की खेती में खरपतवार प्रबंधन के लिए यांत्रिक खरपतवार नियंत्रण सबसे उपयुक्त हो सकता है। खरपतवार में यंत्रीकरण से होने वाले फायदे को निचे दिए गए है।
  • मृदा में प्रदुषण कम होता है जो कि रासायनिक खादों के उपयोग से बहुत ज्यादा प्रभावित होती है।
  • हाथ से निराई करने से समय बहुत खपत होता है, जब कि मशीनों के उपयोग से काम आसान और जल्दी हो जाता है।
  • निराई में होने वाले खर्चे को कम किया जा सकता है।
  • श्रमिकों को काम करने में थकान कम लगती है और वह एक ही बार में बहुत बड़े क्षेत्र में निराई कर सकता है।